Rasiya [part 52]

छुट्टी होने के पश्चात सभी दोस्त, अपनी-अपनी साइकिलों पर ,अपने -अपने घर की ओर रवाना हो गए। जब सभी मित्रगण साथ में चलते हैं, तब कुछ न कुछ किस्सा भी सुनाने लगते हैं या कोई न कोई बात स्मरण हो आती है। आज सतीश ने सबसे पूछा -यार ! तुम लोग जानते हो , ''लाल बाग का राजा ''कौन है ?

हमने तो यह कभी नहीं सुना, यह तूने कहां से पढ़ा ? आजकल राजे - राजवाड़े कहां रहे ? राजाओं -बादशाहों की हुकूमत पहले होती थी , किंतु आज कहां ? तू  कौन से  जमाने की बात कर रहा है  ?

इसी जमाने की बात कर रहा हूं। अब तो सतीश को विश्वास हो गया था , ''लाल बाग के राजा'' को इनमें से कोई नहीं जानता, इस बात पर उसे गर्व भी हो रहा था इस चीज की जानकारी सबसे पहले उसे ही हुई। अब तो वह शर्त लगाने के लिए भी तैयार हो गया। अच्छा यह बताओ !सुबह जो हम देख रहे थे ,वह क्या था ? उसने जानबूझकर ''गणपति बप्पा मोरिया ''नहीं कहा, क्योंकि उसे डर भी था ,कहीं उन्हें कुछ बात स्मरण न हो जाए। 



सुबह हमने क्या देखा ?एक जुलूस देखा, शायद , उन लोगों की कोई रस्म होगी तन्मय  बोला। 

अब तो, सतीश को पूर्ण विश्वास हो गया इनमें से कोई भी, इस विषय में नहीं जानता , तब वह कहता है -जो भी मेरे प्रश्न का उत्तर दे देगा उसे मैं इनाम की अपनी राशि में से, ₹50 इनाम दूंगा। 

इनाम का नाम सुनते ही सभी, अपने दिमाग के घोड़े दौड़ाने लगे, किंतु चिराग बोला -पक्का ! तू ₹50 देगा, अपनी बात से मुकरेगा तो नहीं , उसके इतना कहते ही सतीश की हालत खराब हो गई। उसे लगा -यह  जानता है मेरे ₹50 चले जाएंगे या फिर यह पढ़ कर बतायेगा। 

हकलाते हुए बोला - हां ,हां किंतु जवाब मैं, अभी चाहता हूं , बाद में कोई नहीं चलेगा। 

मैं तेरे प्रश्न का जवाब देना चाहूं तो अभी दे सकता हूं ,किन्तु मैं जबाब दूंगा नहीं, दिखलाऊंगा। 

मतलब ! यह क्या बात हुई ? जब हमने प्रश्न पूछा है ,तो प्रश्न का जवाब भी सीधे-सीधे मिलना चाहिए या नहीं। 

कह  तो तू सही रहा है लेकिन मैं सोच रहा था -सबको ''लाल बाग के राजा ''का दर्शन ही करवा देता हूं।

नहीं ,नहीं यह नहीं चलेगा , अब तो सतीश घबरा गया, उसे अपने ₹50 जाते नजर आ रहे थे , उसे लगा, यह कहीं से पढ़ लेगा। कहीं से  ढूंढ कर , तब बतलाएगा।

मैं तेरी घबराहट समझ रहा हूं, देख मैं अभी तेरे सामने ही हूं , कहीं गया नहीं हूं , तुम लोग भी मेरे साथ हो न......

 हां ,हम तेरे साथ ही चल रहे हैं ,समवेत स्वर उभरा।  

बस, कुछ दूरी और पार करनी है, उसके पश्चात ''लालबाग के राजा '' के दर्शन होंगे। तुम अपने ₹50 पक्के रखना। 

अब तो मन ही मन सतीश घबरा रहा था ,मैंने व्यर्थ में ही, शर्त लगा ली ,किंतु यह तब बीच में नहीं बोला ,अब बोल रहा है। 

हमें कुछ बतायेगा भी ,या यूं ही पहेलियां बुझाता रहेगा , तन्मय ने उतावलेपन से पूछा। 

