अभी दिन का समय है, और कुछ महिलाएं कस्तूरी और चतुर की'' कंगना खिलाने ''की रस्म में आई हैं । बाहर महिलाएं हंसी -मजाक में व्यस्त हैं, किंतु जब चतुर ने पहली बार, दुल्हन के रूप में, कस्तूरी को देखा तो देखता ही रह गया। वह जैसे अपना आपा सा खो गया था। बाहर महिलाएं बैठी थीं ,उसे इतना भी स्मरण नहीं रहा और वो कस्तूरी के करीब आ गया। ये रस्में भी तो इसी कारण से बनाई जाती हैं। धैर्य ,बड़ों के आदर -सम्मान ,देवता तथा ईश्वर का आशीर्वाद उस नए वैवाहिक जोड़े पर बना रहे। कुछ चुलबली सी रस्में और कुछ गुदगुदाने वाली,मन को उमंगों से भर देती हैं। उसके पश्चात ,उनके दाम्पत्य जीवन की शुरुआत होती है ताकि ये दिन और ये रस्में उनकी ज़िंदगी को खुशहाल बना दें ,जब भी उनकी स्मृति आये ,तब भी ज़िंदगी के ढलते सूरज को भी वही एहसास हो, जो उगते समय हुआ था।'' सभी महिलाएं अपने-अपने कार्यों में व्यस्त थीं। रामप्यारी अकेली तो यह विवाह का कार्य भार नहीं संभाल सकती थी इसलिए पड़ोस की महिलाएं और कुछ रिश्तेदार भी आ जाती हैं। किसी का ध्यान इस ओर गया ही नहीं कि कस्तूरी और चतुर इस समय एक साथ हैं।
किंतु दो अनुभवी आंखें यह बात ताड़ लेती हैं ,और उन बुजुर्ग महिला का ध्यान, उस कमरे ओर गया और वो बोलीं - रामप्यारी ! जरा देख तो सही, तेरे बहू -बेटा दोनों एक ही कमरे में है , जरा अपने बेटे को बाहर निकाल...... वो वहाँ क्या कर रहा है ?उनके इस तरह कहते ही ,सभी महिलाएं हंसने लगीं ।
ताई के ये शब्द चतुर के कानों में भी पहुंच गए, तभी उसने अपने आप को संभाला , अब इस तरह बाहर भी नहीं जा सकता था । बाहर जाने में उसे ,शर्म आ रही थी। उसे लग रहा था ,जैसे किसी ने ''उसे रंगे हाथों पकड़ लिया हो। ''बाहर सभी महिलाएं हैं, वही उनकी बातों का लक्ष्य बन जायेगा ,जो वह नहीं चाहता था । अब वह अपने बचाव के लिये ,इधर -उधर देखने लगा। उसकी इस घबराहट को देखकर कस्तूरी मुस्कुरा रही थी। वहां पास ही एक चारपाई पड़ी हुई थी ,शायद बहु के आराम के लिए थी ,किन्तु अब यह चारपाई ही उसे बचाएगी ,यही सोचकर वह एक चादर ओढ़कर चुपचाप लेट गया।
तभी एक भाभी बोली- क्यों मांजी ! क्यों दो प्यार और करने वालों की दुश्मन बनी हुई हो ?
