Rasiya [part 69]

कस्तूरी ,उस अनजान औरत को ढूंढ रही थी ,वो न जाने कब ,भीड़ का लाभ उठाकर गायब हो गयी। दीदी इधर-उधर क्या देख रही हो ? हम आपसे कुछ कह रहे हैं। आपका ध्यान हमारी बातों में ही नहीं है। 

हां ,हां तुम्हारी ही बातें सुन रही हूं, तब  उनकी तरफ देखते हुए उसने पूछा -क्या ?तुम सब लोगों ने खाना खा लिया। 

हां दीदी हमने तो खाना खा लिया ,अभी बारात भी खा रही है। 

मुझे भी तो भूख लगी है, क्या किसी को मेरी भूख कभी ख्याल है ?या नहीं।जिसके लिए ये सभी कार्य हो रहे हैं ,उसकी भूख की किसी को भी चिंता नहीं।  

क्यों ?आपको भी भूख लगी है, आप भी भोजन करेगीं , उसकी सहेली तनु मुंह बनाते हुए बोली -तुझे तो,तेरा हीरो मिल गया ,क्या अभी भी भूख लगी है ?



बकवास !मत कर ,हीरो मिल जाने से क्या भूख मर जाती है ? किसी को भूख लगे या न लगे ,मुझे भूख तो लगी है ,अपने उसी हीरो के लिए ,जो जीना है। 

वो भी तो भूखा होगा ,बाद में दोनों साथ में भोजन कर लेना मुस्कुराते हुए तनु बोली। 

धत ,तेरे जीजा जी का अभी मुँह भी नहीं देख सकती। 

अच्छा ,सारे काम किये ,अब ये नियम भी तोड़ दो !

तभी एक छोटी लड़की हाथ में फलों का दोना और आलू की टिक्की के दोने लिए आई और बोली -मुझसे इतना ही आया। लो ,खा लो !कहते हुए दोनों दोने कस्तूरी के आगे कर दिए। 

तनु की तरफ देखते हुए कस्तूरी बोली -देखा ,कैसे ख्याल रखा जाता है ?तू सहेली होकर भी ,मेरे लिए कुछ नहीं लाई और ये छोटी सी बच्ची को मेरा कितना ख्याल रहा ?कहते हुए ,उससे दोनों दोने लेकर एक स्टूल पर रखे और खाना आरम्भ कर दिया। तभी उसे विचार आया ,चतुर ने भी खाया होगा या नहीं। 

बुआ जी खा लीजिये !मैने फूफाजी को खाते देखा है ,वे भी खा रहे हैं ,कहते हुए स्वयं भी उन दोनों में से ही, खाने लगी और बोली -अपने लिए भी तो लाई हूँ। उसकी बातें सुनकर सभी हंसने लगीं। 

तभी इतनी महिलाओं में ,एक लड़के ने वहां प्रवेश किया ,जिसे देखकर सभी शांत हो गयीं ,हर किसी के मन में प्रश्न उठना स्वाभाविक था। यह यहां क्यों आया है ?ये कौन है ?

ज्यादा देर न कर........ उसने दुल्हन बनी, कस्तूरी की तरफ देखा और मुस्कुरा कर बोला -भाभी !मुझे भइया ने भेजा है ,ये आपके लिए भोजन लेकर आया हूँ। अपनी ससुराल पक्ष के किसी अनजान व्यक्ति को देखकर ,कस्तूरी सिमटकर और ठीक से बैठ गयी। भैया कह रहे थे -'देखकर आ !तेरी भाभी ने कुछ खाया है या नहीं ,'कहना भूखी न रहे। उस अनजान लड़के को देखकर ,कस्तूरी ने शर्माकर नजरें नीची कर लीं।  

मुस्कुराकर अपनी सहेली की तरफ देखा ,तनु बोली -'आग तो दोनों तरफ बराबर की लगी है ',ये भी अभी यही सोच रही थी। लाओ !इस प्लेट को मुझे दे दो !और अपने भैया से कहना ,तुम्हारी कस्तूरी को हम अपने हाथों से भोजन करा देंगे ,तुम चिंता न करो !कहते हुए ,उसके हाथ से भोजन ले लिया किन्तु वो तो कस्तूरी को ही अपलक देखे जा रहा था। जैसे उसने तनु की बातों पर ध्यान ही नहीं दिया। अब क्या देख रहे हो ?उसने उसके चिकोटी काटते हुए पूछा। 

जब हाथ में दर्द हुआ ,तब उसे जैसे होश आया और बोला -ये क्या कर रहीं हैं ?

