Rasiya [part 66]

सुशील को जब पता चला, कि चतुर की सगाई हो रही है, वह मन ही मन बहुत प्रसन्न हुआ। चलो !रास्ते का कांटा हट गया किंतु जब उसने कस्तूरी के पिता को देखा तो उसे, अत्यंत क्रोद्ध आया। उसे समय उसका बस वहां पर तो किसी पर नहीं चलता इसीलिए वह कस्तूरी के घर पहुंच गया और वहां पहुंचकर ,उसकी मां को डांटने- धमकाने लगा। 

अपनी आंखों के सामने इस तरह अपनी मां की बेइज्जती करते हुए सुशील को देखकर, कस्तूरी से रुका नहीं गया। अब तो कस्तूरी के पास, चतुर का विश्वास था, उसका साथ था। अब कस्तूरी कहां चुप रहने वाली थी ? जवाब उसकी माँ ने नहीं ,कस्तूरी ने स्वयं दिया , बोली -तुम भी तो, हमारे साथ और अपने दोस्त के साथ खेल खेल रहे थे। तुम्हें तो मालूम था, कि मैं और चतुर एक दूसरे से प्रेम करते हैं। तुम कब से मेरा पीछा कर रहे थे ? मैं सोच रही थी ,न जाने कौन है ? किंतु तुम तो मेरे घर तक पहुंच गए , और जब मुझे यह पता चला कि तुम उसी गांव से हो। तब मुझे तुम्हारे व्यवहार में कुछ झोल नजर आया और तुम मेरी मां को कड़े देने का लालच दे रहे थे। यह सब सच्चाई मुझे पता चल गई। अब तुम आ ही गए हो, तो एक सच्चाई तुम भी सुन लो ! मैं चतुर से प्रेम करती थी ,और करती हूं और करती रहूंगी। कभी भी हमारे मध्य  आने का प्रयास मत करना। 


जब मैं रिश्ता लेकर आया था, तब तो तुम कह रही थीं  -मुझे पढ़ना है, क्रोधित होते हुए सुशील ने पूछा।  

हां , यह बात सही है, पढ़ना भी है, और अब अपने चतुर से विवाह भी करना है , वही मुझे पढ़ा भी देगा। तुमसे विवाह नहीं करना चाहती थी इसीलिए मैंने पढ़ाई का बहाना बनाया था। 

तुम लोगों ने मुझे धोखा दिया है , उसकी मां और कस्तूरी की तरफ उंगली उठाकर गुस्से से  बोला। 

तुम भी तो धोखा दे रहे थे, अपने आप को, और अपने दोस्त को , क्या तुम्हें मालूम नहीं था ? चतुर पहले से ही मेरा था और अब यहां से ,इस घर से ,चले जाओ ! इसके बाद कभी भी यहां मत आना!  यह सब बड़े प्रेम से मैं तुम्हें समझा रही हूं। बस इतना ही काफी है। 

सुशील ने एक नजर दोनों मां -बेटियों को घूरा और चुपचाप बाहर निकल गया। धीरे-धीरे यह सारी खबर, संपूर्ण गांव में फैल गई , कि चतुर का रिश्ता कस्तूरी के साथ तय हो गया है , उसके दोस्तों ने उसे बधाई दी। आखिर तेरी इच्छा पूर्ण हो ही गई।अब सुशील का क्या होगा ?चिंतित होने का अभिनय करते हुए चिराग बोला। 

 ऐसी लगन और ऐसा प्रेम भी तो होना चाहिए, कस्तूरी मुझसे ही प्रेम करती थी किंतु न जाने सुशील को क्या हो गया था जबकि वह जानता था , तब भी न जाने क्यों अपनी टांग अड़ा  रहा था ? 

टाँग, तो तूने हटा दी और वह भी बड़े प्रेम से मयंक व्यंग्य से बोला -हमारी होने वाली भाभी ने भी ,तो तेरा साथ दिया, अब विवाह कब करेगा ?

