गांव में ,अनजाने ही ,क्रिकेट मैच हो गया,जिसमें चतुर की टीम जीती किन्तु अब उसके दोस्त उससे नाराज़ नजर आते हैं। उसे ताने दे रहे हैं - अब कहने -सुनने को रह ही क्या गया है ? तू तो दान देकर ,'दानवीर कर्ण 'हो गया है ,तुझे उसकी उपाधि भी मिलने वाली है।तुझे उसका भी तमगा मिलता , तो तू ले लेता किंतु तूने हमारे हिस्से की धनराशि उसे क्यों दी ?
मयंक बोला -तू बड़े दिल का होगा किंतु हम बड़े दिल के नहीं हैं , हमें भी पैसे की उतनी ही सख्त जरूरत थी जितनी कि कलवे को थी। संपूर्ण टीम जीती है ,तो संपूर्ण टीम को, बराबर पैसा मिलना चाहिए था।
तू बड़ा आदमी है ,तेरा दिल बड़ा है ,या वहां लोगों के सामने दिखावा कर रहा था,वो तू जाने ! या लोगों के सामने महान बनने का प्रयास कर रहा था किन्तु तू अपने सारे पैसे दे देता ,हमें कोई परेशानी नहीं होती किन्तु तूने हमारे हिस्से से वो जो धनराशि दी ,वो हमें बिल्कुल भी मंजूर नहीं ,चिराग़ ऐंठते हुए बोला। कहते हुए साइकिल आगे बढ़ा दी।
चतुर ने भी ,अपनी साइकिल की रफ़्तार तेज की और उनके करीब पहुंचकर बोला -मैं तुम्हारी नाराजगी समझता हूं, किंतु एक बार तनिक ठंडे दिमाग़ से सोचो ! यदि हमारी टीम हार जाती तो हमें यह 75 रुपया भी नहीं मिलता। उस लड़के ने मेहनत की और उसने 50 रन बनाए तो उसको अधिक इनाम मिलना चाहिए था या नहीं, अपने दिल पर हाथ रखकर सोचो ! जहां तक मैं समझता हूं, उसे हमसे ज्यादा पैसे की आवश्यकता थी। हमने अपनी जेब से कुछ नहीं दिया है ,सिर्फ जो हमें मिला था उसमें से थोड़ी-थोड़ी धनराशि काटकर हमने उसे थोड़ी ज्यादा दे दी। हमारा भी कुछ नहीं बिगड़ा, अच्छा तुम ही बताओ ! तुमने कितने रन बनाये थे ?चतुर ने सीधे चिराग से पूछा।
तभी मयंक व्यंग्य से बोल उठा -ये तो दस रन बनाकर ही आउट हो गया था।
दस रन बनने पर तुम्हें पचत्तहर रूपये मिले, किसकी बदौलत ?चिराग़ के पास कोई जबाब नहीं था वह चुपचाप साइकिल चलाता रहा। तुम्हारा उस धनराशि के कट जाने से कौन सा काम रुक गया ? मुझे एक बार भी कोई सा तुम में से यह समझा दो ! कि मैंने इनाम देकर, कोई गलती की है और तुम्हारा यह कार्य रुक गया। अच्छा अगर वह सोे- सोे रुपए हमें मिल भी जाते तो तुम उसका क्या करते ? जरा मुझे ठीक से समझाना चतुर ने पूछा -मैं मयंक की परेशानी तो समझ सकता हूं , उसे भी पैसे की आवश्यकता है किंतु इतने पैसे में तो उसकी साइकिल भी नहीं आती. और फिर मैं उसके साथ हूं ,अब तक क्या ,यह मेरे साथ नहीं आ रहा है तो अभी क्या सोे रुपए में उसकी साइकिल आ जाती या उसका कोई और खर्चा पूर्ण हो जाता। अब तक भी मेरे साथ आ रहा है और अब भी आगे भी मेरे साथ भी आता रहेगा। फिर दोस्त किस लिए होते हैं ?तब भी ,किसी को ज्यादा परेशानी है तो मुझसे आकर कहे !मैं उसे अपने हिस्से से पैसे दूंगा अकड़ते हुए चतुर बोला।
अब उसके दोस्तों के पास कोई जवाब नहीं था, जो चुपचाप साइकिल आगे बढ़ा चलते रहे। अभी वह लोग उसे शहर के नजदीक ही पहुंचे थे। तभी जोर-जोर से, ढोल बजाने की आवाज सुनाई देने लगी। अब यह क्या नया राग है ? मयंक बोला।
चलो आगे चलकर देखते हैं, आखिर यहां क्या हो रहा है ? उनकी जिज्ञासा उन्हें खींचकर, उसे तरफ ले जाती है जिधर से ढोल की आवाज आ रही थी। वहां बहुत अधिक भीड़ थी, और एक व्यक्ति, के हाथ में कुछ ढका हुआ था। तभी एक व्यक्ति ने नारा लगाया -'' गणपति बप्पा मोरिया ''के स्वर से वहां का वातावरण गूंज उठा।
यह लोग क्या कर रहे हैं ? हमारे यहां तो ऐसा कुछ भी नहीं होता। भीड़ आगे चली गई , और वह लोग पीछे खड़े देखते रहे। तब उन्हें अपने कॉलेज का ध्यान आया और वह अपने कॉलेज की तरफ प्रस्थान कर गए।कक्षा में सभी विद्यार्थी थे ,तभी एकाएक ही, तरंग के मुख से निकला ''गणपति बप्पा मोरया'' यह शब्द सुनकर, सतीश के ''कान खड़े हो गए '' और तरंग के समीप आकर पूछा -तूने अभी क्या बोला ?
