'कांट्रैक्ट मैरिज', इससे किसी की मजबूरी है या फिर किसी की विवशता का लाभ उठाया जाता है।आजकल रिश्तों का इतना महत्व नहीं रहा। पहले परिवार और रिश्ते एक दूसरे से जुड़े होते थे, उनमें प्यार का संबंध होता था किंतु आजकल के रिश्तों में शर्तों से , उनकी शुरुआत होती है। माता-पिता, भाई-बहन, का रिश्ता जन्म से और रक्त का संबंध होता है, किंतु पत्नी के साथ जो रिश्ता बनता है, वो किसी अलग परिवार से आती है और यदि आपस में विचार मिलें तो यह रिश्ता उम्रभर साथ निभाता है। किंतु अब इस रिश्ते पर में भी शर्तें लगने लगी हैं ,पहले तो इस रिश्ते को कोई निभाना ही नहीं चाहता। यदि कोई इस रिश्ते के बंधन में बंध भी गया तो विश्वास मुश्किल से बन पाता है। हमेशा दोनों ही एक -दूसरे को शक की नजर से देखते हैं क्योंकि अब विवाह लड़कपन में नहीं ,उस उम्र में होते हैं ,जहाँ इंसान अपने को समझदार समझने लगता है। अब ये फैसले माता -पिता पर नहीं, बल्कि बच्चे स्वयं लेने लगे हैं ,या रिश्ते सोच-समझकर बनाने लगे हैं।
बालपन में ,अथवा कम उम्र में ,विवाह के प्रति उत्साह रहता था ,अपने जीवन में एक नए साथी को पाने की ललक रहती थी किन्तु आज कैसा उत्साह ?कैसी लालसा ?जब तक विवाह के विषय में सोचते हैं ,तब तक न जाने कितने साथी जीवन में आ चुके होते हैं ?जिसे आजकल 'डेट करना 'कहते हैं। उनके माध्यम से अनुभव बढ़ते जाते हैं और इंसानी दिल इस भंवर में फंसता चला जाता है और अच्छे की चाहत में ,वह स्वयं की चाहत भूल जाता है। वह रिश्तों को जोड़ना नहीं बल्कि अपने दृष्टिकोण से आंकने लगता है। उसका विवाह के प्रति कोई आकर्षण नहीं रह जाता है।
आजकल के बच्चे रीति -रिवाजों में ही विश्वास नहीं करते, न ही हमारी सांस्कृतिक परंपराओं में। अब पाश्चात्य संस्कृति को अपनाकर अपने को बहुत महान समझते हैं। जो भी हमारे रीति -रिवाज़ थे उनके प्रति सम्मान था ,अपनी पम्पराओं में एक विश्वास था ,जो उनके परिवार की नींव को मजबूत करने में सहायक होते थे। पति -पत्नी का यह रिश्ता ही दूसरे परिवार से जुड़ता था और इस रिश्ते के माध्यम से एक नए परिवार की स्थापना होती थी, किंतु अब इस रिश्ते में भी वह प्यार और विश्वास नहीं रहा, न ही, बड़ों का मान सम्मान रहा ,अब अपनी मनमर्जियां करते हैं।आजकल बड़े तो दकियानूसी हो गए हैं। ऐसी सोच के चलते ही ,इस रिश्ते को भी लोग व्यापारिक दृष्टिकोण से देखने लगे हैं । पहले तो लड़की ऐसी देखते हैं ,जो देखने में सुंदर होने के साथ -साथ अच्छा कमा रही हो ,या फिर दहेज़ अच्छा मिले।
लड़की सोचती है ,जब मैं स्वयं ही इतना कमा लेती हूँ ,मुझे किसी की आवश्यकता नहीं ,मैं स्वयं ही इतनी सक्षम हूँ ,तो क्यों मैं किसी की शर्तों पर जियूं ?
