Rasiya [part 68]

आज चतुर की  घुड़चढ़ी हो रही है ,उसके दोस्त सभी मस्ती में ,उसकी घोड़ी के आगे नाचते हुए ,मस्ती में जा रहे हैं। चतुर के दोस्तों में ,सुशील ही नहीं आया। आता भी ,किस मुँह से....... उसने कांड ही ऐसा कर दिया। जब घोड़ी सुशील के घर के सामने से जा रही थी ,तभी, कलुवा ने बाजेवालों से कहकर गाना बदलवा दिया -

                                             '',ले जायेंगे ,ले जायेंगे दिलवाले दुल्हनिया ले जायेंगे ''

इस समय यह गाना सुशील और चतुर पर सटीक बैठ रहा था। सुशील ने अपने को कस्तूरी के परिवार के सामने बहुत पैसे वाला बतलाया था, यह बात उसके दोस्तों को भी मालूम थी तो जब यह लाइन आई। 

                                           ''रह जाएंगे ,रह जाएंगे पैसे देने वाले देखते रह जाएंगे। ''



 इस गाने के चलते ही ,सभी झूम -झूमकर गाने और नाचने लगे। खूब नोट उड़ा रहे थे। सिक्के उछाले जा रहे थे।  ऐसे वातावरण में भी चतुर को दूसरों की भावनाओं का ख्याल रहा, वह समझ गया कि उसके दोस्तों ने जानबूझकर यह गाना चलवाया है। इतनी मौज -मस्ती में भी, उसने यह गाना बंद करवा दिया। वह नहीं चाहता था, कि  ऐसी खुशी के माहौल में, किसी की 'आह 'उसे लगे। पूरे गांव में होते हुए बारात, शहर की तरफ बढ़ चली। 

उधर कस्तूरी, को उसकी सहेलियों ने घेर रखा था और उसे सजाने में व्यस्त थीं। उसके कीमती गहने आभूषण देख-देखकर प्रसन्न हो रही थी और कल्पना कर रही थीं -काश !कि हमें भी ऐसा, पति और परिवार मिले। 

कस्तूरी प्रसन्न थी, कस्तूरी के सामने अब उसकी मां कुछ नहीं बोल रही थी। उसे अपनी गलती का एहसास हो रहा था कि वह अपनी बेटी के साथ क्या करने जा रही थी ? खैर !जो भी हुआ अच्छा ही हुआ। तभी एक लड़की दौड़ती हुई ,कमरे के अंदर आई और बोली -क्या ,दीदी तैयार हो गई ? बारात आ गई है। 

क्या बारात आ गई ?आश्चर्य चकित होते हुए ,सभी लड़कियां बाहर की ओर दौड़ चलीं ताकि वह दूल्हे को देख सकें। कस्तूरी  उन सबको इस तरह बाहर जाते देख बोली -एक तो मेरे साथ रह जाओ !मैं अकेली रह जाउंगी। 

अब तुझे बहुत देख लिया ,अब जीजाजी को देखने की बारी है। कहते हुए उसकी मौसी की लड़की तपस्या भी  बाहर चली गयी।

 उसकी सहेली तो पहले ही जा चुकी थीं। सब की सब मतलबी हैं ,जीजा क्या आ गए ?बहन को ही भूल गयीं कहते हुए ,मुस्कुरा दी। उस समय ,उस कमरे में वह अकेली थी, मन ही मन चतुर के विषय में सोच कर मुस्कुरा रही थी। चतुर वास्तव में ही ,बहुत चतुर है ,बड़ी ही चतुराई से मेरा दिल जीता ,हमारे घरवालों को भी मना लिया। उसकी बातें सोच -सोचकर अकेले ही अकेले मुस्कुरा रही थी।तभी खिड़की में से उसे किसी की परछाई दिखलाई दी। उसने उधर देखा तो ,कोई नजर नहीं आया। हो सकता है ,विवाह में इतने लोग आए हैं किसी को, कहीं जाने से रोका तो नहीं जा सकता। कोई रिश्तेदार, या कोई और भी हो सकता है। 

इस समय कस्तूरी नितांत अकेली थी, सभी बारातियों के स्वागत में व्यस्त हो गए थे। इस अकेलेपन के कारण कस्तूरी को अनजाना सा भय सताने लगा था। पहले चुपचाप ड़री सहमी सी कुछ देर बैठी रही फिर वह आईने के सामने खड़ी होकर अपने को निहारने लगी। अपने आभूषण, अपने वस्त्र , अपने सौंदर्य को देखकर स्वयं पर ही मुग्ध हो गई। दूर से बाजे की आवाज आ रही थी, सोच -सोचकर ही मन में गुदगुदी हो  रही थी। तभी आईने में उसे लगा जैसे कोई छुपकर उसे घूर रहा है।क्या वहां कोई है ?खिड़की में झांकते हुए उसने पूछा ,किन्तु कोई उत्तर नमिला किन्तु तब भी उसे आभास हो रहा था जैसे उस पर कोई नजर रखे हुए है। 

