Rasiya [part 65]

अभी चतुर ने सुकून और चैन की सांस ही ली थी, वह आंखें मूंदे हुए ,उस अनुभूति को ,अनुभव करना चाहता था ,जो इतने दिनों से उसकी परेशानी का सबब बनी हुई थी। तभी माँ के स्वर ने उसे चौंका दिया। वही मां रामप्यारी, जो अपने बेटे के लिए रात- दिन परेशान रहती है, उसकी खुशियों की दुआएं मांगती है। आज वह कस्तूरी के पिता से, सबके सामने ''दहेज'' मांग रही है। ऐसी तो कुछ भी चर्चा नहीं हुई थी, तब माँ  को न जाने ,अचानक यह क्या हो गया है ? पहले वह सोचता है, कि शायद पिताजी मां को शांत करेंगे, किंतु वे भी चुपचाप बैठे हैं। वे मम्मी को क्यों नहीं रोक रहे हैं ? जब यह सब उसकी बर्दाश्त से बाहर हो गया तब वह अपनी मम्मी को टोकता है ,और आगे कुछ भी न कहने के लिए,उन्हें हाथ से ,रुक जाने का प्रयास करता है  किंतु उसकी मम्मी, उससे कुछ भी कहने के लिए मना कर देती हैं। तू ,चुप कर..... और अपना कथन जारी रखती हैं। बेटा !मैंने तुम्हें पसंद तो कर लिया, क्या तुम्हें खाना बनाना आता है ? मेरे बेटे को क्या बनाकर खिलाओगी ? अचानक ही ,उन्होंने विषय ही बदल दिया। 


कस्तूरी बोली -मुझे ज्यादा खाना बनाना नहीं आता, किंतु मैं धीरे-धीरे सीख जाऊंगी। 

जब तक तुम्हारा विवाह नहीं होता है, तब तक तुम, खाना बनाना सीख लो !

 कस्तूरी के माता-पिता चुपचाप बैठे हुए आपस में एक दूसरे को देख रहे थे। उनके चेहरे की हवाइयां उड़ी हुई थीं। रामप्यारी की बातें सुनकर, उनके चेहरे का रंग फीका पड़ गया था। ऐसे वातावरण में ,उनका ध्यान कस्तूरी और उसकी होने वाली सास की बातों में नहीं था। वे वहाँ होकर भी वहां नहीं थे। उन्हें कुछ समझ नहीं आ रहा था,इस रिश्ते को लेकर उन्हें प्रसन्न होना चाहिए और मन ही मन सोच रहे थे -कहां से और कैसे इंतजाम करेंगे ? इशारे से कस्तूरी की मां, अपने पति को अलग स्थान पर ले जाना चाहती है। वह उनसे अकेले में वार्तालाप करना चाह रही थी इसीलिए वह आंखों के इशारे से उस स्थान से हटकर ,अलग स्थान पर बुलाना चाह रही थी। 

 श्रीधर जी, उन दोनों के चेहरे के भावों को पढ़ रहे थे, उनकी परेशानी को भी समझ रहे थे। उन्हें रामप्यारी, की बातों पर अफसोस हो रहा था कि यह अचानक उसने, क्या कह दिया ? कहीं यह इन लोगों को परखना तो नहीं चाह रही। मुझे तो नहीं लगता कि है कोई दहेज की मांग करेगी किंतु यदि इसने यह, हंसी की है ,तो इन लोगों पर भारी पड़ सकती है। इससे पहले कि दोनों पति-पत्नी उठकर, वहां से जाते ,उससे पहले ही,श्रीधर जी कस्तूरी के पिता से बोले - यदि आपको गेहूं वगैरहा की और साग - सब्जियों की, आवश्यकता हो तो हमारे यहां से मंगा लेना किंतु बारातियों का खाना और उनका स्वागत अच्छे से होना चाहिए। आपको जो भी अपनी बेटी को देना है ,वह अपनी बेटी को दीजिए ,हमारे यहां किसी भी चीज की कोई कमी नहीं है , हमारा भी जो कुछ होगा ,इन दोनों का ही होगा। आपको परेशान होने की कोई आवश्यकता नहीं है , इसकी मां तो ऐसे ही मजाक करती रहती है , आप लोगों से भी एक मजाक किया है।  

