चतुर के पिता, इस रिश्ते के लिए मना न कर दें ,अब यही डर उसे सता रहा था। श्रीधर जी ने, उसका अच्छा स्वागत किया, किंतु बेटी, के रिश्ते की बात को लेकर, वह शांत रहे, अभी कोई जवाब नहीं दिया। चतुर उत्साहित होकर उन्हें अपनी अपने खेत इत्यादि दिखाने के लिए ले गया, साथ ही ,उसने सुशील का घर भी दिखलाया। कस्तूरी के पिता की तो जैसे बोलती ही बंद हो गई थी ,अब वह क्या कहें ? मन ही मन सोच रहा था -सारी जिंदगी मेहनत करूंगा , तब भी इतनी संपत्ति, मेरे पास नहीं हो सकती। उत्साहित होकर गया था किंतु चुपचाप वापस आ गया। सुशील की संपत्ति भी कम नहीं थी। उससे तो ज्यादा ही थी। मन ही मन सोच रहा था ,गांव में रहने वाले लोग कितने साधारण होते हैं ,कितने सरल होते हैं ? लाखों की संपत्ति लिए बैठे हैं किन्तु तनिक भी अहंकार नहीं।
जब वह अपने घर वापस लौट रहा था ,तो उसका साहस ही नहीं हुआ कि चतुर के पिता से एक बार पूछ ले कि विवाह के विषय में ,उनका क्या इरादा है ? मन ही मन सोच रहा था - मेरी बेटी के तो जैसे भाग्य खुल गए , गरीब की बेटी ,राजा के घर में जाएगी। श्रीधर जी ने तो कोई जवाब नहीं दिया किन्तु चतुर पर पूर्णतः विश्वास हो गया था, शायद बात बन जाए ,इसे तो मेरी बेटी पहले से ही पसंद है ,माता -पिता को भी समझा ही लेगा।
घर आकर अपनी पत्नी से कहता है - हमसे ज्यादा संपत्ति तो, सुशील के पास भी है, किंतु जिसे हम अपना नौकर समझ रहे थे, वह तो हम जैसे न जाने कितने लोगों को नौकर बना कर रख सकता है ? हमारी कस्तूरी के तो भाग्य खुल गए ,इतने बड़े घर से रिश्ता आया है और कितना होनहार लड़का है ? हमारे घर यहां नौकर बनकर रहा, किंतु कभी भी अपनी संपत्ति का रौब नहीं दिखलाया। जैसा खाने को दिया ,चुपचाप खा लिया।'' यह शायद हमारे वही पुण्य कर्म हैं , जब हमने उस भूखे को भोजन खिलाया था।''जब आदमी प्रसन्न होता है ,तब भी अपने कर्मो के विषय में सोचता है ,न जाने कौन से पुण्य कर्मों का फ़ल मिला है और जब दुःखमय होता है ,तब भी अपने कर्मों पर नजर डालता है ,न जाने कौन से बुरे कर्मों का परिणाम हमारे सामने आ रहा है। ''
किंतु इन बातों को सुनकर भी, कस्तूरी की माँ प्रसन्न नहीं हुई ,बोली -हमारी बात तो वहां पहले से ही तय हो चुकी है।
तुम इसी बात की जिद क्यों लिए बैठी हो ? जब उससे बेहतर रिश्ता आ रहा है। तुम यह शुक्र मनाओ !कि उन्हें हमारी बेटी पसंद आ जाए।
कस्तूरी !को जबसे पता चला था कि पापा ,चतुर के गांव जा रहे हैं , दिल की धड़कनें तीव्र हो चलीं थीं ,तब से ही अपने पापा की प्रतीक्षा कर रही थी। कभी छत पर चढ़कर बाहर जाने वाले रास्ते की तरफ देखती तो कभी,प्रतीक्षा में आँखें मूंद ,चतुर के उसी गांववाले रास्ते को उसकी नजरें खोजती नजर आती। बिना सोये भी वह स्वप्न देख रही थी ,ऐसा गांव होगा ,चतुर के माता -पिता न जाने केेसा व्यवहार करेंगे ? मेरा चतुर कभी मेरे माता -पिता का अपमान नहीं होने देगा। जब अपने पिता के आने की आहट सुनी ,बढ़ती धड़कनों को संभालते हुए ,दबे पांव दरवाजे के पीछे जा छिपी और छुपकर उनकी बातें सुनने लगी। माँ को विरोध करते देख उसे क्रोध आया। जब उसके पिता ने उसकी माँ से पूछा -तुम सुशील के लिए ही ज़िद क्यों कर रही हो ?तब दरवाजे के पीछे से ,कस्तूरी बाहर आकर बोली -क्योंकि इन्हें चार तोले सोने के कड़े जो मिलने वाले हैं।
अपनी बातों में ,इस तरह कस्तूरी का हस्तक्षेप देखकर दोनों पति -पत्नी ने कस्तूरी की तरफ देखा ,और अपने प्रश्न का उत्तर अपनी बेटी के मुख से सुनकर ,वो बौखला गए और अपनी पत्नी की तरफ देख बोले -यह क्या कह रही है ?
