Rasiya [part 120]

सिर्फ़ पछताने के सिवा ,मिसेज दत्ता के पास कुछ नहीं था। ऐसा कैसे हो सकता है ?एक व्यक्ति मेरी जिंदगी में आता है, और मुझे मेरा बिना अहित किए चला भी जाता है ,आखिर वो मेरी ज़िंदगी में आया ही क्यों था ?उसका उद्देश्य क्या था ?यदि आया तो बिना कुछ भी कहे ,चला कैसे गया ?गया भी तो, आखिर कहाँ गया है ? ये भी नहीं कह सकती, कि उसने मुझे लूटा ,वो स्वयं भी तो कमाता था। शायद उसे मुझसे सुंदर कोई और मिल गयी। कुंवारा था ,कोई भी लड़की उसे मिल सकती थी,तब मेरे ही पीछे क्यों ?अनेक प्रश्नों में उलझी ,मिसेज दत्ता घर पहुंचती है।वह समझ नहीं पा रही थी ,वो प्रसन्न हो या उसे भुलाने का प्रयास करे या फिर उससे उम्मीद लगाए वो फिर आएगा। 

'सुमित अग्रवाल 'को लड़खड़ाते कदमों से, चतुर सहारा देते हुए घर के अंदर प्रवेश करता है। उन्हें देखकर, अंजलि अग्रवाल, पूछती है -इन्हें क्या हुआ ?



चतुर में हाथ के इशारे से उसे समझाया ,कि इन्होंने शराब पी है, यह बात समझते ही वह बोली -बस इस चीज की कमी और रह गई थी। इन्हें सहारा देकर उनके कमरे में छोड़ आओ ! चतुर सुमित अग्रवाल को लेकर उनके कमरे की ओर बढ़ता है। सुमित अग्रवाल, नशे में भी बड़बड़ा रहा था - इस गृहस्थ जीवन में बहुत कुछ सहना पड़ता है और न जाने क्या -क्या झेलना पड़ता है ?तुम जानते हो ,कभी -कभी ज़हर भी पीना पड़ता है। 

चतुर सुमित अग्रवाल के दर्द को समझ पा रहा था, जिसके कारण उसे, उनके लिए बहुत दुख हो रहा था। वह उनसे बोला आप आराम कीजिए , सब ठीक हो जाएगा। वह भी इंसान है ,बाल बच्चेवाला है , मौज- मस्ती एक तरफ किंतु पुरुष के दर्द को तो समझ ही सकता है। अभी उसकी भावनाएं मरी नहीं है। यह मानता है कि वह रंगीन स्वभाव का व्यक्ति है किंतु उसके कारण, आज य है इंसान, उम्र से पहले ही अधिक  बुरा लग रहा है।

जब वह नीचे आया, तो अंजलि उसकी प्रतीक्षा में थी। आज उन्होंने शराब क्यों पी है ? 

इंसान है, कब तक अपने दर्द को छुपाए रहेगा ? कब तक अपमान का घूंट पिता रहेगा , कभी तो पैमाना छलकेगा। 

तुम्हें उससे बड़ी हमदर्दी हो रही है। 

इंसानियत के नाते, तो हमदर्दी होनी स्वाभाविक है , क्या तुम्हें उसके दर्द का एहसास नहीं है ?

जब वह मुझे दर्द देता था, तब क्या उसने मेरे दर्द को समझा था ? अब उसे ईट का जवाब पत्थर से मिल रहा है ,तो लहू लुहान हो बैठा। मेरे जख्म भर नहीं, अभी भी उनमें का कसक बाकी है। 

इस तरह उसे दर्द देकर क्या वो ज़ख्म भर जाएंगे ? 

नहीं, किंतु मेरे दिल को सुकून तो अवश्य मिलेगा, तुम किस बात की प्रतीक्षा में हो ? 

अब  मुझे घर जाना चाहिए। 

कौन से घर जाना चाहते हो ? जहां तुम्हारी कोई प्रतीक्षा भी नहीं कर रहा। चले जाना,आ जाओ !कहते हुए अश्लील इशारा किया किन्तु आज चतुर का मन नहीं था।

 फिर कभी ,अभी थक गया हूँ ,आज जाकर सोऊंगा। 

क्यों ,तुम उसके [सुमित अग्रवाल ]साथ रहकर ,उसके जैसे ही होते जा रहे हो। अंजलि ने एक बार भी अपने पति को छत पर ,उसके कमरे में जाकर नहीं देखा। भोजन यहीं कर लो !और मुझे तुमसे कुछ बातें भी करनी हैं। ये बताओ !जमीन का अब क्या हिसाब है ?

