Rasiya [part 110]

अब तक के हालात  सुनते हुए तो ऐसा लग रहा है ,शहर में आकर ,तुमने खूब मौक़े का लाभ उठाया है ,यहाँ आकर तो 'रसिया ' ही बन गए। एक तरफ कस्तूरी भाभी ! दूसरी तरफ वो दत्ता !''एक तरफ घरवाली , एक तरफ बाहरवाली ''गुनगुनाते हुए बोला -वो गोविंदा की फ़िल्म को तुमने कुछ ज्यादा ही गहराई से देखा है ,जो जीवन में भी उतार लिया ,अबआगे बताइये !आगे क्या हुआ ? तन्मय ने चतुर की कहानी में दिलचस्पी दिखलाते हुए कहा। 

मिसेज दत्ता , मुझे खींचकर अपने और करीब ले आई और बोली - सच में ,तुमने मुझे पागल कर दिया है? मैं तुम्हें चाहने लगी हूं , तुम्हारा भी विवाह नहीं हुआ है, क्या हम दोनों एक नहीं हो सकते ? कहते हुए वह चतुर से लिपट गई। 


यदि चतुर के आसपास कस्तूरी न होती तो शायद ,चतुर उसका साथ देता किंतु अब थोड़ा घबरा रहा था। वह भी जवान थी और चतुर भी जवान था अपने को ज्यादा नियंत्रित न कर सका,बोला -तुम्हारी बेटी.....  वह अपनी बेटी को सुला कर आई थी , वह रात उन दोनों ने, साथ में गुजारी। दत्ता साहब ! तो  चार -पांच साल पहले चले गए थे ,तब से वह अकेली ही थी। पुरुष का संपर्क पाते ही, वह तो ऐसी हो गई जैसे बरसों की प्यासी थी,उसने विवाह न करने का जो प्रण लिया था ,वह टूट  रहा था ,उसने मुझसे विवाह करने जैसी  नहीं रखी।  चतुर का बिस्तर उसने अब अपने ही कमरे में लगा दिया था। यह चतुर की जीत थी, किंतु इस जीत में उसे अब थोड़ा डर लगने लगा था क्योंकि देर -सवेर  वह कस्तूरी के पास चला जाता था किंतु कुछ दिनों से, वह कस्तूरी से मिला ही नहीं, सामान वगैरहा देने के लिए भी वह जाता और तुरंत ही आ जाता। 

वह मिसेज दत्ता के साथ ,छुट्टियां मनाने गया , कस्तूरी को पूरा खर्चा देता रहा। मिसेज दत्ता और चतुर दोनों पति-पत्नी की तरह महीनों तक  साथ रहते रहे।

 इधर चतुर ने, श्रीमती अग्रवाल से भी संपर्क बना लिया था, वह उसके पति के माध्यम से कोई बड़ा व्यापार करना चाहता था इसीलिए वह उसके पति से मिलना चाहता था और उसके पति से मिलने के लिए, उसे ''शीशे में उतार रहा था।''

 मिसेज अग्रवाल को, बहुत दिन पश्चात, ऐसा पुरुष मिला जो उसको समझ रहा था जो उसकी भावनाओं को समझता था। उसके विचारों को ध्यान से सुनता था। उसके हर फैसले की कदर करता था। आज तक तो मिस्टर अग्रवाल ने, उस पर सिर्फ झुंझलाया ही हैं। कभी उसके सौंदर्य की प्रशंसा नहीं की। कभी उसकी कला को नहीं सराहा। यह सभी कार्य चतुर कर रहा था जिसके कारण वह चतुर की ओर आकर्षित हो रही थी और वह चाहती थी कि चतुर उसके घर में आता -जाता रहे। व्यापार के ही बहाने से, या किसी भी माध्यम से वह उसके करीब रहे। चतुर ने , मिसेज अग्रवाल को ,अपना फोन नंबर दिया था और अग्रवाल ने भी अपना फर्ज बखूबी निभाया, जब मिस्टर अग्रवाल, अपने घर आए, तो उसने तुरंत ही फोन करके, चतुर को बुला लिया। 

