सुमित अग्रवाल शराब के नशे में, चतुर से बातें कर रहे हैं , शायद अपने मन का बोझ हल्का कर रहे हैं , यह कैसी विडंबना है ? जिसके कारण उनके मन पर बोझ है, उन्हें दर्द की अनुभूति हुई है , उसी से अपने दुख को बांट रहे हैं। मन में विचार तो न जाने कितने आते हैं ? किंतु किसी से कह नहीं पाते हैं, आज चतुर के सामने ही, अपने मन की बातें कह रहे हैं। वह भी इसलिए क्योंकि चतुर ! के व्यवहार से कभी भी उन्हें इस बात का एहसास नहीं हुआ कि वह उनका सम्मान नहीं करता, या फिर उनकी हंसी उड़ा रहा है।
तब उनकी बात का जबाब देते हुए चतुर कहता है -नारी के सम्मान की बातें कर रहें हैं किन्तु जब यही अनाचार उनके साथ जबरन होता है तो उसे आप क्या कहेंगे ?
अरे वह बात अलग है, उस बात का यहां कोई जिक्र नहीं है , यहां स्थिति दूसरी है , तुम आगे बढ़े, जब उसने तुम्हें आगे बढ़ने का हौसला दिया वरना तुम्हारी क्या मजाल थी ? कि तुम उसे छू भी पाते ,नशे में भी ,उनके मन का क्रोध झलक रहा था। तुम इस घर में टिके हुए ही उसके ही कारण थे।
वे आपकी पत्नी थीं , आपको उन्हें समझाना चाहिए था ,अधिकार से कहना चाहिए था, कि तुम यह जो भी कर रही हो,वह गलत है।
वह अधिकार तो उसने कब का खो दिया ? जबरदस्ती किसी रिश्ते को बनाया नहीं जाता, रिश्ते प्यार से और विश्वास से जुड़ते हैं,उसने तुमसे रिश्ता बनाया क्या तुमने कोई जबरदस्ती की थी ? ''यदि मैं उसे जबरदस्ती, तुमसे अलग करता , घर में झगड़े होते, एक दूसरे की कमियां निकाली जातीं किंतु रिश्तों में जो गांठ पड़ चुकी है, वह नहीं खुलती। किसी से जबरदस्ती नहीं की जाती, वह स्वयं ही चाहे तो उस रिश्ते में बंधा रह सकता है, यदि कोई उस रिश्ते को निभा रहा है ,उसमें बंधा हुआ है, तो यह उसकी स्वयं की इच्छा है , वरना कोई भी रिश्ता ऐसा नहीं है , जिसको कि एक झटके में तोड़ा न जा सके।''
तब आपने ऐसा क्यों नहीं किया ?
ऐसा करने से क्या हो जाता ? हमारा रिश्ता तो अभी भी नहीं रहा किंतु यह बात अवश्य है -कि बाहर के चार लोग सुनते ,चर्चा का विषय बनता। बच्चों पर भी, इसका गलत असर होता अब जैसा चल रहा है ,चलने देते हैं।''उसने जो राह चुनी ,उसका निजी फैसला है कि वह चाहे तो अपने को उठा सकती थी, किन्तु उसे अपने को गिराने में ही सुखानुभूति का एहसास हुआ।'' अब तक वह बहुत ज्यादा पी चुके थे। उनके बोल भी नहीं निकल रहे थे तब चतुर ने उन्हें सहारा दिया और उन्हें घर की तरफ लेकर आगे बढ़ गया।
चतुर मन ही मन सोच रहा था -''स्त्री ही चाहे तो घर को घर बना सकती है, वरना उसे बर्बाद भी कर सकती है। कस्तूरी भी तो मुझसे प्रेम करती है, इस प्रेम के कारण ही तो ,वह हमारे रिश्ते में बंधी हुई है वरना मैं इतने दिनों तक उसे छोड़कर ,इधर-उधर भटकता रहता हूं वह भी तो कोई न कोई रास्ता अपना सकती है। मन ही मन फिर से उसे ग्लानि का एहसास हुआ और उसने सोच लिया ,इस घर को बनाने के पश्चात , वह इसी घर में ही कुछ न कुछ कारोबार करेगा और अपने परिवार और अपने बच्चों के साथ रहेगा।
