Rasiya [part 73]

कस्तूरी ,गहरी नींद में सोई थी ,जब उसकी आँख खुली तो, उसने अपने पास चतुर  को लेटे हुए पाया। अपने समीप उसे इस तरह लेटे देखकर ,उसे अज़ीब सा लगा और वो उठ बैठी। उसकी चूड़ियों की खनक से चतुर की आँखें खुली या फिर वह गहरी नींद में सोया ही नहीं था। कस्तूरी को इस तरह बैठे देखकर, चतुर ने पूछा -क्या नींद नहीं आ रही है ?

आप कब आए ?मुझे तो पता ही नहीं चला। 

तभी आया था ,जब तुम गहरी नींद में खर्राटे भर रही थीं। 

यह क्या कह रहे हो ? मैं क्या की नींद में खर्राटे लेती हूं ? मैंने तो कभी नहीं सुने

तुम कैसे सुनोगी ? तुम तो सो रही थी। 


नहीं ,मैंने कभी खर्राटे नहीं लिए ,वैसे समय क्या हुआ है ?

चतुर में अपने, अलार्म को देखा, और बोला -अभी तो 4:00 बजे हैं। 

इतनी जल्दी सुबह हो गई। 

तुम्हें कौन से काम पर जाना है ?लेटी रहो, अभी आराम करो !

क्या ,आप यही लेटेंगे ?

और नहीं तो क्या ? ये मेरा कमरा है और तुम मेरी हो ,अब यही मेरी दुनिया है ,मैं इसके सिवा और कहाँ जाऊंगा ?

उसकी बात सुनकर ,कस्तूरी मुस्कुरा दी ,तुम्हारी मुस्कुराहट कह रही है ,मैं अब यहीं सो सकता हूँ ,कहते हुए ,पलंग पर पैर फैलाकर लेट गया और बोला -तुम भी लेट जाओ !किन्तु कस्तूरी बैठी रही। क्या तुम्हें नींद नहीं आ रही ? सोचने का अभिनय करते हुए -हाँ ,हो सकता है ,अपनी माँ के पास सोती हों  ,कहते हुए ,कस्तूरी की गोद में अपना सिर रख दिया। तुम्हें अपने घर की याद तो नहीं आ रही , नई जगह है, ठीक से नींद भी नहीं आई होगी। मैं तुम्हारे साथ हूं, तुम्हारे पास हूं , क्या मुझसे  लिपटने का मन नहीं करता। जब तो बहुत लिपटती थीं। उसकी बात सुनकर कस्तूरी शर्मा गई , उसने अपनी नज़रें नीचे कीं, तो चतुर की नजर से नजर टकराई। अब तो हम एक हैं, कहते हुए चतुर ने अपनी दोनों  बाहें कस्तूरी के गले में डाल दीं और उसे अपनी ओर खींच लिया। उसका चेहरा झुकते ही , वह उसे बेतहाशा चूमने लगा और धीरे-धीरे उसे पलंग पर लिटा दिया। आज हमारी' सुहागरात 'है, जानती हो ,क्या होता है ?

नहीं तो....... 

तुम्हें किसी ने कुछ नहीं बतलाया। 

क्या बतलाना है ?अनजान बनी कस्तूरी ने पूछा। 

यही कि'' सुहागरात ''में क्या होता है ?

इसमें क्या पता करना ?सुहाग के साथ जो रात होती है ,वही ''सुहागरात ''होती है ,और अब तुम मेरे सुहाग हो ,इतना तो मैं जानती हूँ ,यह कहकर वह चतुर की नजरों में अपने को होशियार साबित करना चाहती थी।

तब चतुर मुस्कुराकर, उसके वस्त्र उसके तन से अलग करने लगा। कस्तूरी थोड़ा सकुचा गयी और बोली -ये क्या कर रहे हो ? मुझे शर्म आ रही है। तुम मेरे सुहाग हो ,इसका मतलब ये नहीं कि तुम कुछ भी करने लगो,मुँह बनाते हुए कस्तूरी बोली। 

ठीक है ,कहते हुए चतुर ने ,कमरे में जो, छोटा बल्ब जल रहा था ,वह भी बंद कर दिया। अब तो शर्म नहीं आ रही ,पूछते हुए उसका हाथ पकड़कर अपनी ओर करीब खींच लिया और बोला -'सुहागरात ''पर जैसे ' सुहाग'कहता है। वैसे ही करना होता है ,इसलिए इसे ''सुहागरात ''कहते हैं।  गहरी स्वासों का दौर बढ़ने लगा। चतुर को लग रहा था ,कस्तूरी अभी भी सकुचा रही है ,तब उसने पूछा -क्या कोई परेशानी है ?

नहीं तो..... मुझे किसी ने ऐसा कुछ नहीं बताया था ,मुझे मालूम है ,लड़के -लड़की में प्यार होता है किन्तु तुम ये सब क्यों ?

कस्तूरी के प्रश्न पर चतुर मुस्कुरा दिया ,फिर उसके चेहरे पर बिखर आये बालों को ऊपर करते हुए बोला -तुमने 'सुहागरात 'शब्द तो सुना  है। 

हाँ ,सुना तो है,कितनी बार बताओगे ? 

