Rasiya [part 105]

इंस्पेक्टर तन्मय थाने में प्रवेश करता है, हवलदार सुखविंदर से पूछता है - क्या खबर है ?

साहब !एक केस आया है ?

क्या केस है ?

एक धोखाधड़ी का केस आया है। 

कैसी धोखाधड़ी?



जमीन की खरीद -फरोख़्त में, उस व्यक्ति पर इल्जाम लगाया गया है, कि उसने लोगों से पैसा ले लिया है और अभी तक उन्हें जमीन नहीं मिली है,और उन्हें शक है कि उनके पैसे से उसने अपना घर बना लिया।   

पता नहीं,कैसे लोग हैं ? बातचीत करते हुए वह अंदर आता है , तब उसने देखा, थाने के एक कोने  में एक तंदुरुस्त आदमी बैठा हुआ है। शायद वह परेशान है, जो भी है, तन्मय ने उसे आवाज लगाई -ऐ...... इधर आओ ! उसने वह आवाज नहीं सुनी ,तब तन्मय ने दोबारा पुकारा -इधर आओ ! हवलदार से बोला - लोग गलत कार्य करने से पहले सोचते नहीं है और जब पकड़े जाते हैं ,तब मुंह छुपाते हैं। ताकि कोई उनका असली चेहरा न जान सके। वह व्यक्ति तन्मय  के सामने आता है। तन्मय उसे पहचानने का प्रयास करता है, उसे लगता है ,इसे कहीं तो देखा है। तुम...... चतुर ! आश्चर्य से तन्मय का मुंह खुला का खुला रह जाता है।उस व्यक्ति ने भी,गर्दन झुकाकर देखा, यह तो उसी का दोस्त चतुर है। यह आज इस हालत में यहां कैसे ? 

तन्मय ! तू यहां है, चतुर प्रसन्न होते हुए चतुर बोला, आखिर कोई तो मुझे अपना दिखलाई दिया। 

हुआ क्या है ?सारी बात स्पष्ट रूप से समझा, मैंने तो सुना था ,तूने अपना बहुत बड़ा घर बनवाया है ,अपने तीनों बच्चों को वहीं  रखा है और अपनी मां को भी ले गया है। 

हां सोचा तो ,अच्छे के लिए ही था, किंतु कुछ कर्म पीछे पड़ गए जिसके कारण मुझे यहां आना पड़ गया ।उस मकान जी जलन ही तो लोगों को जीने नहीं दे रही। जब उनकी नींद उडी है ,तो मैं कैसे चैन से सो सकता हूँ ? अब तू आ गया है, तो सारी बात ठीक से समझ ले। तू मेरा दोस्त भी है ,और गांव का होने के नाते मेरा अपना भी....... अब पिता तो रहे नहीं, मां को अपने पास ही ले आया था लेकिन सुकून से रहना और सुकून से रोटी मिलना भी आसान कार्य नहीं है। पर तू बता ! तू तो....... प्राइवेट पढ़ रहा था,फिर तू पुलिस इंस्पेक्टर कैसे बना ?

तन्मय हंसा और बोला -ऐसी हालत में भी ,मेरे विषय में जानने की इच्छा हो रही है। यदि तू सही है ,तो फिर तू चिंता न कर तेरा दोस्त तेरे साथ है। कानून के दायरे में रहकर ,मैं जो भी सहायता कर सकता हूँ करूंगा। रही बात मेरे इंस्पेक्टर होने की ,तो इसके लिए परीक्षा देनी पड़ती है ,जरूरी नहीं, कि तुम गांव छोड़कर ही पढ़ाई कर सकते हो ,परीक्षा की तैयारी स्वयं ही करनी पड़ती है,वो कहीं भी रहकर की जा सकती है।  बस सिलेबस मिल जाये तो घर में रहकर भी पढ़ाई की जा सकती है, साथ ही चतुर को ताना भी मार दिया। 

हाँ ,मैं समझ रहा  हूँ ,अब मेरी ये हालत है ,देख !कुछ भी कर ,मुझे बाहर निकाल ....... 

हाँ ,हाँ निकालता हूँ ,पहले मुझे पता तो चले कि मामला क्या है ?मुझे तुझ पर अंदेशा तो पहले से ही  था कि तू अवश्य ही किसी गलत कार्य में फंसा है किन्तु कभी तूने अपने दोस्तों को भी नहीं बताया। 

चतुर ने उसकी बात पर कोई ध्यान नहीं दिया और बोला -तन्मय ! मैं चाहता हूँ ,ये बात यहीं की यहीं खत्म हो जाये और मैं बाहर आ जाऊँ। 

मुझसे सारी इच्छाएं बताता रहेगा किन्तु ये नहीं बताएगा ,आखिर मामला क्या था ?क्या हुआ था ?और अब बच्चे कहाँ हैं ,कैसे हैं ?

