Sazishen [part 95]

शिवांगी अपनी मम्मी और बहन से बताती है ,अब उसकी पढ़ाई पूर्ण होने वाली है और शीघ्र ही वह भारत में अपनी बहन और मम्मा के पास आने वाली है इसीलिए  कुछ दिनों के लिए दोनों मेरे पास घूमने के लिए आ जाओ !यूरोप ट्रिप के लिए....... 

तुम्हारी योजना तो अच्छी है ,किन्तु अब मैं यहाँ नौकरी करती हूँ इसीलिए छुट्टी मिलने में थोड़ी परेशानी आ सकती है किन्तु जैसे ही छुट्टी मिलती है ,हम लोग आते हैं। 


तब दोनों बहनें आपस में बातें करती हैं और तभी उन्हें आपस में पता चलता है ,कि दोनों की ज़िंदगी में ही कोई तो है ,जबकि कल्पना के लिए ,तो नीलिमा पहले ही ,उस लड़के के पिता से बात कर चुकी है। अब तो दोनों के लिए दोहरी खुशी हो गई , एक तरफ बहन का विवाह होगा और दूसरी तरफ, शिवांगी अपने प्रेमी से मिलेगी। नीलिमा को भी लग रहा था, जैसे मेरी दोनों बेटियों की जिंदगी, संभल रही है,इससे बेहतर और क्या हो सकता है ?दोनों बेटियां पढ़ -लिखकर , अपने घर परिवार की हो जाएंगी , अपने पैरों पर खड़ी हो जाएंगीं, किंतु होनी को कौन बदल सकता है ? न जाने, यह कुदरत की कैसी ''साजिशें '' हैं ? किसको, किससे मिलवाना चाहता है ? और किसको ,किससे  बिछड़वा देगा? कोई नहीं जानता। कौन किसके प्रति ''साज़िशें '' कर रहा है, कोई नहीं जानता। जिंदगी किसको क्या नया रूप दिखाती है ? किसको कहां लाकर खड़ा कर देती है ? नीलिमा की दो दिनों की छुट्टियाँ थीं ,इन दो दिनों में वह तुषार और उसके पापा से मिली। अपनी बेटियों के मन की बातें भी जान ली। 

नीलिमा, मन ही मन बहुत प्रसन्न है , मिसेज खन्ना के यहां, जाने पर उसे ऐसा लग रहा था ,जैसे न जाने कितने दिन हो गए ? अब उसे भी शायद उनकी आदत सी हो गई है। मिसेज खन्ना के घर पहुंचते ही, सामने ही मिसेज खन्ना उसे सोफे पर बैठी दिखलाई दीं , जैसे वह उसे घूर रही थीं । नीलिमा को लगा शायद, मुझसे कोई गलती हो गई है, मैंने ऐसा क्या कर दिया ?कि जो यह मुझे इस तरह से घूर रही हैं। क्या हुआ ? मैडम ! आप कुछ परेशान लग रही हैं, नीलिमा ने पूछा। 

परेशान नहीं होउंगी तो और क्या होगा ? अब तुम्हारी आदत सी  पड़ गई है , तुम्हारे बिना कुछ अच्छा नहीं लगता ,न ही कोई काम सुहाता है। 

इस बात को सुनकर नीलिमा मुस्कुरा दी, और बोली -मैडम इतनी भी आदत मत डालिए !कल को मैं चली गई , तो क्या होगा ?

हां ,वही मैं सोच रही हूं , और बताओ ! तुम्हारे ये दिन कैसे बीते ?

मेरे दिन बहुत मस्त थे, मुस्कुराते हुए ,नीलिमा एक डायरी खोलकर बैठ गयी। आपको क्या बताऊँ ?मेरी दूसरी बेटी ,अपनी पढ़ाई करके भारत में ही आ रही है और अब बड़ी बेटी के भी रिश्ते की ,बातें चल रहीं हैं अब एक इकलौती माँ को और क्या चाहिए ? बेटियों का घर बस जाये और वे अपने पैरों पर खड़ी हो जाएँ। 

जब बेटियां चली जाएँगी ,तब तुम तो अकेली रह जाओगी ,तब तुम क्या करोगी ?

यह सुनकर नीलिमा थोड़ी उदास हो गयी और गहरी स्वांस लेते हुए बोली -मेरा क्या है ?मेरा बेटा, मेरे साथ है ,हम दोनों ही, एक -दूसरे का सहारा बनेंगे। बाक़ी जैसा वो रखना चाहेगा,ऊपर वाला जो करता है ,अच्छे के लिए ही करता है। जैसे हाल में रखेगा ,रह लेंगे। 

अब आगे तुम जैसी भी रहो ! अभी तो तुम मेरे साथ हो ,मेरी आज की मीटिंग देखो !कहां है ? 

