Rasiya [part 115]

जब मिसेज दत्ता, होश में आईं  तो अपने घर में ,अपने ही बिस्तर पर लेटी हुई थी और उसकी बेटी उसके समीप ही खेल रही थी। उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे किसी ने उसके तन का संपूर्ण रक्त निचोड़ लिया हो , उसके शरीर में जान ही नहीं बची है। मां को जगा हुआ देखकर, उसकी बेटी उसके पास आई और बोली -अब आप ठीक हैं , कुछ खायेंगी  !

वह अपनी ही बेटी को ,अजनबियों की तरह देख रही थी ,तब बेटी के गले से लगकर जोर -जोर से रोने लगी। जब मन हल्का हुआ, तब बेटी से ,एक गिलास पानी मंगवाया और पानी पीकर फिर से लेट गयी। वह सोच रही थी-वह कब-कब गलत थी ?चलचित्र की तरह ,सम्पूर्ण बातें ,चतुर का व्यवहार उसकी आँखों के सामने चल रहा था। उसका वो मुस्कुराकर अपनेपन से बातें करना ,उसकी आँखों को नम कर गया।


 

अब तो चतुर साये  की तरह, सुमित के आसपास रहता और जैसे भी मौका मिलता, वैसे ही अंजलि के पास भी चला आता। बाहरी रूप से देखा जाए, तो वह अपनी भाभी -भैया की सेवा में व्यस्त रहता था।इसी बात का तो चतुर को पैसा मिल रहा था। सुमित को ''बड़े भइया ''ही कहता और एक दिन सुमित उसे डांटते हुए बोला -मुझे सर ,कहो !''बड़े भैया ''नहीं ,तुम हमारे मुलाज़िम हो कोई रिश्तेदार नहीं। 

मैं तो आपको साहब ,सर कुछ भी कह सकता हूँ किन्तु ''बड़े भैया ''कहने से आप का रौब ही बढ़ेगा। जब लोगों को पता चलेगा ,अपने डोले दिखाता हुआ बोला -ऐसा ताकतवर आपका कोई नौकर नहीं वरन छोटा भाई है ,जो अपने भाई की सेवा में हमेशा तैयार रहता है। 

अच्छा !अपने को ज्यादा ताकतवर और अक्लमंद समझ रहे हो ,लोग जब पूछेंगे -'अब तक ये भाई कहाँ था ?''

कह देना- बाहर रहता था या फिर गांव से व्यापार सीखने या हाथ बंटाने आया है। चतुर दोनों को ही प्रसन्न  करने का प्रयास कर रहा था। अंजलि भी उसकी ओर आकर्षित हो रही थी, उसका व्यवहार,उसकी ताकत , उसकी फुर्ती, सब कुछ अपनी ओर खींचने के लिए काफी था। 

एक दिन सुमित अग्रवाल को आभास हुआ कि चतुर, अपने घर जाने का नाम लेकर, मेरे घर चला जाता है ,ऐसा उससे किसी ने कहा।  यह परखने के लिए, वह जब अपने घर भी आता है , तब देखता है ,चतुर वहीं  था। दोनों ही अर्धनग्न अवस्था में थे ,उन्हें शायद इतनी उम्मीद नहीं थी कि सुमित इस तरह अचानक घर चला आएगा। 

चतुर को वहां देखकर सुमित का ''खून खौल गया'' और बोला -तुम यहां कैसे? तुम तो अपने घर गए थे न...... 

हां , जब मैं अपने घर जाने के लिए ,वहां से चला था, तभी भाभी का फोन आया था -आज मेरा व्रत है, मेरे लिए कुछ फल ले आना इसलिए उनके लिए सेब लेकर आया था, मेरा काम हो गया। अब मैं चलता हूं, ऐसा कह कर उसने वहां खिसकने में ही भलाई समझी वह समझ गया था कि आज इन दोनों पति-पत्नी में खूब झगड़ा होने वाला है। सुमित ने अंजली की तरफ देखा और पूछा -तुम कब से व्रत रखने लगीं ? आज तक तो तुमने कोई व्रत नहीं रखा। ये कैसा व्रत है ? तुम एक नौकर के साथ छी........ तुम्हें इतनी घिनौनी हरकत करते हुए शर्म नहीं आई। 

जो कार्य मैंने पहले नहीं किया, तो क्या अब नहीं कर सकती ? अंजलि अंदर से बाहर आते हुए बोली -तुमने तो कभी मेरा ध्यान रखा ही नहीं कि मुझे क्या चाहिए और क्या नहीं ,यदि वह मेरा ख्याल रखता  भी है तो तुम्हें क्या परेशानी है ? 

