Rasiya [part 64]

 यह रसिया के लिए कठिन समय चल रहा है, रसिया यानी हमारे ''चतुर भार्गव जी !''यह उसकी स्कूल ,कॉलेज जैसी परीक्षा नहीं चल रही है ,, उस परीक्षा में तो मेहनत करके या नकल करके वह पास हो भी जाए किंतु यह तो जिंदगी की परीक्षा चल रही है और इस परीक्षा में वह पास भी होना चाहता है। पहले अपने माता-पिता को समझाना ,उसके पश्चात कस्तूरी के माता-पिता से बातचीत करना ,बहलाकर उन्हें अपने घर लाना और अब कस्तूरी को माता-पिता के सामने, बेहतर साबित करना ,यह सब उसकी परीक्षा का ही अंश है। वह कस्तूरी के साथ ,अपना सम्पूर्ण जीवन व्यतीत करना चाहता है ,इसीलिए इस परीक्षा में तो उसे पास होना ही होगा। इस परीक्षा को पास करने के लिए ,दो दिन पहले वह चोट भी खा चुका है किन्तु ऐसे लम्हों में भी ,उसने धैर्य से कार्य किया। अन्य कोई कारण रहा होता तो...... चतुर ,सुशील की'' ईंट से ईंट बजा देता।''  क्या उसके प्यार ने उसे बुझदिल बना दिया ?या फिर कस्तूरी के प्यार ने उसे जिंदगी जीना सिखला दिया। 


ख़ैर !जो भी रहा हो !सबसे बड़ी बात तो यह है, सुशील ने उसकी मोहब्बत पर बुरी नजर डाली थी ,जिंदगी की परीक्षा में तो पास होना ही है ,साथ ही बात आन पर आ गयी है। चतुर ने अपने माता-पिता को, एक अलग स्थान पर कस्तूरी को देखने के लिए बुलाया।वह अभी यह नहीं चाहता था, कि कस्तूरी के मौहल्ले वालों को इस तरह की कुछ भी जानकरी हो। उसके पिता और मां को भी वहीं कस्तूरी के साथ बुलवा लिया । 

रामप्यारी ने उस स्थान को देखा और बोली -यह तो मुझे लड़की वालों का घर नहीं लगता, तू हमें यहां कहां लेकर आ गया है ?

मम्मी !हमें लड़की से मतलब होना चाहिए, उसके घर से नहीं, उसका घर अंदर गलियों में है, वहां जाने में परेशानी होती इसीलिए मैंने सोचा, यह खुला स्थान सही रहेगा। 

अब जैसा तू ठीक समझे ! जो भी है ,हमें अब तेरे कहे पर तो चलना ही होगा, व्यंग्य करते हुए रामप्यारी बोली।रामप्यारी के न चाहते हुए भी उसके व्यवहार में लड़के की माँ होने का गुरुर झलक रहा था। हो भी क्यों न...... कई एकड़ जमीन की मालकिन है ,अच्छा परिवार है ,ऊपर से उसका समझदार बेटा !जहाँ गांव में आठवीं -दसवीं  से आगे कोई नहीं पढ़ा ,वह पढ़ रहा है ,अन्य साथियों को भी लेकर गया। इस गांव में ऐसे कई कार्य उसने किये ,जो आजतक किसी ने नहीं किये और अब अपनी पसंद की लड़की से विवाह करने की सोच रहा है। यह भी पहली बार ही होगा ,कुछ भी हो ,रामप्यारी को अपने बेटे पर गर्व है। 

कुछ देर पश्चात अपने माता-पिता के साथ कस्तूरी वहां आ गई ,कस्तूरी ने अपने दुपट्टे से अपना सर ढ़का हुआ था। उसके लम्बे खुले बाल ,गौर वर्ण ,तीखे नयन -नक्श देखकर ,रामप्यारी ने श्रीधर के जबाब की भी प्रतीक्षा नहीं की और अपने हाथों में पहने हुए ,सोने के कड़े कस्तूरी को पहना दिए। कस्तूरी से पूछा -क्या तुम्हें मेरा चतुर पसंद है। यह प्रश्न सुनकर ,कस्तूरी शर्मा गयी और आँखें नीची कर हाँ में गर्दन हिला दी। प्रसन्न होते हुए ,कस्तूरी के पिता ने लड्डुओं की तश्तरी उनके आगे कर दी। दोनों पति -पत्नी एक -एक लड्डू उठाते हुए कहते हैं ,अब आप विवाह की तैयारी कीजिये !अब आपकी बेटी हमारी हुई। अब आपके घर में ,ये हमारे चतुर की अमानत है। ये शब्द सुनने के लिए ही ,चतुर,इतने दिनों से परिश्रम कर रहा था। प्रसन्नता से आँखें मूँदकर,कुर्सी से सर टिकाकर बैठ गया। वह  विश्वास करना चाह रहा है , ये मेरा स्वप्न नहीं ,सच्चाई है ,उसे तो उम्मीद ही नहीं थी ,माँ इतने शीघ्र अपना निर्णय सुना देंगी। 

