चतुर ,जब अपने घर पहुंचा ,घर पहुंचते ही उसे कस्तूरी के क्रोध का भाजन बनना पड़ा ,आज कस्तूरी का ऐसा रूप देखकर ,चतुर काँप उठा। चतुर के घर पहुंचते ही ,कस्तूरी ने प्रश्न किया -इतने दिनों से कहाँ थे ?
काम पर था ,कम्पनी के काम से गया था।
कहाँ गए थे ?उस कम्पनी में ,जो पिछले मकान में है ,जहाँ मेरी सौत को रख छोड़ा है। कस्तूरी के ऐसे तेवर देखकर ,चतुर घबरा गया ,कहीं मकान -मालिक को उनके झगड़े के विषय में कुछ पता न चले। तब वह उसका मुँह बंद करके उसे शांत कराने के उद्देश्य से कमरे में अंदर ले आया।
अब बताओ !क्या हुआ है ?
तुम्हें पता है ,मेरे दो छोटे -छोटे बच्चे हैं ,उनको दूध ,और खाने -पीने की भी आवश्यकता होती है। क्या हमारे पेट नहीं है ?मैं इन छोटे बच्चों को लेकर कहाँ जाउंगी ? ये भी सोचा था या नहीं ,तुम इतने दिनों से कहाँ थे ? बाज़ार जाऊँ या घर के काम करूं या फिर इन बच्चों को सम्भालूं। मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी ,तुम मेरे साथ ऐसा करोगे। विवाह होते ही मुझे बच्चे बनाने की मशीन बना दिया और स्वयं न जाने कहाँ -कहाँ मुँह मर रहा है ?कहते हुए कस्तूरी रोने लगी।
कस्तूरी को चुप कराते हुए ,चतुर बोला -बताया तो...... किसी काम से बाहर गया था,तुम आज ये कैसी बातें कर रही हो ?
पापा ! मम्मी ,आंटी के घर गयी थी बेटे ने अपनी तुतलाती जबान में बतलाया।
कौन सी आंटी ?ये किसकी बात कर रहा है ?चतुर ने कुछ भी न समझते हुए कस्तूरी से पूछा।
पहले तो वह बात को टालती रही फिर गुस्से का बवंडर बाहर आया और बोली -तुमने क्या मुझे मूर्ख -गंवार समझा है , तुम जैसे बहकाओगे ,बहकाये में आ जाउंगी।
मैंने तुम्हें कब बहकाया ?और क्या झूठ बोला ? मुझे भी तो पता चले और तुम कहाँ गयीं थीं ये किसकी बात कर रहा है ?
मैं उसी घर में गयी थी ,जहाँ वो तुम्हारी बॉस रहती है ,वहां कोई बुढ़िया नहीं रहती ,एक जवान औरत रहती है ,चतुर को क्रोध से घूरते हुए कस्तूरी बोली - तुम्हारा तो विवाह भी नहीं हुआ तब मैं कौन हूँ ? ये किसके बच्चे हैं ?चतुर यह सुनकर हतप्रभ रह गया।
माथा पकड़ते हुए ,चतुर ने पूछा -तुमने वहां जाकर और क्या कहा ?
क्या कहती ? अपने पति के विषय में पूछ रही थी ,किन्तु न जाने उसे क्या हुआ ? वो बेहोश हो गयी और उसे अस्पताल में भर्ती करा आई।
अब तुम जल्दी से सारा सामान बांध लो !
क्यों क्या हुआ ?
