Shaitani man [part 5]

सुमित और रोहित क्या कम थे ?जो अब ये लोग !और ये नया लड़का !न जाने कौन है ? इनका बड़ा भाई !तो नहीं हो सकता, फिर यह न जाने कौन है ? पहली बार इस कॉलेज में देखा है, कॉलेज में कहां ,इस कमरे में देखा है। सुमित और रोहित तो उसे बड़े भैया !बड़े भैया !कहकर थक नहीं रहे हैं। ऐसा लग रहा है ,जैसे बरसों के बिछड़े भैया मिल गए हो। आखिर यह इंसान है ,कौन ? कॉलेज का ही बंदा है या फिर कॉलेज के बाहर से आया है अगर यह कॉलेज के बाहर से आया है, तो फिर इन लोगों के साथ क्या कर रहा है ? नितिन के मन में अनेक प्रश्न उठ रहे थे। किंतु कुछ भी पूछने का उसमें साहस नहीं था। वह गुंडो के परिवार से नहीं है, इसका एक साधारण सा, संस्कारी परिवार है। जिसमें गलत कर्म करने की कोई सोचेगा ही नहीं , और यदि किसी कारणवश गलत कर्म करना भी पड़ गया तो उससे  पहले वह आदमी 100 बार सोचता है। 

और भाई आज दावत हो जाए। 

हां हां क्यों नहीं ? पूरा इंतजाम करके लाया हूं। 



क्या बात करते हैं ?भाई ! भाई हो तो आप जैसा, प्रसन्न होते हुए रोहित बोला। 

अब क्या तू दरवाजे पर ही खड़ा रहेगा ? या दरबान  की नौकरी ले ली है। आजा ! भाई ने आज बढ़िया दावत का इंतजाम किया है। 

नितिन दरवाजे से हटकर अंदर कमरे की तरफ आया हालांकि उस छोटे से कमरे में, इतने सारे लोगों को बैठने के लिए स्थान ही कहां था ? किंतु सब एक दूसरे से चिपके बैठे हुए थे, वह भी एक तरफ को बैठ गया और सोच रहा था -क्या ,दावत का इंतजाम किया है ? मुझे तो यहां कुछ भी नहीं दिख रहा।तभी  दो-तीन लड़के बाहर से आये और उनके हाथ में ,कुछ थैलियाँ थीं। जिनमें से बहुत अच्छी खुशबू आ रही थी ,खुशबू के कारण, पूरा कमरा महक उठा, किंतु यह महक नितिन को कम अच्छी लगी, खुशबू तो अच्छी थी, किंतु न जाने क्यों ?उसे कुछ अलग ही अंदेशा हो रहा था।  यह साधारण भोजन की खुशबू नहीं थी। नितिन चुपचाप बैठकर उनकी प्रतिक्रिया देखने लगा ,तभी उन लोगों ने, वे थैलियां खोलीं उनके पास जो बर्तन थे वह भी ले आए और कुछ बाहरी कागज की,तश्तरी उनके पास थी। नितिन भोजन को देखते ही समझ गया, यह ''शाकाहारी ''भोजन नहीं है। उसने कभी 'मांसाहारी 'भोजन किया ही नहीं था। यह सब देखकर उसे उल्टी सी आने लगी , किंतु अपने को संयमित किए बैठा रहा। साथ में कुछ शराब की बोतलें भी थीं। यह सब देखकर नितिन , अपने स्थान से उठ खड़ा हुआ। 

क्यों भाई ! ज्यादा भूख लगी है क्या ? आजा ! मेरे पास बैठ ! तू नया लड़का है , तू भी क्या याद करेगा ? कार्तिक भइया ने कितना अच्छा भोजन मँगवाया है ?

नहीं ,मुझे नहीं खाना है, मुझे भूख ही नहीं है , मैं बाहर जा रहा हूं ,आप लोग खा लीजिए ! 

