चतुर अपने पिता श्रीधर जी के साथ, अपने घर पहुंचता है। मौहल्ले वालों के द्वारा ,उसे पहले ही,सम्पूर्ण बातों की जानकारी हो जाती है। प्रसन्नता में ,चतुर की मां उसकी ही प्रतीक्षा कर रही थी,बाप -बेटों को देखते ही उसने उन्हें ,वहीं दरवाजे पर रोक लिया और आरती का थाल लेकर दरवाजे पर आई और उसने अपने बेटे की आरती उतारी और फिर उसकी नजर भी...... तब उसे अंदर आने दिया। आज प्रसन्नता से वह खिल रही थी ,उसे बड़ी ही प्रसन्नता हो रही थी कि उसके बेटे के कारण, आज घर-घर में उसका नाम हो रहा है। श्रीधर जी अपनी पत्नी को ताना मारते हुए बोले -तुम तो मैच देखने भी नहीं आई थीं , गांव का हर व्यक्ति वहां था।
मैं खेल देखने नहीं आई ,किन्तु मेरा मन तो वहीँ था। मैं अपने कार्य में ही व्यस्त थी ,तब मुझे किसी ने बताया था -'कि तुम्हारा बेटा ,आज 'पिछली पट्टी 'वालों के साथ मैच खेल रहा है। बच्चे ,तो खेलते ही रहते हैं ,इस ओर मैंने विशेष ध्यान नहीं दिया। किन्तु मुझे क्या मालूम था ?कि बात इतनी बड़ी हो जाएगी ,जब मैंने लोगों को कहते सुना और इसकी प्रशंसा करते सुना ,तब मुझे इस बात पर भी आश्चर्य हुआ कि सरपंच जी भी ,उस खेल में दिलचस्पी दिखला रहे हैं और इनाम भी तय किये हैं। तब प्रसन्नता के साथ-साथ दुःख भी हुआ कि मैं अपने बच्चों का मैच देखने नहीं गई। कोई बात नहीं ,आगे तो ऐसे मौके पड़ते ही रहेंगे अपने मन को समझाते हुए बोली।
श्रीधर जी ने रामप्यारी को समझाया -तुमने लोगों के मुंह से अपने बेटे की तारीफें सुनी और उसकी बातों का वर्णन तुमने यहीं घर बैठे ही जान लिया इससे बड़ी प्रसन्नता की बात और क्या हो सकती है ?
माता-पिता प्रसन्नता में ,आपस में बातें कर रहे थे किंतु चतुर वहां से उठकर अपने कमरे में चला आया था अब एकांत मिलते ही उसे बड़ी जोरों की भूख लगी थी। सुबह से उसने ,कुछ खाया भी नहीं था, मां को यह बात याद रही और वह श्रीधर जी ,से बातें करते-करते अपने बेटे के लिए थाली लगा लेती है। रामप्यारी ,चतुर को अपने पास न पाकर ,श्रीधर जी से पूछती है -आपका लाल !कहाँ गया ?
अभी तक तो यहीं था ,मुझे लगता है ,थक गया होगा ,अपने कमरे में चला गया होगा।
रामप्यारी , चतुर को ढूंढते हुए ,उसके कमरे में जाती है ,आज तूने सुबह से ही कुछ नहीं खाया है और अब जाकर यहां आकर बैठ गया। तेरा क्या इरादा है ,क्या आज भूखे ही रहना चाहता है ?अभी भी भूख नहीं लगी ,मैंने तेरी पसंद का भोजन बनाया है।
नहीं ,ऐसा तो कुछ नहीं है ,मुझे तो स्वयं ही भूख लग रही थी।आप पिताजी से बात कर रही थीं इसलिए मैं यहां आ गया।
उनसे बात कर रही हूं ,तो क्या तू भूखा रहेगा ?ले खाना खा !कहते हुए उसने थाली में से एक ग्रास तोड़कर चतुर को खिलाना चाहा किन्तु चतुर ने कहा -आप खाना रख दो ,मैं खा लूंगा।
रामप्यारी ने थाली चतुर के सामने रखते हुए, चतुर के चेहरे को देखते हुए बोली -मुझे कुछ अजीब सा लग रहा है। ऐसा लग रहा है ,जैसे इस जीत से तुझे कोई खुशी नहीं मिली।
नहीं, ऐसा तो कुछ भी नहीं है, आपको ऐसा क्यों लगता है ?क्योंकि तेरे चेहरे पर वह प्रसन्नता मुझे नजर नहीं आ रही जो तेरी जीत पर अन्य लोगों के चेहरों पर नजर आ रही है।
ऐसा तो कुछ भी नहीं है किंतु मैं सोच रहा था- क्या मैंने अपने दोस्तों के इनाम की 'धनराशि 'को कम करके अच्छा किया या नहीं।
रामप्यारी को इस विषय में कुछ पता नहीं था ,तब उसने पूछा -तू ऐसा क्यों कह रहा है, तूने क्या किया ?
