मिसेज दत्ता ने ,चतुर को अपने गहने दे तो दिए किंतु जब वह रात्रि में भी नहीं आया , तब उसे चिंता सताने लगी और वह घबरा गई , वह कहीं उसके गहने लेकर भाग तो नहीं गया। तब उसे अपनी पिछली गलतियों का भी एहसास हो रहा था। उसे लग रहा था, उसने अपना सतीत्व समाप्त कर, अपने पति की आत्मा को दुख पहुंचाया , उसके इसी बिस्तर पर किसी गैर मर्द को सुलाया। अपनी हवस में वह इतनी पागल हो चुकी थी ,वह अच्छा -बुरा सब भूल चुकी थी। आज उसे यह सभी बातें क्यों स्मरण हो आई हैं ? क्योंकि चतुर रात में घर वापस नहीं आया।वह डर गई थी, कहीं वह उसके गहने लेकर भाग तो नहीं गया , अब तो किसी से शिकायत भी नहीं कर सकती। उसके पाप कर्मों की सजा तो उसे भुगतनी ही होगी। आंखों में आंसू भरकर, वह अपने उन कर्मों को, देख रही थी जो अभी कुछ वर्षों पहले, उसने किए थे। जिस तरह मरने से पहले इंसान, अपनी जिंदगी में एक बार अवश्य झांकता है।
सुबह दरवाजे पर खटखटाहट हुई, वह ऐसे ही,चतुर की प्रतीक्षा करते, बैठे-बैठे सो गई थी, जब दरवाजे पर खटखटाहट हुई तो उसकी आंख खुली और उसने दौड़कर दरवाजा खोला तो सामने चतुर खड़ा था। चतुर को देखते ही उसकी सांस में सांस आई और उससे लिपट कर रोने लगी ,बोली -तुम कहां चले गए थे ? मैं तो घबरा ही गई थी।
क्यों ? कहीं मैं तुम्हारे गहने लेकर भाग तो नहीं गया। यह सच्चाई स्वयं चतुर ने उससे कही ,दत्ता को लगा ,जैसे चतुर ने उसके मन का चोर पकड़ लिया।
सोच तो वह ,यही रही थी किंतु चतुर से बोली -नहीं, मैं सोच रही थी तुम इतने सारे गहने लेकर गए हो, किसी को भनक लग गई कोई तुम्हारे पीछे तो नहीं लग गया, या तुम्हें किसी ने लूट तो नहीं लिया अनेक विचार मन में आ रहे थे ।
खैर !कोई बात नहीं, तुम इतना मन सोचो !तुम्हारे सभी गहने सही -सलामत हैं , जब मैने सुनार को वो गहने दिखाए तो वह सुनार कहने लगा -गहने बहुत पुराने हो गए हैं, इनकी सफाई और पॉलिश भी करवा देता हूं इसलिए मैं वहीं रुक गया इस कार्य में बहुत समय लगा मामला 'सोने के आभूषणों ' का था इसलिए वहीं छोड़कर तो नहीं आ सकता था न...... कहते हुए उसने वह डब्बा दत्ता के सामने रख दिया। दत्ता अपने गहने पाकर अत्यंत प्रसन्न हुई और उसे लगा ,वह चतुर के विषय में,कुछ गलत ही सोच रही थी , यह इतना बुरा भी नहीं है।
अभी इस बात को, एक सप्ताह ही बीता था। न ही ,चतुर ने कभी गहनों का जिक्र किया, और न ही फिर किसी व्यापार का...... यह बात दत्ता को बड़ी अजीब लग रही थी किंतु मन ही मन प्रसन्न भी हो रही थी उसे जो भी करना होगा ,कुछ नकुछ व्यवस्था कर ही लेगा आवश्यकता पड़ी तो उससे लोन के लिए कह दूंगी। कम से कम मेरे गहने तो बच ही गए।
दत्ता भी दफ्तर जाने के लिए तैयार हो ही रही थी, चतुर भी कहीं बाहर गया था वह नहीं जानती थी कि आजकल चतुर अंजलि के साथ घूमता रहता है। तभी एक महिला उसके दरवाजे पर आकर खड़ी हुई, देखने में वह बेहद खूबसूरत और जवान महिला थी। पहनावे से भी ,किसी अच्छे परिवार की लग रही थी। दत्ता ने उसकी तरफ देखा और पूछा -जी कहिए ! आपको क्या काम है ?
