Kanch ka rishta [part 57]

करुणा ,प्रभा से एक प्रश्न पूछती है , क्या कभी उसकी मुलाकात ! किशोर से नहीं हुई। 

इस प्रश्न पर, प्रभा शांत हो गई , कुछ देर चुप रहने के पश्चात बोली -मुलाकात हो भी जाती तो क्या लाभ होता ? उसने भी,कहीं किसी से विवाह कर लिया होगा , अपनी जिंदगी जी रहा होगा, हो सकता है ,मैं उसको उसकी  बच्ची के बारे में ,उसे बता भी देती तो शायद ,वह उसे ले जाता या समाज के कारण ,अपनाता ही नहीं। तब मेरी बच्ची पर कितना बुरा प्रभाव होता ?ऐसे डरपोक मर्द भी तो होते हैं। जो जब ''प्रेम ''रूपी पाप कर्म करते हैं, तो चुपचाप करते हैं और जो गलती की है तो उसे दुनिया के सामने स्वीकार भी नहीं करते। ऐसे लोग डर-डरकर जीते हैं। अब उस डरपोक से, मुझे कोई लेना-देना नहीं। वह जीये, अपनी जिंदगी ! मैंने तो अपनी जिंदगी जी ली।


वो तो सही है ,किन्तु अभी तूने जो कहा -''प्रेम ''रूपी पाप कर्म ! प्रेम कभी भी पाप की श्रेणी में नहीं आ सक ता,प्रेम तो एक एहसास है,कोमल भावना है।  तुम्हारी कहानी में तुम दोनों में 'प्रेम 'था ही ,कहाँ ? एक -दूजे के स्वार्थ से जुड़े हुए थे। ''तुझे चाहत थी ,वो तेरे रूप के आकर्षण में तेरा हो जाये और उसे तेरे पैसों की जरूरत थी।'' यदि उसे प्रेम होता ,वह परेशानियों से जूझता ,विवाह के लिए तुझसे थोड़ा समय लेता और जब किसी क़ाबिल हो जाता तो तुझे पूरे सम्मान के साथ ,विवाह करके ले जाता। तुम लोगों ने तो अपनी हवस मिटाने में बहुत जल्दबाज़ी की,जिसका परिणाम तेरे पेट में आया। बेमौसम ! बरसात भी अच्छी नहीं लगती ,शायद ,इस सबके लिए वो तैयार ही नहीं था,इसीलिए डरकर भाग खड़ा हुआ।  होटल में भी ,जो कुछ उसने किया ,हो सकता है ,तुझे ही ,प्रसन्न रखने का एक प्रयास हो। 

शायद !तू सही कह रही है ,जिसे मैं प्यार समझे बैठी थी ,वो तो बस छलावा था ,महज़ आकर्षण ! आज तुझे नाश्ता करते हुए मैंने अपनी संपूर्ण कहानी सुनाई ! कभी-कभी मुझे याद कर लिया करना ! थी ,तेरी कोई दोस्त !

थी से, क्या मतलब !

तू तो अभी भी है, और अपनी बेटी के लिए वर्षों तक जीएगी। 

ठीक कह रही है ,तू आज पता नहीं क्यों ?नींद आ रही है। 

चल तू सो जा !मैंने  तेरा बहुत समय ले लिया, नाश्ता भी कर लिया।  मैं भी थोड़ा विश्राम कर लेती हूं , फिर दोपहर के खाने की तैयारी करूंगी ,कह कर प्रभा ने फोन रख दिया। 

उसके आखिर के शब्द, करुणा को थोड़ा विचलित कर गए , फिर भी सोचा - मन कभी-कभी उदास हो जाता है और नकारात्मक विचार आने लगते हैं , सोएगी, तो ठीक हो जाएगी।

करुणा फोन रखकर, थोड़ा आराम करने के लिए लेट हो गई आंखों में नींद नहीं थी मन ही मन में सोच रही थी-यह रिश्ते भी न कितने उलझन भरे हैं ? कोई इन्हें  महत्व देता है ,कोई अपनी तरीके से अपनी जिंदगी जीना चाहता है। कोई रिश्तों से जुडी भावनाओं से ही खेल जाता है। समझ नहीं आता ,कौन क्या चाहता है ? सभी अपनी सोच के आधार पर इन रिश्तों में उलझ कर रह जाते हैं। भुगतना तो सभी को पड़ता है ,चाहे वो  प्रभा या प्रभा का पति हो ,उसने भी तो अपनी जान गवाईं। एक छोटी बच्ची को पिता का प्यार मिल जाता ,वह उसे अपना लेता तो उसका क्या चला जाता ? कुछ लोग तो गैर के बच्चों को ही गोद ले लेते हैं ,यही समझ लेता कि उसने किसी को गोद ले लिया है किंतु किसी को किस तरह से समझाया जाए उसके लिए कि उसका मन ही नहीं मानता जबरदस्ती तो नहीं समझाया जा सकता।यह मन ही तो रिश्तों को उलझाकर  रख देता है। यह अपने अनुसार जीवन को चलाना चाहता है ,मनुष्य की चलने ही कहाँ देता है ?ऐसे समय में ,बुद्धि भी न जाने ,कहाँ विलुप्त हो जाती है ?

