Sazishen [part 97]

न्यायालय में ,न्यायधीश के सामने ,एक लड़का और एक लड़की दूल्हा -दुल्हन के वेश में बैठे हैं , उनके साथ दो -चार लड़के -लड़की और लड़की की तरफ से उसकी माँ और लड़के की तरफ से उसके पिता गवाह के रूप में बैठे हैं। सभी के चेहरों पर प्रसन्नता है। बेसब्री से एक -दूसे की तरफ देख रहे हैं। वह अधेड़ उम्र व्यक्ति लड़की की माँ से बोला -बेटे की  इस तरह शादी कुछ अच्छा नहीं लग रहा है।  

भाईसाहब ! एक बार विवाह हो गया ,तो क़ानूनी तौर पर तो ये........  पति  -पत्नी हो ही जायेंगे ,उन बच्चों की तरफ देखते हुए ,वह बोली -अब ये जहाँ भी रहता है ,नई बहु के लिए आप उसे घर में वापस लाने के लिए विवश कर ही सकते हैं और एक बार घर आ गया तो रिश्तेदारों के सामने ,मिलने -जुलने वालों के सामने ,पूरे तामझाम !शानोशौक़त से इनके विवाह का आयोजन कर दीजियेगा ! 


कह तो आप सही रहीं हैं ,हो सकता है ,इस बहाने घर के बहु -बेटे घर वापस लौट आएं और घर में फिर से रौनक हो जाये। 

इसी उम्मीद से ,मैं इस तरह विवाह के लिए तैयार हुई थी। अब तक यह लोग, वकील की प्रतीक्षा में खड़े थे, बड़ी शीघ्रता दिखलाते हुए वकील ने भी ,अंदर प्रवेश किया। न्यायाधीश को देखकर बोले -क्षमा कीजिए !जज साहब !आने में थोड़ी देरी हो गई। 

हम क्यों साहब होने लगे? साहब तो ,आप लोग हैं , इतने आराम से घर से निकलकर आते हैं, जज ने वकील पर व्यंग्य  किया। 

नहीं, नहीं, सर आगे से गलती नहीं होगी, शीघ्र आने का प्रयास तो बहुत अधिक किया था किंतु अचानक पिता की तबीयत बिगड़ जाने के कारण देरी हो गई। 

कोई बात नहीं, अब आप जो भी आपको कार्य करना है आप शीघ्र अतिशीघ्र कराइये ! उस महिला ने इस वार्तालाप को वहीं रोकते हुए कहा। 

मुझे आप बताइए ! आपका नाम क्या है ?वकील ने लड़की की तरफ देखते हुए पूछा। 

मैं कल्पना सक्सेना !

और आप ! लड़के की तरफ इशारा करते हुए पूछा। 

मैं तुषार !

सिर्फ तुषार !

जी ,तुषार ही लिखता हूं। 

आपके पिता !

जी मैं , पीछे बैठे हुए, तुषार के पिता ने हाथ उठाया और बोले -जी मैं तुषार का पिता ''जावेरी प्रसाद '' हूँ , वकील ने दोबारा उन्हें नजर भर कर देखा, कुछ कहने ही वाला था ,तभी उनके बराबर में जो महिला बैठी थी,बोल उठी -मैं ''नीलिमा सक्सेना ''कल्पना की मां !

जी, उसने रजिस्टर में कुछ लिखा और बोला-अब दोनों बच्चे आकर, इस रजिस्टर पर अपने हस्ताक्षर कर दीजिए। तुषार और कल्पना ने, एक दूसरे को अंगूठी पहनायी और एक- दूसरे को माला पहनाई, उसके पश्चात दोनों ने उस रजिस्टर पर अपने-अपने हस्ताक्षर कर दिए। 

बधाई हो !अब आप दोनों कानूनी तरीके से पति-पत्नी बन गए हैं। जज और वकील ने बधाई दी ! अब सभी उस स्थान से बाहर आ गए , तब ''जावेरी प्रसाद ''जी बोले -बेटा, चलो !बहू को लेकर, अपने घर चलते हैं। 

तभी वकील बाहर निकलकर आया, और 'जावेरी प्रसाद जी' के करीब आकर बोला -कहीं आप वही'' जावेरी प्रसाद तो नहीं''

जी आप सही समझ रहे हैं , 'जावेरी प्रसाद जी ''ने नजरें  झुकाते हुए कहा। उनका परिचय जानकर वकील तो अत्यंत प्रसन्न हुआ, उसे उम्मीद थी, कि मोटी रकम मिलेगी किंतु 'जावेरी प्रसाद 'जी बोले-आजकल के बच्चों की जिद के कारण झुकना पड़ जाता है। खैर !कोई बात नहीं , जब धूमधाम से कार्यक्रम होगा आपको भी बुलाया जाएगा। अभी समय की मांग यही थी। तुषार और कल्पना अपनी तस्वीर ले रहे थे, तभी नीलिमा ने उससे कहा -पहले अपने बड़ों का आशीर्वाद लो ! वह तुम्हारे ससुर हैं , उनके पाँव छुओ !

