Vivah ka ghar

 कुछ पलकों में ,सपने पले हैं। 

भावी जीवन की कलियाँ खिलीं हैं। 

कुछ पलकों में ,आशाओं की वेणी है। 

उस वेणी में भावी मंगल ,पुष्प सजे हैं। 



कुछ पलकों में ,खुशियाँ दिखतीं ,

कुछ पलकों में उत्तरदायित्व नजर आते। 

विवाह वाला घर........ फूलों से सजता ,

कुछ ग़म संग ,'प्यार के रंग 'नजर आते। 


बिखरी महक़ फूलों की ,कुछ को बिखरना पड़ता। 

फूलों का जीवन यही ,पखुंड़ी बन महकना पड़ता। 

कोई देवों पर चढ़ता ,तो कोई पैरों में कुचलता। 

किस्मत अपनी -अपनी,बिखरकर भी संवरना पड़ता। 


बेल -बूटों सा जीवन ,मेहँदी का रंग चटक है ,चढ़ता !

चढ़ जाये ,जो इक बार प्यार का रंग फिर न उतरता। 

मिटें विकार जीवन के ,चमकता रहे तन तुम्हारा। 

हल्दी का रंग शुभ हो ! मङ्गलमय जीवन तुम्हारा।


हर कोने से खुशियां महके ,जगमग करता जीवन हो। 

नवजीवन में प्रवेश करो तुम ! ऐसा जीवन में  रंग हो।  

इस घर की शोभा थीं ,अब उस घर को भी महकाना। 

कुंडी खोल सजन को बुलाना , बर्तन न खड़काना।

 

मंगलगान सुनाये सखियों ने ,दूल्हे को देख दुल्हन शरमाई है। 

नज़र लगे न तुमको किसी की ,दी सभी अपनों ने बधाई है।

जो कल  उस घर की बेटी थी ,आज हमारे घर लक्ष्मी आई है। 

स्वागत ,आपका अपने नवीन गृह में,दूल्हे ने की अगुवाई है।  


laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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