इस रिश्ते को अपनी संस्कृति से न जोड़कर, मात्र भोग -विलास का माध्यम समझने लगे हैं , किंतु क्या यह रिश्ता सुख -दुख के साथी का नहीं है ,जो हमेशा सुख और दुख में एक साथ रहते हैं ,क्या इस रिश्ते की सिर्फ इतनी ही अहमियत रह गई है ?कि शर्तों के आधार पर ही,इस रिश्ते की नींव आरंभ होती है और शर्त पूरी न होने पर उस रिश्ते का कोई अस्तित्व ही नहीं रह जाता है। किसी की विवशता अथवा मजबूरी का लाभ उठाकर उसे रिश्ते में बांधा जाए और फिर इच्छा न होने पर तोड़ने का भी प्रावधान है।
भाग २
एक लड़की का आत्मनिर्भर होना आवश्यक है ताकि किसी भी परेशानी में उसको किसी के आगे हाथ न फैलाना पड़े किन्तु उसके आत्मनिर्भर होने पर उसकी सोच में भी बदलाव आया और अपनी परम्पराओं की 'सुरक्षा कवच' बनने के बदले वह स्वयं ही भूल गयी, वह क्या है ?उसे जीवन में क्या करना है ?आधुनिकता की दौड़ में हिस्सा लेने लगी। जिसका परिणाम ,कई -कई लड़के दोस्त बनाना ,शराब और सिगरेट पीना ,यहीं तक उसकी सोच सीमित रह गयी। चूल्हे -चौके से बाहर तो आ गयी किन्तु आधुनिकता के चक्रव्यूह में फंसकर रह गयी।
इसका बहुत कुछ श्रेय इन चलचित्र वालों को भी जाता है ,जिनकी ये कॉपी करना चाहती हैं।जाति -धर्म ,परम्पराओं को ताक पर रखकर पैसे के लिए किसी से भी विवाह कर लेना , बेटे और भाई की उम्र के लड़के से विवाह करना या फिर पिता की उम्र के आदमी की जीवनसंगिनी बनना क्योंकि अब फिल्में नहीं चल रहीं ,जीने के लिए पैसा चाहिए ,उम्र ही तो काटनी है कम से कम सुविधाओं में तो कटे। यही लहर आम जनता में भी बढ़ रही है। आज की आधुनिक पीढ़ी उम्र के तीन दशक पार करने के पश्चात बूढ़े होते माता -पिता की इच्छा के लिए ,परिवार की नींव डालने की सोचता है ,तो कई अड़चनें आड़े आती हैं। अब इस रिश्ते को भी व्यापारिक दृष्टिकोण से देखने लगे हैं किससे विवाह करने में ज्यादा लाभ है ?लड़की के भाई ही न हो तो माता -पिता के मरने के पश्चात उसकी ही सम्पत्ति हो। या लड़का अच्छा कमाता हो ,और पैतृक सम्पत्ति भी अच्छी हो, रोटी तो नहीं बनाउंगी।
ऐसा नहीं है ,ये बातें अभी चल रहीं हैं ,पहले भी सौदेबाज़ी होती थी ,गरीब माता -पिता बेटी को बेच देते थे ,या बेमेल विवाह करा देते थे। अनेक ऐसे अपवाद हैं, जिनमें लड़कियों का शोषण होता रहा है किन्तु आज लड़की को पढ़ाया इसीलिए जा रहा है ,ताकि वो आगे बढ़े ,उन्नति करे किन्तु इसका उसे तनिक भी लाभ नहीं मिला। आज भी वह अपने को विवश पाती है। अब उसकी दौड़ अलग ही है ,उसकी दुनिया बदल गयी है ,जिस परिवेश में वह खो रही है ,जहाँ आधुनिकता के नाम पर नंगापन ,बिन विवाह के साथ रहना ,माँ बन जाना ,पैसे के लिए कुछ भी कर गुजरना,शादी जैसे पवित्र रिश्ते की अवहेलना करना। ऐसा ही पाश्चात्य संस्कृति का भंवर उसे अपने अंदर समा रहा है। धर्म क्या है ,हमारी संस्कृति क्या है ?रीति रिवाज़ क्या हैं ?वो नहीं जानती। शहरों में कौन करता है ?कुछ ऐसा ही जबाब,सुनने को मिलता है।
