ये तो अच्छा हुआ ,इस थाने में इंस्पेक्टर कोई और नहीं चतुर का बचपन का दोस्त तन्मय ही था। उसको इस थाने में देखकर ,चतुर शर्मिंदा हुआ किन्तु अब किया भी क्या जा सकता है ?अब जो भी है, उसके सामने है। क्या ये किसी ने सोचा था ,उसका दोस्त पुलिसवाला होगा और वो स्वयं उसके सामने एक कैदी के रूप में खड़ा होगा किन्तु उसके यहाँ होने से चतुर को एक उम्मीद बन गयी थी ,कि यहाँ कोई मेरा अपना है ,जो मेरा साथ देगा, कुछ न कुछ तो सहायता करेगा ही।
तन्मय की भी अपनी उलझन है ,उसके हाथ भी कानून से बंधे हैं ,कानून के दायरे में रहकर, उससे जो भी बन पड़ेगा वह चतुर और उसके परिवार के लिए करेगा किन्तु मन ही मन उसे घबराहट भी है कि कहीं वह सच में ही किसी गलत कार्य में शामिल हुआ तो मैं उसके लिए कुछ नहीं कर पाउँगा। यही सोचता हुआ जा रहा था ,जब थाने पहुंचा ,तो वहां पहले से ही ,बहुत भीड़ नजर आ रही थी। इंस्पेक्टर तन्मय को देखकर ,सभी उठ खड़े हुए ,ऐसा लग रहा था, जैसे -वो उसी की प्रतीक्षा में थे।
तब उनमें से एक व्यक्ति बोला -इसे सख्त से सख्त सजा दीजिये ,इसने हमारी मेहनत का पैसा खाया है
तभी दूसरा बोला - इससे हमारा पैसा दिलवाइये।
आप लोग शांत हो जाइये ,आप लोगों की शिकायत पर ही, हमने इसे गिरफ़्तार किया है किन्तु ये कितना गुनहगार है ,ये तो अब अदालत ही तय करेगी ?ये अकेला ही तो इतना बड़ा कांड नहीं कर सकता ,इसके साथ भी तो होंगे।
हम कुछ नहीं जानते ,हम तो इसे ही जानते हैं ,यही हमसे मिलने आता था और जमीन खरीदने के लाभ दिखाता था ,एक व्यक्ति अकड़ते हुए आगे आया।
उसकी अकड़ देखकर ,तन्मय को गुस्सा आ गया ,वह बोला -''तुम दूध पीते बच्चे हो '' इसने बहकाया और तुम बहकाये में आ गए या फिर इसके दिए लालच में आ गए। अब ये थाने में है ,यहाँ रहकर तो तुम्हें एक पैसा भी नहीं दे सकेगा। अब यह मामला कानून के तरीके से सुलझाया जायेगा ,जो इस मामले में गुनहगार हैं जिन्होंने ये घोटाला किया है ,उनकी तहकीकात होगी और केस चलेगा। तुम लोगों के कहने से अब मामला नहीं निपटेगा। ये भी तो अपना बचाव पक्ष रखेगा या नहीं। तुमने इस पर इल्ज़ाम लगाया किन्तु ये तो इस बात से इंकार कर रहा है कि इसने तुम लोगों का पैसा मारा है।
आप इसे एक बार हमारे सामने बाहर कर दो !अपना पैसा तो हम इससे निकलवाकर रहेंगे। आप लोगों को जो भी करना है ,इस थाने से बाहर जाकर कीजिये ,किन्तु यहां शोर मत कीजिये कहते हुए उसने हवलदार की तरफ इशारा किया ,इशारा समझते ही हवलदार ने उन लोगों को बाहर जाने के लिए इशारा किया जो नहीं जा रहा था उस पर अपने हाथों से दबाब बनाया। धीरे -धीरे वो लोग गाली बकते ,देख लेने की धमकी देते थाने से बाहर आ गए।
कुछ देर पश्चात ही , चतुर का वकील भी आ गया, तन्मय ने कहा -आइये ! वकील साहब !
वकील ने हाथ मिलाया और कुर्सी पर बैठ गया, तब वह तन्मय से बोला - मेरा 'क्लाइंट 'कहां है ?
