शाम के लगभग चार या पांच बज रहे थे, सूर्य देव अस्त होने की तैयारी में जुटे हुए थे। चिड़ियों की चहचहाट गूंज रही थी। सभी अपने-अपने घर जाने की तैयारी में व्यस्त थे। चतुर के दोस्त भी, अपने गांव की ओर रवाना हो चुके थे उन्हें वापस लौटने में , चार -पांच बज ही जाते हैं ,क्योंकि कॉलेज की छुट्टी 3:00 बजे होती है उसके पश्चात वे लोग ,कॉलेज से बाहर निकलते हैं और बाजार से ,घर के लिए भी कुछ सामान ले लेते हैं।घरवालों को मालूम है ,बच्चे बाहर जा रहे हैं तो कोई न कोई आवश्यक सामान उनसे ही लाने के लिए कह देते हैं ताकि लौटते समय वह सामान लेकर लौटें जो गांव में नहीं मिलता। इसी कारण वापस लौटने में ,उन्हें चार-पांच बज ही जाते हैं। आज भी वे लोग, बातचीत करते, अपने गांव की तरफ रवाना हो रहे हैं। मौसम भी बरसात के जैसा हो रहा है, किंतु बरसात नहीं हुई है। मयंक देख ! मौसम !कितना सुहावना हो रहा है ?
हमें शीघ्र घर पहुंचना चाहिए वरना हम रास्ते में ही भीग जाएंगे। ऐसे में तबीयत बिगड़ने का भी डर रहता है।
तू बिल्कुल भी सौंदर्य प्रेमी नहीं है, कितना सुहावना मौसम है ? अब तक इतनी गर्मी और धूप से झुलस् रहे थे। किंतु आज मौसम कितना अच्छा लग रहा है ? इन प्राकृतिक नजारों का आनंद लेना चाहिए।
सभी मित्र हंसी -मजाक करते हुए, आगे बढ़ रहे थे, जैसे ही गांव नजदीक आया , कुछ चहल-पहल नजर आ रही थी।राह में ,फूलों की लड़ियाँ सजी दिखलाई दे रही थीं। कीचड़ और गंदगी की बदबू से अलग खुशबू फैल रही थी। उस सुगंध के कारण ,मन प्रफुल्लित हो गया। यार !मुझे लगता है ,आज किसी ने कोई कार्यक्रम रखा है, तन्मय बोला।
तुझे कैसे लगा ?
तू देख नहीं रहा ,बाहर कैसे टेंट लगा हुआ है ? और ये फूलों की सजावट !क्या तुम में से किसी को पता है ? आज यहां कोई कार्यक्रम होने वाला है।
यार !किसी की सगाई वगैरहा तो नहीं है , मुझे तो लगता है अपने यार की ही सगाई है, इसलिए आज उसने छुट्टी ली है।
तू भी ,कैसी बातें करता है ? यह कार्यक्रम किसी और का ही होगा।
जिसका भी है, लेकिन यहां हो क्या रहा है ?
यह तो वहां जाकर ही पता चलेगा ? आज तो दावत पक्की! प्रसन्न होते हुए मयंक बोला। वे लोग गांव में प्रवेश करके अपने घर की गलियों की तरफ नहीं मुड़ते बल्कि उस टेंट की तरफ बढ़ जाते हैं। वहां पर पहले से ही, बहुत सारे गांव वाले इकट्ठा हुए हैं। सबने अपनी -अपनी साइकिल खड़ी की, और आगे बढ़ चले। एक गांव के लड़के से पूछा -यहां क्या हो रहा है ?
यहां' गणेश जी 'का मंडप सजा है , सभी गांव वालों के लिए, और गांव की उन्नति के लिए अबकी बार शहरों की तरहभगवान ' गणेश जी' का पंडाल सजा है। सभी दोस्त उसकी बात सुनकर, एक दूसरे को देख रहे थे। यह सब तो उनकी योजना थी फिर अकेले यह सब किसने किया ? इतनी अच्छी रंगोली किसी को बनानी नहीं आती थी इसीलिए चतुर ने ही डिब्बे ढक्कन आदि को माध्यम बनाकर अपनी तरफ से सुंदर रंगोली बनाने का प्रयास किया। गणेश जी के स्वागत में, उनके लिए ऊँचा सिंहासन लगाया गया। फल -फूल, धूप -दीप से उनकी पूजा की गयी।
यार !यह तो अपना, चतुर ही मुझे लग रहा है ,धोखा दे गया , हमें कॉलेज भेजकर, स्वयं पुण्य कमा रहा है। चलो !अंदर चलकर देखते हैं। बाहर जूते निकालकर, सभी उस पंडाल के अंदर प्रवेश करते हैं। वहां का नजारा देखते ही, उनकी आंखें, चकाचौंध हो जाती है कितना सुंदर प्रबंध किया गया है। गांव में ऐसा सुंदर प्रबंध आज तक किसी ने नहीं किया था। एक ऊंचे से सिंहासन पर, गणपति जी की प्रतिमा रखी थी, और उस पर लाइट जगमग कर रही थी। तभी तन्मय को पंडित जी दिखाई दिए , तन्मय ने पंडित जी से पूछा -पंडित जी !यह सब किसने किया ?
