Heart transplant ke baad ki ek prem kahani [1]

नवीन उदास और बेचैन, एक बगीचे में बैठा हुआ था। जब भी वह कभी परेशान होता है, तो इसी बगीचे में ही आ जाता है। इस बगीचे से उसकी और नंदिनी की बहुत सारी यादें जो जुड़ी हुई हैं। कई बार उसकी बेचैनी इतनी अधिक बढ़ जाती है ,तब वह समुद्र के किनारे टहलने चल देता है ,डूबते  सूरज को देखता है और नंदिनी की यादों में खो जाता है। नंदिनी और वह, दोनों ही समुद्र के किनारे आते थे। उसके दफ्तर से भी छुट्टी हो जाती थी, और नवीन भी अपने दफ्तर की छुट्टी होने पर, नंदिनी से मिलने को आतुर रहता था।   जब भी दिन निकलता था तो नंदिनी को स्मरण करते हुए और सोचता था , कोई दिन ऐसा नहीं जाएगा , जिस दिन मैं नंदिनी से न मिलूं। उससे मिले बिना दिन ,दिन सा नहीं लगता। दिन न जाने कैसे कटता था ?और वह समुद्र के किनारे दौड़ लगा देता था।

 इस शहर में भीड़ ही इतनी है ,आदमी अकेला होकर भी, अकेला नहीं रह पाता है। उस भीड़ को चीरते हुए वह अपनी नंदिनी से मिलने के लिए, आगे बढ़ता रहता है जैसे -नंदिनी ही ,उसकी मंजिल है ,उसका जीवन है, किंतु आज नंदिनी उसके साथ नहीं है। वह उस डूबते सूरज में निहारने का प्रयास करता, कहीं से तो वो मुझे देख रही होगी ,कहीं तो होगी। इन्हीं उदासियों के घेरे में, लिपटा वह घर की ओर प्रस्थान करता है। गहरी सांस लेते हुए, उस घर में प्रवेश करता है, जो घर उसने, नंदिनी और अपने रहने के लिए लिया था। आज यह घर उसे काटने को दौड़ता है , सुनापन खलता है, फिर भी वह जी रहा है। एक कप कॉफी बनाकर, खिड़की के पास बैठकर पीने लगता है। यह घर उसके लिए इसीलिए तो लिया था ,वह अक्सर कहा  करती थी-मुझे खिड़की से समुद्र देखना अच्छा लगता है , तुम जब भी कभी ,कोई घर लो तो ,ऐसी जगह लेना जिसकी खिड़की से समुन्द्र दिखलाई दे। उस खिड़की से मैं समुद्र को निहार करूंगी ,जो अपनी सीमाएं लांघने के लिए इन किनारों संघर्ष करता रहता है। आज खिड़की भी है। घर भी है ,किंतु नंदिनी नहीं है। 

तभी उसके फोन की घंटी बजे उठती है, इच्छा न होते हुए भी, वह उठता है ,फोन उठाता है और देखता है ,यह तो मम्मी का फोन है। ओह !उनका वही राग  होगा , किंतु फोन शांत होने का नाम ही नहीं ले रहा था इसलिए वह फोन उठा लेता है -हेलो !

हां, बेटा !कहां चला गया था ?तू ! मैं इतनी देर से, फोन लगा रही हूं। 

मम्मी !यहीं था, किंतु नहाने चला गया था ,उसने बहाना बनाया।

इस समय नहा रहा था , वहां का मौसम कैसा है ?

 ठीक ही है, न अधिक गर्मी है, कभी-कभी बरसात भी हो जाती है ! 

देख ,बेटा ! मैंने  तेरे लिए एक तस्वीर भेजी है , जरा देख कर तो बताना कैसी है ?

नवीन परेशान होते हुए बोला-मम्मी आपसे मैंने कितनी बार कहा है ? कि मुझे विवाह नहीं करना है किंतु आप हैं  कि मानती ही नहीं।

तू देख तो सही , और कुछ देर बाद फोन करूंगी कह कर वह फोन काट देती हैं।

ये भी न... क्या चाहती हैं ?झुंझला जाता है ,इनकी भी कोई गलती नहीं ,ये तो जानती ही नहीं ,मुझ पर क्या बीत रही है।  


भाग २ -

नवीन फोन को एक तरफ रख देता है,अब  उसे कुछ भूख लग रही  है, तब उसे भोजन बनाने की इच्छा तो नहीं होती,किन्तु जिन्दा रहने के लिए खाना तो पड़ेगा।  तब वह एक सेब लेकर खाना शुरू कर देता है और रसोई में मैगी ढूंढता है , वही आराम से और जल्दी बन जाती है किन्तु विचार मम्मी के फोन पर जाकर अटक गए।  न जाने, मम्मी को भी ,क्या जल्दी मची है ? हमेशा मेरे पीछे पड़ी रहती हैं। आराम से जीने भी नहीं देतीं। 

