Shaitani maan [part 4]

तभी सुमित, चाकू लेकर उसकी तरफ बढ़ा और बोला -तू कुछ ज्यादा नहीं बोल रहा है , तू क्या कहना चाहता है ? कि हमारे माता-पिता, हमसे मिलने नहीं आते। नहीं आते तो नहीं आते ,अरे ! तुझे क्या लेना ?

चाकू को देखकर नितिन डर गया था और बोला-मैं तो वैसे ही पूछ रहा था, जैसे आपस में दोस्त पूछते हैं ,बातें करते हैं।  अब मैं आप लोगों का ,' क्लासमेट 'हूं ,'रूममेट 'हूं ,पूछना तो बनता है। 

अरे !तू कबसे हमारा दोस्त बन गया ?और हमें पता ही नहीं चला ,कहते हुए सुमित हंसने लगा। ये चाकू है न....... सब उगलवा देता है। चल ! तुझे दोस्ती के नाते  छोड़ दिया किन्तु हमें छेड़ने का प्रयास मत करना। वह वापस आकर अपनी कुर्सी पर बैठ गया और बोला -तू ,हमारी जिंदगी में ,ज्यादा दखलअंदाजी मत कर....... हम जैसा रहते हैं, जीते हैं ,हमें जीने दे !



ठीक है ,जैसी  तुम लोगों की इच्छा ! कह कर नितिन चुपचाप अपनी बिस्तर पर लेट गया , आज उसने उन्हें बहुत अधिक कुरेद दिया था किन्तु समय का पता नहीं चलता ,कब, किसका  दिमाग़ ख़िसक जाये ?उसकी आँखों के सामने सुमित का चाकू लेकर आगे बढ़ना ,वही दृश्य उसके अंदर ख़ौफ पैदा कर रहा था। बाहर से अपने को मजबूत दिखला रहा था ,जैसे उस पर कोई फ़र्क नहीं पड़ा किन्तु अंदर से काँप रहा था। नितिन चुपचाप अपने बिस्तर से उठा और कमरे की घुटन से बाहर आ गया। वह खुली हवा में गहरी -गहरी सांसें लेता है। कुछ देर के लिए रोता है ,जब मन हल्का होता है ,तब बगीचे की तरफ टहलने निकल पड़ता है। 

कमरे के अंदर ,साला ! हमारा दिमाग खा गया, हम इसे तंग करने चले थे , किंतु लगता है, जैसे यह ही, हमें झकझोर रहा है। आखिर यह चाहता क्या है ?रोहित बोला। 

शायद, इस कमरे से निकल जाना चाहता है , यह सोचता है -कि हमें तंग करेगा या हमें भावुक कर देगा, हम उससे परेशान हो जाएंगे और फिर हम स्वयं ही उसे, इस कमरे से बाहर कर देंगे या हम ही बाहर चले जायेंगे। 

साला !जाएगा कहां ? अपने परिवार की रट रहती है ,इसे इसके घर ही भेज देते हैं। 

मुझे तो लगता है, यह हमें सुधारने आया है , या सुधारने का प्रयास कर रहा है। 

ये सुधरेगा ,न जाने कितने आये और चले गए ?हमने ही न जाने कितनों को सुधार दिया ?कहते हुए रोहित हंसने लगा। 

करने दो प्रयास ! हम तो अपने मां-बाप न सुधर सके, यह हमें क्या सुधारेगा ? बल्कि हम ही इसे बिगाड़ देंगे।  सुमित बोला -कहते हुए दोनों हंसने लगे। अच्छा आज शाम का क्या इरादा है ? इसी तरह चलेंगे ! मौज मस्ती करेंगे ! अरे यही तो जिंदगी है , इसके हम इस सबके आदि हो चुके हैं। 

तब तक नितिन कमरे में प्रवेश कर गया ,इसका क्या करना है ? रोहित ने नितिन की तरफ इशारा करके पूछा।  