पंडित जी ,को जैसे कोई प्रसन्नता नहीं थी, वह शायद किसी बात से क्षुब्ध थे बोले -और कौन हो सकता है ? वही श्रीधर का लौंडा चतुर, वही इस गांव में 'अनहोनी रीत 'करता है।
'अनहोनी रीत' कैसे ? सुशील बोला।
आज तक भगवान की पूजा मंदिर में ही हुई है ,किंतु अबकी बार उसने इस चौपाल पर मंडप सजवाया है। यह अनहोनी रीत नहीं तो और क्या है ? भगवान अपने घर में नहीं विराजेंगे बल्कि यहां चौक में आगमन करवाया है।
कुछ समझे दोस्तों ! चतुर ने इस कार्य में हमें शामिल नहीं किया, सारा श्रेय अपने ऊपर ही ले जाना चाहता है। ताकि गांव वाले समझे कि वही एक गांव का भला समझने और चाहने वाला इंसान है। चिराग अपने बाकी के मित्रों को भड़काते हुए बोला।
अभी वो लोग इसी विषय पर चर्चा कर रहे थे, तभी उन्हें चतुर मंडप की ओर ही आता दिखलाई दिया। अरे वह आ रहा , उससे ही पूछ लेते हैं ,उसने हमारे साथ ऐसा क्यों किया ? सारे पुण्य का भागीदार वही बनना चाहता है।
जैसे ही, चतुर में मंडप में प्रवेश किया , सभी दोस्त उसको ही घूर रहे थे , अपने दोस्तों को देखते ही चतुर मुस्कुरा दिया और बोला - मुझे मालूम था ,तुम सारे कमीने यहीं मिलोगे ,सरप्राइज कैसा लगा ? दोस्तों!
कमीनापन !तूने दिखलाया या हमने ,तो आज तूने इसलिए छुट्टी ली थी, और हमसे झूठ बोला। हमारी क्या योजना थी कि हम मिलकर यह सब कार्य पूर्ण करेंगे किंतु तू तो अपने को महान दिखलाना चाहता है न...... क्रोधित होते हुए सुरेश बोला।
यह सब हमारा ही है, जब भगवान सबके हैं, तो मैं करने वाला अकेला कैसे हो सकता हूं ? दरअसल, कल मैं अपने पिता से बात कर रहा था। तब उन्होंने कहा -कि पुण्य का कार्य है ,गांव में आज तक ऐसा कुछ नया हुआ नहीं है। पूजा -पाठ के कार्य में मैं ,तुम्हारा सहयोग करता हूं। अब मैं पापा को इंकार तो नहीं कर सकता था। तब मैंने सोचा ,कि हम सब दोस्तों के पास ,इतना पैसा भी नहीं है , अगर पापा का थोड़ा सहयोग हो जाता है ,तो इसमें क्या बुराई है ? यदि तुम्हें अपना सहयोग देना है , तो तुम अपनी धनराशि इस 'दान पात्र 'में दे सकते हो। मैं इनकार नहीं करूंगा। पूजा -पाठ करो !गांव में इसीलिए तो लगवाया है, ताकि हर कोई बिना रोक-टोक आ जा सके वरना पंडित जी तो मुझसे नाराज हो रहे थे। उनका कथन था, कि भगवान की स्थापना, मंदिर में ही होनी चाहिए क्योंकि उन्हें दान -दक्षिणा जो भी आती है उनका ही होता किंतु यहां, जो भी दान -दक्षिणा आएगी , उससे गांव के स्कूल को या चिकित्सा केंद्र को धनराशि दी जाएगी , मैंने यह सोचा है, बाकी तुम मेरे मित्र हो ,तुम बता सकते हो, कि हमें क्या करना है ,क्या नहीं ? क्यों मयंक ठीक रहा हूँ न...... चतुर ने पूछा।
हां ,हां बिल्कुल ठीक है,
और दोस्तों ! एक बात और बताना चाहता हूं , अगली साल जो गणपति आएंगे उसमें हम सभी दोस्त मिलकर, तैयारी करेंगे क्योंकि अब इतना ज्यादा समय नहीं था। वरना मैं तो यही सोच रहा था -गांव में ही मूर्ति बने और हम सबके हाथों से ही उसकी स्थापना हो। सभी दोस्त चतुर के व्यवहार से अचंभित होने के साथ-साथ, उससे नाराज भी थे किंतु उससे बात करके उनकी नाराजगी भी समाप्त हो गई।