Rasiya [part 109]

चतुर जानता है ,कि उसे इस तरह, इस जाल में कौन फंसा सकता है ? किंतु वह उसका नाम नहीं लेना चाहता, अपने वकील से भी, उसने उस शख्स का नाम बताने से इनकार कर दिया। तब इसकी जिम्मेदारी तन्मय अपने ऊपर लेता है  और कहता है -कि मैं उस व्यक्ति का पता लगा कर रहूंगा। तब वह अपने मित्र चतुर से मिलता है , उसे भावनात्मक रूप से भी, यह बताने के लिए मजबूर करना चाहता है कि आखिर उसे, उस अनजान व्यक्ति का नाम लेने में क्या आपत्ति है ? वह कौन व्यक्ति है ,जो उसको बर्बाद करना चाहता है। तब चतुर उसे अपने उस समय की कहानी सुनाता है ,जब वह कानपुर में, मिसेज दत्ता  के संपर्क में आया था। 

अभी शुरुआत ही की थी, तभी चतुर के पिता ने, चतुर से कहा -'कि वह कस्तूरी को अपने साथ लेकर जाए  ! इतने दिनों तक एक ब्याहता महिला  का, अपने पति से दूर रहना उचित नहीं है। उन्हें अच्छा नहीं लगा,जब उसके दोस्तों ने उसका मज़ाक बनाया।  उस समय उसका दूसरा बेटा, 2 महीने का ही था। 


चतुर को इस तरह कस्तूरी को कानपुर लाने में, दिक्कत तो थी किन्तु पिता से कोई और बहाना भी नहीं बना सकता था। इसी कारण वह कुछ कह नहीं सका और उसने, कस्तूरी को भी, मिसेज दत्ता के मकान के पीछे एक मकान किराए पर लेकर दे दिया और उसे अपनी दुविधा बतलाई कि किस कारण से वह उनके साथ न रहकर, उस घर में रह रहा है। उसने बतलाया-' कि वह उसकी 'बॉस' का घर है।  जब वह कानपुर आया था तब उन्होंने उस पर बड़े एहसान किए थे ,इसी का एहसान को चुकाने के लिए, उस बेचारी बुजुर्ग महिला के घर पर वह रहता है। इस बात को कस्तूरी ने, मान लिया।

 एक दिन कस्तूरी ने, एक जवान महिला को उस मकान में, देखा था और चतुर से प्रश्न भी किया था -कि आखिर वह महिला कौन है ? मुझे तो कोई बुजुर्ग महिला नजर नहीं आती, उसके इस तरह बात करने से, चतुर को ईर्ष्या की बू  आ रही थी. वह जानता था, कि कस्तूरी मुझसे  बहुत प्रेम करती है किंतु अगर इसको यह पता चल गया कि वह महिला कोई बुजुर्ग महिला नहीं है बल्कि एक जवान महिला है तो न जाने क्या कर बैठे ?'' इसलिए उसे समझाता और बहलाता रहता। 

जब से चतुर ने मिसेज दत्ता के बीमार  होने पर उनकी खूब सेवा की है, तब से वह उसकी ओर आकर्षित होने लगी है।  उनका उस पर दिन ब दिन विश्वास और बढ़ गया बल्कि वह चतुर को लेकर, अपने भविष्य के सपने सजाने लगी उन्हें एहसास होने लगा कि मुझे चतुर से बेहतर पति, और मेरी बेटी को चतुर से बेहतर पिता नहीं मिल पाएगा। धीरे-धीरे वह चतुर पर आश्रित होने लगी ,उनका विश्वास इतना बढ़ गया कि उसने  अपनी जरूरी कागजात और पैसे का लेनदेन भी चतुर के हाथों ही सौंप दिया। उस घर के खर्चे उठाता और अपना भी, उसी घर के खर्चे में काम चला लेता। वह अभी, मिसेज दत्ता  के ज्यादा करीब नहीं जाना चाहता था , हो सकता है ,इसका कारण कस्तूरी भी हो !

