Rasiya [part 70]

बाहर खूब धूम धड़ाके से, गाने बज रहे थे। लाउडस्पीकर की आवाज, पूरे शहर को गूंजा रही थी। उस समय मंच पर, ''जयमाला ''की रस्म नहीं होती थी। दूल्हेवाले स्वयं, लड़की के घर के दरवाजे पर आकर, जयमाला की रस्म करते थे, किंतु चतुर ने तो पहले ही, एक धर्मशाला में, विवाह का संपूर्ण आयोजन  किया था इसीलिए इस धर्मशाला के दरवाजे पर ही, जयमाला की रस्म के लिए उसे जाना था। जब वह, कस्तूरी के कमरे की तरफ, जा रहा था। तभी , उधर से लड़कियां कस्तूरी को पकड़ते हुए , लेकर दरवाजे तक आईं और गाना बजने लगा -

                     ''बहारों फूल बरसाओ !मेरा महबूब !आया है ,मेरा महबूब !आया है। 



पहले दरवाजे पर ,दूल्हे का स्वागत किया गया , और उसके पश्चात, घूंघट में दुल्हन भी, अपनी सखियों संग ''जयमाला ''लेकर पहुंच गई। यह देखकर उसे, बड़ा ही क्रोध आया कि इसने घूंघट क्यों निकाला हुआ है ? क्या मैं इसे अब भी नहीं देख सकता ? चिराग तो देखकर भी चला गया, मेरे लिए ही बंदिश है। कुछ कह भी तो नहीं सकता। कस्तूरी की चुनरी  की पारदर्शी थी, इसलिए वह सब कुछ देख पा रही थी। हालांकि चतुर को भी उसका चेहरा, कुछ-कुछ दिख रहा था , किंतु इतने से भी उसे ,संतुष्टि नहीं थी। कस्तूरी ने जब चतुर को देखा, उस पर मुग्ध  हो , मुस्कुरा दी। मन ही मन उसकी नजर भी उतार रही थी , कहीं मेरी ही नजर न लग जाए। धक्का -मुक़्की और  भीड़ -भाड़ के मध्य जयमाला की रस्म हुई। लग रहा था ,जैसे - सारा शहर ही, उनके विवाह में आ गया है। 

बारात भोजन करके, अपने गांव की ओर प्रस्थान कर रही थी। विवाह में फेरों के समय , घर -परिवार के, और कुछ नजदीकी रिश्ते ही रुके थे। बाकी सब, गांव की ओर प्रस्थान कर गए थे। अब यहां पर बहुत शांति थी, पंडित जी शांतिपूर्वक , मंत्रों का उच्चारण कर रहे थे। उस शांत स्थान पर , पंडितजी के मंत्र ही गूंज रहे थे। उस स्थान को देखकर ,कोई कह नहीं सकता था कि करीब एक -दो घंटे पहले यहाँ इतना शोर हो रहा था कि अपनी ही आवाज सुनने में कष्ट हो रहा था। कस्तूरी अभी भी घुंघट में थी, उसको देखने की ,चतुर की उत्सुकता बढ़ती जा रही थी। 

सात फेरे और सात वचन भरने के पश्चात , कस्तूरी की विदाई का समय आ गया , धीरे-धीरे जो रात भर यहां चहल -पहल रही , अब सब शांत हो गया। कस्तूरी की मां और उसके पिता बेटी को विदा करते हुए रो रहे थे , एक फूलों से सजी गाड़ी में कस्तूरी बैठ गई और चतुर के गांव की ओर रवाना हो चली । यह सोचकर ही उसके मन में प्रसन्नता की लहर दौड़ गई। आज वह पहली बार चतुर का गांव देखेगी , हालांकि मां और पिता को छोड़ने का उसे दुख तो था किंतु वह दुख इतना भी नहीं था , जितनी प्रसन्नता उसे चतुर का गांव देखने की थी। चतुर के साथ की थी। जैसे ही गाड़ी ने गांव में प्रवेश किया। कुछ बच्चे तो दौड़ते हुए उसकी  गाड़ी के इर्द-गिर्द इकट्ठा हो गए और कुछ बच्चे शोर मचाते हुए ,गांव की तरफ भागे - नई बहू आ गई है , अपने लिए यह शब्द सुनकर कस्तूरी के मन में, और तन में अजीब सी सिहरन होने लगी। 

