नितिन जब अपने कमरे में पहुंचा , सुमित और रोहित दोनों जगे हुए थे ,उसे देखकर मुस्कुराये और बोले -ज्ञानी बाबा ! आ गए ! नितिन ने कोई जबाब नहीं दिया और अपनी किताबें मेज पर रखकर ,अपने बिस्तर पर आराम करने के लिए लेटने ही जा रहा था। तभी उसे जैसे बहुत तेज कुछ चुभा ,वह अपने बिस्तर से एकदम से उठकर बैठ गया और अपने बिस्तर पर बिछी चादर को ध्यान से देखने लगा। उसमें कुछ उसे नुकीला सा नजर आया। मेरी चादर के अंदर यह क्या है ? यह देखने के लिए, उसने अपने बिस्तर की चादर, उतार फेंकी। यह देखकर उसे आश्चर्य हुआ कि उसके बिस्तर के नीचे ,बहुत सारे कांटे बिछे थे। इतने सारे कांटे कहां से आए ? कौन इन्हें लाया होगा और किसने बिछाये होंगे ?सोचते हुए ,उसने सुमित और रोहित की तरफ देखा।
सुमित ने अनजान बनते हुए पूछा -क्या हुआ ?तुमने अपनी चादर क्यों उतार दी ?
तुम देख तो रहे हो , मेरे बिस्तर की चादर के नीचे, कितने सारे कांटे छुपे थे ? किसकी यह हरकत हो सकती है ? उन दोनों की तरफ देखते हुए नितिन ने पूछा।
इसमें हम क्या कह सकते हैं ? हमें क्या मालूम ! किंतु वह कहावत सुनी है ,न.......'' जैसा बीज बोओगे , वैसा पाओगे'' रोहित ने मुस्कुराते हुए जवाब दिया -यदि तुम अपनी राह में कांटे बो रहे हो ,तो कांटे ही तो मिलेंगे।
यार ! मैंने किसकी राह में कांटे बो दिए ?नितिन ने झल्लाते हुए पूछा।
सही मायने में देखा जाए, तो हम तुम्हारी कक्षा में पढ़ते हैं , किंतु हम तुम्हारे सीनियर हैं ,हम तुमसे पहले से यहां आए हुए हैं। तुमने हमारे किस्से सुने ही होंगे। किंतु तुम अभी हमें ठीक से नहीं जानते हो।
मुझे किसी को जानने की जरूरत भी नहीं है, और न ही मैंने कोई किस्सा सुना है, तो यह सब तुम लोगों की हरकत है, तुम लोग मेरे साथ क्या करना चाहते हो ?लगभग अपनी आवाज को बढ़ाते हुए बोला किन्तु चिल्ला न सका।
रैगिंग ! दोनों एक साथ बोल उठे, हम तुम्हारी कक्षा में हैं, इसलिए हम तुम्हारे साथ रह रहे हैं ,किंतु हम तुमसे सीनियर हैं , इसलिए यह तो यह हमारा हक़ बनता ही है।
तभी ,यह तुम लोगों की ही हरकत है, पूर्ण विश्वास के साथ बोला ,मुझे क्यों परेशान कर रहे हो ?
हम तुम्हें कहां परेशान कर रहे हैं ? तुम अपने आप परेशान होने के लिए, आतुर हो रहे हो।
क्या मतलब ?