कस्तूरी ने ,तनु का हाथ खिंचा और अपने करीब आने का इशारा किया ,जब तनु उसके करीब आई तो पूछा -जरा ,इनसे पूछना तो सही, ये ,उनके क्या लगते हैं ?क्या नाम है ?

ओहो !अभी से ही ,ये और वो........ 

तब तनु उस लड़के से बोली -तुम्हें होश में ला रही थी ,और तुम्हारी भाभी जी पूछ रहीं हैं ,आप कौन हैं ?आपका नाम क्या है ? वैसे आप उधर क्या देख रहे हैं ?उसका विवाह तो होने वाला है। अभी मेरा विवाह नहीं हुआ है। 

जी ,तनु की बात सुनकर वो खिसिया गया और बोला -मैं चतुर का दोस्त हूँ ,मेरा नाम चिराग़ है। अच्छा !अब मैं चलता हूँ।

 तनु ने सभी लड़कियों की तरफ इशारा किया और बोलीं  -आपने हमारी बात का कोई जवाब नहीं दिया , मेरा भी अभी विवाह नहीं हुआ है। 

 तभी एक लड़की और आगे आई, और बोली-अभी मेरी भी कहीं बात नहीं बनी है। इसी तरह कई लड़कियां आगे  निकल कर आई और बोलीं -हमसे विवाह करोगे ! चिराग़ को लग रहा था ,मैंने यहाँ आकर क्या मुसीबत मोल ले ली ,वह तेज कदमों से आगे बढ़ गया। 

तभी एक छोटी सी लड़की और निकलकर आगे आई और बोली -भैया ,मेरा भी विवाह नहीं हुआ है। उसकी बात सुनकर सब हंसने लगे और चिराग वहां से जान छुड़ाकर भागा। चिराग मन ही मन सोच रहा था -इसीलिए चतुर ने हमें, कस्तूरी से मिलवाया नहीं था। सुशील को पहले पता चल गया होगा , पता क्या चल गया होगा ?उसने पीछा किया होगा , तभी तो रिश्ता लेकर पहुंच गया। सोच -विचार करते-करते वह  चतुर के पास पहुंच गया। भाई !तेरे हाथ तो खजाना लग गया।

 चतुर ने उसकी तरफ देखा और पूछा -क्या हुआ ? तू क्या कहना चाहता है ? 

कुछ नहीं ,अभी भाभी को भोजन देकर आ रहा हूं। 

चिराग की बात सुनकर वह प्रसन्न हो उठा, और बोला -क्या तू वहां गया था ? 

हां, हां वहीं से आ रहा हूं , वहां तो बहुत लड़कियां हैं , जो मेरे पीछे ही पड़ गईं। तुम्हें तो कुछ भी ख्याल नहीं रहता, इसलिए तुम्हारा नाम लेकर भाभी को भोजन देने गया था। 

वह कैसी लग रही थी ?उत्सुकतावश  चतुर ने पूछा। 

तूने भी क्या लड़की देखी ? तुझे दुनिया में कोई और लड़की मिली ही नहीं। 

क्या बात कर रहा है ?

क्या कस्तूरी तुझे अच्छी नहीं लगी ? घबराकर चतुर ने पूछा, अभी तो तू कह रहा था ,'खजाना हाथ लगा है। ' 

घबरा मत !' खजाना ही हाथ लगा है' भाभी के रूप और सौंदर्य को देखकर तो, कहीं मैं कवि  न बन जाऊं?सुशील की गलती नहीं थी ,कोई भी देखेगा ,तो उसकी यही हालत होती। 

न न इतना कष्ट उठाने की आवश्यकता नहीं है, तेरे लिए भी कोई ऐसी ही लड़की ढूंढ देंगे। वैसे यह बता तुझसे  किसने कहा था ? तू उसे भोजन दे कर आ !सतर्क होते हुए चतुर ने पूछा। 

मेरे मन  ने कहा था, जिसके लिए इतने सारे कांड हुए , जिसके सौंदर्य पर हमारा भाई लटटू हो रहा था कम से कम उसे हमें भी तो देख लेना चाहिए और वास्तव में ही, वह बहुत खूबसूरत है। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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