प्रभा,करूणा से बताती है, कि वह अपने अंदर ही अंदर' हीन भावना 'से ग्रसित हो गई थी , उसे मन ही मन दुख होता था, कि मैं ने अपने पति को कुछ नहीं बताया। मेरे सुंदर भविष्य के लिए मां ने भी ,कुछ भी बताने से इनकार किया था इसीलिए वह उसकी सभी मांगों को पूर्ण करने के प्रयास करती थी। ताकि उसे मुझसे विवाह करने का पश्चात न हो। मेरे अंदर जो 'अपराधबोध 'पल रहा था ,एक अपने पति को कुछ भी न बताने के कारण , इसका विशेष ख्याल रखती थी। उसे किसी भी तरह से कोई कमी नहीं होने देना चाहती थी, उसकी हर इच्छा का मान रखती थी किंतु धीरे-धीरे अब मेरे पास पैसे कम होने लगे थे और अब चाहती थी, कि उसका पति गृहस्थी की जिम्मेदारियों को समझने लगे। तब प्रभा ने उसे समझाने का प्रयास भी किया -देखो ! तुम जो भी कहते हो ,वही मैं करती हूँ ,अपने पास जितने भी पैसे थे ,लगभग मैं तुम्हें दे चुकी हूँ किन्तु अब हमें अपने खर्चों पर रोक लगानी होगी। तुम जो भी कमाते हो ,तुम्हारे पास ही है ,कोई बात नहीं ,पैसा तुम्हारे पास हो या फिर मेरे पास !क्या फर्क पड़ता है ?तुम्हारा और मेरा पैसा अलग -अलग थोड़े ही है। जब हम एक हैं ,तो पैसा भी दोनों का ही है।
क्यों ?तुम और मैं अलग -अलग ही हैं ,तुम्हारा पैसा और मेरा पैसा भी अलग ही हैं, मुस्कुराते हुए बोला।
मैंने सोचा ,मुझसे हंसी कर रहा है ,तब उसे समझाने का प्रयास करते हुए बोली -मेरा भी वेतन आता है और तुम्हारा भी ,अब तुम तो मेरी हालत देख ही रहे हो, कहते हुए ,अपने पेट की तरफ इशारा किया किन्तु उस दिन उसका वह रूप देखकर,मैं ठगी सी रह गई।
मैं जानता हूँ , कि तुम्हारी हालत किस कारण से है ?किन्तु इसका कारण मैं नहीं हूँ, वो कठोर शब्दों में बोला - गर्भवती है ,तो इसका आरोप मुझ पर मत लगाओ !
यह तुम क्या कह रहे हो ?
वही ,जो सच है ,तुमने सोचा होगा ,मेरे ऊपर चंद रुपयों के टुकड़े बर्बाद करोगी और मैं इस पाप को,अपना नाम दे दूंगा,घृणा से मुँह बनाते हुए बोला -तुम क्या समझती हो ?तुम्हारी इन चिकनी -चुपड़ी बातों से मैं ,इसे भूल जाऊंगा।
प्रभा ,तो समझ रही थी ,सब ठीक जा रहा है किंतु आज उसे एहसास हुआ ,ठीक तो पहले से ही कुछ भी नहीं था ,बस वही गलतफ़हमी पाले बैठी थी। न ही ,प्रभा ने उसे कुछ बताया था और न ही प्रभा से ,उसने कुछ पूछा था , न जाने मेरी जिंदगी में कितने धोखे और खाने लिखे थे ? एक धोखे से मेरी पहल होती और दूसरा धोखा मुझे मिल जाता। मुझे कोई अपना ,अपने साथ खड़ा नजर नहीं आ रहा था। मुझसे न जाने कितनी बातें करके वह वापस चला गया ? किन्तु उसकी बेरुखी मुझे तोड़ गई। मैं अपने मन में न जाने कितनी परेशानियां लिए घूम रही थी किन्तु मैंने अपनी परेशानी का किसी को एहसास नहीं होने दिया। आसपास की महिलाओं ने, मेरा ख्याल रखा।