रामप्यारी ने जब यह सब सुना, तो वह बहू के  स्वागत की तैयारी के लिए, काम में जुट गई। चतुर गाड़ी से उतरकर, बाहर आ गया था किंतु कस्तूरी अभी भी, एक सजी हुई पोटली ही बनी हुई गाड़ी में ही बैठी थी। उस समय रिवाज भी यही था। जब तक बहु को लिवाने कोई  नहीं आता , वह इसी तरह गाड़ी में बैठी रहेगी। उतर भी गयी तो, नई बहु को इस तरह सड़क पर थोड़े ही खड़ी रहेगी। उतरते समय चतुर ने कहा भी था -जब तक मम्मी न आ जाएँ ,गाड़ी से मत उतरना। 

 सभी तैयारियाँ  करके, रामप्यारी कुछ महिलाओं के साथ , गीत गाते हुए आ रही थी। रामप्यारी को तो कस्तूरी ने पहले भी देखा  था , इसलिए उसे देखते ही पहचान गई। सब महिलाओं ने मिलकर कस्तूरी को गाड़ी से नीचे उतारा और चतुर को बुलवाया और दोनों को एक साथ ,लेकर घर की ओर बढ़ चले। रास्ते के बीच में जिस किसी को भी यह पता चला कि नई बहू आई है , वही बहू के पास आता और घूंघट उठा कर, उसे देखता। तब रामप्यारी व्यंग में कहती -चाची जी मुंह दिखाई भी देनी पड़ती है , नई बहू का मुंह ऐसे ही नहीं देखा जाता। साथ ही उन्हें निमंत्रण भी दे डाला -रात में आ जाना, बहू का नाच -गाना भी देख लेना। 

हां हां आएंगे ,तेरे घर आएंगे ,नई बहू को, मुंह दिखाई भी देंगे कहते हुए वह अपने काम पर निकल गई। 

कस्तूरी ने जब यह बात सुनी तो उसे बहुत आश्चर्य हुआ, और मन ही मन घबरा भी गई उसे तो कोई ऐसा गाना ही नहीं आता, वह क्या गाएगी ? रेडियो के गाने पर तो वह  कई बार नाची  है। अब उसका मन किया कि वह चतुर से बात करें किंतु अभी कुछ रस्में हैं, इस तरह इतनी महिलाओं के मध्य , वह चतुर से बोल भी नहीं सकती, कुछ पूछ भी नहीं सकती। दरवाजे पर दोनों का स्वागत किया गया, और देवता के पूजन के लिए दोनों को बिठाया गया। देवर की सभी रस्मों को , मयंक ने ही निभाया था । जैसे ही वह अन्य महिलाओं से अलग हुईं , तभी कस्तूरी ने अपना घुंघट उठाया और चतुर से बोली -मुझे तो नाचना गाना आता भी नहीं है , मैं क्या गाउंगी और कैसे नाचूंगी ?

चतुर ने उसकी तरफ देखा, तो देखता ही रह गया, कस्तूरी के चेहरे पर चिंता थी , किंतु वह तो जैसे उसके सौंदर्य में खो गया। क्या रूप निखर कर आया है ?यह तो पहले से भी ,अत्यधिक सुंदर हो गई। 

क्या देख रहे हो ,कुछ जवाब क्यों नहीं देते हो ? 

चतुर की तो जैसे बोलती बंद हो गयी ,और वो कस्तूरी की तरफ बढ़ा ,उसके चेहरे को अपने हाथों में ले ,बोला -सच में ही ,चाँद आज मेरे घर उतर आया है। इससे पहले कि कस्तूरी समझ कुछ पाती ,उसने अपने अधर कस्तूरी के लबलबाते अधरों पर रख दिए। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

Post a Comment (0)
Previous Post Next Post