वह सामने देख रहे हो न....... वहीं पर वह राजा रहता है। 

वह तो एक मंदिर है। 

वही तो ''लालबाग के राजा ''रहते हैं। 

नहीं, नहीं, मैं इस बात पर विश्वास नहीं करता, यह तो हमारा गांव है , मैं जिस राजा की बात कर रहा हूं, वह तो और कहीं रहता है, जानबूझकर सतीश ने महाराष्ट्र का नाम नहीं किया , ताकि उसे तनिक भी जानकारी हो, तो सबको बतला ना दे। 

चिराग बोला -वो सब  जगह का राजा है ,बस इन दिनों में ,उसकी छटा अद्भुत होती है और वो महाराष्ट्र में अधिक दिखलाई पड़ती है। क्योंकि वहीं पर ''लाल बाग़ ''है ,इन दिनों में दस दिनों के लिए वहीं के राजा कहलाये जाते हैं ?सभी उनकी पूजा करते हैं और आशीष पाते हैं ,वे गणपति ही हमारे '' विघ्न हर्ता गणेश ''ही तो हैं। ला ,अब  निकाल मेरे पचास रूपये !

हाँ ,हाँ अभी क्या मेरे पास यहीं पर हैं ,किन्तु ये बता !तुझे यह सब कैसे मालूम ?

एक जगह मैंने ''गणेश चतुर्थी ''के विषय में पढ़ा ,तब उसके विषय में विस्तार से जानना चाहा और तभी मुझे पता चला ,जैसे हम लोगों के यहाँ नवरात्रों पर देवी का आगमन होता है और हम लोग दीवारों पर 'सांझी 'लगाते हैं ,इसी तरह ही ,उनके यहाँ गणपति जी बुलाये जाते हैं ,जो दस दिनों के लिए मेहमान बनकर आते हैं। प्रसाद बनता है ,लोग मिलने आते हैं ,उनका आशीर्वाद लेते हैं ,उनकी पूजा करते हैं ,खूब मजा आता है। कुछ पढ़ भी लिया करो ! किताबों में सब लिखा होता है किन्तु जो ध्यान नहीं देते ,उनसे ये बातें छूट जाती हैं। 

इस बात से मुझे एक बात मेरे दिमाग आई ,क्यों न हम भी ,अबकी बार गणपति को बुलाते हैं ,और पूरा गांव देखने आएगा। पूजा होगी ,खूब मन लगेगा चतुर बोला। 

किन्तु गणपति किसके घर पधारेंगे ?

घर पर नहीं ,इस गांव में आएंगे। 

क्या मतलब ?

मतलब क्या ये पूरा गांव ही ,हमारा घर ही तो है ,वे सम्पूर्ण गांव को आशीर्वाद देंगे। कोई ऐसी जगह सोचो !जहाँ उन्हें स्थापित किया जाये।

 गांव का वही मैदान जहाँ हम खेले थे ,सुशील बोला।  

नहीं, वो तो बहुत बड़ा हो जायेगा फिर बड़ी मूर्ति और पंडाल भी बड़ा ही चाहिए। 

सारी बातें सोच लीं किन्तु ये नहीं सोचा -मूर्ति कहाँ से लाएंगे ?

हाँ ये भी है ,मुझे तो नहीं लगता यहाँ कोई अच्छी मूर्ति बनाना जानता होगा ,बना तो सकते हैं किन्तु अब इतना समय ही कहाँ है ? मूर्ति को बनने में समय लगता है ,रंग -रोगन ,फिर सूखना !

तब क्या करें ?अबकि बरस ये विचार त्याग देना चाहिए ,अगले बरस सोचेंगे। 

नहीं ,इसी बरस मन में विचार आया है तो इस बार ही बुलाएँगे। चलो !अब हमारा गांव आ गया ,सभी कुछ न कुछ उपाय और जगह सोचकर रखना,कैसे और क्या करना है ?शाम को मिलते हैं। कहकर सभी आगे बढ़ गए। 

तब मयंक ने चतुर से पूछा -मूर्ति के लिए पैसे ,पंडाल के लिए सामान कहाँ से आएगा ?

तुम भी ये सब सोचकर रखना कम खर्चे में ,अधिक से अधिक कार्य पूर्ण हो सके ऐसा कोई उपाय करना ,लो !अब तुम्हारा घर आ गया ,कुछ न कुछ जुगत तो लगानी ही है।

मयंक उसकी साइकिल से उतरा और घर की ओर बढ़ गया किन्तु मन ही मन सोच रहा था ,कहीं ये उन जीते हुए पैसों का ही उपयोग करने के लिए ही  न कहने  लगे। मैं अपने पैसे नहीं दूंगा ,कह दूंगा -खर्च हो गए। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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