Heart transplant ke baad ki ek prem kahani [2]

आज दफ्तर में ही ,नंदिनी का फोन आया ,वह कुछ घबराई हुई सी थी। 

हैलो !नवीन मैं तुमसे मिलना चाहती हूँ। 

वो तो हम रोज ही मिलते ही हैं ,आज क्या कोई विशेष बात है। मेरी जान !आज इतना उठावलापन क्यों ?व्यंग्य करते हुए नवीन ने पूछा। 

तुम, बेकार की बातें मत करो !मुझे तुमसे कुछ बहुत जरूरी बात करनी है। तुम आज शीघ्र ही मुझे बगीचे में मिलो !

क्या हुआ ?कुछ बात हुई है ,क्या ?जो भी हुआ है ,मुझसे अभी कहो !मेरा काम में मन नहीं लगेगा। 

नवीन की बात सुनकर ,नंदिनी रोने लगी। 


कुछ हुआ भी...... बताओ तो....... लगभग चीखते हुए बोला। 

मम्मी -पप्पा आ रहे हैं ,साथ में वो लड़का भी आ रहा है ,जिससे मेरी शादी तय की है। 

क्या कह रही हो ?चिंतित नवीन कुर्सी पर बैठ गया और बोला -उससे विवाह कब तय हुआ ?

मुझे भी नहीं मालूम था ,वे कहते हैं ,बचपन में ही ,एक दूसरे के माता -पिता ने आपस में ही ,दोनों का रिश्ता तय कर दिया था और अब उस बात को निभाने का समय आ गया।

तुमने ,क्या उस लड़के को देखा है ?

नहीं ,

बात स्पष्ट है ,तुमने उसे देखा नहीं ,जब देखोगी तो कह देना, मुझे ये लड़का पसंद नहीं। 

नहीं ,ऐसा नहीं कह सकती ,ये पप्पा की इज्जत का सवाल है। 

तो विवाह कर लो !

ये तुम क्या कह रहे हो ?मैं ऐसा नहीं कर सकती। 

तो आवाज उठाओ !और बोलो !-मैं नवीन की हूँ उससे प्यार करती हूँ और भागकर मेरे पास चली आओ !

क्या बकवास कर रहे हो ,ये कोई मूवी नहीं है। तुमने भी तो अपने परिवारवालों से बात नहीं की ,मुझसे  कहते हो। ज्यादा करोगे तो मैं ,उससे [मंगेतर ]विवाह करके चली जाउंगी ,ढूंढते रहना, अपनी नंदिनी को।

कल मैं तुम्हारे घर आता हूँ ,या आज ही मिल लूंगा और उनसे विवाह की बात करता हूँ। 

नहीं ,पहले मैं पप्पा का मूड़ देखेगी ,तब तुमको फोन करेगी और तुम आना। 

आज शाम को ,तो आ रही हो न...... हाँ ,आऊँगी किन्तु थोड़ी देर के लिए ,मुझे मम्मी और पप्पा को लेने स्टेशन भी जाना है। 

मन ही मन नवीन सोच रहा था ,कैसे लोग हैं ?बिना सोचे -समझे ही बालपन में विवाह तय कर दिया दोस्ती उनकी और उस नाते, बिना जाने ,दो ज़िंदगियों का निर्णय ले लिया। न जाने ,वो लड़का कैसा होगा ?यदि मुझसे ज्यादा हैंडसम हुआ तो...... तब उसने अपने को अलमारी में लगे शीशे में ही अपने को निहारा ,मैं भी कुछ कम नहीं सोचकर कार्य में व्यस्त होने का प्रयास करने लगा। नियत समय पर बग़ीचे में  पहुंच गया किन्तु नंदिनी नहीं आई ,उसे फोन भी लगाया किन्तु कोई जबाब नहीं मिला। बहुत देर तक उसकी प्रतीक्षा करता रहा किन्तु न जाने क्यों नंदिनी फोन का जबाब भी  नहीं दे रही ?अब तक तो ,नवीन बात को ज़्यादा गंभीरता से नहीं ले रहा था किन्तु अब वह सच में ही चिंतित हो उठा। बार -बार  फोन की तरफ देखता ,ये कब नंदिनी की कोई सूचना मुझे देगा ?आज उसे अपनी गलती का एहसास हो रहा है ,उसने कभी यह जानने का प्रयास भी नहीं किया कि नन्दिनी किस फ्लैट  में रहती है ?

भाग [४]

रात्रि के लगभग ग्यारह बज रहे थे , चिंतित नवीन जब सोने जा रहा था ,तभी एकदम से फोन की घंटी घनघना उठी। तुरंत ही नवीन ने फोन उठा लिया नंदिनी का ही फोन था ,वो रो रही थी। क्या हुआ ,क्यों परेशान हो, क्यों रो रही हो ? मैं तुम्हें ,इतनी देर से तुम्हें फोन कर रहा था तुमने मेरा फोन भी नहीं उठाया। अब तक तुम कहां थी ? तुम तो कह रही थीं - मैं मिलने आउंगी , मैं बहुत देर तक बगीचे में तुम्हारी प्रतीक्षा करता रहा किंतु तुम तब भी नहीं आईं। तुमने फोन भी नहीं उठाया, क्या हुआ ?