कल्पना ने तुषार को, तस्वीर लेने से, रोका  और आगे बढ़ गई और बोली -आओ !पापा जी !से आशीर्वाद ले लेते हैं, जैसे ही उन दोनों ने' जावेरी प्रसाद 'के पैर छुए , वो भावुक हो उठे, सच में ,आपने अपनी बिटिया को बहुत अच्छे संस्कार दिए हैं। अब उनका साहस और बढ़ गया और बेटे से बोले -चलो ! अब अपने घर चलते हैं। 

अपने घर ही जा रहा हूं, कहते हुए तुषार दूसरी गाड़ी में बैठ गया, साथ में उसके अन्य दोस्त भी थे किंतु कल्पना गाड़ी में नहीं बैठी और बोली -तुम क्या अपने दोस्तों के संग जा रहे हो ? अब यह मत भूलो ! कि मैं भी तुम्हारे साथ हूं। 

हां ,हां आओ, बैठो ! तुषार ने अपना हाथ आगे बढ़ा दिया। 

''जावेरी प्रसाद जी'' परेशान सी हालत में खड़े थे, ड्राइवर उनकी प्रतीक्षा में खड़ा था और वह आशा भरी नजरों से अपने बेटे की तरफ देख रहे थे। तब कल्पना बोली -तुम्हें इस गाड़ी से उतरना होगा , हम दोनों पापा के साथ, उनके घर जाएंगे। 

यह बात सुनकर तुषार ,एकदम से नाराज हो गया, यह तुम कैसे बात कर रही हो ? तुमसे मैंने पहले ही बता दिया था कि मैं एक किराए के मकान में रहता हूं और जितनी मेरी आमदनी है ,उसमें ही तुम्हें और हमें साथ रहना है। 

मैं कब मना कर रही हूं ? किंतु आज के लिए पापा हमें अपने घर बुला रहे हैं , हमसे बड़े हैं , हमें उनका मान तो रखना चाहिए या नहीं।उनके अपने ही' वाहन चालक 'के सामने उनका अपमान कर रहे हो ! वह देखो ! किस तरह से परेशान खड़े हैं ? हमारी आपस की या उनकी तुमसे कोई भी, परेशानी हो सकती है। तुम्हें मिलने में आपत्ति हो सकती है , किंतु यह सब हमें बाहर वालों को दर्शाना आवश्यक नहीं , अभी पापा हमें बुला रहे हैं, हमें उनके साथ जाना चाहिए। उनका मान भी रह जाएगा और हम वापस भी आ जाएंगे। यह बात तुषार को उचित लगी। 

अभी नया-नया विवाह हुआ है , पत्नी की इतनी छोटी सी मांग तो मैं पूरी कर ही सकता हूं। कहते हुए वह गाड़ी की तरफ बढ़ गया। नीलिमा और कल्पना के चेहरे पर मुस्कान थी, साथ ही 'जावेरी प्रसाद जी 'भी उनका तहे दिल से धन्यवाद कर रहे थे। आज उनके कारण उनका बेटा, घर वापस लौट रहा है , हालांकि वह लौटने के लिए नहीं जा रहा था बल्कि अपना थोड़ा सामान, और वापस आने के लिए जा रहा था। बहु -बेटे के गाड़ी में बैठते ही, जावेरी प्रसाद जी अत्यंत प्रसन्न हो गए और वह भी गाड़ी में आगे की सीट पर बैठ गए। नीलिमा, अपनी बेटी को विदा कर रही थी , और वह प्रसन्नता पूर्वक अपनी ससुराल भी जा रही थी। 

तभी कल्पना बोली -मम्मा ! आप भी, हमारे साथ आईये !

उसकी बात सुनकर नीलिमा हंसने लगी और बोली -तुम्हारा विवाह हुआ है और मैं तुम्हें विदा कर रही हूं , साथ में मायें थोड़े ही जाती हैं। यह सब इतना शीघ्र तय हुआ अभी तो तुम्हारी बहन आएगी , तब उससे चार बातें सुनने को मिलेंगीं, अभी तुम खुशी-खुशी अपने घर जाओ ! और वहां सब पर अच्छे से सब संभालना। 

कल्पना मन ही मन सोच रही थी -मुझे वहां जाकर क्या संभालना होगा ? एक ही दिन के लिए तो जा रहे लिए हैं। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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