गांव में आई ,नई बहू को ''कंगना खिलाने ''के लिए, गांव की कुछ महिलाएं आती हैं। उनमें ताई भी है, जो बातों ही बातों में , अपने दिनों की याद कर , अपनी ही कहानी सुनाने लगती है। वे बताती हैं , कि यह विवाह की सभी रस्में बड़ों के आशीर्वाद से, और ईश्वर के आशीर्वाद से पूर्ण होती हैं किंतु इस बीच, लड़के- लड़की पर ध्यान देना आवश्यक है। जब तक उनकी संपूर्ण रस्में नहीं हो जातीं।
तब गांव की ही एक बहू, उनसे व्यंग्य करने लगती है -और कहती है-जैसा आपके साथ हुआ, अब आप भी ,ऐसे ही बदला ले रही हैं।
बदला कैसा ? हर चीज समय पर ही सुहाती हैं। यह उम्र तो गलतियां करने के लिए ही होती है किन्तु हम बड़े किसलिए हैं ?उन्हें समझाने के लिए ,जैसे ,तुझे भी समझाना होगा। राम अवतार की बहु !तू बहुत बोलने लगी है , हमारे गांव का पानी तुझे बहुत रास आया है । ''तेरे पंख निकल आए हैं '',राम अवतार से कहकर तेरे पंख कतरवाने पड़ेंगे। ताई से हंसी -ठिठोली कर रही है।
ताईजी ! सारा दिन तो काम में ही खटते रहते हैं ,अब ऐसे समय में थोड़ा हंसी -मज़ाक कर लिया तो वो भी सहन नहीं होता।
उनकी बातों को सुनकर रामप्यारी उस कमरे में गयी ,जहाँ कस्तूरी बैठी थी। रामप्यारी ने दरवाजा खटखटाया और बोली -बहु जगी है , या सो गयी। अंदर से चूड़ियों की खनखनाहट और पायल के बजने की आवाज उन्हें सुनाई दी
यह सब देखकर ताई से रुका नहीं गया और बोली -देखा !अभी से ही बहु -बेटे का कैसे ख्याल रखने लगी ?तब तक रामप्यारी ने दरवाजा खोल दिया था। कस्तूरी मुढ़ी पर बैठी थी और चतुर चारपाई पर सो रहा था। सब कुछ ठीक -ठाक देखकर ,रामप्यारी बोली -मांजी !मेरे बच्चे समझदार हैं ,देखो !रातभर का थका है ,सो रहा है और बहु तो यहाँ मूढ़ी पर बैठी है।
उन्हें जैसे रामप्यारी पर विश्वास ही नहीं हुआ ,कमरे के नजदीक आते हुए बोलीं -तू मुझे मत समझा ,सोने का बहाना कर रहा होगा। घूंघट में कस्तूरी मुस्कुरा रही थी और सोच रही थी -ये जो भी हैं ,बहुत ही अनुभवी हैं ,सच ही तो कह रहीं हैं। उसे हंसी आ रही थी ,कहीं चतुर की चालाकी पकड़ी न जाये।
तब रामप्यारी कस्तूरी से बोलीं -बेटा !तू बाहर आकर बैठ जा ! वरना तेरी ताई को विश्वास नहीं होगा। कस्तूरी बाहर आकर बैठ गयी ,धीरे -धीरे बाहर मौहल्ले की महिलाएं भी आने लगीं। चतुर ने पहले तो बहाना ही किया था किन्तु कस्तूरी के ख्यालों में खोते -खोते ,न जाने कब नींद के आगोश में चला गया उसे पता ही नहीं चला। ''कंगना खेलने ''की रस्म के लिए तैयारी की जाने लगी
विवाह का उत्सव ऐसा ही होता है, विवाह में दो लोग ऐसे '' प्रेमसूत्र ''में बंधते हैं , दो परिवार जुड़ते हैं , दिलों में हर्षोल्लाह उमड़ आता है और जिनका विवाह हो चुका होता है , वे भी अपनी उन सुंदर यादों में खो जाते हैं। वक्त के साथ ,उस प्यार को ,उस दबे हुए एहसास की गर्मी को, महसूस करने लगते हैं।
रामप्यारी !तेरा लौंडा तो सो रहा है ,अब ''कंगना खेलने ''की रस्म कैसे करेंगे ?