आज आपकी कोई मीटिंग नहीं है ,नीलिमा ने डायरी में देखते हुए कहा। 

ऐसा कैसे हो सकता है ?ऐसे तो मैं बोर हो जाउंगी ,चलो ! आज तुम मुझे उस चांदनी के विषय में ही कुछ बताओ !मिसेज खन्ना चांदनी के विषय में ,कुछ मसालेदार सुनना चाहती थीं। वे हमेशा नीलिमा से उसके विषय में जानने का प्रयास करतीं रहतीं किन्तु नीलिमा हर बार टाल जाती। 

तब नीलिमा बोली -क्यों न ,इस समय का सदुपयोग किया जाये ?अब ''गणेश चतुर्थी ''आने वाली है ,क्यों न ''सिद्धिविनायक ''के दर्शनों का लाभ उठाया जाये ,उनका आशीर्वाद लिया जाये। मन को सुकून और शांति भी मिलेगी और समय भी कट जायेगा। अभी नीलिमा नहीं चाहती थी, कि चांदनी की सच्चाई उन्हें पता चले, जिसके कारण वह उससे जुड़ी हुई हैं और बात करके भी क्या हो जाता है ? चांदनी का थोड़ा बहुत अपमान ही कर सकती थीं। किंतु जो बात का रहस्य न बताने में है , बताकर खोलने में नहीं , ''बंद हो मुट्ठी ,तो लाख की खुल गई तो, फिर खाक की।'' यह औरत इतनी जालिम है अपने नौकरों को भी नहीं बख्शती है , हो सकता है, चांदनी के विषय में सब पता चल जाने पर, यह मुझे भी ''दूध में से मक्खी ''की तरह निकल फेंके  हालांकि नीलिमा की आदत भी मिसेज खन्ना के साथ रहने की हो गई है , किंतु नीलिमा को उस पर तनिक भी भरोसा नहीं है। कब क्या तेवर दिखा दे ?कुछ कहा नहीं जा सकता। आप तैयार होकर आ जाइए ! तब गाड़ी में बातें करते हुए चलते हैं। 

तुम ही मेरे लिए एक अच्छी सी साड़ी निकाल लाओ ! मुझे तुम्हारी पसंद पर पूर्ण विश्वास है। 

बात विश्वास की नहीं है, बात चीज खिलने की है ,आप मेरे साथ चलिए !साथ के साथ आप जांच भी करती रहिए कौन सी साड़ी आपको अच्छी लग रही है, कौन सी नहीं ? कहते हुए नीलिमा सीढ़ियों  की तरफ चल दी। 

समझ नहीं आता, यह कैसी बातें कर सकती है ?मैं इसे जान जानते हुए मन नहीं कर पाती हूं मन ही मन  मैसेज खन्ना सोच रही थी। मुझसे  तो उम्र में बड़ी है, हो सकता है मुझे इसकी उम्र का ही ख्याल आ जाता हूं अपने आप को समझाते हुए सोच रही थी। मिसेज खन्ना उस बात को नहीं भूली और रास्ते में ही गाड़ी में बैठते हुए बोलीं -आखिर यह चांदनी क्या बला  है कौन है ,यह ? तुम्हें और तुम इसे कैसे जानती हो ?

बस इतना समझ लीजिए, कई बार किस्मत पलटा खा जाती है,'' राजा को रंक और रंक को राजा बना  जाती है।'' इसलिए तो लोग कहते हैं, कि कर्म अच्छे करने चाहिए, अब जैसे हम भगवान की यात्रा के लिए जा रहे हैं उनके दर्शनों का लाभ उठाने के लिए ऐसे में हमें ,किसी भी गलत व्यक्ति के विषय में सोचना ही नहीं चाहिए। हम इस सुंदर राह में ,अपने मन के विचार भी शुद्ध करें। ड्राइवर चुपचाप गाड़ी चला रहा था , कहीं मिसेज खन्ना बुरा ना मान जाएं  इसीलिए नीलिमा ने उसकी तरफ इशारा करते हुए बताया  -कि कहीं वह भी यह बात न सुने ले। इस बात का मिसेज खन्ना पर तुरंत असर हुआ और वह चुप हो गई और ड्राइवर से बोली -कोई अच्छा सा ''गणपति जी ''का भजन लगाओ !

ड्राइवर ने आदेश का पालन किया, और गणपति का एक सुंदर सा भजन चला दिया। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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