मैं काहे की दुश्मन बनूंगी , कुछ लिहाज -शर्म, भी तो होती है। बच्चे कुछ गलत न करें, इसलिए टोकना भी पड़ता है, रात किस लिए बनी है ? दोनों को रात भर साथ ही सोना है।
ओहो ! मां जी आपको तो जैसे सब पता है। हो सकता है ,बातें ही कर रहे हों।
क्यों ? मुझे क्यों न पता होगा ? बिना पता करे ही मैंने, छह -छह बच्चे जन दिए। ब्याह क्या ?बात करने के लिए करा है। तेरा ताऊ भी , मुझसे मिलने के लिए ऐसा ही उतावला हो रहा था ,छुप -छुपकर मुझसे मिलने के बहाने ढूंढता था। एक रात की बात बताऊँ !जैसे कोई रहस्य उजागर कर रहीं हों ,उन दिनों हमारे देवता नहीं पुजे थे ,उससे पहले हम मिल नहीं सकते थे। तेरा ताऊ परेशान,ताई अपने उन दिनों की स्मृतियों में खो गयी थी ,उसे उम्र का एहसास ही नहीं रहा कि अब वो उस दौर को बहुत पीछे छोड़ आई हैं।
फिर क्या हुआ ताईजी !वहां बैठी महिलाओं ने उनकी कहानी में दिलचस्पी लेते हुए ,मुस्कुराकर पूछा।
होना क्या था ?मेरी सास ने मुझे अपने करीब रखने के लिए ,सोने के लिए ,मुझे अपने साथ छत पर ले गयी ,ताकि वो मेरे करीब न आ सकें। तेरा ताऊ भी कम थोड़े ही था, वो घर की पिछली दीवार से चढ़कर मुझसे मिलने आ गया किंतु वो अँधेरे में पहले तो पहचान ही नहीं कर पाया, मेरी चारपाई कौन सी है ?मुझे भी पता नहीं था ,कि तुम्हारा ताऊ इस तरह मिलने आ जायेगा ।अभी वो ये सोच ही रहे थे ,तभी मैंने करवट बदली ,मेरी चूड़ियों की खनक से वो समझ गया ,मैं कहाँ हूँ ?वो धीरे -धीरे मेरी और बढ़ा। तब मेरी उम्र ही क्या थी ? सोलहवें में चल रही थी। उसने पहले मेरे पैरों को देखा। थोड़ा हिलाया ,किन्तु मैं तो गहरी नींद में थी।
और क्या ताईजी तो ''घोड़े बेचकर सो रही थीं। ''यहाँ हमारे बेचारे ताऊजी इनसे मिलने को हलकान हो रहे थे। बेचारे ! दीवार फांदकर आ गये। आगे क्या हुआ ?
होना क्या था ?मैं तब भी नहीं उठी ,तब वो और आगे बढ़े ,मेरे हाथों को हिलाया किन्तु अँधेरे में ,किसी परछाई को देखकर मैं डर गयी और चीखी - कौन है ? तभी उन्होंने मेरा मुँह बंद कर लिया ,मैं उन्हें पहचान नहीं पाई ,मैंने सोचा ,कोई चोर है ,तब ये बोले -मैं हूँ ,तेरा पति ! मैंने हाथ -पांव मारने बंद किये किन्तु तब तक मेरी सास उठ चुकी थीं और बोलीं -'क्या हुआ ? बहु !
कुछ नहीं ,थोड़ा ड़र गयी थी ,मैंने सोचा -अब सास चुपचाप सो जाएँगी। वे मेरी चारपाई के नीचे छुप गए थे किन्तु सास अपनी चारपाई लेकर मेरे और करीब आ गयीं और बोलीं -नई -नई दुल्हन है ,मेरी ही गलती है ,जो तुझे अकेले छोड़ दिया।कहकर मुझे पानी पीने के लिए दिया और वहीं सो गयीं।
क्या उन्हें ताऊजी के होने का पता नहीं चला ?
उस समय तो मैं यही सोच रही थी ,और वे सास के सो जाने पर जैसे आये थे ,वैसे ही चुपचाप वापस चले गए। अगले दिन ,हमारे देवता पूजे गए ,तब मुझे मेरे कमरे में छोड़ते हुए वे बोलीं - अब तुम दोनों मेरी तरफ से फ्री हो ,उसे भी अब दीवार फांदने की जरूरत न पड़ेगी ,चोट लग जाती तो....... कहकर मुस्कुराती हुई चली गयीं। हमारी सास बड़ी कठोर थी, हमारा पूरा ध्यान रखा ,कहीं हम कोई नादानी न कर बैठें ,देवता पुजने पर ही ,हमें साथ में अकेला छोड़ा। मुझे आज भी ताज्जुब होता है ,वे उस अँधेरे में भी सब समझ गयीं थीं।
तब ताईजी आपने जानने का प्रयास नहीं किया कि उन्हें ताऊजी के विषय में कैसे पता चला ?
गहरी स्वांस लेते हुए ,बोलीं -पहले जाकर ,एक गिलास पानी लेकर आ !दया उठकर पानी ले आई। पानी पीते हुए बोलीं -एक दिन मैंने उनसे पूछा -मांजी !वे छत पर आये थे ,आपको कैसे पता चला ?
मुझे देख ,मुस्कुराई और बोलीं -हमारे घर में ,और वो भी छत पर ,उसके सिवा कोई आ ही नहीं सकता ,उसने ही बहुत पहले वहां से आने -जाने का रास्ता बनाया था। मैं समझ गयी थी ,वही आया होगा। मां हूँ ,उसकी !कहकर चलीं गयीं।