इंस्पेक्टर तन्मय , मोटरसाइकिल पर पीछे बैठे,हवलदार चेतराम से पूछता है -आज के कैदी का क्या मामला है ? यह क्यों पकड़ा गया है ?
साहब ! इसके विरुद्ध कई लोगों ने रिपोर्ट कराई है, इसने उन लोगों को, प्लाट काट कर दिए हैं और उनसे पैसे भी ले लिए किंतु अभी तक उस जमीन पर उनका कोई अधिकार नहीं है, जितनी जमीन देने का वायदा किया था। अब जमीन, के और टुकड़े कर दिए हैं।
क्या मतलब ?
जैसे ,चार सौ गज के प्लॉट कटे थे ,किन्तु अब ये लोग ,उसमें से भी आधी जमीन दे रहे हैं ,यानि कि दो सौ गज़ इतना ही नहीं ,उस जमीन पर अभी अधिकार भी नहीं मिल रहा है।
यह कार्य इस अकेले का तो नहीं हो सकता ,ऐसे कार्य कुछ लोग मिलकर करते हैं ,तब इसे ही क्यों पकड़ा गया ?अन्य लोग भी तो शामिल होंगे।अन्य लोगों का क्या कहना है ?जिन्होंने रिपोर्ट की है।
उन पैसों में उतनी ही जमीन नहीं मिल रही है और यह अपनी हवेली ठोक कर बैठ गया है, लोगों का कथन है-कि इसने उनके पैसे से ही, अपना वह महल जैसा घर बना लिया है। उन्हें न तो पैसे वापस मिल रहे हैं, और न ही ,जमीन पर कब्जा मिल रहा है।
क्या, इस जमीन के, लफड़े में अकेला यही शामिल था ?
लोग तो कई हैं किंतु उनके विरुद्ध कोई रिपोर्ट भी नहीं है और न ही कोई सबूत है , उन पर इतनी आसानी से कोई हाथ भी नहीं डाल सकता है।
ओह ! तो इसलिए इसे ही ''बलि का बकरा बनाया ''यह बात है, तो चलो ! चलकर उसका महल भी देख लेते हैं, तन्मय लापरवाही से बोला।
एक बड़े आलीशान, घर के सामने वह अपनी मोटरसाइकिल रोकता है। उसको देखकर, तन्मय भी आश्चर्यचकित रह जाता है। ऊंची -ऊंची दीवारें , किसी किले की तरह बनाई हुई थीं । चारों तरफ से, बंद किला नजर आ रहा था। बड़े से मुख्य द्वार पर पहुंचकर , चतुर दरवाजा खटखटाता है, अंदर से कोई झांकता है किन्तु कोई दरवाजा नहीं खोलता।
तभी बच्चों की आवाज सुनाई देती है -मम्मी ! पुलिस फिर से आई है।
तन्मय ने , बाहर से ही पुकारा- बच्चों !पुलिस नहीं है , मैं तुम्हारा चाचा हूं , तुमसे मिलने आया हूं। तब एक महिला बाहर आती है, और पहले तो दरवाजे को थोड़ा खोलती है , वह और कोई नहीं चतुर की मां राम प्यारी ही थी। तन्मय उसे देखकर बोला -चाची मैं हूं, तन्मय !
भैया !आजकल किसी पर भरोसा नहीं रहा, न जाने किस भेष में अपना कोई भेदी या दुश्मन निकल आए , कहते हुए उसने दरवाजा खोला। सुबह पुलिस के भेष में ही आए थे, और मेरे लड़के को उठा कर ले गए, यह भला , कहां का इंसाफ है ? हमने तो ऐसे ही दरवाजा खोल दिया था, कुछ लोग घर में आए और कुछ ढूंढने लगे, उस समय चतुर घर पर नहीं था। हमने सोचा, हमारे बच्चे के, साथ काम करते होंगे , और न जाने उन्होंने क्या किया ? कुछ देर बाद पुलिस आ गई और चतुर को उठाकर ले गई। कहते हुए, रामप्यारी रोने लगी। तन्मय देख रहा था, अब चाची बहुत बूढी हो चुकी हैं। उसने घर को देखा, घर तो बहुत ही आलीशान बना हुआ था, इस घर को देखकर तो कोई भी सोच सकता है ,कि इतना पैसा कहां से आया ? ''गबन ''ही किया होगा।
तभी कुछ देर पश्चात, कस्तूरी पानी लेकर आई, चेहरे की वह चमक ! शायद चतुर के, कैद होने के कारण बुझी सी लग रही थी। शायद कस्तूरी रोई भी थी, उसकी आंखें बतला रही थीं। तन्मय बोला -भाभी !चिंता न करो ! मैं चतुर को छुड़वा लूंगा किंतु देखो ! यह कानूनी दांवपेंच हैं ,हमें भी उसके हिसाब से चलना होता है। बच्चे कहां है ?बच्चों को बाहर बुलाओ !उनसे बात करनी है।
रामप्यारी वहीं से बैठे-बैठे, जोर से बोली-ए तनु ! जरा यहां आ ! देख ! तेरा चाचा आया है। तन्मय देख रहा था ,आज भी रामप्यारी चाची की आवाज उतनी ही बुलंद थी। ,
दादी की आवाज सुनकर , 5 से 6 वर्ष की एक प्यारी सी गोरी चिट्टी, लड़की ने बाहर झाँका और बोली -यह तो पुलिस है, चाचा नहीं। यह हमें भी पकड़ने आई है।
नहीं, यह तुम्हारा चाचा है, जो पुलिस में है, अपने भाइयों को लेकर आ जाओ ! तीनों बच्चे बाहर आ गए। और सर झुकाकर तन्मय के सामने खड़े हो गए।
चाचा को नमस्ते करो ! तीनों ने हाथ जोड़कर, दादी के कहे अनुसार नमस्ते किया।
तन्मय ने पूछा -क्या तुम्हें पुलिस से डर लगता है ? तीनों ने हाँ में गर्दन हिलाई।
क्यों ? क्या तुमने कोई गलत कार्य किया है ?