पीछा करेगा तो,,,, कल की तरह ही हवामहल देखेगा, कहते हुए सुमित हंसने लगा। तभी जैसे किसी ने दरवाजा खटखटाया ,तीनों ही एक -दूसरे की तरफ देख रहे थे। सभी के चेहरों पर प्रश्न चिह्न था। चल दरवाजा खोल ! सुमित ,नितिन से आदेशात्मक लहज़े में बोला। 

नितिन का मन तो नहीं था किन्तु चुपचाप दरवाजे की ओर बढ़ गया ,अब कोई दरवाजा बड़े जोरों से पीटने लगा था ,जैसे उसे तनिक भी सब्र नहीं ,नितिन के दरवाजा खोलते ही ,एकदम से कई सारे लड़कों की भीड़ उस कमरे के अंदर आती चली गयी। उन्होंने यह देखने का भी प्रयास नहीं किया कि कोई दरवाजे पर भी खड़ा है या किसने दरवाजा खोला है ?

उस भीड़ को देखकर ,सुमित और रोहित प्रसन्न हो गए ,उन लड़कों के साथ आये ,एक लड़के को देखकर बोले -अरे !बड़े भइया !आप आ गए !

हाँ ,कैसे नहीं आता ?तुम लोगों की याद सता रही थी। नितिन ने देखा ,एक गौरा -चिट्टा तंदुरुस्त लड़का ,माथे पर तिलक ,साधकर कटी हुई दाढ़ी ,मिलिट्री कट सिर के बाल ,कुल मिलाकर उसका व्यक्तित्व बड़ा ही प्रभावशाली लग रहा था। मुझे भी उसे देखकर ,उस पर श्रद्धा हुई और लगा शायद ,यह लड़का मेरे काम का हो। उसका बोलने का लहज़ा धीमा और मधुर....... 

और सुनाओ ,भाई !कहाँ चले गए थे ?तुम्हारे बिना तो लग रहा था जैसे कॉलिज ही नहीं ,सब अधूरा सा लग रहा था, मन ही नहीं लग रहा था।

 धीमे -धीमे मुस्कुराते हुए वो बोला -क्या करें ?घर की भी परेशानियाँ हैं ,हम तुम्हारी तरह पैसे वाले तो नहीं हैं ,कमाना भी पड़ता है। 

क्यों ?क्या अपना धंधा ठीक नहीं चल रहा ?

इससे पहले की वो कोई जबाब देता ,उसकी दृष्टि नितिन पर पड़ गयी और बोला -ये नया लड़का कौन है ?

अरे ,भाई इससे मिलो ! ये पढ़ने में होशियार अपने परिवार का लाडला !माता -पिता का आज्ञाकारी ,जीवन में ,पढ़ -लिखकर उन्नति करने की सोचने वाला,ऊँची उड़ान भरने वाला ,इसका नाम नितिन है। बहुत ही धार्मिक प्रवत्ति का लड़का है ,भाषण अच्छा देता है ,इसके पास ज्ञान का भंडार है। तभी रोहित को शरारत सूझी और बोला -आते ही ,दीवार फांद गया  कहते हुए ढिठाई से हंसने लगा। 

 रोहित की बात सुनकर ,सभी लड़के हंसने लगे,वो तिलक लगा भाई भी हंसा और बोला -धोखे से चला गया होगा। हमारा ही भाई है ,इस कॉलिज में जो भी नया आता है ,उसे इस कॉलिज के नियम कहाँ मालूम होते हैं ? अब तुम लोगों को ,यहाँ इसीलिए तो छोड़ा है ,ताकि अपने नए भाइयों का विशेष ख़्याल रखो ! ये नए आने वाले छात्र ही तो हमारे काम को आगे बढ़ायेंगे किन्तु पहले उनकी 'लॉयल्टी 'जाँच लेनी चाहिए। क्या तुम लोग नहीं जानते ? रावण की लंका को ,एक वानर ने ही जला दिया था ,चेतावनी भरे स्वर में बोला। 

नितिन समझ नहीं पा रहा था ,ये जो नया लड़का आया है ,इसे क्या समझूं ? हमदर्द भी हो सकता है और दुश्मन भी !

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post