तरंग उसके, अचानक इस तरह पूछने पर घबरा गया , न जाने इसमें क्या सुना ? बोला -मैंने तो कुछ भी नहीं कहा।
अभी तूने कुछ कहा था, चंद सेकंड पहले ही ,
''गणपति बप्पा मोरिया''
हां ,हां यही, अभी हम सुबह कॉलेज आ रहे थे तब हमने देखा -कुछ लोग, कपड़े में ढककर किसी को ले जा रहे हैं शायद कोई मूर्ति होगी और ऐसा ही कुछ बोल रहे थे,क्या तुम बता सकते हो ?वो सब ऐसा क्यों कर रहे थे ?
तरंग उसकी बातों का आशय समझ कर मुस्कुरा दिया और बोला -वह ''लाल बाग के राजा '' को ले जा रहे थे।
अब यह कौन से राजा हैं ? अब तो राजाओं का जमाना चला गया सतीश बोला।
हंसते हुए तरंग बोला -तुम ''लाल बाग के राजा ''को नहीं जानते, फिर काहे के पढ़े -लिखे हो।
मतलब !यह हमने अपनी किसी पुस्तक में नहीं पढ़ा। तू क्यों इतनी हेकड़ी दिखा रहा है ?
समाचार पत्र तो पढ़ते होंगे।
कभी-कभी पढ़ लेते हैं। तुम इतना भाव क्यों खा रहे हो ? और तुम उस राजा को कैसे जानते हो ?
पहले मैं उधर ही रहता था,
मतलब , उस राजा के पास !आश्चर्य से सतीश बोला।
मूर्ख ! महाराष्ट्र में ,बंबई में [उस समय मुंबई को बंबई ही कहते थे ]
तब वो राजा वहां रहता है किन्तु हमारे यहां 'भगवान गणेश जी' को ''गणपति ''भी कहते हैं।
शुक्र है ,तुम्हें इतना तो पता है , कहते हुए तरंग ने गहरी सांस ली।
तू क्या मुंबई से आया है ? तू क्या पहले वहीं रहता था ? तूने तो हमें आज तक कुछ नहीं बताया।
मुझे दिखावा करने की आदत नहीं है, मेरे पापा वही नौकरी करते थे किंतु अब उनकी बदली हो गई है इसीलिए हम यहां आए हैं , पापा की नौकरी के चलते, हमें जगह-जगह, की संस्कृति, वहां का रहन-सहन, वहां के त्यौहार, रीति -रिवाज़ इत्यादि देखने और सुनने को मिलते हैं। जो चीजेँ किताबों में पढ़ने को भी नहीं मिलेगी। उसकी जानकारी हमें वहां रहकर मिल जाती है। हम 5 साल'' महाराष्ट्र ''के बंबई शहर में रहे हैं जो ''महाराष्ट्र ''की राजधानी भी है। तभी मैं [मन ही मन मुस्कुराते हुए ] लाल बाग के राजा से मिला था।
क्या तरंग उसे सही कहानी बतलायेगा ?या सतीश को मूर्ख बना रहा है ,सही भी हुआ तो सतीश उस जानकारी का क्या लाभ उठाएगा ?चलिए !रसिया की ज़िंदगी के इस पड़ाव की रोचकताओं के साथ आगे बढ़ते हैं।