Lalach

 कहते !सब ,मैं लालची नहीं,

यहां,लालच सभी को रहता है।  

किसी को कम तो किसी को ज्यादा!

लाभ देखते सभी, झूठ से नहीं कोई फायदा !



लालच ! इक रबर सा  ,खिंचता  जाता।

किसी सर्प सा ,आगे,और बढ़ता जाता। 

जोड़ो ,इसे  धर्म ,आस्था और सच्चाई से, 

सच्ची सोच का करो, लालच !लडो उसकी बुराई से।

 

बढ़ जाए , ग़र यह अजगर सा मुंह फाड़ता  है। 

खा ले यह है कुछ भी ग़र  ,पेट नहीं भरता है। 

भ्रष्टाचार ,रिश्वतखोरी , सभी इसके भाई हैं। 

सही औ सच्चे इंसान की तो शामत आई है। 


सर्प सा कुंडली मार सीने पर बैठ जाता है। 

अच्छे खासे मानव को खूब नाच नाचता है। 

लगता जैसे, इसने अभिनय की शिक्षा पाई है। 

मोह और ईर्ष्या ने इसे जमकर घुट्टी पिलाई है। 


कहने को तो ''लालच ''अकेला है ,

किन्तु परिवार इसका बड़ा हरजाई है। 

मेरी रचना को पढ़ें , यही लालच मुझे सुहाता है ,

उसके सिवा  मुझे ,कोई विचार  नहीं आता है। 

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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