Rasiya [part 104]

आजकल आप कहां घूमते रहते हैं ? आपको न ही, किसी तीज -त्यौहार का ध्यान रहता है , न ही हमारा ख्याल रहता है। आपको पता भी है, आज दशहरा है ,जिसे घर के आदमी पूजते हैं। 

हां ,हां मैं जानता हूं, आज मेरी छुट्टी भी है, घर पर अच्छे से दशहरा पूजेंगे। 

घर पर दशहरा ही नहीं पूजना है ,बच्चों को भी साथ लेकर मेला घूमने भी जाना है,नयन मटकाते हुए ,कस्तूरी बोली।  

तुम भी न.......  जाने क्या बात लेकर बैठ जाती हो ? इतने छोटे बच्चों को साथ लेकर, भला कैसे मेला घूमने जाया  जा सकता है ?



और क्या बड़े लोग ही घूमते हैं ,बच्चों को  ही तो मेला दिखाया जाता है ,मेले वगैरह में बच्चों की खुशियां समाई होती हैं ,जब वहां नई -नई चीजें देखते हैं,जिद करते हुए कस्तूरी बोली। चतुर उसकी जिद से हड़बड़ा गया, मन ही मन सोचने लगा -उस दिन इसको साथ लेकर गया था, मेरे ऑफिस की ही एक लड़की दिख गई थी , वह तो अच्छा हुआ ,यह खरीदारी में लगी हुई थी और मैं उसे देख कर छुप गया था । वह भी मुझे नहीं देख पाई, वरना वहीं पूछ लेती -कि यह कौन है ? आज क्या यह मेला ले जाकर मेरा जुलूस निकलवाना  चाहती है ? 

क्या सोच रहे हैं ?

मैं भला क्या सोच सकता हूं ? तुम जिद बहुत करती हो , तुम समझ नहीं रही हो ,मैं तुम्हारे लिए, यही सब कुछ लेकर आ जाऊंगा। तुम बच्चों के साथ वहां ,परेशान हो जाओगी, उस दिन तुमने घूमने के लिए कहा था मैंने मना नहीं किया किंतु आज बच्चों के साथ कह रही हो, मैं नहीं चाहता कि बच्चों को कुछ भी परेशानी या दिक्कत हो,वहां बहुत भीड़ रहती है। 

इस तरह तो मैं कभी, कानपुर शहर में घूमने  नहीं जा पाऊंगी। 

क्यों नहीं घूमोगी ? बस अभी बच्चे छोटे हैं ,थोड़ा ये  संभल जाएं, तब खूब घूमना।  मैं तो सोच रहा हूं ,तुम्हारे लिए गाड़ी खरीद लूं इसीलिए थोड़ा ज्यादा मेहनत कर रहा हूं। मेरे बच्चे यूं ही भीड़ में ,धक्के नहीं खाएंगें। जब दोनों घूमने जाया करेंगे, तब मोटरसाइकिल पर,तुम मेरी कमर में अपनी बाहें डालकर ,मुझसे चिपक जाना और ,मैं तुम्हें लेकर आकाश में उडूँगा। 

और जब बच्चे साथ में जाएंगे तो....... 

तो तब, गाड़ी से जाया करेंगे,कितने सुंदर ख़्वाब सजा रहा था ?और उन ख्वाबों को पूरा करने के लिए ,वह कुछ न कुछ रणनीति तैयार कर रहा है। आज  चतुर वहीं ठहर गया , वह जानता था ,कि बच्चों के बहाने से स्वयं कस्तूरी घूमना चाहती है किंतु वह अभी किसी भी तरह की परेशानी उठाना नहीं चाहता और बच्चों के साथ खेलने लग जाता है कुछ देर पश्चात बाजार जाता है और अपने बच्चों के लिए, बहुत सारे गुब्बारे खेल- खिलौने लेकर आता है और कस्तूरी के लिए भी , कुछ खाने का चटपटा सामान ले आता है ,जैसे -गोल -गप्पे और टिक्की !वह जानता है ,कस्तूरी को क्या पसंद है ?वैसे ज्यादातर महिलाएं यही चीजें खाना पसंद करती हैं।  बच्चों को तो वहीं मेला लगने लगा था। कस्तूरी भी प्रसन्न हो गई थी, जब चतुर ने देखा अब बात संभल गई है, तब वह  बोला -जरा एक बार जाकर, बॉस के घर भी देख आऊं। 