हालांकि वह गलत, कार्य कर रहा है और उसने आगे बढ़ने का रास्ता भी गलत ही चुना है, किंतु उसके पीछे उसकी सोच, अपने परिवार के लिए अच्छी है ,वह उसमें अपने बच्चों का सुंदर भविष्य देख रहा है ,इसीलिए वह' सुमित अग्रवाल 'के परिवार से जुड़ा था। लेकिन यहां आकर उसने बहुत कुछ सीखा भी....... और अब उसने सोच लिया था कि जब यह घर पूरा हो जाएगा ,तब वह अपने घर से ही कुछ अलग कार्य करेगा। वह घर इसी तरह से बनवा रहा था ,ताकि आगे चलकर वह कोई व्यापार कर सके ,आगे वह क्या कार्य करेगा ? यह तो भविष्य ही बताएगा।
एक दिन जब 'मिसेज दत्ता 'ने अपने को बेहतर महसूस किया, तब उसने सोचा -एक बार जाकर उस घर को देख आती हूं कि वह महिला सही कह रही थी -या गलत ! हो सकता है ,वह मेरे अंदर चतुर के प्रति अविश्वास पैदा करना चाहती हो किंतु उसके व्यवहार से तो ऐसा ही लगता है कि वह ही कहीं न कहीं गलत है। तब वह तैयार होकर, पूछते हुए उस घर में पहुंच जाती है, जहाँ आज से चार दिन पहले चतुर का परिवार रहता था। उस घर के मकान -मालिक से पूछती है - क्या यहां कोई ''चतुर भार्गव ''रहता है।
यहां तो कोई भी'' चतुर भार्गव ''नहीं रहता, हां एक परिवार रहता था ,उसके पति का नाम तो सुनील था ,जो अभी 4 दिन पहले ही घर खाली करके गया है। न जाने क्यों अचानक ही, जब उस महिला का पति आया और उन्होंने जाने का निर्णय ले लि या और दोपहर तक घर खाली कर दिया।
यह कब की बात है ? अभी चार दिन पहले की बात है , वह महिला कुछ परेशान थी ,उसका पति बहुत दिनों से नहीं आया था, और जब वह आया तो न जाने क्यों ?उन दोनों में क्या बातचीत हुई और वे लोग उस घर को छोड़कर चले गए।
क्या, कुछ बताया कि वह कहां जा रहे हैं ?
हां उसके पति ने बताया-कि वे लोग अपने गांव जा रहे हैं ,अचानक ही जाना पड़ रहा है। उस समय मोबाइल फोन तो होते नहीं थे और न ही, मिसेज दत्ता के पास चतुर की कोई तस्वीर थी जो उसे दिखाकर, उनसे पूछती। यह सुनकर मिसेज दत्ता , वापस अपने घर की तरफ लौट चलीं और सोच रही थीं -वह महिला भी इसी बात को तो कह रही थी -कि मेरा पति बहुत दिनों से नहीं आया और चतुर भी बहुत दिनों से गायब था किन्तु उसके पति का नाम तो सुनील बतलाया था। तब तो वह चतुर नहीं हो सकता ,अवश्य ही उस महिला को कोई गलतफ़हमी हुई होगी। मन ही मन प्रसन्न भी हुई ,हालाँकि अब इस बात का भी कोई औचित्य नहीं रह गया था,अभी तक चतुर उसकी ज़िंदगी में भी वापस नहीं आया था किन्तु अब उसे एक उम्मीद अवश्य बंध गयी थी।
तभी उसके अंदर बेचैनी बढ़ने लगी ,आखिर वह कहाँ गया है ? उस औरत का मेरे घर आना ,आखिर यह क्या माजरा है ?किससे जाकर पूछूं? उसने तो नौकरी भी छोड़ दी।