Rasiya [part 111]

चतुर चतुर प्रातः काल ही, अंजलि अग्रवाल के फोन पर सीधे उसके घर पहुंचता है और सुमित अग्रवाल से व्यापार के विषय में बातचीत करना चाहता है किंतु सुमित अग्रवाल को लग रहा था, न जाने, यह कौन है और इतना अपनापन क्यों दिख रहा है ? इसकी क्या मंशा है ? उसके व्यवहार के कारण वह उस पर विश्वास नहीं करता है। किंतु जब वह घर में आ ही गया है तो उसे चाय के लिए पूछ लेता है , और अखबार से नजर हटाते हुए, सुमित पूछता है - क्यों ?तुम व्यापार ही क्यों करना चाहते हो ?तुम्हारी अपनी नौकरी भी तो है ,उसका क्या ?

अभी नौकरी है ,किन्तु आगे बढ़ने के लिए ,नौकरी के साथ -साथ व्यापार भी करना चाहता हूँ। 

क्या व्यापार करना चाहते हो ?अनमने मन से सुमित ने पूछा। 

 इसीलिए तो आपके मार्गदर्शन की आवश्यकता है। 



मैंने, यहां कोई इंस्टिट्यूट नहीं खोला है, मैं शागिर्द नहीं बनाता। हमारा तो पैतृक काम है ,जो मुझे अपने पुरखों से मिला है, सुमित ने स्पष्ट कहा।

तब तक अंजली  चाय लेकर आ जाती है ,अंजली  को देखकर सुमित मुस्कुराया और बोला -तुम्हारा देवर आया है ,कहते हुए स्वयं चाय की प्याली उठाई और चतुर से बोला -बिस्किट भी लो !

चतुर  बिस्कुट उठा रहा था ,तभी सुमित ने पूछा -आज अचानक कैसे ? क्या तुम्हें मालूम था ?कि मैं आज घर में हूँ ,कहते हुए , सुमित ने चतुर और अंजलि की तरफ देखा , अंजलि को ऐसे प्रश्न की उम्मीद नहीं थी वह घबराई और चुपचाप अंदर चली गई , मन ही मन चतुर भी घबराया , किंतु बहाना बनाते हुए बोला-मैं तो ऐसे ही इधर आ रहा था , सोचा-घर का पता मालूम है, तो एक बार जानकारी ले ही लेता हूं और जब मैंने  आपको देखा, तो मुझे विश्वास हुआ, आप ही हैं ,इसीलिए....... 

चतुर के गोल-मोल जवाब से सुमित संतुष्ट नहीं हुआ, बोला - क्या तुम मुझे पहले से जानते हो! जो मुझे पहचान गए। 

नहीं जानता तो नहीं था  किंतु इतना तो जानता हूं ,जिस घर में घुसा हूं , वह अग्रवाल साहब का ही है इतना तो मैंने  बाहर ही एक व्यक्ति से पूछ लिया था और फिर आपकी ''नेम प्लेट ''पर भी लिखा हुआ था , अब इस घर में आप हैं तो यह घर आपका ही हुआ,आत्मविश्वास के साथ बोला। 

 चाय का घूँट  भरते हुए, सुमित बोला -बातें अच्छी बनाते हो। 

जी वही तो मैं चाहता हूं कि आप मेरे इस हुनर का लाभ उठाएं !

इसका लाभ मैं क्यों उठाऊं ?तुममें कुछ काबिलियत है ,तो उसका उपयोग स्वयं के लिए करो !

वही तो मैं आपसे कहना चाहता हूँ ,मेरा उचित मार्गदर्शन कीजिये। 

क्या तुम जानते हो ,कि मैं क्या व्यापार करता हूं ? अब वह कैसे कहे ?कि उसे  अंजलि ने बता दिया था किंतु बोला नहीं ,तब तुम मेरे पास बिना जानकारी के  कैसे आ गये ? जिसको गुरु बनाते हैं, उसके विषय में पहले थोड़ी बहुत जानकारी होनी चाहिए या नहीं अब सुमित मुस्कुराया। 

वह जानकारी अब आप मुझे दीजिए, चतुर बोला -तब मैं सोचूंगा, कि मुझे क्या करना है ?कैसे आगे बढ़ना है या वापस चले जाना है ,पूरे विश्वास के साथ बोला। 

ठीक है ,मेरा एक कार्य है कि मैं अपनी फैक्ट्री में माल बनवाता हूं और उसको बाहर भेजता हूं, और दूसरा कार्य सस्ती जमीनें खरीद कर, उनमें पैसा लगाता हूं और फिर उनके प्लाट काटकर बेच देता हूं। 

यह सही रहेगा, इसमें कितना मुनाफा हो जाता है ?

