Rasiya [part 118]

तन्मय और वकील चतुर से कुछ प्रश्न पूछते हैं और चले जाते हैं ,किन्तु उससे पहले तन्मय चतुर से एक प्रश्न और पूछता है ,ये तुम्हारा मकान कैसे बना ?क्योकि वह इतना अंदाजा तो लगा सकता था कि इस मकान में बहुत पैसा लगा है। 

मेरे पास, कोई इकट्ठा पैसा तो नहीं था। जमीनें और प्लॉट बेचकर जो आमदनी और कमीशन मुझे मिल रहा था ,और उससे भी पहले ऐसे ही कई कार्य ''''सुमित अग्रवाल के साथ रहकर किया जिनमें अच्छा मुनाफ़ा था ,उनसे धीरे- धीरे वह घर बनाता रहा किन्तु ये जानकारी 'अग्रवाल परिवार 'को नहीं थी। 

इंस्पेक्टर तन्मय और वकील के चले जाने के पश्चात, चतुर सोच रहा था -उस दिन ,जब सुमित अग्रवाल ने हमें आपत्तिजनक हालत में देख लिया था, मैं नहीं जानता, उनके घर में क्या झगड़ा हुआ था ? किंतु जब मैं अगले दिन, सुमित अग्रवाल के सामने उपस्थित हुआ तो उसकी नज़रें झुकी हुई थीं। ऐसा प्रतीत हो रहा था ,जैसे -उसने, अपनी हार स्वीकार कर ली थी।' मैं मन ही मन प्रसन्न था, कुछ दिन मैं उनके घर नहीं गया, मुझे अंदर ही अंदर उनसे धोखा देने की हीनभावना घर कर गई थी किंतु एक सप्ताह पश्चात ही। अंजलि का फोन मुझे आया। हेलो !



क्या हेलो ! कर रहे हो ? तुम्हें घर आए हुए ,कितने दिन हो गए ? क्या तुम्हें मुझसे मिलने आना नहीं चाहिए था अंजलि गुस्से और अधिकार से बोली। 

हां ,मैं आ तो जाता, किंतु ''बड़े भैया'' को........ इससे पहले की वह आगे कुछ कहता। 

वह कुछ नहीं कहेंगे, तुम बस आ जाओ !

जब चतुर, अंजलि के सामने पहुंचा तो है, स्वयं ही नाइटी में उसके सामने आई, उसका यह रूप देखकर, चतुर आश्चर्यचकित रह गया ,क्या औरत है ?पति के सामने उस दिन हम दोनों ऐसी हालत में पकड़े गए ,क्या सुमित ने कुछ नहीं कहा होगा ?मैं मन ही मन सोच रहा था - इतना कुछ हो जाने के पश्चात भी, यह मुझसे मिलने को बेताब है ,  इन दोनों के बीच ऐसा क्या हुआ होगा ? तब वह बोला- क्या 'बड़े भैया 'ने कुछ नहीं कहा ?

क्या उन्हें कुछ कहना चाहिए था ?

यह तो आप बताएंगीं। 

किस इंसान को महसूस नहीं होगा , कि उसकी पत्नी, किसी ग़ैर की बाहों में सिमट जाती है,उसके लिए बेचैन है ,कहते हुए आगे बढ़ी। 

तब भी आप इस तरह........ अपने शब्दों को बीच में ही खा गया। 

उस इंसान में , अपनी पत्नी को रोकने की हिम्मत तो होनी चाहिए उसमें इतना साहस तो होना चाहिए , कि वह आगे बढ़कर अपनी पत्नी का हाथ थामकर दृढ़ता पूर्वक कहे ,कि यह गलत है। जब उसमें ,उस पत्नी को रोकने की क्षमता ही नहीं है , तो कुछ कहने लायक भी नहीं है। तुम इन व्यर्थ की बातों में मत पडो , किंतु एक बात समझ लो ! तुम्हारे कारण कभी भी, उनका अपमान नहीं होना चाहिए और तुम मेरे बनकर रहो !उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी किंतु यह बात घर से बाहर नहीं जानी चाहिए।