श्रीधर जी की यह बातें  सुनकर दोनों पति-पत्नी के चेहरे पर, घबराहट भरी प्रसन्नताआई , तब भी मन ही मन वह सोच रहे थे -''इतने बड़े लोग हैं , चाहे यह कुछ भी न लें , किंतु उनके मान-सम्मान का ख्याल तो रखना ही होगा ताकि इनके रिश्तेदारों में, कोई कस्तूरी को ताना न मारे,'' न जाने किस  घर से आई है ?'' कस्तूरी को कोई भी परेशानी नहीं थी ,उसे तो अपने चतुर पर पूर्ण विश्वास था, कि वह सब संभाल लेगा। वह तो बस उस घर जाने के सपने सजाने लगी थी। पिता के शब्दों को सुनकर, चतुर समझ गया था कि उसके पिता किसी को परेशान होते देखना नहीं चाहते, जो भी मदद करनी होगी, उनकी मदद करेंगे। चलने का समय हुआ तो कस्तूरी ने सभी के पाँव छुए। प्रसन्नता पूर्वक , अपने-अपने घर को लौटने लगे। रामप्यारी और श्रीधर जी को तो कोई भी परेशानी नहीं थी। उन्हें तो एक सुंदर लड़की चाहिए  थी, जो उनके बेटे को अपने प्रेम का विश्वास दिला सके। इस घर -परिवार को संभाल सके उन्हें और क्या चाहिए ?

कस्तूरी के माता-पिता थोड़े अनमने से थे, उन्हें भी यह रिश्ता स्वीकार था ,पसंद था किंतु अब वह स्वयं चाहने लगे थे कि उनकी हैसियत के हिसाब से ,उन्हें विवाह करने के लिए, कुछ कर्ज तो उठाना ही पड़ेगा। कस्तूरी की मां पर इतना फर्क नहीं पड़ रहा था क्योंकि उसने तो, उनका घर- परिवार देखा ही नहीं था। बल्कि उसे तो अभी भी, सुशील का रिश्ता ही पसंद आ रहा था किंतु पति के सामने कुछ कह नहीं सकती थी। मन ही मन सोच रही थी, जब इन्होंने इससे विवाह का ठान ही लिया है , तो स्वयं ही, तैयारी भी करेंगे।

 तीन-चार दिनों  के पश्चात , चतुर फिर कस्तूरी के घर आया. और उसके घर वालों से बोला - अब मैं यहां बार-बार नहीं आऊंगा। यदि आपको किसी कार्य की आवश्यकता है या कुछ भी पूछना है, तो मोहित मुझे जाकर बता दिया करेगा क्योंकि अब कोई छुपाने वाली बात रह ही नहीं गई थी. एक महीने पश्चात सगाई का, समय निश्चित हुआ। 

बहुत अच्छे से सगाई हुई, दहेज में पलंग, सोने -चांदी का सामान, बिस्तर, इत्यादि काफी सामान आया था। अपने दो -चार रिश्तेदारों को लेकर सगाई करने आए थे। उस समय गांव में तो, गांव के सभी लोग देखने आते थे, और आए भी....... जैसे ही सुशील को पता चला कि चतुर की सगाई हो रही है ,उसे आश्चर्य हुआ। और वह मन ही मन प्रसन्न भी हुआ। वह सोचने लगा, चलो अच्छा हुआ रास्ते का काँटा अपने आप ही हट गया किंतु जब सगाई में कस्तूरी के पिता को देखा, उसके क्रोध और आश्चर्य की सीमा न रही।

वह सगाई को बीच में ही छोड़कर, कस्तूरी के घर पहुंच गया। मेरे साथ इतना बड़ा खेल कैसे खेला ? लगभग उसकी मां पर क्रोध में चिल्लाते हुए बोला। 

सुशील का क्रोध आज किस-किस पर भारी पड़ने  वाला है  ? क्या उसने यहां आकर सही किया ? क्रोध में  वह पागल हुआ जा रहा था। क्या यह अपमान वह बर्दाश्त कर पाएगा ? आईये !आगे बढ़ते हैं, अपनी कहानी ''रसिया ''के साथ !

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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