Pagalpan ki had

'पागलपन की हद 'तो देखिए ,जनाब !

जब भी देखूं ,जगत !वो ही नजर आता है ,

नजर घुमाई ,तो.....  आंखों का सुरूर बन जाता है। 

जब देखूँ आईना !न जाने क्यों ? वो  दिख जाता है। 



यह मेरा प्रेम है ,या पागलपन ! 

जिधर देखूँ , वहीं हर तरफ नजर आता है। 

ख्वाबों ,ख्यालों में, उसका वर्चस्व नजर आता है। 

मैं मासूम सी हिरनी ,उसने प्रेम का अंकुश लगा रखा है। 


भूला चुकी, अपनी सुध -बुध !

बैरागी मन ,बावरा !उसके' प्यार में पागल 'हुआ जाता है। 

न जाने कौन सा अंजन लगाया ?डोरो में वही दिख जाता है। 

नजर लगे न...... उसको मेरी ,इसी से काजल लगा रखा है। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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