चतुर पहली बार, मिसेज अग्रवाल से मिलने गया, वो तो लगभग उस मुलाकात को भूल चुकी थीं किन्तु चतुर ने वहां पहुंचकर ,उन्हें अचम्भे में डाल दिया।जब चतुर को कोई भा जाता है ,तो उसे न ही भूलता है और न ही ,भूलने देता है। मिसेज अग्रवाल ,उसे भले ही भूल गयीं हों किन्तु चतुर ने उन्हें आज स्मरण करा ही दिया।उस घर को देखकर मन ही मन सोच रहा था ,मैं भी तो अपने परिवार को ऐसे ही घर में देखना चाहता हूँ किन्तु मैं ये जो नौकरी कर रहा हूँ ,उसमें तो यह सम्भव नहीं है। घर के विषय में ,जब चतुर ने कहा -आपका घर तो बहुत ही आलीशान है।
तब वो बोलीं - जी, आपकी नजर में यह आलीशान है हमारे लिए तो हमारा घर ही है और अग्रवाल साहब के लिए तो सिर्फ रात में ठहरने का स्थान है ,उन्हें इतना समय ही कहां मिलता है ?कि इस घर को और इस ज़िंदगी का आनन्द उठा सकें ,सुबह ही निकल जाते हैं और देर रात तक लौटते हैं। तब तक, मैं सो जाती हूं।
क्या आपके घर में कोई बच्चा नहीं है ,कोई भी दिखलाई नहीं दे रहा चतुर ने पूछा।
बच्चे हैं, बड़े हो रहे हैं दोनों बेटा और बेटी हॉस्टल में पढ़ते हैं ,इन्होंने उन्हें एक अच्छे और महंगे कॉलेज में डाला हुआ है ताकि वहां से अच्छी पढ़ाई करके बच्चे जब बाहर निकलें तो उनकी तरह व्यापार को अच्छे से संभाल सकें ।
मिस्टर अग्रवाल जी व्यापार करते हैं और बेटे को भी व्यापार ही करवाना चाहते हैं ,चतुर ने पूछा।
जी ,वो व्यापारी हैं ,और वो चाहेंगे कि उनका बेटा उनके व्यापार को ही आगे बढ़ाये। अपना काम तो है ही लेकिन प्रॉपर्टी का भी कार्य भी बखूबी संभालते हैं। जमीनें खरीद कर बेच देते हैं ,उससे अच्छा मुनाफा हो जाता है।
व्यापार तो बहुत अच्छा है,मन में सोचते हुए भी चतुर के मुँह से निकल गया। वह यही सोच रहा था कि व्यापर ही बेहतर है।
यह आप किसके लिए कह रहे हैं ?मैं तो यही ही कह रहा हूं कि अग्रवाल साहब पैसा कमा रहे हैं ,जगह-जगह भटक रहे हैं सिर्फ अपने परिवार के और बच्चों के लिए किंतु आपको वह खुशियां नहीं दे पा रहे हैं जिनके लिए आप तरस रहीं हैं। एक व्यापारी के लिए, उनका समय , एक -एक पल बहुत कीमती होता है।
हां वह तो है, पैसा अच्छा कमा रहे हैं किंतु उस पैसे का ठीक से उपयोग कहां कर पा रहे हैं ?बस, पैसा ही आ रहा है किंतु खुशियां नहीं, हमसे बच्चे दूर हैं ,मैं यहां अकेली पड़ी रहती हूं। अकेली उदास हो जाती हूँ और वे भी न जाने कहां कहां घूमते रहते हैं ?
अब आपने मुझे भाभी कहने की इजाजत दे ही दी है ,तो आपका देवर किस काम आएगा ?यदि आपकी कोई इच्छा हो या कोई परेशानी हो या कहीं घूमने जाना चाहती है तो ,आपका देवर आपके लिए हाजिर है। अग्रवाल साहब ! कमा रहे हैं ,तो उन्हें कमाने दीजिए ?क्योंकि घूमने -फिरने के लिए भी तो पैसा ही चाहिए बिना पैसे के, आप कहां चली जाएंगीं ?
