जब पहली बार चतुर ,सुमित अग्रवाल के घर पहुंचा तो वे उससे बहुत नाराज हुए थे। उस समय उनकी पत्नी अंजलि अग्रवाल भी उनसे बहुत डरती थी। उन्होंने चतुर के साथ, व्यापार करने के लिए कह तो दिया किंतु पैसों का इंतजाम करने के लिए भी कहा। चतुर के पास ,इतना पैसा नहीं था कि वह कोई व्यापार कर सके, हालांकि उसके पास गांव में बहुत जमीन -जायदाद थी। यदि वह चाहता तो....... अपनी जमीन बेचकर भी पैसा इकट्ठा कर सकता था किंतु वह अपनी संपत्ति को बर्बाद नहीं करना चाहता था बल्कि उसमें और इजाफा करना चाहता था। यह संपत्ति तो उसके गांव की है और वह शहर में अपनी संपत्ति बढ़ाना चाहता था। अपनी मेहनत और हुनर के बल पर, फिर वह हुनर झूठ या बेईमानी ,किसी की ख़ुशामद ,अथवा किसी को धोखा देना ही क्यों न हो ?या फिर किसी की चापलूसी ही क्यों न करनी पड़े ,इसीलिए वह सुमित अग्रवाल से मिलता है।
किंतु 'सुमित अग्रवाल 'थोड़े टेढ़े स्वभाव के हैं, वह शीघ्र ही चतुर के झाँसे में नहीं आने वाले हैं किंतु पत्नी के कहने पर, वे उससे कह देते हैं -आ जाना ! कुछ दिनों पश्चात चतुर्थ सुमित अग्रवाल से मिला और बोला -मैं पैसों की व्यवस्था तो नहीं कर पाया, आप मुझे, अपने नीचे ही ,कोई भी काम दे दीजिए। मुझे वेतन पर ही रख लीजिए। मुझे आपके साथ रहकर कुछ अनुभव तो हो ही जाएंगे और उन्हीं अनुभवों के आधार पर, मैं सोच सकूंगा कि मुझे आगे क्या करना है ?
तुम्हें कुछ आता तो नहीं है, किंतु मैं तुम्हें अपने कार्य के लिए नियुक्त करता हूं, मुझे कहीं भी आना -जाना होगा ,उनकी रिपोर्ट बनानी है, मेरी कोई मीटिंग है ,यह सब बातें तुम्हें मुझे स्मरण करानी होगी।
और हाँ ,अब मेरी भी उम्र हो रही है ,घर पर भी थोड़ा, ध्यान देना होगा। जैसे -साक -भाजी लाना ,मुझे बाहर घुमाने ले जाना आदि कार्य।
इसे मैंने अपने लिए रखा है ,तुम्हारे घरेलू कार्यों के लिए नहीं ,सुमित ने अंजलि को टोका।
जब ये आपका कार्य कर सकता है तो मेरे क्यों नहीं ?
आप लोग ,नाराज़ मत होइए ! घर के एक -दो कार्य ही होंगे ,वो तो कभी भी ,आकर कर जाया करूंगा। ,उसका कोई अलग से पैसा भी नहीं लूंगा। तब सुमित से बोला -यह कहिए न, कि मुझे आपका पर्सनल सेक्रेटरी बनाना चाहते हैं , वैसे तो मुझे, आपसे पैसा नहीं लेना चाहिए क्योंकि मैंने आपको 'बड़े भाई 'का दर्ज़ा दिया है ,किंतु मेरे भी अपने खर्चे हैं इसलिए वेतन के विषय में तो कह ही सकता हूं।
जब तुम सारा दिन हमारे साथ रहोगे, तब दफ्तर में नौकरी कैसे करोगे ?
यदि मुझे यहां वेतन अच्छा मिलता है, तो मैं अपनी वह नौकरी छोड़ दूंगा। पर्सनल सेक्रेटरी का ही नहीं आपके जो भी अन्य कार्य होंगे ,मैं करने का प्रयास करूंगा, कि सब अच्छे से संभाल सकूं।
ठीक है, मैं तुम्हें 50,000 दूंगा , किंतु काम जो बताऊंगा वही होना चाहिए किसी भी , प्रकार की आनाकानी नहीं। मन ही मन अंजलि प्रसन्न हो रही थी और चतुर तो प्रसन्न था ही। वेतन भी बढा और उसे सीखने का एक मौका भी मिला।
जब मिसेज दत्ता को होश आया, तो उसने अपने को अस्पताल में पाया ,वह उठी तो उसे सारी बातें स्मरण हो आईं , तब वह पास बैठी ,नर्स से चिल्ला कर बोली -मुझे यहां कौन लेकर आया ?