चतुर समझ गया ,अब इसे बताकर ही जाना होगा ,अंजलि के सौंदर्य ने उसे, अपनी और आकर्षित तो किया था किन्तु अब उसके व्यवहार के कारण वह उससे हट रहा था। चतुर को थकावट हो जाती थी ,सारा दिन की भागदौड़ उसे थका देती थी किन्तु अंजलि को इस बात से कोई मतलब नहीं था। दूसरी तरफ अब चतुर का घर भी लगभग बनने को तैयार था। उसके बच्चे उस हवेली के एक तैयार हिस्से में रह रहे हैं। 

 लो !पहले खाना खाओ !अंजलि उसके लिए भोजन लेकर आई। 

 तुमने 'बड़े भइया ''से भोजन के लिए एक बार भी नहीं पूछा। 

कैसे पूछती ? क्या वे भोजन करने की स्थिति में थे ,अंजलि ने चतुर से ही प्रश्न किया ,तुम उनको लेकर क्यों इतना भावुक हो रहे हो ? व्यवहारिक बनो !

आओ !थोड़ा हिसाब कर लें, कहते हुए उसे अपने कमरे में ले गयी।

चतुर अनमने मन से उसका साथ दे रहा था किन्तु अब वह इतना तो समझ ही गया था कि वह उसके हाथों की कठपुतली बनकर रह गया है। यदि वह उसकी बिना इच्छा के उससे दूर भी जाता है तो यह इसे आसानी से नहीं छोड़ने वाली है। वह अपने को एक जाल में फंसा महसूस कर रहा था जैसे मकड़ी के जाल में कोई कीड़ा छटपटाता है। अब चतुर के बच्चे बड़े भी हो रहे हैं ,वह चाहता था ,अंजलि से बताये कि वह शादीशुदा है किन्तु साहस नहीं जुटा पाया। एक बार उसने कहा भी था -मैं सोच रहा हूँ ,विवाह कर लूँ। 

अंजलि घूरते हुए बोली -क्यों ? विवाह क्यों करना चाहते हो ?क्या मुझसे दिल भर गया ?क्रोधित होते हुए बोली -तुम्हारे कारण मैंने अपने पति से  विश्वासघात किया अब तुम क्या चाहते हो ?यदि तुमने मुझे तनिक भी धोखा देने का सोचा भी ,तो मुझसे बुरा कोई न होगा। 

एक दिन ''मिसेज दत्ता ''अपनी ही उलझनों को लिए अपने जीवन में आई ,हलचल को सामान्य बनाने का प्रयास कर रही थी। उसने अब चतुर के जाने के पश्चात ,वह दफ्तर भी छोड़ दिया और किसी दूसरी जगह कार्य करने लगी किन्तु जब वह एक दिन अपने साथ नौकरी करने वाली एक महिला सहयोगी के विवाह में जाने के लिए तैयार हो रही थी ,तभी वह अचानक बुरी तरह अचंभित रह गयी। 

प्रिय पाठकों और मित्रों ! अभी इस कहानी के एक सौ बीस भाग करके नियम के अनुसार आज इसे समाप्त करना है किन्तु अभी इस कहानी में अनेक प्रश्न हैं ,जो सोचने पर मजबूर करते हैं और इसे आगे बढ़ाने की प्रेरणा देते हैं। जो पाठकों के प्रश्नों का जबाब देना चाहते हैं। आखिर चतुर को किसने पकड़वाया था ?उसकी जमानत होगी या नहीं। मिसेज दत्ता के प्रश्नों का जबाब उन्हें मिलेगा या नहीं। चतुर की कोई जमानत करवाएगा या नहीं। चतुर क्या अपने 'रसिया 'स्वभाव से बाज़ आएगा या अधेड़ उम्र का उसका इश्क़ कोई और धमाल करेगा ? वह उस अपने नए घर में कोई व्यापार करेगा या नहीं करेगा तो कैसा ?क्या आप  लोगों का प्यार और  अपनापन मिला तो इन प्रश्नो के जबाब शीघ्र ही मिलेंगे। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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