बस ,उसमें ऐसी ही कुछ रस्म होती है ,जो हम दोनों के मध्य ही रहेगी। अब जैसा कहूं ,करती जाओ !चतुर मुस्कुराते हुए बोला -दोनों की सहमति से ये रस्म होती है ,उसके पश्चात ही आगे कुछ होगा। 

शर्माते हुए ,कस्तूरी ने सहमति में अपनी गर्दन हिला दी। दोनों ने एक दूसरे की भावनाओं का ख्याल रखते हुए ,एक दूसरे की सहमति से अपनी वह रस्म पूर्ण की। दोनों ही ,अब एक दूसरे के गले में बाहें डाले  सो रहे थे। 

श्रीधर जी ,दूध लेकर जब घर आये तो रामप्यारी शिकायत भरे लहजे में ,उनसे बोली -देखिये जी !छह बज गए ,बहु अभी तक सो रही है। 

सोने दो !बच्ची है ,शहर ,कस्बों में इतनी जल्दी कहाँ  उठते है ?धीरे -धीरे यहाँ के रंग में भी रंग जाएगी। तुम्हें उससे क्या करवाना है ,अभी बिहाली बहु है। 

मुझे कुछ नहीं करवाना ,नहाकर थोड़ा पूजा करके बैठ जाती। गांव में से कोई भी ,उसे देखने आ सकती है। 

तुम चिंता न करो !चतुर !उसे सब समझा देगा ,तुम मेरे लिए बढ़िया सी चाय बनाओ !

सात बजे तक कस्तूरी उठी ,नहाकर तैयार हुई ,रात्रि की बातें सोचकर मन ही मन मुस्कुरा रही थी ,उसका  चेहरा ,ताजे फूल की तरह खिल रहा था। चतुर घर में कब आया ?रामप्यारी को पता ही नहीं था ,चतुर जब कमरे से बाहर आया ,उसे देखकर ,रामप्यारी ने पूछा -तू कब आया ?

सुबह चार बजे आया था ,कहकर बाहर निकल गया। दोपहर का भोजन करके, चतुर और कस्तूरी, फिल्म देखने गए। आज पहली बार कस्तूरी ने सिनेमा देखा था, वह भी चतुर के साथ। बस रेडियो में ही गाने सुने हैं या बाहर हीरो -हीरोइन की तस्वीर लगी देखी हैं। आज उसे ऐसा लग रहा था जैसे सारी दुनिया की खुशियां उसके आंचल में समा गई हों । वह बहुत प्रसन्न थी, इतना अच्छा परिवार और इतना अच्छा पति मिला है। इतनी खुशियां पाकर  वह ''फूली नहीं समा ''रही थी। उसके दिन उजले और रातें रंगीन हो रही थीं। 

चाल्हे [पग फेरे ]के लिए , अपने घर गई थी, माता-पिता भी उसकी खुशी देखकर, अत्यंत प्रसन्न हुए। उनकी बिटिया इतने  अच्छे परिवार में जो पहुंच गई है , चतुर कस्तूरी के साथ गया, और साथ के साथ ही उसे वापस भी ले आया। उसने अब उसके घर उसे, रुकने नहीं दिया। 

बेटा ! दोनों एक रात तो रुक जाते, उसके ससुर ने आग्रह किया। 

मैं समझ सकता हूं ,आपकी बेटी है, किन्तु  इतने वर्ष आपके साथ रही, अब कुछ समय हमारे साथ बिताने दीजिए अपने संग ही कस्तूरी को वापस ले आया। धीरे-धीरे कस्तूरी उस परिवार में रमने लगी। अपनी  सास के पद चिन्हों  पर चलने लगी। रामप्यारी को भी अब काम से थोड़ा  आराम मिल रहा गया था। कस्तूरी और चतुर के विवाह को अब एक महीना हो गया था, दोनों अत्यंत ही प्रसन्न थे। रामप्यारी ने बहू के रूप में एक बेटी पा ली थी। एक महीने पश्चात चतुर बोला -अब मुझे आगे की पढ़ाई के लिए बड़े शहर जाना होगा। 

अब आगे और कितनी पढ़ाई करेगा ? अब तेरी गृहस्थी हो गई है , यहीं रहकर अपनी खेती -बाड़ी संभाल ? श्रीधर जी ने चतुर से कहा। 

खेती कहीं भागे  थोड़ी ही जा रही है , और पढ़ाई करके मुझे शहर में नौकरी भी करनी है। आगे आने वाली पीढ़ी को किसी प्रकार की परेशानी न हो, हो सकता है ,शहर में रहकर पढ़ाना भी पड़े। मैं मानता हूं ,कि हमारी खेती अच्छी होती है किंतु पैसों की तंगी आ ही जाती है। जब फसल आती है, तभी पैसे दिखलाई देते हैं। 

श्रीधर जी यह बात तो मानते थे, और बोले -जैसी तेरी इच्छा ! अभी तो मैं यह सब संभाल ही रहा हूं। 

वही तो मैं आपसे कह रहा था, खेती संभालने के लिए ,अभी आप हैं हीं , बाकी जैसा समय आएगा तब की तब देखेंगे। 

रामप्यारी मन ही मन चिंतित हो रही थी, चार दिन बहू को आए हुए ,हुए हैं, बहु -बेटा दोनों चले जाएंगे। घर में मन नहीं लगेगा। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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