मुझे आपका बार-बार इस तरह बॉस के घर जाना अच्छा नहीं लगता,कस्तूरी तुनकते हुए बोली।  

मुझे ही क्या अच्छा लगता है ? चतुर समझाते हुए बोला -अपने से बड़ों को ,खुश रखना पड़ता है। तभी नौकरी बची  रह सकती है। 

तुम तो किसी बुजुर्ग महिला की बात कर रहे थे  किंतु एक दिन जब मैं छत पर गई थी तो मैंने  किसी जवान महिला को देखा था। वह तो खूब जवान थी, बूढ़ी नजर नहीं आ रही थी।

 तुमने किसी और को देख लिया होगा, लापरवाही से चतुर बोला।

 किसी को कैसे देख सकती हूं ? उसी छत पर से देखा, जिस छत से तुम ऊपर आते हो। 

तुम कुछ ज्यादा ही ताक -झांक करने लगी हो, उस महिला ने तो तुम्हें नहीं देखा, घबराते हुए चतुर ने पूछा। 

वह भला मुझे कैसे देख पाएगी ? देख भी लिया हो, तो कैसे पहचान पाएगी ? आपने कभी उनसे मेरा परिचय तो कराया नहीं।

गहरी सांस लेते हुए, चतुर मन ही मन प्रसन्न हुआ फिर बोला -मैं तो अपने काम पर था, हो सकता है, उनकी कोई रिश्तेदार आई हो और वह छत पर घूमने आई हो। बेचारी !ने मुझ पर तरस खाकर ,उस समय पर घर दिया था,जब मैं इतने बड़े शहर में सामान लिए किराये के मकान के लिए घूम रहा था।  इसलिए अब मैं उस घर को छोड़ भी नहीं सकता,  तुम मेरी मजबूरी समझो ! वरना मुझे क्या आवश्यकता पड़ी है ? दो-दो जगह का किराया देने की, वहां रहने से मुझे लाभ है ,हमारी  साग़- सब्जी का भी इंतजाम  वहीं से हो जाता है। वरना अपनी जेब से ही खर्च करना पड़ेगा। इस महंगाई में बच्चों की पढ़ाई ,घर का खर्च ,सब मैं अकेला कैसे संभाल लूंगा ? यहां शहर में तो महिलाएं भी काम करती हैं, तुम तो कुछ काम भी नहीं जानती हो, और मान लीजिए ,तुमने कुछ काम किया भी तो......  फिर बच्चों को कौन संभालेगा ?

 चतुर की एक-एक बात, कस्तूरी के मन को छू रही थी उसे लग रहा था सच ही तो कह रहा है, बेचारा !न जाने कैसे- कैसे हमारे लिए, कमाकर ला रहा है। उसके गले से लिपटते  हुए बोली -तुम जो भी कर रहे हो ,अच्छा ही कर रहे होंगे। वह तो मुझे उस महिला को देखकर, थोड़ी ईर्ष्या हुई थी और क्रोध भी आया था , कि यह तो हट्टी - कट्टी है,बस मेरे पति से कार्य करवाती है। 

चतुर ,कस्तूरी की बात सुनकर, मुस्कुरा दिया- कितनी भोली है, मुझसे कितना प्रेम करती है ? 

अच्छा अब चलूं ,देख आता हूं। 

 उनके पास एक छोटी बच्ची भी तो है, इतनी बुजुर्ग महिला के पास छोटी बच्ची कहां से आई  होगी ?

उनकी अपनी बेटी की या फिर किसी रिश्तेदार की होगी ,तुम फिर से शक करने लगीं,नाराज होते हुए चतुर बोला।  

शक नहीं कर रही हूं, मुझे तुम पर पूर्ण विश्वास है। बस जब तुम आते नहीं हो, तो मैं परेशान हो जाती हूं। 

जब तुम गांव में रहती थीं , तब भी तो तुमने मुझ पर विश्वास किया था , मेरा इंतजार किया था ,अब तो मैं पास में ही रहता हूं फिर किस बात की परेशानी ! आ जाओ ! गले लग जाओ ! मेरी जानेमन !बहुत दिनों  से, पति का प्यार नहीं मिला कहते हुए उसे अपने समीप खींच लिया ,और इसीलिए मुझे रोकने के ये बहाने हो रहे हैं।  

सुनो तो, रुको तो सही...... कहीं बच्चे न देख लें। बनावटी मुस्कान लिए, कस्तूरी भी उसके आगोश भी समा  गई। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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