इसमें पहले पैसा लगाना पड़ता है, तुम्हारे पास कितने पैसे हैं ?

वही तो नहीं हैं। 

 फिर यहां क्या करने आए हो ? व्यापार ऐसे ही नहीं चलता, पहले उसमें पैसा लगाना पड़ता है। बेवकूफ कहीं के, एकदम वह क्रोधित हो उठे ,आ गए मेरा समय बर्बाद करने के लिए ,चतुर से जाने के लिए नहीं कह सका किंतु स्वयं उठकर चला गया। चतुर अंजलि की तरफ देख रहा था और अंजलि देख रही थी कि सुमित कैसे, किस तरह से आंखों से ओझल हो ,तब वह चतुर को समझाइए। 

जैसे ही सुमित अपने कमरे में ऊपर पहुंच गया, तब अंजली बोली -अब तुम चले जाओ ! और बाद में आना, अभी तुम्हें इनका विश्वास जीतना होगा उसके पश्चात ही ये तुम्हारी कोई मदद कर पाएंगे। उनसे कहो !मुझे व्यापार में, कुछ हिस्सा दें, कम ही सही, और बाकी के भाग दौड़ के कार्य और बहुत से ऐसे कार्य हैं ,वे स्वयं तुम्हें समझा देंगे। 

ठीक है अब मैं जाता हूं, कहने के पश्चात वापस अपने दफ्तर आ गया। 

आजकल कहां रहते हैं ? ज्यादा ही छुट्टी नहीं करने लगे , किसी आवश्यक कार्य से गया था, चतुर ने अपने मैनेजर से कहा। 

यहां सभी के कुछ ना कुछ आवश्यक कार्य ही होते हैं , इसलिए समय से आइये और इस दफ्तर के कुछ नियम हैं इसलिए समय से आइये और समय से जाइए! उसके पश्चात आप कुछ भी करें ,हमें कोई मतलब नहीं है लेकिन इस तरह दफ्तर से जाना ,आज यह पहली बार है , आगे ऐसा नहीं होना चाहिए मैनेजर ने समझाया। 

तन्मय ने घडी में समय देखा ,रात्रि के ग्यारह बज रहे थे ,अभी तो उसे घर भी पहुंचना है ,रतनलाल खाना बनाकर जा चुका होगा। यही सोचकर ,तन्मय बोला -आज की रात्रि तो तुम्हें यहीं बितानी होगी किन्तु मुझे जाना होगा,बाक़ी की कहानी कल पूरी करते हैं। तुम्हारा खाना मैंने चेतराम के हाथ भिजवाया था ,तुमने खा लिया होगा। 

हाँ ,खा तो लिया किन्तु तू मुझे यहाँ छोड़कर क्यों जा रहा है ? मैं यहाँ नहीं रह सकता चतुर तन्मय से बोला -तूने वकील से बात की ,वो मेरी जमानत कब करवा रहा है ? 

वो लगा हुआ है ,हम भी अपनी तरह से तैयारी कर रहे हैं ,ये कोर्ट -कचहरी के मामले हैं ,सब चीजें तरीक़े से  होती हैं। 

तुम्हारे तरीक़े के चक्कर में ,कहीं मैं ''बलि का बकरा न बन जाऊँ। '

कहीं आग लगी है ,तभी तो धुंआ उठा है ,अब या तो फिर आग लगे या फिर....... थोड़ी देर धुंआ ही सहन कर ले  ! मुझे भी भूख लगी है ,मेरा खाना घर पर बना रखा होगा ,कहते हुए तन्मय ने बाहर की तरफ कदम बढ़ा दिए। न जाने ,इसने क्या -क्या कांड किये हैं ?फिर हमसे सहायता की उम्मीद रखते हैं। पुलिस तो वैसे ही बदनाम है किन्तु ये लोग [जो सभ्य और शालीनता का चोला ओढ़े रहते हैं ]क्या -क्या करते रहते हैं ?किन्तु चाचा -चाची और बच्चों के कारण ,इसका साथ तो देना ही पड़ेगा किन्तु यदि ये गलत हुआ तो मैं भी कुछ नहीं कर पाउँगा तन्मय की मोटरसाइकिल काली सड़क पर दौड़े जा रही थी। 

अगले दिन ,तड़के ही वकील साहब आकर थाने में बैठ गए और इंस्पेक्टर तन्मय  की प्रतीक्षा करने लगे ,तन्मय के आते ही ,उससे पूछा -क्या आपके मित्र कैदी ने कुछ बताया ?



laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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