Rasiya [part 108]

तुमने मुझे यह किससे मिलवाया है, वकील नाराज होते हुए ,इंस्पेक्टर तन्मय  से आकर पूछता है। 

क्यों ,क्या हुआ है ? वह कहता है -'मुझे फंसाया गया है। 'जब मैंने उससे पूछा था ,तुझे किसी पर शक है कि किसने तुझे फंसाया है ? तो कह रहा है -'कि आप केस पर ध्यान दीजिए और मैं नहीं चाहता ,कि जिस पर मुझे शक है ,उसका नाम भी बाहर आये। बस कुछ ऐसा उपाय कीजिए ताकि मैं शीघ्र ही ,बाहर आ जाऊं। 

मतलब ! मैं कुछ समझ नहीं। 

अब इसमें क्या समझना,या न समझने वाली बात है  ? 


जिसने उसे फंसाया है , उसे, वह अच्छी तरह से जानता है किंतु उसका नाम नहीं लेना चाहता। न ही बताना चाहता है। अब आप ही बताइए ! इसमें हम क्या कर सकते हैं ? 

ठीक है, मैं उससे बात करता हूं ,उसके केस को, मैं ही हैंडल कर रहा हूं। आप इसके केस को विस्तार से समझिए और उसको छुड़ाने का कोई तरीका सोचिए और मैं उससे बात करके आपको बताता हूं ,शायद मुझे कोई सबूत मिले। 

मुझे तो नहीं लगता, कि वह मुंह खोलेगा। 

यह कार्य मेरा है ,आप अपना कार्य कीजिए ! विश्वास के साथ तन्मय ने वकील से कहा। 

यदि आपको उस पर  इतना ही विश्वास है,तो ठीक है ,मैं चलता हूं, अपने हाथ की घड़ी में समय देखते हुए कहता है - आप मुझे फोन पर बता दीजिएगा ,मैं भी कोई क्लू  ढूंढता हूं, कहकर वकील अपना सूटकेस उठाकर चल देता है। 

सारा दिन, गुंडो में, उठाईगिरों में ,चोर- उचक्कों में फंसा रहा। शाम को उसने सोचा -मैं घर चला जाता हूं फिर ध्यान आया , चतुर भी तो अंदर है। वकील की बात उसे ध्यान आई , तब वह चतुर के पास जाता है, और भाई कैसे हो ?

जेल में ,आदमी कैसा हो सकता है ?चतुर परेशान होते हुए बोला। 

 अभी आप जेल में नहीं हैं , आपकी जमानत के लिए शीघ्र से शीघ्र प्रयास कर रहा हूं ताकि जेल जाने की नौबत ही न आ  पाए।

 सारा दिन तो यूं ही निकल गया, मैं रात भर यहां कैसे रहूंगा ? 

वह तो तुम्हें कोई भी कांड करने से पहले सोचना चाहिए था, मैंने  तुम्हारे लिए इतना अच्छा वकील किया था तुमने उसे भी ठीक से जवाब नहीं दिया। ऐसा कौन व्यक्ति है ? जो तुम्हारा अहित चाहता है किंतु तब भी तुम, उससे बदला नहीं लेना चाहते, उसे अपनी जगह जेल में नहीं डालना चाहते और तुम जानते हो, कि वह कौन है ?

सही तरीके से तो नहीं कह सकता किंतु मेरा शक है, और मैं नहीं चाहता कि वह जेल में जाए। उनके मुझ पर उपकार भी हैं , उनका क्रोध आना, मुझसे बदला लेना ,अधिकार भी बनता है। 

मुझे कुछ कहानी बताओगे भी, जब तुम कानपुर में थे, तब तुम ,आगरा में कैसे पहुंच गए ? तुम तो नौकरी करते थे न फिर नौकरी करते-करते यह  जमीन की, खरीद -फरोख्त में कैसे पड़ गए ? देख ! तू मेरा दोस्त है, दोस्ती की नाते ,मै चाहता हूं कि तू मुझे सब कुछ सच -सच बता दे !यार ! तेरे बच्चे छोटे-छोटे हैं तू अपने बच्चों से मिले और उनका डर दूर करे,बेचारे बहुत डरे हुए हैं भावनात्मक रूप से उसको कमजोर करना चाहा। 

क्या कह रहा है ?