उस महिला ने आते ही, क्रोध में दत्ता से कहा -मेरे पति से दूर रहो ! तुम अपनी मां को बुलाओ ! मुझे उससे बात करनी है।
आखिर तुम कौन हो? यह सब क्या बकवास कर रही हो ? दत्ता को ऑफिस जाने में देरी हो रही थी। यहां किसी का कोई पति नहीं रहता है और न ही ,कोई मेरी मां रहती है , इस घर में सिर्फ मैं रहती हूं। तुम किसी और घर में जाओ ! दत्ता झल्लाते हुए बोली।
क्यों ? मेरे पति की बॉस यहां रहती है, वह उससे सारा दिन काम करवाती रहती है , उसने मेरे पति को अपने घर में जगह देकर, मानती हूं ,कि एहसान किया है किंतु वह उसका गुलाम नहीं हो गया है। उसे बाहर बुलाओ !
क्या बकवास कर रही हो ? आखिर तुम कौन हो ? और क्या चाहती हो ?
मैं कस्तूरी हूं, मैं अपने पति को लेने आई हूँ ,जो तुम्हारे कारण कई दिन से घर नहीं पहुंचा है , वह तुम्हारी चालों में फंस गया है।
मैं किसी कस्तूरी को नहीं जानती, और न ही तुम्हारे पति को जानती हूं, तुम्हें कोई गलतफहमी हो गई है, इस घर में ,मैं ही रहती हूं तुम्हारा पति कहीं और रहता होगा। तुम गलत पते पर आ गई हो अब मुझे जाने दो! मुझे दफ्तर जाने में देरी हो रही है।
तुम्हें जाने कैसे दूंगी ? जब तक मेरा पति मुझे मिलेगा नहीं, कहते हुए अंदर घुसी और बोली -गलत घर में नहीं आई हूं वह जो पीछे दीवार देख रही हैं, वहीं मैं रहती हूं और मेरा पति यहां, अपनी बॉस के साथ रहता है वह बुजुर्ग बॉस कौन है ??उसे बुलाओ ! वह सब बता देगी, उसने मेरे पति को कहां भेजा है ? और तुम उसकी बेटी हो।
यह पागल औरत न जाने कैसे मेरे घर में घुस आई है ? तुम मेरे घर से बाहर निकालो ! मिसेज दत्ता लगभग चिल्लाते हुए बोली-तुम्हारा पति कौन है ? क्या नाम है, उसका ?
मेरा पति ''चतुर भार्गव '' इसी घर में रहता है, मैंने कई बार उसे अपनी छत से, इस घर में देखा है, और उसने ही मुझे बताया है कि यह उसकी बॉस का घर है।
तुम यह क्या कह रही हो ? क्या चतुर तुम्हारा पति है ?
हां, अब पहचान गईं।
किंतु वह तो कुंवारा है उसका तो अभी विवाह भी नहीं हुआ है।
अरे नाशपीटी ! शुभ, शुभ बोल ! उसके दो बच्चे हैं ,और एक यहां है ,पेट की तरफ इशारा करते हुए बोली।
कस्तूरी की बात सुनकर मिसेज दत्ता तो जैसे ठगी सी रह गयी ,उसकी जबान को जैसे लकवा मार गया। जहाँ खड़ी थी ,वहीं गिर पड़ी।
अंजली को चतुर का व्यवहार ,उसका सम्मान से बातें करना ,उसका बहुभाषी होना भी ,उसे बेहद अच्छा लगा ,चतुर अंजली को अनेक किस्से सुनाता ,जैसे मैंने एक बंगाली स्टोर में काम किया तो बंगाली सीखी। पंजाबी ढाबे पर गया तो पंजाबी सीखी।
अंग्रेजी सीखने तब तुमने किसी अंग्रेज के यहाँ काम किया ,कहते हुए अंजली हंसने लगी।अक्सर दोनों में इसी तरह की नोकझोंक होती रहती।