बच्चे तो घर पर ही हैं ,किन्तु घबराये हुए हैं ,तू जाकर उन्हें थोड़ा समझा देना ,तू उनका चाचा लगता है ,और वो अपनी पुलिस वाली वर्दी में मत जाना। वैसे मेरे विरुद्ध ये मामला किसने दर्ज़ कराया  ? 

उन लोगों ने ,जिनका तूने पैसा खाया है। 

अरे यार !मैंने किसी का पैसा नहीं  खाया। 

फिर तेरे खिलाफ, बिना बात कोई रिपोर्ट क्यों करवाएगा ?

करवाएगा ,जब किसी को बर्बाद करने की साज़िश हो। 

तुझे कोई क्यों बर्बाद करना  चाहेगा ?

आपसी रंजिश !में ,मेरा आगे बढ़ना तरक्की करना ,उन्हें बर्दाश्त जो नहीं हो रहा।

 ऐसे कौन लोग हैं ?जो तुझे ऐसी हालत में देखना चाहते हैं। 

मैं ,तुझे सब बताऊंगा किन्तु पहले मुझे यहाँ से बाहर तो निकाल !मेरे लिए कोई वकील कर  दे ,तू तो जानता है ,पिताजी अब नहीं रहे ,बच्चे अभी छोटे हैं। मेरी जमानत कौन करवाएगा ? तू ही मेरे लिए ,इस समय सब कुछ है ,कहते हुए चतुर रोने लगा।

अच्छा ! मैं किसी वकील से बात करता हूँ उसे तुझे सब कुछ सच -सच बताना होगा ताकि वो तुम्हारे केस को समझकर, तुझे बाहर निकलवाए। 

हाँ -हाँ क्यों नहीं ,क्या आज ही रात मैं रिहा नहीं हो सकता ?जब पुलिस मुझे ले जा रही थी ,तब मौहल्ले -पड़ोस के लोग बाहर निकलकर देख रहे थे। वहां कितनी बदनामी हो जाएगी ?जो अब तक इज्जत बनी हुई थी ,अब समाप्त ,बेचैनी से टहलते हुए चतुर बोला। 

मैं जो भी कर सकता हूँ करूंगा ,किन्तु कानून के दायरे में रहकर ,यह कहकर तन्मय वहां से चला आया और चतुर की जमानत के लिए किसी वकील को फोन लगाने लगा। न जाने क्या -क्या कांड किये हैं ?इसने ,जो अब हमें झेलने होंगे। 

चतुर मन ही मन सोच रहा था ,जब तक अपने में मजबूत रहो !तो कोई कुछ नहीं कह सकता किन्तु जैसे ही किसी के कोई कमजोरी हाथ लगी ,सब बातें बनाने लगते हैं। हो सकता है ,यह सब उस अग्रवाल की ही कारस्तानी हो सकती है। उसी को मुझसे जलन रही है ,बाहर निकलूं तो पता भी चले। 

इंस्पेक्टर तन्मय अब पहले चतुर की फाइल देखता है ,कुछ देर इसी तरह देखने के पश्चात ,वह एक हवलदार को लेकर बाहर निकल जाता है। वह चतुर के परिवार से मिलना चाहता है ,शायद कुछ सबूत या कोई बात पता चल सके किन्तु चतुर ने तो कहा था ,बिना वर्दी के जाना है। अब इस समय मैं ,अपनी ड्यूटी पर हूँ ,मुझे कानून के दायरे में रहकर ही सभी कार्य करने होंगे। अभी खड़ा होकर सोच ही रहा था ,तभी मन में विचार आया क्या कोई पुलिसवाला किसी का रिश्तेदार नहीं हो सकता ,सोचकर तुरंत मोटरसाइकिल पर बैठा और आगे बढ़ गया। 

आखिर तन्मय चतुर की सहायता कर पायेगा या नहीं ,चतुर तो कानपुर में रह रहा था वह आगरा कैसे पहुंच गया ?चतुर तो' रसिया' बना घूम रहा था ,आखिर जेल कैसे पहुंचा ?आइये आगे बढ़ते हैं ,पढ़ने के पश्चात अपनी समीक्षाओं द्वारा आगे बढ़ने में सहायता कीजिए। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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