ओहो !मांजी !उठा देंगे बहुत देर से सो रहा होगा।
कहाँ ,सो रहा होगा ?वो तभी सोया ,जब मैंने शोर मचाया,तुझे मेरी बात पर यकीन न हो तो अपनी बहु से पूछ ले। कस्तूरी को लगा ,बात अब मुझ पर आ गयी है ,तो उसने घूंघट और नीचे कर लिया ,सिर झुकाकर बैठ गयी। घूंघट ! कितनी अच्छी चीज है ? आज कस्तूरी को इसका लाभ नजर आ रहा है। घूंघट में रहने पर, दूसरा व्यक्ति उसके हावभाव भी नहीं पढ़ सकता। एक आकर्षक बना रहता है , उस चेहरे को देखने का, जो घूंघट में छुपा है। मन ही मन उनकी बातों पर, कस्तूरी को हंसी भी आ रही थी किंतु प्रश्न उसके पति की इज्जत का भी था। सबके सामने इस तरह उन्हें अपमानित होते भी तो नहीं देख सकती। हालांकि वह सही कह रही हैं। सबकी दृष्टि उसकी तरफ थी ,सभी उसके जबाब की प्रतीक्षा में थे।
तब एक लड़की ने, उसका घूंघट ऊपर किया और बोली -भाभी !बताओ !भैया को सोए हुए ,कितनी देर हो गई ?
मुझे भी मालूम नहीं है क्योंकि मैं मुढ्ढी पर बैठे-बैठे ही सो गई थी ? वे कब आए ,उनका पता ही नहीं चला ?
रामप्यारी ! तेरी बहू बड़ी चतुर है, अपने पति को बचा रही है।
चलो तो ,हो गया फैसला ! अब पहले नाच -गाना कर लेते हैं ,जब भाई उठ जायेंगे तो ''कंगना खेलने ''की रस्म करवा देंगे।
नहीं ,रामप्यारी बोली -इतने शोर -शराबे में भी नहीं सो पाएंगा। मैं उसे उठाती हूँ ,''कंगना खेलकर ''घेर में सोने चला जायेगा। कहते हुए ,उन्होंने चतुर को आवाज़ लगाई -चतुर और चतुर ! उठ जा बेटा ! ज्यादा नींद आ रही है तो घेर में जाकर सो जाना। अभी यहां, महिलाओं के कार्यक्रम होंगे, तेरी भी एक रस्म है , उसे करके चले जाना।
वास्तव में ही चतुर गहरी नींद में सो गया था, मां के उठाने पर, उठना तो नहीं चाह रहा था किंतु उठकर पूछा -मुझे क्या करना है ?
सब सामान पहले से ही तैयार था, दोनों को एक दूध भरे बर्तन के सामने बिठा दिया और कहा- इसमें से तुझे अंगूठी निकालनी है, जो भी अंगूठी निकालेगा, उसी का इस घर पर राज होगा और अपने साथी पर भी। कस्तूरी को यह सुनकर बहुत अच्छा लगा और वह खेलने के लिए तत्पर हो गई। पहले दो बारी में तो चतुर ने ही अंगूठी, निकाली। सभी महिलाएं हंसने लगी, अब तो कस्तूरी को क्रोध आ गया और उसने अबकी बार चतुर के हाथ में, चिकोटी काटी और जीत गई।
देख ले !मैं तेरी बहू को कह रही थी ,ये बहुत चालाक है, होशियार है ,जब जीतने की बारी आई , तब दांव खेल गई।
चतुर अपनी रस्म करके, घेर में चला गया, महिलाओं, ने ढोलक की ताल पर नाच -गाना आरंभ किया। तब उनमें से एक बोली -बहु को गाना कहां आता होगा ? मन ही मन कस्तूरी सोच सोचकर घबरा रही थी , तभी उसे अपनी मम्मी का गाया ,एक भजन स्मरण हो आया। वही भजन उसने, वहां गा दिया। सभी ने उसके सुरीले स्वर की बहुत प्रशंसा की, और तब एक फिल्मी गाने पर, उसने नृत्य प्रस्तुत किया। नाच ,गाने में लगभग रात्रि के 10:00 बज गए थे। तब ताई जी ने ही कहा था-बहु ,थकी होगी, अब इसे आराम करने दो !
जब कस्तूरी को चतुर के कमरे में ले जाया जा रहा था, उसे दोपहर की बात स्मरण हो आई, उसके मन में अजीब सी गुदगुदी हो उठी और अपने आप ही शर्मा गई। वह भी दिन भर की थकी हुई थी, बहुत तेज नींद आ रही थी। चतुर वहां नहीं था, फिर उसकी प्रतीक्षा करते हुए, लेट गई और न जाने कब नींद आ गई ?