तुम उससे कुछ ज्यादा ही घुल मिल रही हो। 

वह हमारा नौकर है, मैं जब चाहे, उसे बुला सकती हूं , और जब चाहे निकाल सकती हूं। 

वह तुम्हारा नहीं, मेरा नौकर है जो तुम्हारी सह पर जबरदस्ती रखा गया ,क्योंकि तुम्हें उसके साथ ''मुँह जो काला करना था। '' सुमित अग्रवाल ने स्पष्ट कहा। 

किंतु, उसे मैंने  ही बुलाया है, कभी तुमने सोचा है ,कि तुम्हारी उम्र क्या है ? इतना बड़ा व्यापार संभालते हो तुम्हें भी सहारे की आवश्यकता होती है। इतनी भाग दौड़ क्यों करना ? जब वह कर सकता है। 

तुम इसे मेरे लिए नहीं अपने लिए लाई हो। 

तो फिर चुपचाप क्यों नहीं बैठते ?

मैं नहीं चाहती ,कोई तुम्हारा अपमान करें या कोई मेरा अपमान करे किंतु जैसा चल रहा है, चलने दीजिए ! इसी में आपकी और मेरी भलाई है। 

इसका मतलब मैं जो समझ रहा हूं, सही समझ रहा हूं। 

आप एक पुरुष हैं, एक स्त्री क्या चाहती है ? वह आपको आज तक समझ नहीं आया ,अब क्या समझेंगे ?

यदि हमारे बच्चों को इसकी तनिक भी भनक लग गई, तो उन पर इसका क्या असर होगा ?

कैसे भनक  लगेगी ? उसे पैसे कमाने की भूख है, और उस भूख को मैंने  और अधिक बढ़ाया है और मुझे भी भूख है,  तुम तो कुछ नहीं कर पाते। सुमित के सामने आज तक, अंजलि ने इस लहजे में कभी बात नहीं की थी । आज सुमित को लग रहा था ,उसकी उम्र बढ़ रही है , वह बूढ़ा होता जा रहा है। सच में ही शायद उसे किसी सहारे की आवश्यकता है। शायद ,वह अपनी जिंदगी जी चुका है , अपनी पत्नी की इच्छाओं की पूर्ति अब वह नहीं कर पाएगा। उसने अपनी जिंदगी को, हालातों  के सहारे छोड़ दिया। वह अपने कमरे में जाकर बंद हो गया। 

अंजलि ने कुछ देर पश्चात दरवाजा खटखटाया किंतु सुमित ने दरवाजा नहीं खोला।अंजलि बाहर से ही उसे समझाने का प्रयास करने लगी और बोली - यह जीवन यूँ ही चलता रहेगा ,तुम्हारा सम्मान बना रहेगा। हम दोनों इसी तरह साथ रहेंगे ,किसी को कुछ भी पता नहीं चल पायेगा। ये हमारे घर आएगा, किन्तु कुछ घरेलू कार्य करने के लिए ,तुम इस घर के मालिक हो, तुम इस तरह कमज़ोर नहीं पड़ सकते। उसके माध्यम से मैं आपको और मजबूत देखना चाहती हूँ। आपके बिना ये घर ,घर नहीं रहेगा। आप निराश मत होइए ! मैं मानती हूँ ,कि मैं स्वार्थी हो गयी थी किन्तु मैं ये भी नहीं चाहती कि आप मुझसे मुख मोड़ लो ! मैं इसे लाई हूँ ,किन्तु ये हमारी पहुंच से बाहर नहीं जायेगा। ये हमारे लिए काम करेगा ,आपके लिए सहारा होगा किन्तु आपको कभी पलटकर जबाब नहीं देगा। इसकी लगाम मेरे हाथों में है ,यदि इसने हमें धोखा देने का प्रयास भी किया तो इसको बर्बाद कर दूंगी।

यही सब चतुर थाने में बैठे  हुए सोच रहा था ,हो न हो ये सब अंजलि अग्रवाल के कारण ही हो सकता है। उसने तो मुझे जैसे अपना गुलाम ही समझ लिया था। मुझ पर अपना अधिकार समझती थी और जबसे उसे पता चला कि....... आइये बढ़ते हैं -

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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