यह उसके प्रेम में बौखला गई है, बावली हो चुकी है, कुछ भी कहने से पहले सोचती नहीं है। उसके दिमाग में काम करना बंद कर दिया है। चल तू ऊपर जा ! जाकर अपने कमरे में बैठकर पढ़ाई कर , वे कस्तूरी से बोली।
1 मिनट रुको ! तुम अभी कुछ देर पहले क्या कह रही थीं ? कस्तूरी के पिता ने, कस्तूरी से प्रश्न किया।
यह क्या कहेंगी ? इसे तो उससे ही विवाह करना है , इसलिए सारी दुनिया, दुश्मन नजर आएगी। आएगी नहीं ,आ रही है। अब तो इसे अपने मां-बाप भी बुरे लगने लगे हैं।
तुम बात को बदलो मत ! कस्तूरी तुम बताओ !यह चार तोले सोने की क्या बात थी ?
इन्हें, सुशील ने चार तोले कड़े देने का, वादा किया है, यदि यह मेरा विवाह उससे करा देती हैं। अपनी मां को घूरते हुए बोली।
यह सब झूठ बोल रही है ?
यह झूठ नहीं है मैंने स्वयं अपने कानों से सुना है , वह कह रहा था -' यदि आंटी जी मेरा कस्तूरी से विवाह हो जाता है। तब मैं आपके लिए सोने के चार तोले के कड़े बनवाऊंगा। इनका यही लालच, ही इन्हें चतुर का दुश्मन बन रहा है।
मुझे तुमसे ऐसी उम्मीद नहीं थी, कस्तूरी के पिता, अपनी पत्नी को हिकारत से देखते हुए बोले। तुम तो इसकी सगी मां को, सौतेली भी नहीं, तुम भी ऐसा सोच सकती हो। तुम्हें किस चीज की कमी है ? एक कड़े के लालच में, तुम अपनी बेटी की जिंदगी का सौदा करने चली थीं, लानत है, तुम्हारी सोच पर..... मैंने कभी सोचा नहीं था, तुम इतनी लालची निकलोगी।
मैं लालची नहीं हूं, मैंने तो इसी के लिए सोचा था हमारी अपनी तरफ से, इसे जब मैं सोना चढ़ाऊंगी, तो हमारा नाम होगा।
एक झूठे नाम के लिए , तुम कुछ भी अनर्थ कैसे कर सकती हो ? जो लड़का, अपने स्वार्थ के लिए दूसरे आदमी को बरगला सकता है। ऐसे लड़के से मैं, हरगिज़ अपनी कस्तूरी का विवाह नहीं करूंगा। उन्होंने जैसे अपना निर्णय सुना दिया। कस्तूरी मन ही मन प्रसन्न हुई और अपने कमरे में चली गई। हालांकि उसे मां के लिए दुख हो रहा था , उसके कारण उसकी मां को डांट पड़ी किंतु अपने रिश्ते को बचाने के लिए यह भी आवश्यक था ? मन ही मन अपने को समझा लिया।
अभी इतनी जल्दबाजी भी ठीक नहीं, पहले उसके माता-पिता को हमारी कस्तूरी को देखा तो लेने दीजिए।
क्यों ,हमारी कस्तूरी में क्या कमी है ? आत्मविश्वास के साथ उन्होंने पूछा। अपने पति की बात सुनकर वह चुप हो गई।
बिचौलिये का यह कार्य भी, चतुर ने ही किया और उसने उन लोगों को सूचना दी कि मेरे माता-पिता कस्तूरी को देखना चाहते हैं। वह स्वयं ही नहीं चाहता था कि उसके माता-पिता उस चाय की दुकान को देखें या फिर उसके उस छोटे से घर को, हो सकता है ,यह सब देखकर वे इस रिश्ते से ही इनकार कर दें इसलिए उसने , एक अलग जगह इंतजाम करवा दिया।