आपको यहां एक महिला, भर्ती करके गई है।
तुमने उससे कुछ पूछा - वह कौन थी?
नहीं, मैंने उससे कुछ नहीं पूछा,वो तो काउंटर पर उसने बताया होगा।
मुझे यहां से जाना है, बदहवास सी वह , बिस्तर से उतरी और बाहर की तरफ जाने लगी, नर्स बोली -आप पहले अपना चेकअप करा लीजिए ,इस तरह परेशां होने से आपकी हालत और बिगड़ जाएगी।
नहीं, मुझे कोई चेकअप नहीं कराना है , मुझे अपने घर जाना है, वह मन ही मन सोच रही थी, अच्छा हुआ मेरी बेटी स्कूल में होगी और वह यह सब नहीं देख पाई। आज मैं चतुर से दफ्तर में जाकर ही बात करूंगी , अगर वह झूठा निकला तो उसकी वहीं पर बेइज्जती कर दूंगी। उसे किसी को भी मुंह दिखाने लायक नहीं छोडूंगी ,आखिर उसने हमारी [महिलाओं 'भावनाओं को क्या समझा हुआ है ? इतने दिनों पश्चात, किसी पर विश्वास किया था , किंतु वह विश्वास भी धोखा दे गया, किंतु पहले पता तो चले कि वह महिला झूठी थी या फिर चतुर झूठा है, यही सब सोचते हुए उसने, अपना बिल चुकाया , और सीधे दफ्तर की तरफ निकल गई।
उसे देखते ही मैनेजर ने, कहा -आज तुम बहुत देरी से आई हो किन्तु दत्ता ने जैसे उसकी आवाज सुनी ही नहीं आगे बढ़ती चली गयी ,तब उसे जैसे होश आया और पीछे मुड़ी और मैनेजर से पूछा - यह सब बातें छोड़ो ! यह बताओ !वो '' चतुर भार्गव ''आया है या नहीं।
दत्ता की हालत देखकर, मैनेजर ने पूछा - क्यों क्या हुआ ?
वह तो बाद में ,सब पता चल ही जाएगा, पहले यह तो पता चले कि वह यहां आया है या नहीं।
नहीं ,मैनेजर ने , इस छोटे से जवाब से उसकी संपूर्ण संतुष्टि कर दी , यह सुनकर दत्ता जैसे जोश और क्रोध में आगे बढ़ रही थी , वहीं पड़ी बेंच पर, निढाल हो गई। वह समझ नहीं पाई, क्या करूं ? मैनेजर ने उसके लिए पानी मंगवाया, और उसके हाथ में पानी देते हुए , बोला- अब वह कभी आएगा भी नहीं, क्योंकि वह यहां से नौकरी छोड़कर जा चुका है। दत्ता तो जैसे गहरे सदमे में चली गई , उसे होश ही नहीं रहा, उसके हाथ से पानी का गिलास भी छूट गया। वह तो उसके विषय में ज्यादा कुछ जानती भी नहीं, वह उसे कहां ढूंढेंगी ?
दत्ता को , एहसास हो रहा था जैसे उसके आसपास कुछ लोग खड़े हैं। वह उससे कुछ कह रहे हैं-किंतु उनकी आवाज उसके कानों तक नहीं पहुंच पा रही है वह जैसे अपनी चेतना खो चुकी है। दफ्तर में, यह चर्चा का विषय बन जाता है कि मिसेज दत्ता को आखिर चतुर से इतना लगाव क्यों था ? या वह उसके विषय में क्यों पूछ रही थी ? अवश्य ही उनके बीच में कुछ न कुछ संबंध थे। वह उसे धोखा देकर जा चुका है, न जाने कितनी बातें एक कान से दूसरे कान तक पहुंच रही थीं।