सीधा सा जबाब है, तुम हमारे कमरे में आए ,हमने तुमसे कुछ नहीं कहा। हमने सोचा -नया -नया लड़का है आएगा और धीरे-धीरे समझ जाएगा। हो सकता है ,हमारे रंग में ही रंग जायेगा। हमें ही अपना बड़ा भाई या मित्र मान लेगा , किंतु तुम जब से आए हो, हमारे पीछे पड़े हो। कभी हमारे प्रोफ़ेसर से हमारी शिकायत करते हो। कभी हमारा पीछा करते हो। कभी कमरा बदलने की बात करते हो। क्या तुमने हमें बेवकूफ समझा हुआ है ? हमारी भलमनसाही का फायदा उठा रहे हो कहते हुए दोनों हंसने लगे।
यानी कि ये हरकत तुम दोनों की ही है।
हां,अब क्या लिखकर दें ?हमारे सिवा तुम्हें यहाँ दूसरा कोई नजर आ रहा है ,और एक बात और सुन लो ! यह तो 'ट्रेलर' है , ज्यादा तीन -पांच की , तो इससे भी बुरा हो सकता है।
मैं तो आप लोगों को तंग करना ही नहीं चाहता था , इसीलिए मैं सोच रहा था -क्यों ?तुम्हारी जिंदगी में खलल डालूँ , इसीलिए मैंने सोचा -क्यों न, अपना कमरा ही बदल दूं। इसीलिए मैं सर से बार-बार कह रहा था ,नितिन अपने तेवर बदलते हुए बोला। उसे लग रहा था -यदि यह लोग बिगड़ गए, तो मेरा कुछ भी बुरा कर सकते हैं। तुम लोग भी कमाल हो ,कितनी मेहनत करते हो ? इतने सारे कांटे कहां से लाये ? वह भी सिर्फ मुझे तंग करने के लिए, कितना परिश्रम किया होगा ?एक-एक कांटा चुना होगा ? तब जाकर बिस्तर पर बिछाये होंगे ,तभी इतने सारे कांटे मिले।
उसके बदलते तेवर को देखकर ,दोनों एक दूसरे का मुंह देखने लगे , आखिर यह कहना क्या चाहता है ? या फिर हम लोगों के कारण अपना पैतरा बदल रहा है, इस एहसास हो गया होगा ,कि हमसे पंगा लेना ठीक नहीं।
नितिन ने चुपचाप चादर के नीचे से वह कांटे, साफ किये दोबारा चादर बिछाई और लेट गया। तब नितिन बोला-मैंने कल रात्रि में एक स्वप्न देखा , कुछ लोग कॉलिज की दीवार पार करके बाहर जा रहे थे , मैंने शायद स्वप्न में ही ,उनका पीछा भी किया। उनका पीछा कर ही रहा था ,न जाने वे लोग कहाँ ग़ायब हो गए ? उन्हें ढूंढते हुए ,मैं एक स्थान पर बैठ गया। मैंने वहां एक गिलास पानी पिया फिर मैं न ,जाने कैसे बेहोश हो गया ? सुबह को देखा तो मैं अपने बिस्तर पर ही था। क्या वह स्वप्न था या सच !
क्या यह तू हमें बता रहा है ,या हमसे पूछ रहा है।
आज मैं कॉलेज जाने में भी लेट हो गया, तुम लोग भी नहीं आए।
कई साल से वही विषय पढ़ रहे हैं, अब जाने की जरूरत ही नहीं ,अब तो हमें इतनी जानकारी हो गयी है , हम स्वयं ही प्रोफेसर को पढ़ा दें , वह तो न जाने कैसे हम फेल हो जाते हैं ?
फेल नहीं होते ,वो प्रोफेसर ही जानबूझकर ,हमें फेल करता रहता हैं ,कहीं हम उसकी जगह न ले लें ,दोनों ढिटाई से हंसने लगे।
फिर अपने घर क्यों नहीं चले जाते ?
घर में हमारा कौन है ? आज तुझे एक ज़िंदगी का तजुर्बा दें -'सब रिश्ते स्वार्थ से जुड़े हैं , किसी को हमारी कोई परवाह नहीं है, वे भावुक हो चले थे किंतु तुरंत ही अपने को संभाल कर बोले -तुम्हें इस बात से क्या लेना देना ? हम अपने घर रहे या न रहे, तुम कौन होते हो हमसे ये सब पूछने वाले......
नहीं ,मैं तो वैसे ही कह रहा था, सबके माता-पिता अपने बच्चों से मिलने आते हैं, अपने बच्चों से प्रेम से मिलते हैं ,बातें करते हैं और एक अच्छी याद छोड़ जाते हैं।
नितिन उनसे बचकर भी रहना चाहता है किन्तु मुँह से कुछ न कुछ निकल भी जाता है ,अपने को संभालता भी है ताकि उससे नाराज न हो जाएँ ,आखिर उनमें दोस्ती होगी या दुश्मनी जानिए -अगले भाग में