Shaitani maan [part 6]

नितिन , अपने शहर से, दूसरे शहर के कॉलेज में, स्नातक करने के लिए आया है। अच्छा कॉलेज समझ कर घरवालों ने उसका दाखिला उस कॉलेज में करवाया और वहीं छात्रावास में रहकर, वह अपनी शिक्षा पूर्ण करता है ,किंतु अभी उसे आए हुए ,ज्यादा समय ही नहीं हुआ है।  उसे नई -नई  परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है। यह भी कह सकते हैं -कि उसने ऐसा वातावरण कभी देखा ही नहीं ,परिवार से दूर रहकर, ऐसे लड़कों से मिला है, जो कहीं भी उसके परिवार या उसके संस्कारों से मेल नहीं खाते। इतना ज्ञान तो उसे है ,कि क्या सही है ,क्या गलत ?तब वह अपने कमरे के लड़कों से अलग रहने का प्रयास करता है क्योंकि उसकी नजर में ,वे लड़के सही नहीं है। उनसे अलग रहने के लिए ,कॉलेज वालों से प्रार्थना भी करता है ,अपना कमरा बदलवाने का प्रयास भी करता है किंतु उसे कोई अच्छा कमरा नहीं मिल पाया।हाँ ,ये बात अवश्य है , वहां के प्रोफेसर ने उसे, चेतावनी अवश्य दे डाली कि वह उन लड़कों से बचकर रहे। 


 एक दिन उनके कमरे में, एक नया लड़का आता है। उसके पहनावे, और रहन-सहन को देखकर नितिन को उम्मीद होती है, कि वह शायद, उन गंदे लड़कों से उसे छुटकारा दिलवाएगा किंतु नितिन के तो जैसे बुरे दिन चल रहे थे। वह लड़का भी, देखने में जितना, भद्र लग रहा था उतना ही उसका मन शैतान था। उसने व उसके साथियों ने नितिन को जबरदस्ती 'सामिष भोजन' कराने का प्रयास किया। प्रयास नहीं, जबरदस्ती उसे वह भोजन कराया। नितिन ने वह कबाब का टुकड़ा , गले से नीचे उतारा, तभी गौरव ने उसके मुंह पर, शराब का गिलास लगा दिया , उससे उसके गले में जलन सी होने लगी, वह जलन धीरे-धीरे गले से होती हुई पेट में उतरने लगी। वह महसूस कर पा रहा था, कि यह द्रव्य पदार्थ उसकी शरीर में, कहां-कहां तक जा रहा है ? उसके खाते ही ,सभी ने खुश होकर ताली बजाई ! और बोले -अब यह हमारी पार्टी में शामिल हो गया है। 

अपना ही बच्चा है , प्रेम से रहना है, अरे जिंदगी में कुछ भी नहीं है, सिर्फ मौज -मस्ती है। ज्यादा पढ़कर क्या हो जाएगा ? कहते हुए 'कार्तिक चौहान' उसके करीब आकर बैठ गया , और अपने हाथों से खिलाने लगा। तू एक 20 से 25000 की नौकरी करेगा और संपूर्ण जीवन, चिंता ,परेशानी ,उनसे मुक्त होने के लिए भटकता रहेगा किंतु तुझे मुक्ति नहीं मिलेगी इसीलिए इन चिंताओं से अभी से और आज से ही मुक्त हो जा, इन सबसे पहले से ही मुक्त हो जा ! खुश रह जीवन में कुछ नहीं रखा। पढ़ते -पढ़ते बूढ़ा जायेगा तब जाकर तुझे कोई सरकारी नौकरी मिलेगी। इस जवानी का क्या ?जो पढने और आगे बढ़ने की उधेड़बुन में ,कटती जा रही है। अरे यार ! ये उम्र मौज मस्ती की है ,इसे यूँ ही नही गंवाना है। 

अब तक नितिन को नशा हो चुका था ,बोला -भाई !मुझे लगता है ,तुम सही हो ,किन्तु मौज -मस्ती के लिए भी तो पैसा ही चाहिए। क्या तुम पैसा दोगे ?अचानक नितिन का लहज़ा बदल गया। 

वाह ,बेटे ! ये तो शीघ्र ही अपने रंग में रंगने लगा ,और क्या ?तुम्हारा ये भाई किसलिए है ? 

