Siksha

'' शिक्षा ''का कार्य मनुष्य को शिक्षित करना है। शिक्षा के माध्यम से हम ज्ञान अर्जित करते हैं किन्तु यह ज्ञान हमें जीवन कितना सफल बनाता है ? कहते हैं ,शिक्षा से,'' ज्ञान का उजाला ''फैलता है। मन  उज्जवल होता है किंतु क्या जो शिक्षा हम ग्रहण करते हैं। वह हमारे जीवन को उज्जवल करती है ,हमारे किस काम आती है ?हम शिक्षा ग्रहण क्यों करते हैं ?ताकि जीवन में सफल हो सकें , अच्छे व्यापारी बन सकें। व्यापार तो हम बिन शिक्षा के भी कर सकते हैं और करते भी हैं। रिश्तों का व्यापार ,इंसान को जाति -पाँति में तौलना ,व्यवहार का व्यापार ,सामाजिक व्यापार !हम पैदाइशी व्यापारी होते हैं।  हमें शिक्षा किस तरह से की ग्रहण करनी चाहिए ? जो हमारे जीवन को उज्जवल बनाएं ,हमारे भविष्य को उज्जवल करें या हमें व्यापार भी आगे बढ़ाएं ,हमें सद्बुद्धि दे ! किस तरह की शिक्षा हमें हमारे लिए उपयोगी हो सकती है ? शिक्षा के भी कई रूप हैं -मार्गदर्शक  के रूप में कार्य करती है ,किंतु क्या वह एक अच्छी मार्गदर्शिका  बन जाती है ?क्या वह जीवन को सफल बनाने में ,उसको आगे बढ़ाने में सहायक होती है ?


हम' इतिहास 'की शिक्षा ग्रहण करते हैं, क्यों ,उससे हमें क्या लाभ है ?क्यों हम जानना चाहते हैं ,कि हमारे पूर्वज कैसे थे या उन्होंने क्या गलतियां कीं  या हमारा देश किस तरह आगे बढ़ रहा था और किस तरह वह किन - किन गलतियों के कारण वह उन्नति ना कर सका। तो क्या, इतिहास की शिक्षा लेने से हमें कुछ लाभ है सिर्फ हम पढ़ते हैं ,उसमें से क्या ग्रहण कर पाते हैं ?हमारे लिए कुछ भी,लाभ है या नहीं। इतिहास जान लेने से उस समय को हम बदल तो नहीं सकते हैं। उन ऐतिहासिक लोगों की सहायता भी नहीं कर सकते। हमारे लिए इतिहास जानना क्यों आवश्यक है ? ख्वामहखां ''गड़े मूर्दे क्यों खोदना '' इससे आजतक किसी का क्या लाभ हुआ है ? बल्कि बैठे -बिठाये मुसीबत मोल और ले लेते हैं।उससे सीखते कुछ नहीं ,बल्कि दुःख के सिवा कुछ नहीं मिलता। 

 तब क्या, हमें' राजनीति शास्त्र 'की शिक्षा गृहण करनी चाहिए ? जिसमें इंसान सीधे तरीके से तो वह बात सोच ही नहीं सकता। घुमा -फिराकर , किसी साधारण  सी चीज को गहरी और रहस्यमई बना देता है। हर किसी की सीधी सी चाल में उसे 'सांप वाली टेढ़ी चाल 'नजर आती है। वह स्वयं भी सीधी चाल कभी चलता ही नहीं है। यदि साधारण मानव को इसकी सीधी चाल समझ आ गई तो फिर कहाँ  का राजनीतिज्ञ  रहा ? तो क्या यह शिक्षा, हमें सुकून और शांति देती है। क्या इसे पढ़ने से जीवन का मार्ग प्रशस्त होता है ? यह मानव को मानव से लड़ा देता है , भेदभाव की दृष्टि से देखता है, छल और न जाने कितने प्रपंच करता है। तब जाकर वह एक 'कुशल राजनीतिज्ञ 'कहलाता है। हालांकि जिसको राजनीतिज्ञ बनना हो, राजनीति में जाना हो उसके लिए  इस शिक्षा का विशेष महत्व है किंतु जो राजनीति में, जा ही नहीं रहा है उसका राजनीति से दूर-दूर तक भी वास्ता नहीं है, क्या यह शिक्षा उसके काम आती है ? वह राजनीति के दांवपेंच समझकर भी कुछ नहीं कर सकता है, लेकिन उसका उपयोग नहीं कर पाता फिर ऐसी शिक्षा से क्या लाभ !