चतुर तुरंत ही, दफ्तर से छुट्टी लेकर, सुमित अग्रवाल के घर पहुंच जाता है , जहां वे अपनी पत्नी अंजलि अग्रवाल के साथ रहते हैं। अंजलि उसे देखते ही प्रसन्न हो गई किंतु सुमित के सामने उसने, दर्शाया नहीं। चतुर ने उसके घर ,पहुंचने के पश्चात देखा ,एक अधेड़ उम्र व्यक्ति ,जिसके खिचड़ी बाल थे ,आधे काले ,आधे चांदी लिए थे  या ये भी कह सकते हैं ,उन बालों के माध्यम से ,उनकी ज़िंदगी के अनुभव दर्शा रहे थे। नाइट गाउन में ,बैठे समाचार पत्र में नजरें गड़ाए थे। उनके चेहरे पर गंभीरता थी जो उनके व्यक्तित्व  को प्रभावशाली बना रही थी। घर पहुंचते ही,चतुर ने तुरंत ही , अपना दाँव फेंका -बड़े भैया ! मैंने  आपका बहुत नाम सुना है, लोग आपकी बहुत प्रशंसा करते हैं। मैंने सुना  है ,आप व्यापार में माहिर हैं। 

सुमित ने उसे न पहचानते हुए, चतुर से कहा -तुम कौन हो ?अंदर कैसे आये ?

 बड़े भैया आपने मुझे पहचाना नहीं , मैं भाभी को यानि आपकी पत्नी को बाजार में, मिला था। 

सुमित अग्रवाल ने सोचा -यह मेरी पत्नी को बाजार में मिला था, वह ,एक दिन इसका जिक्र कर भी रही थी किंतु आज यह मेरे घर कैसे पहुंच गया ? तब उसने चतुर से पूछा- तुम्हें हमारे घर का पता कैसे मिला  ? यह सुनकर अंजलि रसोईघर में खड़ी काँप गयी। 

सुमित के तेवर देखकर ,चतुर समझ गया कि यह इतनी जल्दी झांसे में नहीं आने वाला है, आना भी नहीं चाहिए, इतना बड़ा ''बिजनेसमैन'' है यदि इस तरह झांसे में आने लगा तो  यह व्यापार कैसे करेगा ? तब चतुर बोला -भाभी जी ,जब रिक्शेवाले से कह रही थीं , तभी मैंने सुना था।

 तुम किसी की भी बातें ,''कान लगाकर सुनने लगते हो'' और इतने दिनों पश्चात तुम्हें स्मरण भी रहा ,मुँह बिचकाते हुए ,बोला -कमाल की स्मरण शक्ति है। 

नहीं भैया ! ऐसी कोई बात नहीं है।

 तुमने एक सब्जी पकड़वाने  के बहाने से उनके घर तक का पता कर लिया और तुम कहते हो , ऐसी कोई बात नहीं है ,आश्चर्य से सुमित बोला -चलो ! अब आ ही गए हो, तो चाय पियोगे !

 आप पिलाएंगे तो पी लूंगा, चतुर चुपचाप बैठ गया और सुमित भी अखबार पढ़ने में व्यस्त हो गया। चतुर को कुछ सूझ नहीं रहा था कि वह बात की शुरुआत कैसे करें या बात को आगे कैसे बढ़ाएं ? भैया !आपने यह घर तो बड़ा ही आलीशान बनाया है। 

हम्म्म्म्म ! पहली बात तो ये ,मैं तुम्हारा भइया कब से हो गया ?तुम बिना सोचे -समझे शीघ्र ही रिश्ते बना लेते हो। 

ऐसी कोई बात नहीं है ,वो तो मैंने आपकी पत्नी भाभी कहा ,उस नाते आपको भैया कहने लगा। वैसे मैं एक अच्छी कंपनी में कार्य करता हूं, यदि आपको लगता है ,कि मेरी कोई आवश्यकता पड़े तो आप मुझे याद करियेगा। 

मेरा ऐसी कंपनियों से कोई वास्ता नहीं, मेरा कार्य ही अलग है, मुझे लगता है, मुझे तो कोई कार्य नहीं पड़ेगा।

 तब आप मुझे अपना शागिर्द बनायेंगे  या नहीं, 

 कैसा ,शागिर्द  बनाना ? किसमें शाग़िर्द बनाना ? मैं कुछ समझा नहीं। 

 मैं भी चाहता हूं, कि मैं कोई व्यापार करूं ,इसीलिए आप मेरा मार्गदर्शन कीजिएगा । 

क्या सुमित चतुर को अपने साथ रखेगा ?जैसा चतुर चाहता है ,क्या ऐसा होगा ?आइये !आगे बढ़ते हैं। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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