 हां, मैं तेरे घर गया था, यार !तूने घर तो बहुत आलीशान बनाया हुआ है , लाखों रुपया लग गया होगा ,वैसे तेरे पास इतना पैसा कहां से आया ?

 वही बात ! लोगों को इसी चीज की तो परेशानी है, कि यह पैसा कहां से आया ? क्या मैं पैसा जोड़ नहीं सकता, लोन नहीं ले सकता ?

 तो फिर तुझ पर ,यह इल्जाम क्यों आया ?

वही ईर्ष्या की भावना ! 

कौन ,ऐसा कर रहा है ?तुझे उसका नाम नहीं बताना चाहिए, क्रोधित होते हुए तन्मय ने कहा - तू अपने बच्चों का तो सोच, उस इंसान को बचाने के बदले में, तू अपने बच्चों पर अन्याय नहीं कर रहा। बेचारी भाभी की क्या हालत हो गई है ? दो  दिनों  में ही , देखकर ऐसा लगता है कई महीने से बीमार हैं । क्या उन्हें इस विषय में कुछ पता है ? क्या किसी लड़की- वड़की का चक्कर है ? देख यहां तो मैं ही पूछ रहा हूं और तू और मैं दोनों ही हैं।  हम दोनों के अलावा यहां कोई नहीं है लेकिन जब अदालत में गया तो वहां पूछताछ होगी तो सभी पर्दे खुलेंगे, जिन्हें तू मेरे सामने भी नहीं खोलना चाहता। 

ऐसी बात नहीं है,

फिर कैसी बात है ? तू क्या चाहता है ?

 बस यही चाहता हूं कि मैं यहां से बरी हो जाऊं। 

इतना आसान समझा  है। अच्छा !यह तो बता !कानपुर में तूने क्या किया और वहां क्या हुआ था ? अब तो भाभी भी तेरे साथ रह रही थी। 

उस बेचारी को तो कुछ भी मालूम नहीं है ,उसे तो जैसे भी कहता था, मान लेती थी। 

 तब दिक्कत कहां आई ?

 मेरी आगे बढ़ाने की लालसा ! शीघ्र से शीघ्र अमीर होना। अमीरों की तरह शहर में रहना। यही सब मैं चाहता था ? मेरी नौकरी लगी थी , किंतु 25 से 30,000 में क्या होता है ? मुझे शीघ्र अति शीघ्र ,बच्चों के बड़े होने से पहले, शहर में एक मकान लेना था , उनके लिए हर तरीके की सुविधा करनी थी अपने लिए गाड़ी लेनी थी। तब मैंने अपने ही दफ्तर की एक महिला मिसेज दत्ता को, अपने आगे बढ़ने की पहली सीढ़ी बनाया। 

भला ,एक औरत क्या कर सकती है ?वह तेरे लिए कैसे सीढ़ी  बन सकती है ?

बता तो रहा हूं, वह विधवा थी , पति की कमी अक्सर खलती थी, मैंने उसका विश्वास जीता और उसके घर पहुंच गया। 

वाह ! इसका मतलब ! तू  दोनों हाथ में लड्डू चाहता था, इधर भाभी और इधर वो....... कहते हुए तन्मय  मुस्कुराया, किंतु इस बात से तुझे क्या लाभ होने वाला था ?उसका घर ,उसकी कमाई से लाभ होना था। 

यह कैसे सम्भव है ?मेरे विचार से तो भाभी तेरे दूसरे बेटे के होने के पश्चात ही, चली गयी थी ,तब तू कैसे सब संभालता था ?

तभी तो बतला रहा हूँ ,कस्तूरी बहुत अच्छी थी या यूँ समझ लो ,गाँव की होने के कारण, मेरे प्रति ईमानदार  थी। उसे जैसे भी समझाता, समझ जाती किन्तु नादान नहीं थी। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post