Kanch ka rishta [part 58]

प्रभा को, करुणा ने समझा तो दिया कि वह कहां गलत थी , उनके रिश्ते में क्या गलती थी ? किंतु इतनी बातें सुनने के पश्चात,प्रभा सोने चली गयी और करुणा भी, आराम करना चाहती थी किंतु उसकी आँखों  नींद नहीं थी ,लेटे -लेटे वह न जाने विचारों में कहां खोती चली गई  ? उसे इस बात का दुख था , उसने भी तो रिश्तों  को ,कितना संभालने का प्रयास किया था ? किंतु परिणाम क्या रहा? आज उसका सगा इकलौता भाई, उसका अपना परिवार उसे अपरिचित सा लगता है। हालांकि वह अपने मन को समझा  लेती है, किंतु कभी-कभी उन रिश्तों का दर्द उभर ही आता है। किशोर जी सब जानते हैं, कि उसने अपने परिवार के लिए कितना सोचा  और क्या-क्या त्याग किया ?किशोर जी का त्याग भी तो कम नहीं ,सब कुछ जानते बुझते उन्होंने किसी को कुछ नहीं बताया। 


 जब भी कभी वह अपने परिवार के विषय में सोचती है और उस दुख से हलकान होती है , तब वह उसे डांट देते हैं,और कहते हैं -जब उन्हें ही तुम्हारी परवाह नहीं है, तो तुम क्यों उनके लिए परेशान होती हो अपनी जिंदगी में वह सही से गुजर -बसर कर रहे हैं। तुम उनके लिए क्यों परेशान होती हो ?

कहना ,कितना आसान है ? किंतु उसको समझ पाना, आत्मसात करना कितना मुश्किल है ? जब टीस उभरती है,कोई समझदारी काम नहीं करती। लगता है ,जैसे अपनो ने ही धोखा दे दिया और जब अपने धोखा देते हैं तो कितना दर्द होता है ? हम महिलाओं की ,छोटी सी तो दुनिया है। इस दुनिया में खोकर रह जाते हैं। उन्हीं रिश्तों की धूरी में घूमते रहते हैं, किंतु जब धोखा मिलता है ,तो टूटने भी लगते हैं। यह रिश्ते ऐसे ही होते हैं,'' कांच की तरह पारदर्शी! चमकीले रहते हैं , तब तक चलते रहते हैं, और जैसे ही उनमें स्वार्थ, लालच! धोखा ! बेईमानी जैसी चीजें भरने लगतीं हैं ,वह कांच मेेला होने लगता है और धुंधला पड़ जाता है। जब इन सब की अधिकता बढ़ जाती है, तो वह कांच टूटता  है और जब वह टूटता है तो आवाज होती है , उस आवाज के साथ, अन्य रिश्ते भी उस कांच की चपेट में आ जाते हैं।''यहाँ तक की उसकी चपेट में विश्वास ,प्यार ,अपनापन ,भावनाएं ,और मन सभी उन टुकड़ों से लहूलुहान हो जाते हैं।  कहते हैं, न -''दूध का जला भी ,छाछ फूंक -फूंककर पीता है। '' 

न जाने कितने विचार, कितनी बातें ? करुणा के मन में आ जा रहे थे। बाहर बच्चों की आवाज सुनकर वह चौंक गई। घड़ी में समय देखा, अरे !एक बज गया ,पता ही नहीं चला ,हड़बड़ाकर उठी, सभी विचारों को वहीं छोड़ फुर्ती से रसोई घर की तरफ दौड़ी। फटाफट दोपहर के खाने  की तैयारी करने लगी , बच्चे अपने कपड़े बदल रहे थे। बच्चों ने महसूस किया ,आज मम्मी शांत हैं ,बेटे ,देख भी लें ,तो नजरअंदाज कर जाते हैं बेटी ने मां के पास आकर पूछा,-क्या कुछ हुआ है ?

माँ ने एक नजर अपनी बेटी की तरफ देखा और बोली -नहीं तो....... 

क्या आप रोये थे ? अवश्य ही कुछ न कुछ तो हुआ है , आपकी आंखें बतला  रही हैं , दादी से पूछती  हूं,कहते हुए बाहर जाने लगी।  

रुको ! कुछ नहीं हुआ है, थोड़े सख्त लहज़े  में करुणा बोली। थोड़ी सी मेरे साथ काम में मदद करवा देना। और कोई समय होता तो रूचि शायद कोई बहाना बना देती, किंतु उसे लगा कि  मम्मी का, मन  ठीक नहीं है इसलिए चुपचाप उनके साथ मदद करवाने लगी। 

शाम को जब किशोर जी घर पर आए, तो करुणा बोली -आज प्रभा न जाने क्यों ,बहुत उदास थी ? हो भी क्यों न...... जिंदगी में इतनी परेशानियां जो थीं , ऐसे समय में भी ,उसे किसी का सहारा नहीं। बेचारी अकेली रहती है। कोई साथ होता तो...... कम से कम किसी से अपने सुख-दुख की बातें तो कर लेती। बेटी ,अपने ससुराल में खुश है। क्या आप जानते हैं ? उसकी  बेटी उसके पति की नहीं है वरन उसी किशोर की है। मैंने तो उससे कहा भी था -तू कभी किशोर से भी नहीं मिली, न हीं वह तुझे मिला।कम से कम उसे उसकी बच्ची के विषय में तो बता सकती थी। 

तब उसने क्या जबाब दिया ?किशोर ने उत्सुकता से पूछा किन्तु मन में अचानक ही घबराहट ने घर कर लिया।

 वो कह रही थी -' यदि मिल भी जाता तो क्या होता ? हो सकता है ,वह मेरी बच्ची को अपनाता ही नहीं। वह सही कह रही थी -इस किस्म के इंसान डरपोक होते हैं , समाज से दुनिया से डर जाते हैं, और कभी-कभी अपने कर्तव्यों से भी डर जाते हैं। छुप-छुपकर काम करना उन्हें पसंद होता है। किसी के सामने पड़ते ही, चेहरे का रंगत  उड़ने लगती है।

करुणा ,अपनी ही झोंक में, बोले जा रही थी ,उसे तनिक भी आभास नहीं हुआ ,किशोर जी के चेहरे के भाव कैसे आ जा रहे थे ?उन्हें आज प्रभा के शब्दों का अर्थ समझ आ रहा था ,उसे खोकर मैंने अपनी बेटी को भी खो दिया यानि कि वो मेरी बेटी का विवाह हो  रहा था। जिसमें मैं मेहमान बनकर गया था। उन्होंने अपने आपको संभाला और बोले -क्यों ?उसके पति से उसका कोई बच्चा नहीं है।

 नहीं ,उसके विवाह को छह माह भी नहीं हुए थे ,तभी एक दुर्घटना में वो नहीं रहा ,दुर्घटना से पहले उसी बच्ची को लेकर, उसने प्रभा से झगड़ा किया था ,वो उस बच्ची को स्वीकार ही नहीं कर पा रहा था,नशे में गाड़ी चला रहा था ,उसका नशा और क्रोध दोनों ही दुर्घटना का कारण बन गये। 

आज पता नहीं ,क्यों ?उदास सी थी। 

अच्छा अब चलो !सो जाओ !बहुत देर हो गयी ,दूसरों के चक्कर  में तुम अपनी  सेहत खराब मत कर लेना ,कहते हुए किशोर करवट बदलकर लेट गए। 

करुणा ने एक नजर उन्हें देखा और चुपचाप लाइट बंद करके लेट गयी किन्तु दोनों की आँखों में ही नींद नहीं थी।  

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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