रात्रि में किसके साथ डेट पर जाना है ? किसके साथ डिनर करना है ?घरवालों से दफ्तर या कॉलिज के नाम पर झूठ बोलकर, देर रात तक पार्टी में जाना है ,शराब ,बियर ,सिगरेट किस ब्रांड की है ? वो ये सब जानती है, क्योंकि लोग ऐसी ही मस्त जिंदगी जीते हैं ,दिनभर मैनेजर ,बॉस की चिरौरी करो !अब थके बदन को थोड़ी ख़ुशी तो चाहिए। यदि उन्नति करनी हो तो ये भी काम आ ही जाते हैं , इतनी उलझन के पश्चात,तब कौन ऐसा चाहेगा ?कि वह घर -गृहस्थी की उलझन में फंसे। सास की चार बातें सुने, पति की सेवा में हाजिर रहे, और घर के कार्य करें,सुबह नाश्ते में क्या बनना है ?दोपहर की तैयारी करके रखनी है। दही जमाना भूल गयी ,अभी चने नहीं भिगोये ,क्यों इतनी झंझटों में पड़ना है , तब विवाह क्यों करना है ? सभी सुख सुविधाएं तो बिना विवाह करें ही मिल रही हैं।
भाग ३
घर वालों ने जबरदस्ती की और इस झंझट में पड़ भी गए, तो बच्चे क्यों बनाने हैं, उन्हें कौन संभालेगा ? इस जिंदगी में अनेक समस्याएं हैं ,किंतु जो आवश्यक कार्य है, उन्हें भुला देना चाहते हैं।मंहगाई और ख़र्चों का रोना रहता है। बच्चे की इच्छा से ज्यादा अपनी आवश्यकताएँ महत्वपूर्ण हो गयीं ,इच्छाओं पर नियंत्रण नहीं करना है। अपनी ज़िंदगी को खुशनुमा बनाना है ,अपने लिए जीना है। क्या कभी सोचा ?हमारी मायें भी ऐसा सोचतीं , तो आज हम नहीं होते।
प्रगति भी तो ऐसी ही लड़की थी, खुले विचारों की आशावादी लड़की थी। माता-पिता ने उसे बहुत समझाना चाहा, कि इस ज़िंदगी को व्यर्थ न करे ,समय का सदुपयोग करके अपनी शिक्षा पर ध्यान दे। किन्तु उसने तो जैसे घरवालों का कहना न मानने की ठान ली है। घरवालों से छुपकर दोस्तों के संग घूमना ,शराब और सिगरेट पीना ,पार्टियों में जाना ,उसके लिए तो यही असल ज़िंदगी है। किसी तरह उसे बाहरवीं तक शिक्षा ग्रहण की और नौकरी की तलाश करने लगी ताकि माता -पिता से दूर रहे उसकी ज़िंदगी में उनकी दखलंदाजी न हो, उनसे पैसे भी न मांगने पड़े। माता -पिता उसकी हरकतों के कारण अपने को विवश पाते थे।
कुछ समय पश्चात उन्होंने उसके लिए लड़के की तलाश आरम्भ की ,जो लड़के मिले ,उनको मना कर दिया। जिनको उसने यह कहकर टरका दिया ,अभी उसे पढ़ाई करनी है और अपना करियर बनाना है।माता -पिता ने समझाया - रिश्ते इतनी आसानी से नहीं बनते हैं और न ही टूटते हैं , वह अपने परिवार से जुड़ी हुई थी इसलिए परिवार का सम्मान करते हुए, वह उनकी बात चुपचाप सुन लेती थी।
उसका कथन था- कि इस पति -पत्नी के रिश्ते में परस्पर प्रेम होना आवश्यक है ,आजकल प्यार नजर नहीं आता।
तब मां कहती थी- कि जब दोनों व्यक्ति एक- दूसरे को समझने लगते हैं एक दूसरे के सुख -दुख को महसूस करने लगते हैं उसके साथ खड़े होते हैं, तब स्वतः ही प्रेम हो जाता है , हमने भी विवाह किया ,धीरे -धीरे प्रेम भी हो गया। हमने भी रिश्ते की नींव विश्वास पर रखी थी, किसी भी तरह की शर्तों पर नहीं रखी थी ?
प्रगति मां की बात का कहा मानकर, माता-पिता के अनुसार रीति -रिवाज से विवाह करने के लिए तैयार हो जाती है, किन्तु अब उसे लगता ,लड़का उससे ज्यादा कमाने वाला हो ,मेरी सोच से उसकी सोच मिलती -जुलती हो। दोनों खूब मस्ती करें ,न ही वो मुझे किसी बात के लिए रोके और न ही मैं उसे कहीं जाने से रोकूं। मतलब !हमारे रिश्ते में थोड़ा स्पेस तो होना चाहिए।
जब सोच ही ,ऐसी बन चुकी है ,तब यह रिश्ते क्या आगे बढ़ पाएंगे? त्याग ,समर्पण, प्रेम यह भावना इस रिश्ते में कहां है ? इस रिश्ते में शर्त ही रह गई है, जो भी बातें बराबरी की रही, किंतु यहां बात ''कांट्रेक्ट वाइफ ''की है प्रगति को अपनी खुशियों को जीते हुए कई वर्ष हो गए। माता-पिता की तलाश जारी रहीं किंतु कभी प्रगति की शर्तें होतीं तो कभी लड़के की....... उम्र कब तक ठहरती ? वह तो समय के संग आगे बढ़ती जा रही थी।