ढोलक की थाप पर ,बन्ने गाए जा रहे थे ,दूर -दूर तक ढोलक की आवाज सुनाई दे रही थी ,आज मौहल्ले में सभी के यहाँ बुलावा भेजा गया था। रामकली काकी की बहु ने तो जैसे समा बांध दिया ,जब उसने बन्ना गाना आरम्भ किया - '' बन्ने से बनड़ी फेरो पर झगड़ी, तू क्यों ?नहीं लाया रे ! सोने की तगड़ी।''
क्या ढोलक बजाती है ?चम्पा ताई बोली। उसकी ताल पर कई लड़कियाँ नाचने के लिए उठ खड़ी हुईं। रामप्यारी के तो पर जैसे जमीन पर ही नहीं पड़ रहे थे। एक महीने से प्रतीक्षा में थी ,कब बेटे के इम्तिहान हों ? और कब वह इस घर में बहू लेकर आए ? आंगन में,नाचती हुई ,लड़कियों को देखकर दिल गदगद हो उठा। अपने लकड़ी के संदूक से, कई धोती निकाल कर ले आई , उन पर वारफेर करने के लिए , यह शुभ घड़ी भगवान सभी को दिखलाएं। मन ही मन, घबरा भी उठती ,कहीं मेरी खुशियों को ,मेरे बेटे की खुशियों को नजर न लग जाए। चलते समय सभी को, बताशे दिए और कहा -कल भी आना ,कल हल्दी की रस्म है। सभी से हाथ जोड़कर बोली -तुम्हारे ही ,अपने बेटे का विवाह है ,मैं अकेली क्या -क्या करूंगी ? बुलावा नहीं भी पहुंचा, तब भी अपने भतीजे का ,पोते का विवाह समझकर, आ जाना।
रामप्यारी की यही शालीनता और उसकी सादगी, ने अड़ोस -पड़ोस की महिलाओं का दिल जीत रखा था। उसकी बात को कोई टाल ही नहीं सकती थीं।
इसलिए मुस्कुराते हुए बोलीं -हां -हां क्यों नहीं , कल हम समय पर पहुंच जाएंगे। हमारे लिए तो, जैसे हमारे ही भतीजे का विवाह हो रहा है। उसके विवाह में हम नहीं आएंगे, तो और कौन आएगा ?
जब से बाण लिखा गया है, तब से प्रतिदिन गाने गाए जा रहे हैं। मोहल्ले की लड़कियां और महिलाएं, सभी उसमें शामिल होती हैं। सुशील के घर भी निमंत्रण भेजा था। दो दिन तो उसकी भाभी भी आई थी फिर न जाने क्यों ? वह नहीं आ पाई।
प्रतिदिन की ढोलक की थाप पर, नाच -गाना होता , और उस ढोलक का स्वर दूर-दूर तक सुनाई देता किंतु इसकी आवाज सुनकर,गांव में एक ही व्यक्ति के ह्रदय पर'' साँप लोट रहे थे। '' वह था ,सुशील ! जो उसने सोचा था ,वह हो नहीं पाया। अब उसे, चतुर अपना दोस्त नहीं, एक दुश्मन की तरह नजर आ रहा था। उसके सामने ही, वह इस लड़की को ब्याह कर इस गांव में लायेगा। वह यह कैसे बर्दाश्त कर सकता है ? अब तो उसके घर वालों को भी इस विषय में पता चल गया था। उन्होंने पता लगाने का प्रयास भी किया कि क्या सही है और क्या गलत ? जब उन्हें सच्चाई का मालूम हुआ तो उन्होंने सुशील को ही, खूब खरी-खोटी सुनाई। अब तो उसके साथ उसका ,अपना परिवार भी नहीं था।
चतुर के विवाह का'' निमंत्रण पत्र ''सुशील के घर भी आया था। उस समय तो वह कुछ नहीं कह सका, न ही कर सका किंतु अकेले में, उसने उस ''निमंत्रण पत्र ''के टुकड़े-टुकड़े कर दिए। लड़े भी तो किसके लिए ? जब कस्तूरी ही उसका साथ नहीं देगी। चतुर के सामने जाते हुए भी, अब उससे नज़रें नहीं मिला पाता, चतुर को देखते ही उसे, अपनी हार का एहसास होता है। गांव वालों से ही उसकी खबर मिलती रहती थी, उसके अन्य दोस्त भी उससे बातचीत तो कर लेते थे ,किंतु मन में, एक कड़वाहट भर गई थी।