उसे अपने वह दिन याद आने लगे जब वह अपने परिवार के लिए कुछ भी कर गुजरने के लिए ,वह तैयार रहती थी उसने किशोर से विवाह भी इसलिए किया था। ताकि मैं अपने भाई को पढ़ने में मदद करवा सकूँ।  वह आगे बढ़ सके, किशोर भी इतने अच्छे थे उन्होंने कभी भी, उसकी बात को टाला नहीं , किशोर बुरा ना मान जाएँ  या कहीं कुछ कहने न लगें  कि ये अपने घर वालों के लिए ही सोचती है ,या उनकी सहायता करती है। 

अब मेरी सास कितनी अच्छी हो गई हैं ? अब हमारे साथ रहती हैं, व्यवहार भी में भी काफी परिवर्तन आया है। समय के साथ हर चीज बदलती है, शायद समय ने मेरी सास को भी समझा दिया और वह भी समय के साथ बदल गईं।

उस समय जब मैं नई-नई विवाह करके आई थी, तब कितनी गुस्सैल थी? मुझे बहुत डर लगता था, किंतु किशोर मेरे साथ हमेशा खड़े नजर आए। 

कैसे-कैसे लोग हैं ?एक मेरा किशोर है और एक प्रभा को किशोर मिला।  दोनों में जमीन -आसमान का अंतर है। मैं अपने परिवार के लिए सब कुछ करने के लिए तैयार थी और अपने भाई को पढ़ा भी रही थी किंतु मुझे लगा मैं इस परिवार के लिए उतना नहीं कर पाऊंगी ,जो मैं चाहती हूँ। मैंने इसी शर्त पर किशोर से विवाह किया था, और यही सोचा था कि मैं अपने भाई की उसके पढ़ने में सहायता करूंगी। जब मायके से नेग ले जाने होते, तो अपने पैसे जोड़ती रहती थी और उन्हें पैसों से सामान ले जाकर मैं ,अपनी सास को दिखा देती थी ताकि वह यह न कहें कि इसके मायके वालों ने तो कुछ भी नहीं दिया क्योंकि क्रोध में तो ये उस समय, कुछ भी बोल देती थीं। धीरे धीरे कुछ दिन नौकरी भी की, ताकि घर वालों की सहायता कर सकूं मेरे छोटे-छोटे बच्चे थे ,उनको छोड़कर नौकरी पर जाती थी। मेरी सास को तो पैसे चाहिए थे वह अक्सर कहती-तेरे पैसे बहुत जल्दी खत्म हो जाते हैं, आखिर तू नौकरी करती है तो पैसे कहां चले जाते हैं ?तब मैं कहती -कि मेरे खर्चे बहुत बढ़ गए हैं इसीलिए मेरा खर्चा हो जाता है किंतु यह नहीं बताया कि मैं अपने मायके वालों की सहायता कर रही हूं। 

शुरू-शुरू में,कई महीने में अपने मायके भी नहीं गई थी , क्योंकि मुझे छोड़ने के लिए ,मेरे जेठ -ससुर -देवर सभी आते थे और लेने भी आते थे। यह सब पैसे वाले थे, तो इन्हें लगता था ,कि इसके मायके वाले विदाई के समय अच्छी विदाई देंगे किंतु घर वालों का खर्चा न हो ,यही सोच कर, मैं अपने मायके नहीं जाती थी और जब गई अपने पैसे लेकर जाती थी। किंतु मुझे क्या मालूम था? जिन लोगों के लिए मैं इतना कर रही हूं , जब वह सक्षम हो जाएंगे। तो मेरा साथ भी उन्हें अच्छा नहीं लगेगा मुझसे बात करना भी अच्छा नहीं लगेगा।आज उसी भाई से अपने परिवार से मिलने को तरस जाती हूँ ,मिलना तो दूर ,बात भी नहीं होती। उस  दिन मनु के विवाह में हम अजनबी से थे। सोचते हुए ,करुणा के मन से व्यथा की एक धारा आँखों के माध्यम से ,उसके कपोलों पर बह चली। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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