एक चिकित्सक बनने  के लिए, औषधीयों  का उपयोग तो सही है, पेड़ -पौधों ,जीव -जंतुओं की जानकारी होना और यह आवश्यक है। जीव जंतु के विषय में भी जानना आवश्यक है। यह एक व्यापारिक शिक्षा हुई, एक चिकित्सक  चिकित्सा के रूप में व्यापार ही तो करता है, कोई -कोई व्यक्ति ऐसा होता है जिसके अंदर ''सेवा भाव ''आता है और उसके तहत वह चिकित्सक बनने का प्रयास करता है। कई विषय ऐसे हैं, जैसे य ह गणित है, आदमी का सारा जीवन जोड़ने और घटाने में चला जाता है। संपूर्ण जीवन गणित, को प्लस और माइनस करने में लगा रहता है। किंतु यह शिक्षा भी मनुष्य का संपूर्ण विकास नहीं कर पाती। उसकी आत्मा को प्रकाशित नहीं कर पाती। 

मनुष्य के अंदर एक तरीके से परेशानी और बेचैनी को शांत कर पाना संभव नहीं है। तब ऐसी शिक्षा का क्या उपयोग ? क्या इस  शिक्षा के द्वारा वह अपने जीवन के सभी सुख प्राप्त कर पाते हैं ,जीवन में असीम शांति मिल पाती है। जीवन जो कलुषिताओं से भर जाता है , वह चमक उठता है। जीवन की विपत्तियों  का सामना कर पाता है। 

आज के समय में सबसे अधिक व्यापारिक शिक्षा का ही महत्व है। इंसान जो भी शिक्षा ग्रहण कर रहा है, सबसे पहले वह जीवन में उसे शिक्षा के माध्यम से धनोपाजर्न की इच्छा रखता है। किसी भी शिक्षा  को माध्यम लेकर, सर्वप्रथम वह जीवोकोपार्जन की सोचता है , उसके लिए साधन जुटाता है वरना उसे यह जो जीवन मिला है ,उसको जियेगा कैसे ? किन्तु क्या ऐसी शिक्षा !संस्कार दे पाती  है ? जीवन को सही मार्ग दिखलाती है ,क्या हर एक चिकित्सक अपनी शिक्षा का सही उपयोग कर पाता है ?ईमानदारी से अपना कर्त्तव्य निभाता है ,या कोई कुशल राजनीतिज्ञ बिना किसी अपराध के अपने कार्य को अंजाम दे पाता है। या फिर एक व्यापारी बिना मिलावट ईमानदारी से व्यापार कर पाता है। क्या कोई राजा निर्भय होकर शासन कर सका है या फिर हर राजा दयालु और प्रजा का शुभचिंतक रहा है। 

आध्यात्म से संबंधित शिक्षा ग्रहण करने पर ,तब वह व्यक्ति इस संसार में ही क्यों नहीं रहना चाहता ? वैराग्य क्यों अपनाता है ? जंगलों में क्यों जाता है ?क्यों भटकाव को चुनता है ?यदि किसी को कुछ लाभ मिलता भी है उसका लाभ क्यों नहीं उठाता ?अपनी शक्तियों को छुपाता है या छुप जाता है।

मान लीजिए !हम विज्ञान की शिक्षा ग्रहण करते हैं, हम एक सफल वैज्ञानिक बनना चाहते हैं , किंतु समय और किस्मत ने  साथ नहीं दिया और हम किसी दूसरी ही डगर पर चल पड़े , विज्ञान ने हमें, अपने को साबित करने का मौका ही नहीं दिया। तब वह जो शिक्षा हमने ग्रहण की क्या हमारे लिए सार्थक हुई ? चुनाव तो हमने अपनी समझ और रुचि के अनुसार किया था किंतु कई बार हम उसमें सफल नहीं हो पाते , और किसी दूसरे रास्ते पर ही चल देते हैं। मार्ग का चुनाव, कुछ और था किंतु मार्ग बदल गया तब वह शिक्षा तो हमारी व्यर्थ ही गई। या फिर हम घूम फिर कर इस मार्ग को अपना लेना चाहते हैं , हमें बाहर मौका नहीं मिला तो हम अपनी प्रतिभा को, दूसरे रास्ते से, उसका सदुपयोग भी कर सकते हैं और उसका दुरुपयोग भी , अब यह तो समय और परिस्थिति के अनुसार हमारी सोच पर निर्भर करता है। कई बार हम जिंदगी से इतने निराश हो जाते हैं हम न चाहते हुए भी, कुमार्ग की ओर चल देते हैं। तब क्या हमारी वह शिक्षा व्यर्थ है ? उसने हमें शांति और सद्बुद्धि  कहां दी ?

मैंने कई बार लोगों को कहते सुना -हम डॉक्टर बनना चाहते थे, अभिनेता बन गए। कुछ अभिनेता बनना चाहते थे, किंतु उन्हें वह मौका ही नहीं मिला अपने को साबित करने का, तब उन्होंने ऐसी कौन सी शिक्षा ग्रहण की. कि वह सफल होते -होते रह जाते हैं। बनना कुछ चाहते हैं ,बन कुछ और जाते हैं। जो भी शिक्षा हमें पाठशाला में,स्कूल में, विद्यालयों में ,दी जाती है , उसका कितना सही उपयोग कर पाते हैं ?इतनी शिक्षा ग्रहण करने के पश्चात भी ,मानव के लिए ,यह जीवन एक चुनौती क्यों बना हुआ है ?व्यक्ति का सर्वांगीण विकास नहीं हो पाता और तब भी उसे लगता है ,जीवन में कुछ तो अधूरा है ,अभी उसका ज्ञान भी अधूरा है। कुछ -न कुछ कमी का एहसास होता रहता है। उस कमी को पूर्ण करने के लिए ,कभी सतसंगों में ,कभी विभिन्न आचार्यों के विचार सुनता है ,कभी पुस्तकालयों में ,अपनी रूचि के अनुसार भटकता ही रहता है। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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