मेरी मां मेरा विवाह करके निश्चित हो गई थी, किंतु मेरे लिए परेशानियां बढ़ गई थीं । परेशानियां तो मैंने खुद ही बढ़ाई थीं किंतु ऐसी स्थिति में एक महिला के साथ, उसके पति का साथ होना तो बहुत जरूरी हो जाता है। यही उम्मीद में उससे भी करती थी किंतु अपनी जिम्मेदारियां से पल्ला झाड़कर वह भाग खड़ा हुआ। मैं उस पहाड़ी इलाके में अकेली, न जाने कैसे समय व्यतीत कर रही थी ? गलती मेरी थी, मैं सोच रही थी रिश्ते को निभाना है या तोड़ देना है इस तरह तो रिश्ता नहीं टूटता। मैंने एक दो बार उसे पत्र लिखा उसे बुलाया ताकि लोगों को लगे ,इसका पति इससे मिलने आता है। ऐसे समय में एक- दो महिला ने पूछा भी था -क्या इसके पिता को इसके आने की ख़ुशी नहीं है।
नहीं ,ऐसा नहीं है किन्तु उनका अपना कार्य है ,समय और छुट्टी नहीं निकाल पा रहे हैं।
जब वह आया तो मैंने उससे पूछा -क्या तुम्हें मुझसे तनिक भी लगाव नहीं है ?
इतना शीघ्र किससे लगाव होता है ?
मम्मी ने मुझसे कहा था -जैसे ही वह बच्चे का, चेहरा देखेगा तो शायद, उसके अंदर बच्चे के प्रति प्यार जाग उठे। अभी मैं विवाहित होकर भी न ही कुंवारी थी ,न ही शादीशुदा !अजीब ही स्थिति थी किंतु उसने एक अच्छी बात की थी कि उसने अपने घरवालों को इस विषय में कुछ भी नहीं बताया था।
इससे क्या फर्क पड़ जाता है ? जिससे तुम्हारा विवाह हुआ , उसके मन में ही तुम्हारे प्रति कोई भाव नहीं था, प्रेम का तो था ही नहीं ,सहानुभूति भी नहीं थी।बलात या लालच से विवाह तो हो सकता है किन्तु ज़बरदस्ती किसी से प्रेम की उम्मीद नहीं की जा सकती। तुम्हारी कहानी में ,यही सब है ,तुमने लालच द्वारा उसे पाना चाहा हालाँकि वो किशोर तुम्हारे लालच में आया भी किन्तु जाल में नहीं फंसा।
वो जाल नहीं था ,मैं सच में ही, उससे प्रेम करने लगी थी ,तभी उसके साथ बाहर घूमने गयी थी ,ताकि वो समझ सके कि मेरे साथ उसकी ज़िंदगी कितनी खूबसूरत होगी ?
किन्तु तुम्हारा मोह पाश उसे उसकी कमियों के एहसास को न भर सका ,उस समय परिस्थिति ही ऐसी थी वह बेरोज़गार पढ़नेवाला लड़का !अचानक इतनी बड़ी जिम्मेदारी देखकर घबरा गया होगा। अब आगे क्या हुआ ?
तू मेरी दोस्त है या दुश्मन !मुझे लगता है ,तुझे मेरी कहानी सुनने में कोई दिलचस्पी नहीं है ,जब से देख रही हूँ , मैंने जबसे कहानी सुनाना किया ,मुझमें ही कमियाँ गिना रही है ,प्रभा नाराज होते हुए बोली।
नहीं ,ऐसा नहीं है , मैं तेरे लिए वर्षों से परेशान थी,मुझे इस बात का भी दुःख है कि तूने न जाने कैसे और किन परिस्थितियों में इस दुनिया का सामना किया किन्तु हम अपने स्वार्थ में कार्य करते रहते हैं किन्तु यह नहीं आंक पाते हम कहाँ गलत थे ?या गलत कर रहे थे। अच्छा बाबा !अब तेरी कहानी के मध्य नहीं बोलूंगी ,देख !मैंने अपने कान पकड़ लिए ,अब ठीक ! फोन पर ही दोनों की हंसी गूंजती है।