कुछ नहीं ,अब तुम जल्दी ही अपना सामान बांधो और हमें यह घर तुरंत ही खाली करना होगा।
कुछ बताओगे भी ,किन्तु तब तक चतुर घर से बाहर निकल चुका था ,ये आदमी भी न जाने क्या -क्या करता रहता है ? न जाने कहाँ -कहाँ धक्के खिलवायेगा ?कहते हुए कस्तूरी सामान बांधने लगी। लगभग ,दो -तीन घंटे पश्चात ही ,वो एक छोटा ट्रक लेकर घर बाहर आ खड़ा हुआ और शीघ्र अति शीघ्र ट्रक में सामान लदवाया और चला गया।
मकान -मालिक ने पूछा भी था , इस तरह अचानक कहाँ जा रहे हो ?हमने तो घर खाली करने के लिए नहीं कहा।
जी अचानक ही गांव जाना पड़ रहा है कहकर वो परिवार सहित ट्रक में बैठा और निकल गया।
इधर कई दिनों से ,मिसेज दत्ता की तबियत ठीक नहीं थी ,तबियत तो चतुर के कारण ही बिगड़ी थी ,चतुर उन्हें इतना बड़ा धोखा देगा ,इसकी उन्हें कतई भी उम्मीद नहीं थी। इसका उन्हें बहुत बड़ा सदमा लगा था। कहाँ तो वे उसको लेकर ज़िंदगी में सपने सजाने लगीं थीं और कहाँ उन्हें पता चलता है ?कि वो एक छल था। जो उनकी भावनाओं को छलता रहा ,ऐसा उसका क्या उद्देश्य था ?मैं तो स्वयं ही उस पर अपना सबकुछ लुटा देने के लिए तैयार थी। लेटे -लेटे सोच रहीं थीं। अस्वस्थता के चलते दफ्तर से भी छुट्टी ले ली थी। वहां जाकर क्या करना है ?लोग कहेंगे तो कुछ नहीं किन्तु सबकी व्यंग्य पूर्ण नजरें मेरा पीछा करेंगी। मुझे उस समय मेरी एक दोस्त ने टोका तो था किन्तु मैंने ही उनकी बात पर ध्यान ही नहीं दिया। जब बुद्धि भ्र्ष्ट होती है तो काम करना बंद कर देती है किन्तु मैं तो सब जानते -बुझते कर रही थी। मैंने यह कैसे सोच लिया ? मुझ विधवा की ज़िंदगी में फिर से बहार आ सकती है। मुझे क्या मालूम था वो मुझसे फरेब कर रहा है। मैंने भी सोच लिया था -ज़िंदगी जीने का जीवन में एक और मौका मिलता है ,मैं उसे वही मौका समझ बैठी थी। सोचते हुए आँखों से आंसू बह निकले।
उस दिन ,को स्मरण करने लगी ,जिस दिन वो बहुत परेशान था ,मैंने उससे कहा भी था -जो कुछ भी मेरा है ,वही तुम्हारा भी है ,उस दिन तो बड़ी ईमानदारी दिखला रहा था। नहीं ,ये तुम्हारे पति की सम्पत्ति है ,मुझे अपना कुछ अलग और बड़ा करना है। वैसे बेईमान तो नहीं था ,फिर उसने मुझसे झूठ क्यों बोला ?क्या मुझे पाने के लिए ,किन्तु वो औरत जो मुझसे लड़ने आई थी ,मुझसे सुंदर और जवान भी थी। हो सकता है ,वो कोई और ही हो ,मुझे उसके विरुद्ध भड़काने आई हो ,क्या मालूम ,वो उसे चाहती हो ? चतुर ने उसे चाहा नहीं तो मुझसे लड़ने आ गयी किन्तु इस तरह तो एक पत्नी ही लड़ सकती है।
जब चतुर उसके पास भी नहीं था तो कहाँ गया था ?उसने नौकरी क्यों छोड़ी ?कुछ समझ नहीं आता ,सोचते -सोचते दिमाग की नसें फटने लगीं। तब वह बिस्तर से उठी और पानी लेकर पिया। वापस आकर लेट गयी। घड़ी में ,समय देखा ,छह बजने वाले है ,बेटी अभी ट्यूशन से आने वाली ही होगी। सोचकर ,अपने को ठीक महसूस करने का प्रयास करने लगी किन्तु सर दर्द के लिए ,एक गोली ,लेती है और चाय गैस स्टोव पर रखती है।
तभी मन को विचारों ने घेरा और सोचने लगी -ये तो अच्छा हुआ ,मेरे सभी गहने मुझे वापस मिल गए ,वैसे मेरा कुछ गया नहीं ,क्यों नहीं गया ?मन ने धिक्कारा -मेरा विश्वास ,दुबारा ज़िंदगी जीने की चाहत ,मैंने अपने वैधव्य को छला ,उसकी सजा ही मुझे मिल रही है। वो तो अच्छा हुआ ,उसने मेरा घर अपने नाम नहीं कर लिया वरना मैं तो उसके लिए सबकुछ करने के लिए तैयार थी। चाय पीकर ,मन को थोड़ी राहत मिली ,तभी उसके मन में एकविचार गूंजा क्यों न...... उस औरत की असलियत मैं मालूम करूं ,हो सकता है ,उसने मुझे बेवकूफ बनाया हो ,मुझे इसकी सच्चाई तक जाना चाहिए।