वह उधर है, आप जाकर उससे मिल लीजिए ! जो भी बन सकता है उसे शीघ्र से शीघ्र छुड़ाने का प्रयास कीजिए।
केस बहुत गंभीर है, इसने लोगों का पैसा खाया है , वह तो अपना पैसा मांगेंगे ही।
मैं आपकी बात समझ सकता हूं किंतु आप ही सोचिए! क्या इस केस में दम है, एक अकेला व्यक्ति, लाखों करोड़ों रुपए कैसे खा सकता है ? जिसने पैसे खाया है वह तो अभी भी बाहर ही है।
यह आप कैसे कह सकते हैं ? आपको इससे इतनी हमदर्दी क्यों है ?
क्योंकि मैं इसे बचपन से जानता हूं, छोटी-मोटी हेरा- फेरी तो कर सकता है किंतु इतना बड़ा 'गबन ' नहीं और वह भी यह अकेला! आप स्वयं ही सोचिए ! अन्य लोग भी तो ,इसके साथ होंगे , उन पर कोई केस क्यों नहीं है ? क्योंकि इसे फंसाया गया है इसलिए मैंने आपको बुलाया है। आप एक बेहतर , कामयाब और काबिल वकील हैं , आप इसका अवश्य ही कोई अच्छा तोड़ निकालेंगे।
ठीक है, देखता हूँ ,मैं क्या कर सकता हूं ? मुझे उससे बात करनी होगी।
तब तन्मय ने , हवलदार सुखविंदर की तरफ इशारा किया, उसका इशारा समझते ही वह हवलदार वकील को लेकर अपनी साथ चल दिया और वकील को, चतुर के पास छोड़कर चला गया।
तुम्हारा क्या नाम है ?
''चतुर भार्गव ''
यह सब तुमने कब और कैसे किया ? तुम तो बहुत बड़े खिलाड़ी निकले। वकील ने सीधे-सीधे चतुर पर इल्जाम लगाया।
मैंने कोई खेल नहीं खेला है, और न ही मैंने कुछ किया है , मुझे फसाया जा रहा है , जो मेरे सही कागज थे वह मेरे घर जाकर पहले ही निकाल लिए गए उस समय मैं अपने घर पर नहीं था और वहां नकली कागज रख दिए गए, जिनको मैं जानता तक नहीं हूं।
इतने विश्वास के साथ ,यह तुम कैसे कह सकते हो ? क्या तुम्हारे पास कोई सबूत है ?
सबूत होता ,तो मैं यहां नहीं होता।
दो-चार दिन पहले कुछ लोग मेरे घर आए थे, मेरे छोटे-छोटे बच्चे हैं ,वह कुछ भी नहीं जानते थे, उन्होंने सोचा -शायद पापा ,के कोई जानने वाले हैं, उन्होंने ही मेरे बच्चों को बताया कि हम तुम्हारे पापा के साथ, काम करते हैं। तब मेरे बेटे ने देखा था कि वह मेरी अलमारी खोलकर, कुछ निकाल रहे थे या रख रहे थे। वह बच्चा समझ नहीं पाया। जब मैं घर पहुंचा , तब मुझे बच्चों ने बताया -'कोई चार -पांच अंकल आए थे और जब मैंने कागज ढूंढे तो वह मुझे नहीं मिले और तीसरे दिन मेरे साथ यह कांड हो गया। मैं दावे के साथ कह सकता हूं, मुझे फसाया गया है।
तुम्हें किसी पर शक है।
शक तो है ,लेकिन मैं कहना नहीं चाहता , आप अपनी तहकीकात कीजिए। इस समस्या का कोई भी तोड़ निकालकर लाइए और मुझे यहां से बाहर निकालिए, आपकी बड़ी मेहरबानी होगी।
देखिए, मैं प्रयास कर सकता हूं, आपका केस पढ़ूंगा उसमें कितनी जान है? यह तो पढ़कर ही पता लगेगा। अभी तक तो लग रहा है ,आप पूरी तरह फंस चुके हैं। यदि आपको किसी पर शक है तो हमें उसका नाम बताइए ! अपनी तरह से, उनकी जांच करेंगे।
आप पहले अपना केस समझ लीजिए , मैं चाहता हूं ,जिसने भी मुझे फसाया है , उस पर भी आंच न आए, और मैं भी बचकर निकल जाऊं।
क्या अजीब आदमी हो ? उसे क्यों बचना चाहते हो ? डॉक्टर और वकील से कुछ भी नहीं छुपाना चाहिए।
मैं समझ सकता हूं,,अभी यह बात मैं तुमसे नहीं बता सकता।