तभी उसने ,कस्तूरी के पिता का स्वर सुनाई दिया -यह मेरा सौभाग्य होगा, कि आपके परिवार से हमारा  रिश्ता जुड़ेगा। यह मेरी बेटी की किस्मत है ,कि आपके बेटे को मेरी बेटी पसंद आ गई, और अब यह आपके घर की बहू बनने जा रही है। आप लोगों के सामने तो मैं, कुछ भी नहीं हूं। आपके बेटे ने तो आपको बतला ही दिया होगा , मेरी तो एक छोटी सी चाय की दुकान है , यदि मैं उसे बेच भी दूं , तब भी आप लोगों की बराबरी नहीं कर सकता। दान -दहेज में इसकी मां ने जो भी इसके लिए जोड़ा होगा। वही हमारी संपत्ति है, बाकी हमारी बिटिया ही, हम आपको दे सकते हैं। इससे ज्यादा की उम्मीद आप हमसे न करें। इतना तो कर सकता हूं, बरातियों के स्वागत अच्छे से करने का प्रयास करूंगा और आपकी जो इच्छा हो ,हमें बता दीजिये !

मेरे लिए एक सोने का सेट, अपनी बेटी के लिए कितने तोला सोना चढ़ा रहे हो ? सभी रिश्तेदारों के लिए कपड़े , और अपनी बेटी को जो भी कपड़े और आभूषण दो !वह सब हमारी हैसियत को देखते हुए देना। अपनी हैसियत को देखते हुए नहीं , बिरादरी में हमें भी दिखाना है ,कि हमारे इकलौते बेटे का विवाह हुआ है और किस परिवार से हुआ है ? रामप्यारी मुस्कुराते हुए बोली। 

 मां की बातें सुनकर ,चतुर ने झट से आंख खोल कर अपनी मां की तरफ देखा, यह क्या कह रही हैं ? उनकी हैसियत में जानता हूं, यह बेटी के सिवा शायद ही और कुछ दे पाएंगे , मन ही मन सोच रहा था। मैं इनके बीच में बोलूं या नहीं, पहले उनकी पूरी बात तो सुन लूं ! मुझे नहीं लगता ,मेरी मां ऐसा भी सोचती होगी। तभी उसे रामप्यारी के स्वर फिर से सुनाई दिए , इतना पढ़ा -लिखा लड़का, हमारे गांव में, यही है। बहुत बड़े कॉलेज भी पढ़ने जाएगा। इकलौता बेटा है ,हमारा, आपकी बिटिया उस घर पर राज करेगी। एक से एक बड़े खानदान से, इसके रिश्ते तो बहुत आ रहे हैं, किंतु इसने ही, रिश्ता लेने से इनकार कर दिया था। अब हमें क्या मालूम था ?कि आपकी बेटी ने, इस पर ''मोहिनी मंत्र ''डाला है। अब हमें भी ,आपकी  लड़की पसंद आ गई है, कस्तूरी की तरफ देखते हुए बोलीं -हमें तो बच्चों की खुशी में ही अपनी खुशी देखनी होगी। 

चतुर ने अपने पिता की तरफ देखा, वह भी चुपचाप बैठे थे , मां को कुछ भी कहने से रोक क्यों नहीं रहे हैं ? परेशान होते हुए, चतुर सोच रहा था। 

जब उसे पर रुका नहीं गया और बोला-मम्मी !आप यह क्या कह रही हैं ?

तू चुप कर........ तेरी इच्छा ,इस लड़की से विवाह करने की थी न........ हमने यह लड़की पसंद कर ली है, हमने अपना फर्ज निभाया , अब इसके घर वालों को भी तो अपना फर्ज निभाना चाहिए। 

चतुर के सामने एक समस्या और आन खड़ी हुई, अचानक सुनने लड़की वालों से दहेज की मांग कर दी। उनकी बात भी अपनी जगह सही थी किंतु कस्तूरी के पिता की हैसियत जानता था। उसकी घबराहट बढ़ गई। बात बनते -बनते कहीं बिगड़ ना जाए, चलिए !आगे बढ़ते हैं -रसिया !

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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