तभी एक छोटी से लड़की दौड़ती ,हांफती सी आई , जीजी ,जीजाजी कितने सुंदर लग रहे हैं ? कस्तूरी चतुर की प्रशंसा सुनकर प्रसन्न तो हुई किन्तु तभी उसे एहसास हुआ कहीं उसके सामने मैं फीकी न पड़ जाऊँ तुरंत ही उससे पूछ बैठी - क्या मुझसे भी अच्छे लग  रहे हैं ?

और नहीं तो क्या ?राजा की तरह घोड़े पर बैठे हैं बिल्कुल राजा लग रहे हैं। 

कस्तूरी ने तभी ,अपने को आईने में देखा और बोली -चल झूठी ! मैंने कितने गहने पहने हैं ?कितना सजी हूँ ,तब भी मुझसे ज्यादा अच्छे लग रहे हैं। 

तभी तो कह रही हूँ ,आपने इतना मेकअप किया ,आभूषण पहने तब अच्छी लग रही हो ,जीजाजी ने तो ऐसा कुछ भी नहीं किया ,तब इतने अच्छे लग रहे हैं ,हुए न आपसे अच्छे ,कहकर वो लड़की हँसते हुए बाहर भाग  गयी। कस्तूरी समझ गयी थी ,वो उससे हंसी करके गयी ,तब भी कस्तूरी ने अपने को आईने में देखा और सोच रही थी -कहीं कुछ कमी तो नहीं रह गयी। तब उसने आईने में ही देखा, जैसे कोई उसके पीछे आ रहा है। उसने घूमकर देखा ,तो कोई नहीं दिखा ,किन्तु अब उसे वास्तव में ही ड़र लगने लगा था ,वह कमरे से बाहर आ गयी और कमरे से बाहर छज्जे पर आकर खड़ी हो गयी। 

तभी एक महिला ने उसे इस तरह बाहर खड़े देखा तो बोलीं -तू इस तरह बाहर क्यों खड़ी है ?उन्होंने सोचा ,अपने दूल्हे को देखने के लिए खड़ी होगी। तब वह बोलीं -दूल्हे को देखने की इतनी जल्दी है ,दुल्हन अपनी बारात नहीं देखती ,अशुभ होता है। 

नहीं ,मैं तो कमरे में अकेली थी ,इसीलिए बाहर आ गयी ,सारी लड़कियाँ बारात देखने भाग गयीं। 

कहते तो यही हैं ,दुल्हन को अकेले नहीं छोड़ते ,अच्छा ,चल !मैं तेरे साथ बैठती हूँ।

अंदर की तरफ जाते हुए, कस्तूरी ने  उस महिला से पूछा -आप कौन हैं ?

मैं भी विवाह में आई हूं। 

अच्छा !आप, बारात की तरफ से आई होगीं , बाराती होगीं। 

नहीं,  हमारे यहां, बारात में महिलाएं नहीं जातीं। 

तब कस्तूरी ने सोचा, कि हो सकता है, मेरे पापा की ही कोई जानने वाली हों या मम्मी की तरफ से हों। ज्यादा छानबीन भी अच्छी नहीं है। यह सोचकर ,उसने और कोई प्रश्न नहीं किया।

तुम कितनी प्यारी लग रही हो ? उसकी बात सुनकर कस्तूरी मुस्कुरा दी और शर्माकर नजरें  झुका लीं। वैसे सुशील में भी कोई बुराई नहीं थी। कस्तूरी नजर उठाकर उनकी तरफ देखना ही चाहती थी तभी बाहर से लड़कियों का एक झुंड अंदर प्रवेश कर गया। जो हांफ रही थीं  और खुश हो रही थीं। 

एक ने कहा -दीदी !जीजा जी बहुत अच्छे लग रहे हैं। 

तभी दूसरी बोली-तुम्हारे तो भाग्य खुल गए। किंतु कस्तूरी का ध्यान उनकी बातों में नहीं था, वह उस महिला को देखना चाहती थी जो अभी उससे सुशील के विषय में कुछ कह रही थी किंतु अभी थोड़ी देर पहले तो वह यहां थी अचानक कहां चली गई ? यह महिला,आखिर कौन हो सकती है ? वह सुशील को कैसे जानती है? क्या उसका सुशील से कोई रिश्ता था ? अचानक कैसे गायब हो गई ? जाते हुए दिखलाई भी नहीं दी। अनेक प्रश्न कस्तूरी के मन में कौंधने लगे। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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