कई दिनों की चुहलबाजी ,हंसी -मज़ाक के पश्चात आखिर वो दिन आ ही गया जिस दिन के लिए ,ये सभी कार्य हो रहे थे। आज बारात कस्तूरी के घर जाएगी। आज तो रामप्यारी को ,एक पल का भी होश नहीं था। सुबह से ही कई रस्में हुई हैं। दर्जी से उसके कपड़ों, के लिए पहले ही कह दिया था। 2 दिन पहले तैयार हो जाने चाहिए किंतु, ये कपड़े भी ,उसने आज ही भेजे हैं। सभी रिश्तेदार और मोहल्ले वाले, चतुर को तैयार करने के लिए खड़े हैं। चतुर की कोई भाभी तो थी नहीं , इसीलिए मोहल्ले की रामकली कई की बहू ने ही भाभी के सभी, फर्ज निभाएं। एक चारपाई पर खड़े होकर चतुर अपने नए वस्त्र पहन रहा था। कुछ महिलाएं , गीत गा रही थीं , कुछ हंसी मजाक में लगी थीं। जब काजल डालने की बारी आई तो बहु ने चतुर के एक आंख में ही काजल डाला और खड़ी हो गई। चतुर की एक आंख में काजल देखकर, सभी आसपास की लड़कियां और महिलाएं हंसने लगीं।
तब रामप्यारी बोली -यह क्या कर रही हो ? दूसरी आंख में काजल क्यों नहीं डालतीं।
वह हंसते हुए बोली - चाची जी ! अब तो काजल तभी पड़ेगा , जब मेरा नेग मिलेगा।
तू उसकी आंख में काजल डाल ! तेरा नेक भी लाती हूं, कहते हुए ,रामप्यारी आगे बढ़ती है।
तभी वह रामप्यारी को रोकते हुए बोली - मुझे तो सोने के कड़े चाहिए , तभी काजल डलेगा। भाभी की जिद देखकर सभी लड़कियां मजे ले रही थीं।
अब इस समय मैं कहां से कड़े बनवा कर लाऊं ? वायदा करती हूँ ,तुझे तेरी पसंद के कड़े बनवा दूंगी। साड़ी लेनी है ,तो ये साड़ी ले ले ! अब तू मेरे बेटे की आंख में काजल तो डाल दे ! बेचारा !कैसा लग रहा है ? कह कर खुद ही मुस्कुरा दी।
उस बहु ने साड़ी भी ले ली और बोली -आपके वादे पर ही काज़ल डाल रही हूँ ,वरना आज देवरजी ऐसे ही जाते।
रामप्यारी अपने बेटे को देख रह थी और सोच रही थी ,ऐसे समय में ,बच्चे की क्या हालत हो जाती है ?मेरा बेचारा बच्चा !कैसा मासूम लग रहा है ?सोचते हुए ,तुरंत ही ,उसकी नजर उतारती है ,कहीं मेरी ही नजर न लग जाये ,यही सोचकर मुँह फेर लेती है। बैंड बाजे की आवाज के साथ, आज चतुर की घुड़चड़ी की रस्म हो रही थी। आज बारात कस्तूरी के घर जाएगी। चतुर ने जो चाहा, वह हो गया। होना ही था, उसके मन में कोई खोट नहीं था। माता-पिता की इकलौती औलाद थी, कस्तूरी में भी कोई कमी नहीं थी , उसका कहना मानना ही पड़ता।
जब कस्तूरी की गोद भराई की रस्म हुई थी, तब चतुर के घर से , बहुत सारे आभूषण और कीमती वस्त्र आए थे। जिन्हें देखकर, आसपास की मोहल्ले वालों की भी आंखें'' फटी की फटी रह गईं '' इकलौता बेटा है, उसके विवाह में सभी इच्छाएं पूरी करनी हैं , मनपसंद बहू आ गई और श्रीधर जी को क्या चाहिए ? चांद गांव की यह बारात इतनी जोर -शोर से चढ़ी थी , आसपास के गांव वाले भी आश्चर्यचकित रह गए थे। कम से कम आठ सौ लोग, बाराती बनकर जाने के लिए तैयार थे। घुड़चड़ी में मयंक, तन्मय , चिराग ,सुनील सभी दोस्त घोड़ी के आगे नाच रहे थे। न जाने ,अचानक कलवे को क्या सूझा ? जब घुड़चड़ी, चलते हुए सुशील के घर के सामने से गुजरी तभी कलवे के कहने पर बाजे वालों ने गाना बदल दिया -'' ले जाएंगे ,ले जाएंगे ,दिलवाले दुल्हनिया ले जाएंगे। ''