जब प्रधान जी, इनाम की धनराशि दे रहे थे तब मैंने उसमें से थोड़ा सा इनाम अधिक करके कलुआ को दे दिया उसने सबसे अधिक रन भी बनाए थे।
तब इसमें बुराई क्या है ? जब सबसे अधिक रन बनाए हैं तो ज्यादा इनाम भी तो उसे ही मिलना चाहिए रामप्यारी स्पष्ट रूप से बोली। तूने जो भी किया सही किया ,तब गर्व से बोली -मेरा बेटा कभी गलत हो ही नहीं सकता। तू भोजन कर मैं ,अभी आती हूं कहकर वहां से चली गई। अपनी मां की नजरों में भी ,वह सही था तब उसे ऐसा क्यों लग रहा था ? तब उसने अपने मन को समझाया - हां ,उसने जो कुछ भी किया वह सही ही किया है।
अगले दिन सभी दोस्त, कॉलेज जा रहे थे किंतु आज बहुत ही चुप्पी थी, कोई बोल नहीं रहा था ,सब चुपचाप चले जा रहे थे ,यह चुप्पी चतुर के लिए, बेहतर थी किंतु वह यह भी जानना चाहता था कि उसने जो किया उसकी दोस्तों की नजर में सही था या गलत ! आज तक कभी ऐसा नहीं हुआ ,उसके दोस्त कोई न कोई किस्सा न सुनाएँ !या फिर कोई भी चुटकुला या गांव की ही चर्चा और नहीं तो लड़कियों पर ही कुछ न कुछ बात छेड़ देते थे किन्तु आज जैसे वहां कोई हो ही नहीं ,सब शांतिपूर्वक चले जा रहे हैं। यह सब अब चतुर को खलने लगा। बहुत देर तक चुप रहने के पश्चात ,चतुर बोला- अरे कोई कुछ बोलेगा भी या नहीं,ऐसे हो रहे हैं ,जैसे ''''सबको सांप सूंघ गया हो। कोई तो बात करो !कोई किस्सा तो सुनाओ !मुझसे लड़ ही लो !शिकायत ही कर लो !किन्तु कुछ बोलो तो सही !
अब बोलकर क्या हो जाएगा ?क्रोधित होते हुए, तन्मय !जो उसी की साइकिल पर पीछे बैठा था बोला।
मैंने ऐसा क्या कर दिया ?जो तुम लोगों ने, ऐसे चुपचाप रहने का आंदोलन प्रारंभ कर दिया है।
अच्छा ,गलतियां करता है, और फिर अपने बाप के साथ भाग जाता है, तू क्या समझता है ?बेवकूफ हैं ,हम !कुछ भी समझते नहीं हैं , सुशील अपने ही लहजे में बोला -तूने हमारे साथ क्या अच्छा किया है ? इनाम की धनराशि को तूने बांटते समय हमसे पूछा था ,हमसे सलाह ली थी, अपनी साइकिल को उसके करीब लाकर, सुशील ने पूछा।
अरे ,यार !मैं समझ रहा हूं ,मुझे भी लगता है ,तुम लोग मुझसे नाराज हो लेकिन एक बार पहले मेरी बात तो सुन लेते।
क्या चतुर अपने दोस्तों को समझा सकेगा ?वो उसकी बात का मान रखेंगे कहीं यही बात ,उनमें फूट न डाल दे। क्या उनकी दोस्ती इसी प्रकार बरक़रार रहेगी ?मिलते हैं ,अगले भाग में -रसिया !