हां तुम्हारी बात भी ,अपनी जगह सही है ,उसकी बातों पर विचार करके बोलीं।
इसीलिए तो कह रहा हूं ,यह आपका देवर आपकी सेवा में हाजिर है। चलिए !आज कहीं घूमने का मूड है तो बताइए !
नहीं ,अभी तो मुझे कहीं नहीं जाना है।
चतुर चुपचाप बैठ गया ,तभी भाभी ने चाय लाकर उसे दी ,साथ में नमकीन, बिस्कुट और कुछ सूखे मेवे ! ट्रे मेज पर रखते हुए बोली -एक नौकर रखा था,वह या तो सामान चुरा लेता था या काम करने में आनाकानी करता था इसलिए फिर मैंने सोचा -हम दो ही प्राणी तो हैं ,ये भी चले जाते हैं ,मुझ अकेली का कितना काम होगा ? मैं अकेली ही, कर लिया करूंगी। इतना बड़ा मकान है , इसीलिए साफ -सफाई का कार्य अधिक हो जाता है तो छोटी-छोटी दो लड़कियों को लगाया हुआ है ,वह घर की सफाई सुबह ही कर जाती हैं।
चतुर मन ही मन मुस्कुरा रहा था ,ये मुझे अग्रवाल साहब के न होने का समय बता रहीं हैं ,''चोर को घर के आने का रास्ता बता रहीं हैं ,ये सीधी हैं या चालाकी दिखा रहीं है। चाय तो आपने बहुत अच्छी बनाई है कमाल की चाय बनाई , बहुत दिनों बाद ऐसी बढ़िया चाय पी है ,चतुर चाय के साथ ,अपने शब्दों का मक्खन लगाते हुए बोला।
ऐसा तो यह भी कहते हैं-' कि मेरे हाथ में जादू है ,मैं खाना बहुत अच्छा बनाती हूं'' चाय भी बहुत अच्छी बना ती हूँ , बस ,थोड़ा समय ही नहीं दे पाते हैं।
कोई बात नहीं ,क्या आपको ड्राइंग और पेंटिंग में दिलचस्पी है ?
ये आपने कैसे जाना ?
वो जो पेंटिंग टंगी है ,दीवार की तरफ हाथ करते हुए बोला।
आप सही कह रहे हैं ,आपने तो जैसे मेरे उन दिनों को स्मरण करा दिया ,अब तक तो जैसे सब भूल चुकी थी। क्या आप जानते हैं , जब मैं कॉलेज में थी ,तो पेंटिंग प्रतियोगिता में प्रथम आई थी ,खुश होते हुए बोली।
चतुर ने महसूस किया ,ये अकेली रहती हैं ,इनको कोई बात करने वाला चाहिए,किसी भी बात को पूछने पर इतनी उत्साहित हो जाती हैं। तब वह बोला -इसीलिए तो लग रहा था, आपके हाथों में कला है , अगर आपको कोई परेशानी न हो तो मैं आपको एक प्रतियोगिता को दिखाने के लिए लेकर चल सकता हूं। बहुत बड़ी 'एग्जिबिशन' लगी है। ठीक है, मैं आपके साथ चलूंगी किन्तु एक बार अग्रवाल साहब से पूछ लेती हूँ ,कहते हुए फोन की तरफ बढ़ चली।चतुर ने भी नहीं रोका।
लो ,इनके तो घर में ही फोन लगा हुआ है ,हर सुविधा है ,तब भी ये परेशान हैं ,हम यहाँ दफ्तर का फोन उपयोग में लाते हैं या फिर किसी ''टेलीफोन बूथ ''का उपयोग करते हैं ,अभी चतुर यही सोच रहा था ,तभी वो अपने पति से बात करके मुँह लटकाते हुए बाहर आईं।
क्या हुआ ?अग्रवाल साहब !ने जाने के लिए कह दिया।
नहीं ,बल्कि मुझे डांटने लगे और कह रहे थे -'तुमने किसे अपने घर में घुसा लिया ,उसे तुम जानती भी हो।
क्या मिसेज अग्रवाल ,अब चतुर के साथ जाएँगी या नहीं ,क्या चतुर के मंसूबों पर यहीं ''पानी फिर जायेगा। ''या फिर कोई और तिकड़म लगाएगा, आइये !आगे बढ़ते हैं -रसिया !