Rasiya [part 103]

चतुर कोई शातिर चोर नहीं है, न ही, कोई डाकू है , किंतु वह अपने व्यवहार से, अपनी बातचीत से लोगों का विश्वास और दिल जीत लेता है। यह कला उसे बखूबी आती है'' श्रीमती दत्ता से मिलना और मिसेज अग्रवाल से मिलना यह उसकी योजना की प्रथम कड़ी हैं। चोर और डाकू सामने से वार करते हैं किन्तु चतुर मीठा और तीखा वार करने में विश्वास रखता है। ''आम के आम,गुठलियों के दाम ''जैसे मुहावरों  की तर्ज़ पर चलना चाहता है। जो उसके आगे बढ़ाने में सहायक हों ,उनसे आगे बढ़ने के लिए सीढ़ी तैयार करता है। मिसेज अग्रवाल को वह अपने साथ ''कला प्रदर्शनी ''में ले जाना चाहता है ,जब वो अपने पति से पूछती हैं ,तो वे उन पर क्रोधित होते हैं ,तब वे निराश होकर वापस आ जाती हैं और यही बात चतुर से भी बता देती है।  

तब आपने क्या कहा ?चतुर ने प्रश्न किया। 


क्या कहती ?उन्हें उस दिन बताया तो था -कि एक भले इंसान ने मेरी सहायता की थी किन्तु वो मेरी बात सुनते ही कहाँ है ?ध्यान ही नहीं देते और अब पूछ रहे हैं ,कौन है ?वो !

आप दुःखी मत होइए ,वो अपनी जगह सही हैं ,आप मुझे जानती हैं किन्तु उन्होंने तो मुझे देखा तक नहीं ,तब वो कैसे आपको जाने की इजाजत दे सकते हैं ? इतने बड़े व्यापारी हैं ,कैसे किसी पर इतनी सरलता से विश्वास कर सकते हैं ?वैसे वो कब तक आएंगे ?

वो तो रात्रि में ही आते हैं ,मुँह बनाते हुए वो बोली। 

फिर तो ठीक है ,आपको तो मुझ पर विश्वास है। 

हाँ...... 

तब ,आप तैयार हो जाइए ,हम उनके आने से पहले ही,वापस आ जायेंगे ,उनको पता भी नहीं चलेगा।

वह तैयार होने चल देती है, तब दूर से ही पूछती है -आपको, घर मिलने में कोई परेशानी तो नहीं हुई।

उसके प्रश्न पर चतुर हंस दिया और बोला - इतनी सारी बातें हो गई और यह बात आप अब पूछ रही हैं  परेशानी तो कुछ नहीं हुई। हम कहीं जाने का निश्चय कर लें  और वहां न पहुंच पाएं।  ऐसा तो हो ही नहीं सकता ,चतुर ने अपने स्टाइल में कहा। हमने सोचा -आज हमें अपनी भाभी जी से मिलना है तो मिलना है, उसके लिए फिर चाहे हमें सागर लांघना हो या पहाड़ पर चढ़ना हो ,कुछ भी हो जाए लेकिन हम आ ही गए। 

आप बहुत दिलचस्प आदमी है ,दूसरों को कैसे खुश रखना है ,बातों से कैसे उसे मनाना है ?इन चीजों में आप बखूबी माहिर हैं।

 जब वह  तैयार होकर बाहर आई तो चतुर देखता  का  देखता रह गया। श्रीमती अग्रवाल अब साड़ी में नहीं सूट में थी उनके गोरे बदन पर काला सूट बहुत अधिक फब रहा था आप भी कमाल करती हैं ,जादूगर हैं  उसे देखकर चतुर बोला - उस दिन साड़ी पहन रखी थी, तब आप बहुत सुंदर लग रही थीं  और अब सूट में तो बिल्कुल और भी कम उम्र की लग रही हैं। मुझसे कुछ ही बड़ी होंगी ,कहते हुए हंसने लगा। आपने अपने को कितना 'मेंटेन' किया हुआ है चतुर आश्चर्य से बोल रहा था ,कोई आपको देखकर कह  नहीं सकता कि आपके इतने बड़े बच्चे हैं। 

हंसते हुए वो बोली -वह मैं जानती हूं ,ज्यादा मस्का मत लगाओ ! चलो तुम्हारे साथ भी थोड़ा घूमना हो जाएगा और मैं एग्जिबिशन भी देख लूंगी कहते हुए उसके आगे चलती है। 

 तभी चतुर चलते-चलते रुक जाता है और कहता है -क्या आपको मुझ पर विश्वास करना चाहिए आप जिसके साथ जा रही हैं, क्या वह सही व्यक्ति है ?अब मैं न जाने आपको कहां लेकर जा रहा हूं ,आपने पूछा भी नहीं। 

पूछने की कोई आवश्यकता नहीं है ,मुझे भी इंसानों की पहचान है ,बस  मैं समझ गई ,तुम एक अच्छे इंसान हो। हँसते हुए बोली -वैसे तुमने यदि मेरा अपहरण कर भी लिया तो कोई लाभ नहीं। 

क्यों ?

