'पागलपन की हद 'तो देखिए ,जनाब !
जब भी देखूं ,जगत !वो ही नजर आता है ,
नजर घुमाई ,तो..... आंखों का सुरूर बन जाता है।
जब देखूँ आईना !न जाने क्यों ? वो दिख जाता है।
यह मेरा प्रेम है ,या पागलपन !
जिधर देखूँ , वहीं हर तरफ नजर आता है।
ख्वाबों ,ख्यालों में, उसका वर्चस्व नजर आता है।
मैं मासूम सी हिरनी ,उसने प्रेम का अंकुश लगा रखा है।
भूला चुकी, अपनी सुध -बुध !
बैरागी मन ,बावरा !उसके' प्यार में पागल 'हुआ जाता है।
न जाने कौन सा अंजन लगाया ?डोरो में वही दिख जाता है।
नजर लगे न...... उसको मेरी ,इसी से काजल लगा रखा है।