अब 'मिसेज दत्ता ' चतुर से प्रेम करने लगी थी, उस पर विश्वास भी अधिक बढ़ गया था। एक बार रात्रि में, उसके करीब आई, अब तक वह यह नहीं जान पाई थी कि चतुर रात्रि में, सीढ़ियों से चढ़कर छत पर जाकर अपनी बीवी से मिलने ,दूसरे घर में चला जाता है। आज भी ,वह कस्तूरी के पास जाने की सोच ही रहा था। तभी उसके कमरे का दरवाजा किसी ने खटखटाया। इस समय कौन हो सकता है ?चतुर ने दरवाजा खोला तो सामने 'मिसेज़ दत्ता '' खड़ी थी। आप इतनी रात गए यहाँ ?चतुर जानता था कि वो उसके करीब आना चाहती हैं किन्तु नजरअंदाज कर रहा था ताकि कस्तूरी को ठीक से जबाब दे सके। यदि कस्तूरी साथ में न होती तो शायद ,उन्हें इस तरह चतुर के पास न आना पड़ता। तब चतुर बोला -आप ठीक तो हैं। 

''मिसेज दत्ता' चतुर से कहने लगीं -हाँ ,मेरी तबियत कुछ ठीक ही तो नहीं है ,मेरे पीछे आओ ! कहते हुए आगे बढ़ चली ,चतुर भी पीछे -पीछे चल दिया। वो अपने कमरे में पहुंची ,जहाँ अच्छी रौशनी थी ,चतुर ने देखा ,उन्होंने एक झीना गाउन पहना है ,जिसमें उनका बलखाता बदन जबरन ही छुपने का प्रयास तो कर रहा है किन्तु असफल हो रहा है। तब वो अपने बिस्तर पर बैठकर बोली -क्या तुम मुझे पसंद करते हो ? जहां तक मेरा विचार है, तुम मुझे अवश्य ही पसंद करते हो इसीलिए तो तुमने अपना वह मकान छोड़ा। ताकि मेरे करीब आ सको ! क्या मैं झूठ बोल रही हूं ?मचलते हुए उसने पूछा। 

 आपको कैसे मालूम ?जैसे उसने कोई  रहस्य खोल दिया हो ,चतुर अभिनय करते हुए बोला। 

 मैं तुम्हारे पुराने मकान -मालिक से मिली थी,' उसने मुझे बताया था -'कि उसे  तुम्हारे रहने में कोई आपत्ति नहीं थी वह स्वयं ही वह घर छोड़कर गया था। '' अब  इसे मैं क्या समझूं ? अंगड़ाई लेते हुए वो बोली। 

उन्हें इस तरह देख मैं भी मचल उठा था। हां, मैं समझ सकता हूं, वह सब मैंने यह जानबूझकर किया था ? अब अकेली महिला को किसी न किसी सहारे की आवश्यकता तो होती ही है जिसमें ,साथ में आपकी  बच्ची भी है ।

 तब उसने मेरा हाथ पकड़कर ,मुझे अपनी तरफ खिंच लिया ,इतने दिनों से मैं भी तो यही चाहता था ,कि वो स्वयं ही मेरी झोली में आकर गिरे,कब तक अपने को संभालती ?मैं जानता था ,वो मुझे नहाते हुए ,अक्सर चोरी -छिपे देखा करती थी। 

वाह....... आप तो उस्ताद निकले ,यहां भाई के पास एक भी नहीं ,और ये...... कई -कई पर दांव खेल रहे थे। सभी भाभियाँ थीं या कोई कोमल कली भी..... तभी तन्मय को जैसे कुछ स्मरण हुआ और बोला -एक मिनट ,कई वर्षों पहले ,जिस शहर में तुम पढ़ते थे ,उस शहर में भी तो कुछ ऐसा ही कांड  हुआ था। उसमें तो लड़कियां थीं ,कहीं उसमें भी तो...... आपका हाथ नहीं था। 

क्या बात कर रहा है ?भला ,मैं ऐसा कर  सकता था। फिर मैं तो ,उस शहर में ज्यादा रहा भी नहीं ,चतुर को ड़र था ,ये कहीं ,मेरे उस केस को भी न खोल बैठे, हालाँकि उस समय पुलिस को कुछ हाथ नहीं लगा था। किन्तु इससे उस विषय में ज़िक्र भी नहीं कर सकता , कहीं ये मेरी सहायता के बदले ,मेरा दुश्मन ही न बन बैठे।  

तन्मय उसके गांव से भी है, और उसका बचपन का मित्र भी है किंतु अभी भी वैसे संपूर्ण बात नहीं बता सकता है क्योंकि यदि उसे चतुर गलत लगेगा तो वह उसके साथ खड़ा दिखलाई नहीं देगा। तब क्या चतुर तन्मय को संपूर्ण जानकारी देता है या नहीं, आइये !आगे बढ़ते हैं- रसिया के साथ। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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