तुम फिरौती मांगोगे तो ,अग्रवाल साहब ,फिरौती देने के बदले यही कहेंगे -'तुम उसे ही रख लो !वो तो मुझसे वैसे ही परेशान हैं ,अब उनकी मुसीबत कोई जबरदस्ती अपने सर लेगा तो ये उन पर मेहरबानी ही होगी। ''

 चतुर मुस्कुराया -आप भी ,अच्छी बातें करती हैं। 

वो तो है ,किन्तु सुनने वाला भी तो होना चाहिए ,कहते हुए फिर से हंस दी ,वैसे तुम बताओ ! तुम क्या काम करते हो ?घर के दरवाजे का ताला लगाते हुए उन्होंने पूछा। 

काम तो कर रहा हूं किंतु फिर भी इतनी आमदनी नहीं है जिसकी मुझे चाहत है, सोचता हूं -कोई व्यापर  ही कर लूँ, व्यापार में अधिक पैसा है नौकरी में इतनी कमाई नहीं है, अभी तो मैं अकेला हूं फिर भी न  जाने  पैसा कहां उड़ जाता है और इसी कमी के कारण लगता है, मेरा विवाह नहीं हो रहा मुझे लड़कियां भी पसंद नहीं करतीं ,कहते हुए हंसने लगा। 

क्यों? अच्छे -भले तो हो ,कमाते भी हो ,बातें भी अच्छी करते हो। रिक्शा में बैठकर दोनों सड़क पर आ गए  तब वो बोली - वैसे तुम क्या व्यापार कर सकते हो ?

इसीलिए तो आपके घर आया था भाई साहब ! से मिल लेता तो उनसे भी व्यापार  के कुछ ग़ुर सीख़ लेता, उनका शाग़िर्द बनकर ,मैं भी आगे बढ़ने का प्रयास करता, किंतु वे तो इतने व्यस्त रहते हैं  उनका मिलना भी शायद बहुत ही मुश्किल लग रहा है। 

अच्छा जी !तुम मुझसे नहीं ,उनसे मिलने आये थे और इतनी देर से मुझे अपनी बातों से बहला रहे थे। 

नहीं ,ऐसा कुछ भी नहीं है ,भाभी है ,तो भइया हैं ,आप ही तो मुझे उनसे मिलाओगी ,जब उनसे कहोगी -'मेरा एक देवर है ,आपको उसे काम सिखाना है ,तब देखना ,वो मना नहीं करेंगे। आपको वैसे ही क्रोध दिखलाते हैं किन्तु उनके गुस्से में भी ,उनका आपके प्रति प्यार छिपा है। 

ओहो !अब तक तो मेरी प्रशंसा हो रही थी ,अब अग्रवाल साहब की प्रशंसा में जुटे हो ,तुम तो बड़े दलबदलू हो। 

नहीं ये आप गलत कह रहीं हैं ,मैं आपकी ही तरफ हूँ ,किन्तु दो विरोधी दलों को एक करूंगा ,तभी तो मेरा काम बनेगा,कहते हुए हंसने लगा। 

तुम्हारे पास फोन तो है न........ 

हाँ , मेरे ऑफिस में है, मैं वहीं से आपको कॉल कर सकता हूं। 

तुम मुझे अपना फोन नंबर देना ,जब वो घर पर होंगे ,तब मैं तुम्हें कॉल करके बता दूंगी कि अग्रवाल साहब घर पर ही हैं। तुम आ जाना। 

साहब !कहाँ जाना है ?रिक्शेवाले ने पूछा। 

बस ,थोड़ा आगे चौराहे से मुड़कर जाना है। 

आज बहुत दिनों पश्चात ,आज यहाँ आ रही हूँ ,जबसे बच्चे हुए ,घर -गृहस्थी में व्यस्त हो गयी और फिर अपनी खुशियां और अपने सपने भूलती चली गयी। दोनों रिक्शे से उतरकर आगे बढ़ जाते हैं। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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