यह वही नवीन है, जो कुछ महीनों पहले, विवाह के नाम से सुर्ख हो जाता था। वह प्रसन्नता से, घोड़ी पर चढ़ने के सपने सजाने लगता था, आज वही विवाह के लिए, इतनी बेरुखी दिखला रहा है। मैगी बनाकर, खाने बैठता है। तब उसे अपनी मम्मी की बातें स्मरण हुईं और वह फोन उठाकर व्हाट्सएप चलाता है। तब उसे मम्मी के नंबर पर एक लड़की की तस्वीर दिखलाई देती है , लड़की देखने में तो खूबसूरत है किंतु आगे देखने की नवीन की इच्छा ही नहीं हुई  उसने फोन बंद कर दिया।

 न जाने , नंदिनी उसके दिल पर कैसी छाप छोड़ गई है ? किसी से मिलने या बात करने का मन ही नहीं होता। बस अब तो लगता है ,जैसे जिंदगी समाप्त ही हो गई है। उसे वह दिन स्मरण हो आया, जिस दिन नंदिनी, उससे मिलने के लिए आ रही थी। उससे मिलने के लिए आतुर रहती थी, और किसी ताजे फूलों की तरह खिल जाती थी। तब दोनों ही ,कभी किसी बगीचे में बैठकर, तो कभी समुद्र के किनारे बैठकर भविष्य के सपने सजाते रहते थे। अक्सर मम्मी विवाह के विषय में बात करती थीं , तो कहता था -अगले वर्ष कर लेंगे। 

नंदिनी और नवीन दोनों ही समुद्र के किनारे बैठे हुए, सूर्य को अस्त होते हुए देख रहे थे तभी नंदिनी जो उसके  कंधे से सिर टिकाए हुए थी , बोली - क्या सोच रहे हो ?

कुछ नहीं ,

कुछ क्यों नहीं ? क्या तुम नहीं चाहते ,कि हमारा विवाह हो ?

ऐसा क्यों कह रही हो ? वह इसलिए कह रही हूं ,मुझे लगता है ,तुमने अभी तक अपने परिवार वालों से बात नहीं की है। 

मुझे कुछ भी, कहने  की कोई आवश्यकता ही नहीं पड़ेगी ,मम्मी को तो स्वयं मेरे विवाह की चिंता लगी  रहती है किंतु मैंने उनसे कह दिया है -अगले वर्ष में विवाह कर लूंगा। 

क्यों ,अगले बरस क्यों ?कंधे से सिर उठाकर, नंदिनी ने उसकी तरफ देखा अगले बरस क्या कोई शुभ मुहूर्त आएगा ? इसी वर्ष क्यों नहीं ?

मैं सोच रहा था ,इस साल मेरा प्रमोशन होगा तरक्की होगी। मैंने  फ्लैट तो ले लिया है किंतु उसकी क़िस्त  भी चुकानी होगीं।  खर्चे भी तो बढ़ जाते हैं इसलिए थोड़ा अपने को तैयार कर रहा हूं। कोई भी मुसीबत पालने से पहले अपने को तैयार करना पड़ता है ,सुरक्षा पेटी बांधनी पड़ती है ,कहते हुए  नवीन हंसने लगा। 

अच्छा मैं मुसीबत हूं ,परेशानी हूं, तुम्हारी सुरक्षा पेटी तो मैं बनवाऊंगी कहते हुए ,उसका बैग उठाया और उसके सिर पर दे मारा किंतु वह भी सतर्क था ,वह जानता था ,ये ऐसा ही कुछ करेगी इसलिए तुरंत ही उठकर भाग खड़ा हुआ दोनों ही एक -दूसरे के पीछे भाग रहे थे। कितने हसीन मंजर थे ? सोचकर नवीन मुस्कुरा दिया। तभी फिर से फोन की घंटी घनघना उठी। 

उसका यह सुंदर विचार, उस फोन की घंटी से टूट गया। इस समय उस यह घंटी दुश्मन की तरह नजर आ रही थी। ऐसा लग रहा था, जैसे यही घंटी उसके जीवन की सबसे बड़ी, दुश्मन है। क्या मुसीबत है ?सोचने पर भी पाबंदी है ,कुछ पल के लिए विचारों में ही सही ,मैं अपनी नंदिनी के साथ जी तो लेता हूं किंतु इसे यह भी पसंद नहीं है। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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