 ''अंजलि अग्रवाल'' के तो जैसे तेवर ही बदल गए थे, अब वह अक्सर चतुर के साथ ही घूमने जाती, फिल्में देखती , और व्यापार में भी हिसाब- किताब लगाने लगी और इसी कारण से उस जमीन का हिसाब -किताब भी अंजलि ने ही ,अपने पास रखा। अंजलि अग्रवाल एक होशियार और तेज-तर्रार महिला थी। कभी-कभी उसके तेवर देखकर तो चतुर भी घबरा जाता था, वह उससे , इस तरह से बात करती थी जैसे वह उसकी मालकिन है, उस पर सिर्फ़ उसी का अधिकार है, उसके बिना वह इधर-उधर भी नहीं जाता था और जब भी जाता था तो वह साथ में जाती थी। वह भी यही जानते थे कि चतुर, अभी 30 साल का कुंवारा है ,उनके सम्पर्क में रहते -रहते चालीस का हो गया। 

 पूरा घर उसके हाथों की कठपुतली था।उसके बच्चे भी ,अंजलि से कुछ नहीं कहते थे , सुमित अग्रवाल ने तो जैसे सब कुछ छोड़ दिया था। बस वह कमाने की मशीन बन गया था। बाकी हिसाब -किताब लगाना बाहर से क्या खरीद कर लाना है ?क्या ले जाना है ,भविष्य में क्या योजना है ?सभी अंजलि ही तय करती थी।

एक दिन सुमित अग्रवाल बैठकर शराब पी रहे थे, मैं उनके समीप चला गया मैंने उनसे पूछा था -आप तो कभी शराब नहीं पीते, फिर आज क्यों ?

मन  पर बहुत बड़ा बोझ हो जाता है, हटाना चाहो तो.......  वह पत्थर हटता नहीं किंतु कुछ देर के लिए भुला तो सकते हैं, आओ , बैठो ! क्या तुम भी पियोगे ?वैसे अभी तुम्हें इसकी जरूरत नहीं व्यंग्य से मुस्कुरा दिए। 

नहीं ,मैं नहीं पीता, कहते हुए उनके लिए एक पेैग और बना दिया। वह शराब पीते रहे और मैं बैठा ,उनकी सेवा में लगा रहा।न जाने क्यों ?उन पर तरस भी आता और अपने किये पर अफ़सोस भी होता। 

 देर रात हो चुकी थी लेकिन वह घर नहीं जाना चाहते थे। मुझे अपने पर ग्लानि होती थी कि मैंने इतने  सज्जन आदमी को, धोखा दिया। मैंने सोचा -उनसे अपनी गलतियों की क्षमा याचना करने का यही मौका है तब मैं उनसे बोला -मैं आपसे माफी चाहता हूं , मुझसे  बहुत बड़ी गलती हो गई , मैं आपका 'गुनहगार' हूं। 

अरे !काहे का गुनहगार ! तेरे तो दोनों हाथ में लड्डू हैं ,कहकर व्यंग्य से मुस्कुराये किन्तु मुझे लग रहा था वे अपने ऊपर मुस्कुरा रहे हैं। तुम तो उसके लिए एक मोहरा हो, वह सबको अपने अधिकार में ले लेना चाहती है ,जो भी उसके विरुद्ध जाता है , उसको नहीं छोड़ती। गलती तुम्हारी नहीं है, गलती उस औरत की है ,जो अपने पति को धोखा दे रही है। तुम तो चार दिन के आये, उसके झांसे में आ गए ,किन्तु मेरे साथ तो इतने दिनों से रह रही है,वह जब मेरी ही न हुई तो..... कहकर मुस्कुराये और रुक गए। कुछ समय पश्चात बोले - 'जब उसने ही मेरे मान -सम्मान को तार -तार कर दिया ,तो तुम्हारी क्या गलती ?यदि एक औरत किसी पर पुरुष के सम्पर्क में नहीं आना चाहेगी तो बाहरवाले का साहस नहीं ,उसे छू भी दे।'मेरी आँखों में झांकते हुए बोले।  

नहीं ,कई बार महिलाएं, जबरन भी, शिकार हो जाती हैं। उनकी बात से चतुर सहमत नहीं हुआ। आखिर सुमित अग्रवाल उससे क्या कहना चाहते हैं ?उनकी क्या सोच है ?उनके मन का दर्द क्या उससे बात करके हल्का हो पायेगा ?आइये !आगे बढ़ते हैं - रसिया !

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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