विवाह के लिए भी समय चाहिए , इम्तिहान होने के बाद में विवाह करूंगा , चतुर ने दोस्तों को अपना निर्णय सुनाया।

 जब सभी मेहमान खा- पीकर चले गए , तब कस्तूरी के पिता एकांत में चतुर के पास आए और बोले -भगवान ! ऐसा बेटा सबको दे ! मेरी बेटी कस्तूरी बहुत ही भाग्यशाली है, जो तुम जैसा पति पाया। तुमने अपने ही घरवालों की नहीं, बल्कि मेरे भी ,मान -सम्मान और इज्जत का, ख्याल रखा। तुमने जितने भी और जो पैसे दिए थे। मैंने उनका हिसाब लगाया है,  मैं धीरे-धीरे तुम्हारे वह पैसे तुम्हें लौटा दूंगा। 

ऐसी बातें मत कहिए ! कस्तूरी के माता-पिता और उनकी इज्जत ,क्या मेरी इज्जत नहीं है ?नहीं ,पैसे लौटाने की कोई आवश्यकता नहीं है , उन पैसों से,यह जो भी सामान आया है , वह हमारे ही घर आया है। बस आप माध्यम बन गए। 

बेटा ! तुम्हारा यह एहसान मैं, किस तरह चुकाऊंगा ?

अपनी बेटी को ,सही -सलामत हमारे घर भेजकर ,किन्तु मैं आपसे एक बात कहना चाहता हूँ , कभी भी मुझे गैर मत समझिएगा। अपना बेटा समझकर ,कोई भी परेशानी हो, बता दीजिएगा। 

कस्तूरी से सुशील का रिश्ता तो टूट ही गया, और अब तो कस्तूरी ने भी उसे अपमानित करके अपने घर से बाहर निकाल दिया उसके मन में तो आ रहा था। उसको वहीं काट कर डाल दूँ किंतु अभी उसने अपना आपा नहीं खोया था। अब वह कुछ और ही सोच रहा था, दोस्तों में यह बात होते-होते धीरे-धीरे सभी को पता चल गई। तब एक दिन कलुवा ने जानबूझकर सुशील से पूछा -भैया मैंने तो सुना था कि आपके  रिश्ते  की भी कहीं बातें चल रही हैं। 

हां ,चल रही थीं किंतु मैंने उस रिश्ते से इनकार कर दिया क्योंकि वह लड़की ही ठीक नहीं थी। जब मुझे पता चला, कि उसका किसी और से चक्कर चल रहा है तब मैंने उसे रिश्ते से इनकार कर दिया। हालांकि वह मेरे बहुत हाथ -पैर पकड़ रही थी. क्षमा याचना कर रही थी किंतु जो चीज अपनी नजरों से उतर गई तो उतर गई। 

कौन थी ?वह लड़की! कल भी नहीं जानबूझकर पूछा। 

यह जानकर,अब तू क्या करेगा ? जब मेरा ही उससे कोई मतलब नहीं रहा। मैं सोच रहा था, शायद वह मुझे ही पसंद कर ले , और यह कहकर हंसते हुए वहां से चला गया। 

यह बात उसने चतुर और अन्य दोस्तों को भी बताई, जिसे सुनकर सब हंसने लगे, सुनील बोला -''खिसियानी बिल्ली खंबा नोचे।'' वह जानता है, कि हम सभी को उसके विषय में मालूम है , किंतु ऐसा दर्शाता है जैसे वह सब बातों से अनभिज्ञ है, उस पर कोई फर्क नहीं पड़ रहा किंतु सतर्क रहना। उसने अभी यह बात स्वीकार नहीं की है। पता नहीं ,कब धोखे से वार कर दे? कहने को तो हमारा मित्र है किंतु अंदर ही अंदर , झुलस रहा होगा। उसने चतुर को समझाया। 

हां ,यार !तू सही कह रहा है, जो सब चीज मालूम होते हुए भी, उसके घर रिश्ता भेज सकता है कुछ अन्य कार्य भी कर सकता है। विवाह में, अड़चन पैदा कर सकता है। मैं ही नहीं तुम लोगों को भी, अब सतर्क रहना होगा। यह मेरी ही लड़ाई नहीं है, तुम लोग भी तो मेरे साथ हो। 

हां -हां हम सब तेरे साथ हैं, समवेत  स्वर उभरा 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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