क्यों ?तुम्हारे पास बहुत पैसा है। 

नहीं ,बेटे !बहुत पैसा तो नहीं है ,किन्तु कमाना भी हम ही सिखाते हैं। आज इसके लिए यही सबक बहुत है। अब देखना धीरे -धीरे ये कितनी बुलंदियों पर जाता है ? ऐसे लोग ,सज्जन रहते हैं ,तो भी बहुत ईमानदारी से ,और बदमाश बनते हैं ,तो भी ईमानदारी से ,ऊँचे जाते हैं। 

बड़े भइया !इसका परिवार ऐसा नहीं है ,अपने बेटे को ऐसे गलत राह पर जाने नहीं देंगे ,सुमित ने शंका व्यक्त की।  उसका यह कहने का तात्पर्य अपने परिवार को सोचकर उसने कहा था क्योंकि उसके परिवार में उसके घरवालों को उसकी कोई परवाह नहीं वो चाहे जो भी करे किसी को कोई फ़र्क नहीं पड़ता।  

ऐसे होशियार बच्चे ! हर कार्य बहुत होशियारी से करते हैं। तुम परेशां न हो ,मैं सब संभाल लूंगा ,ये अभी नशे में है ,नशा उतर जाने ,अभी किसी नई लड़की की तरह नखरे दिखायेगा किन्तु अब इसे ज़िंदगी की रौनक दिखलानी है। जब इसे मजा आने लगेगा। अच्छा अब चलता हूँ ,तुम लोग जो भी खाना है ,खाओ -पियो !मौज करो !उसे भी कुछ और खिला देना और हवा में उड़ने दो ! इशारा करके बाहर निकल गया। 

सूर्यदेव !अपने समय पर ही उदय होते हैं किन्तु अभी तक नितिन नहीं उठा !जिस कमरे में नितिन सो रहा है ,उस कमरे में ,एक छोटी सी खिड़की है। उस खिड़की से धूप ,आँख -मिचौली खेल रही है क्योंकि बाहर हवा के झोंकों से खिड़की के पल्ले आगे -पीछे हो रहे हैं। इस कारण धूप की रौशनी अंदर आती और कभी उसे रास्ता नहीं मिल पाता किन्तु खिड़की के पल्लों की आहट से नितिन की नींद में खलल पड़ा और अंगड़ाई लेता है। करवट बदलकर ,अपने समीप छोटी सी मेज पर रखी घड़ी में समय देखता है। छोटी सुईं ,आठ पर और बड़ी सुईं छह पर थी। अधखुली आँखों से समय देख ,आँखें मींच लीं किन्तु जैसे ही उसका 'मानस पटल ''सक्रिय होता है। तेजी से आँखें खोलता है और उठ बैठता है किन्तु सिर में भारीपन महसूस हो रहा था। तभी उसे रात्रि की सम्पूर्ण बातें स्मरण हो आईं ,उसने नजरें उठाकर अपने आस -पास देखा। दोनों बिस्तर खाली थे ,आखिर ये दोनों कहाँ गए ? सर को झटककर जबरदस्ती अपने को सामान्य बनाने का प्रयास करता है। 

स्नानागार में जाकर ,सिर पर खूब पानी उड़ेलता है ,उसे वे सभी बातें स्मरण हो रहीं थीं ,कैसे ? कल रात्रि उसने मांसाहारी भोजन किया और शराब पी। घरवालों को पता चलेगा तो.......  उन पर क्या बीतेगी ?क्या उन्होंने मुझे ये कार्य करने के लिए ,इस कॉलिज में भेजा था। मुँह में बहुत सारा पानी लेकर उस गंदगी को निकाल देने का प्रयास करता है किन्तु निकाल न सका। आँखें मूंदकर नल के नीचे बैठा रहा ,अब दो ही परिस्थिति मेरे सामने हैं। या तो इन लोगों के साथ रहकर इन जैसा हो जाऊँ या फिर जो भी परेशानी मेरे सामने आ रहीं हैं ,उनसे पलायन कर जाऊँ। 

आखिर यह सब होने के पश्चात, नितिन क्या निर्णय लेता है ? वह अपनी आगे आने वाली जिंदगी के लिए, क्या सोचता है ? या फिर , अपनी शिक्षा अधूरी छोड़कर घर वापस चला जाता है। क्या यह है उसकी परेशानियों का अंत है ? मिलते हैं ,अगले भाग में-  शैतानी मन !

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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