तुम चुप होंगे, तभी तो कुछ बोलूंगी -मैं मम्मी -पापा को लेने गई थी, इसलिए मैं नहीं आ पाई , मैंने  तुम्हारे विषय में पापा से बात की, और वे नाराज हो उठे, और बोले -वह हमारे समुदाय का नहीं है उससे विवाह नहीं हो सकता। 

तुमने उस लड़के को देखा।

हां देखा , 

तुम्हें पसंद आया या नहीं, कैसा है ?

हैंडसम है ,तुम भी क्या बात करता है ? पसंद आने या न आने का प्रश्न ही नहीं उठता क्योंकि मैं तुमसे प्रेम करती हूं। उन्होंने मुझको बहुत डाँटा।

 तब तुम उस लड़के से मना करके देख लो ! उससे कह देना कि मैं किसी और से प्रेम करती हूं। हो सकता है वही वह रिश्ता तोड़ दे। 

हाँ ,ये तो मैंने सोचा ही नहीं, यदि ऐसा न हुआ तो...... 

हम कल ही मंदिर में शादी कर लेंगे, तुम बालिग हो, तुमसे कोई जबरदस्ती नहीं कर सकता ,इसलिए बेफिक्र रहो ! मुझे समय-समय पर सारी परिस्थितियों से अवगत कराती रहना। मैं शिव मंदिर में विवाह की  तैयारी करता हूं। 

वे लोग भी, मेरा विवाह कल ही कर रहे हैं।

 ठीक है, जैसा कहा है ,वैसे ही करना और रोना नहीं है , अपने प्यार के लिए लड़ना है,तब  निश्चित होकर दोनों सो जाते हैं। 

अगले दिन सुबह ही, घर में पूजा होती है और विवाह का प्रबंध करते हैं , तब एकांत मिलने पर नंदिनी उसे लड़के से कहती है , मैं किसी और से प्रेम करती हूं। 

किंतु मैं तो तुमसे प्रेम करता हूं, मैं तुम्हारे प्रेम के लिए ,अपने प्रेम को कुर्बान नहीं कर सकता। कौन है ?वह, जरा मुझे उससे मुझे मिलवाओ ! कहते हुए वह अपनी  ताकत का प्रदर्शन करता है। 6 फुट का तगड़ा इंसान है, रंग भले ही काला हो ,किंतु लगता है ,ताकत सांड के बराबर की है। मन ही मन नंदिनी सोच रही थी, नवीन इससे ताकत में तो नहीं जीत पाएगा। प्यार से हमने मैंने इसे समझाकर देख लिया, और यह तो मुझसे  विवाह करके ही रहेगा यह संपूर्ण बातें वह फोन पर नवीन को ही बताती है।

 तब नवीन कहता है- तुम दुल्हन के जोड़े में तैयार रहना जैसे तुम उससे विवाह करने के लिए तैयार हो। और वो जब भी गाड़ी में बैठें , तब तुम दूसरी गाड़ी में बैठ जाना, या मैं एक गाड़ी भेज दूंगा तुम उसमें बैठ जाना, और यहां चली आना।  तुम मंदिर में चली आओ ! हम दोनों वहीं पर विवाह कर लेंगे। विवाह होने के पश्चात हमें कोई कुछ नहीं कह पाएंगा । योजना तो अच्छी है, प्रयास करके देख लेंगे। 

प्रयास करेंगे भी और सफल भी होंगे, पूरे विश्वास के साथ नवीन कहता है। 

नंदिनी दुल्हन के जोड़े में तैयार होती है, यह विवाह इतना आनन -फानन में हो रहा था, कि उसे स्वयं ही समझ नहीं आ रहा था, मैं क्या करूं, क्या नहीं ?क्या सही है और क्या गलत है ? जिस लड़के को उसने आज तक देखा भी नहीं है उसेसे अचानक कैसे विवाह कर सकते हैं ? जब वे लोग, विवाह के लिए बाहर निकले तभी एक गाड़ी आकर रुकी , नंदिनी उसमें आकर बैठ गई, इससे पहले कि वह लोग गाड़ी में बैठते ,गाड़ी चल पड़ी। उन लोगों ने नंदिनी का पीछा किया। देखने पर ऐसा लग रहा था, जैसे किसी ने नंदिनी का अपहरण कर लिया है। वे ,इस तरह तो नंदिनी को छोड़ नहीं सकते थे। उन्होंने भी एक गाड़ी उसके पीछे दौड़ा दी। वह गाड़ी सीधे इस मंदिर में पहुंची ,जहां पर नवीन पहले से ही, उसकी प्रतीक्षा में था। गाड़ी से उतरकर जैसे ही नंदिनी, सड़क पार करके मंदिर में जाना चाहती थी पहले ही एक बड़ी सी गाड़ी आई और उसे उड़ा कर चली गई। सब उस तरफ देखते ही रह गए ,यह क्या हुआ ?

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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