नहीं, तो फिर क्यों डरते हो ? हमेशा पुलिस बुरी नहीं होती, पुलिस चोर, डाकू ,लुटेरे, जो गलत काम करते हैं उनके लिए बुरी होती है।
क्या, हमारे पापा ने गलत काम किया है ? उसके बड़े लड़के ने प्रश्न किया।
यदि तुम्हारे पापा ने कोई गलत कार्य नहीं किया है, तो वह शीघ्र, वापस आ जाएंगे किंतु जिन्होंने उनके विरुद्ध शिकायत की है, उसके लिए थोड़ी छानबीन हमें करनी होगी और तब हम, यह निर्णय कर पाएंगे कि तुम्हारे पापा सही थे। तब तक तुम लोगों को हिम्मत से काम लेना होगा, पुलिस से नहीं डरना है, पुलिस में तो तुम्हारे चाचा भी हैं। बड़े होकर तुम भी पुलिस वाले बनना, किन्तु उसके लिए मेहनत से पढ़ना होता है। तुम्हारे पापा मेरे पास हैं ,तुम्हें डरने की कोई आवश्यकता नहीं है। कुछ काम कर रहें हैं ,जैसे ही काम हो जायेगा ,शीघ्र ही आ जायेंगे। उसने कस्तूरी की तरफ भी देखकर कहा- जो उसके लिए चाय लिए खड़ी थी।
नहीं ,मैं अभी ड्यूटी पर हूँ ,चाय नहीं पियूँगा ,अब चाय तभी पियूँगा जब चतुर पर सभी इल्ज़ाम समाप्त हो जायेंगे। कहते हुए उठ खड़ा हुआ।
तब एक बार चतुर के घर को देखने का प्रलोभन छुपा न सका। जब चतुर को पुलिस पकड़ कर ले जा रही थी , तब चतुर ने अपनी पत्नी कस्तूरी और बच्चों से कहा था -मैंने , तुमसे पहले भी कहा था किसी अनजान को घर में मत घुसने देना और अब मेरे बाद भी यदि कोई आता है, चाहे कोई भी कितना भी हमदर्द क्यों ना हो ? उसे घर में अंदर मत ले जाना इसीलिए वे तन्मय के लिए मुख्य द्वार नहीं खोल रहे थे ,किंतु जब तन्मय ने- सोचा एक बार घर देख लेता हूं , मना तो कर नहीं सकते थे किंतु बच्चे उसके साथ ही साथ रहे। सतर्क हुए बच्चों की नजर तन्मय पर थी हालांकि वह नहीं जानते थे कि उन्हें क्या करना है और क्यों उन्हें नजर रखनी है ?किंतु तन्मय के साथ-साथ ही चल रहे थे। घर को देखकर, तन्मय को बहुत अच्छा लगा।
रामप्यारी से बोला -चाची ! अब चलता हूं, अबकी बार आया तो चतुर को साथ लेकर ही आऊंगा, यह उसने उन्हें आश्वासन दिया। घर में कमाने वाला एक ही तो मर्द है और वही जेल चला जाएगा तो इस परिवार का क्या होगा ? मन ही मन तन्मय इच्छा कर रहा था ,काश ! कि उसने कोई ऐसा कार्य न किया हो जिसके कारण उसे जेल जाना पड़ जाए वरना मैं उसके परिवार को कैसे मुंह दिखाऊंगा ?