क्या बात कर रहा है ? हम खाएं और तू बिना खाए रह जाए ,ऐसा कैसे हो सकता है ? 'कार्तिक भैया 'आए हैं तो उनका तो साथ देना ही पड़ेगा। 

मैं यह सब नहीं खाता ,

तो आज खा ले......... कहते हुए वह पैग बनाने लगा। 

मन ही मन नितिन सोच रहा था -क्या जबरदस्ती है? ऐसे लोग ,भूखे को भोजन न कराएं , किंतु किसी को जबरदस्ती मांसाहारी भोजन कराने में विश्वास रखते हैं।''शैतान ''कहीं के.......   ले खा ! कहते हुए एक प्लेट और एक गिलास उसके आगे कर दिया। 

नहीं ,मुझे यह सब नहीं खाना है।

ज्यादा 'सिद्धांतवादी' मत बन ! नहीं तो कुछ भी हासिल नहीं कर पाएगा। तू अब 'कार्तिक चौहान 'की  छत्रछाया में है, तुझे कोई छू भी नहीं सकता , और न ही, कुछ कह सकेगा। बस अपने भाई के साथ रह और उसका काम करता जा !पहली बार दिक्कत होती है, किंतु अगली बार तू स्वयं ही ,अपने हाथों से छीनकर और मांगकर खा लेगा ! कहते हुए उन सभी लड़कों की तरफ देखा ,जो ढिटाई से हंस रहे थे। क्योंकि सभी उस 'कार्तिक चौहान' के रंग में रंगे हुए थे। हो सकता है , उन सभी पर उसने अपना इसी तरह रंग जमाया हो।

नितिन को इस प्लेट को पकड़ने पर भी ,घिन्न आ रही थी, अब तक कार्तिक उससे प्यार से बातें कर रहा था किंतु अब सख्त लहजे में बोला -ज्यादा नखरे मत दिखा ! हमें मजबूर मत कर कि जबरदस्ती! तुझे कुछ खिलाएं !

देखिए ! मुझे भोजन नहीं करना है, न ही मुझे भूख है , जबरदस्ती खाऊंगा तो उल्टी हो जाएगी। 

कोई बात नहीं, चल गौरव !खड़ा हो जा ! शराब और शबाब से यह डर रहा है, इसने इनका नशा नहीं देखा है इसलिए इसे कुछ भी अनुभव नहीं है और एक बार उनकी लत लग गई, तो दुनिया में उनके सिवा कुछ और नजर नहीं आएगा ,कहते हुए उसने, अपने लाल गुटखा खाए  ,दांत दिखाये।

 जब नितिन ने पहली बार 'कार्तिक चौहान 'को देखा था तो वह उसके बारे में जानता नहीं था, उसके माथे पर तिलक! उसका वह धीमे स्वर में बातचीत करना, उसे लग रहा था यह शायद ,अच्छा इंसान होगा , पूजा -पाठ करता होगा। हो सकता है, रोहित और सुमित से पीछा छुड़ाने में यह मेरी सहायता करें ,किंतु वह अपने रूप के विपरीत स्वभाव वाला व्यक्ति था। यह तो वही बात हो गई,'' हाथी के दांत दिखाने के और खाने के और होते हैं।'' गौरव ने जबरदस्ती एक कबाब का टुकड़ा उसके मुंह में ठूँस दिया , नितिन उसे उगल देना चाहता था, तभी एक लड़का बोला -अपने ''कार्तिक भाई ''ऐसे ही हैं, अच्छों  के लिए अच्छे और बुरों के लिए बुरे हैं। अपने लोगों का बहुत ही ख्याल रखते हैं इसीलिए तो आज तक उनकी बात को कोई टाल नहीं सका है।'' कार्तिक भाई ने कितना खर्च किया है ? सिर्फ हम लोगों के लिए ही तो....... वरना आजकल तो कोई एक रोटी भी न दे। 

 पी जाओ  !पी जाओ ! बेबसी से , नितिन अन्य लड़कों की तरफ देख रहा था सभी की दृष्टि इस पर टिकी थी जैसे उसे जबरदस्ती 'मांसाहारी 'बनाने के लिए ही, ये लोग यहां आए हैं। 

नितिन की जिंदगी यह किस मोड़ पर आ गई ? एक अच्छे भले और संस्कारी परिवार का लड़का , आज इतने सारे लड़कों में फंस गया है , एक तरीके से कह सकते हैं - बलात ही उसे,'सामिष 'बनाया जा रहा है। यह उसके चरित्र के साथ बलात्कार नहीं तो और क्या है ?नितिन अपने को ,इतने शैतानों के मध्य घिरा ,अपने को लाचार ,बेबस पशु की भांति समझ रहा था। यदि वह उनका विरोध करता भी है ,तब इन आठ -दस लड़कों का वह अकेले कैसे विरोध कर पायेगा ?

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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