Rasiya [part 61]

चतुर के माता-पिता को, बेटे की चोट लगने का दुख था ,किंतु उससे ज्यादा दुख उन्हें इस बात का पहुंचा कि उनका बेटा न जाने किन-किन उलझनों में उलझा हुआ था ?और यह सभी बातें उन्हें आज पता चल रही थीं। सुशील ने चतुर का, माथा फोड़ दिया इसीलिए उसके पिता कहते हैं , कि उसे उसकी औकात याद दिलवा कर रहूंगा। 

नहीं ,आप ऐसा कुछ भी नहीं करेंगे , बात इतनी भी नहीं बिगड़ी है कि गांव वालों के सामने बताई जाए। बस अब आप यह बता दीजिए !क्या आप मेरा कस्तूरी से विवाह करवाएंगे ?


 बेटे के इस प्रश्न पर ,दोनों पति-पत्नी, शांत हो गए। इस समय वह उन परिस्थितियों को स्वीकार ही नहीं कर पा रहे थे। उसकी जिंदगी में और उससे जुड़े हम ,हमारी जिंदगी में न जाने क्या-क्या हो रहा है ? वह दोनों चुपचाप उठे, और घर के कार्यों में  व्यस्त होने का प्रयास करने लगे। घर में तो जैसे, उदासी छा गई , एकदम शांति छाई हुई थी। रामप्यारी और श्रीधर जी, चुपचाप अपने-अपने कार्य में लगे हुए थे। काम न भी हो ,जबरदस्ती काम करने का प्रयास कर रहे थे। अभी-अभी जो बेटे के मुंह से कहानी सुनी, उस पर विश्वास करने का प्रयास कर रहे थे। एक तरफ बेटे का मोह था , तो दूसरी तरफ, बात इज्जत पर आ गई थी। किसी को कुछ सूझ ही नहीं रहा था , यह क्या हो रहा है ? रामप्यारी मन ही मन सोच रही थी -आखिर इस लड़के को हुआ क्या है ? आज अपना माथा भी फोड़ लाया, मैं तो इसी बात को सोच कर घबरा रही हूं कहीं ज्यादा बात बढ़ गई होती, तो क्या होता ?

 श्रीधर जी सोच  रहे थे -ऐसी कैसी लड़की है ? जिसके लिए हमारा लड़का इतना बावला हो गया है और आज तो मारपीट की नौबत भी आ गई। रामप्यारी से रहा नहीं गया , तभी श्रीधर जी के समीप आकर बोली -यह उन्हीं दिनों की बात है, जब यह घर छोड़कर गया था , तभी उस चुड़ैल ने इस पर कुछ जादू किया होगा किंतु आज तक तो ऐसा कुछ भी नहीं लगा था , फिर अचानक यह बात कैसे हुई ?

अभी तुम्हारे बेटे ने ही तो बताया, कि वह तब से ही उसे प्रेम करता है , यह इसी प्रतीक्षा में होगा, कि पढ़ लिखकर बाहर नौकरी पर जाएगा तब हमसे बात करेगा किंतु उस सुशील के घर वालों ने और सुशील ने इसकी योजना पर पानी फेर दिया। 

आखिर वह लड़की कैसी होगी ? कौन बिरादरी होगी ? चार रिश्तेदारी में, बात फैल जाएगी कितनी बदनामी होगी ? चाय वाले की लड़की को ब्याह कर लाए हैं। क्या इसे बिरादरी में, कोई अच्छे खानदान की लड़की नहीं मिली। एक खोखे पर छोटी सी दुकान होगी, सभी रिश्तेदारों में थू ,थू हो जाएगी कल्पना करते हुए रामप्यारी ,परेशान हो रही थी। 

तुम बिरादरी और रिश्तेदारों की बात कर रही हो, यह तो सोचो !ऐसे समय में ,हमारे बेटे को उसी ने दो वक्त का भोजन दिया। उसको महीने भर अपने पास रखा, न जाने कहां -कहाँ धक्के खाता ?

हां ,यह तो है ,किंतु उसने काम भी तो पूरा लिया, उसके  बच्चों को भी पढ़ाया और दुकान पर भी काम करवाया कोई मुफ़्त में भोजन नहीं दिया। 

अब हमें यह नहीं सोचना है ,कि उसने क्या कार्य करवाया ? बल्कि यह सोचो ! हमारा बेटा उस लड़की से प्रेम करता है ,उस लड़की से कैसे पीछा छुड़ाया जाये?दूसरी बात सुशील ने उस लड़की पर नजर डाली है, बात आन  पर आ गई है। 

हां यह तो है ,जानबूझकर उसने ऐसा किया है , अब हम क्या करेंगे ?

अब हमें अपने बेटे की खुशी में ही, खुश रहना होगा। हमारा एकलौता बेटा है, उसकी खुशी में ही हमारी खुशी होनी चाहिए। 

बिरादरी और रिश्तेदारों का क्या होगा ?

जबकि जब देखी जाएगी, उन्हें भी समझा लेंगे, वैसे वह लड़की भी तो हमारे बेटे से प्रेम करती है, तभी तो उसने सुशील की पोल पट्टी खोली, या फिर उस लड़की से ही अपने बेटे को दूर किया जाये।  

अब तो देख कर ही पता चलेगा, कैसी लड़की पसंद की है ?इसने......  

किंतु एक बात है , मैं उसके द्वार पर नहीं जाऊंगा, यदि वह स्वयं अपनी लड़की का रिश्ता लेकर आता है , तब मैं कुछ सोचूंगा , आखिरकार उनके मन में अपने आपको भूमिहार होने का थोड़ा अहंकार जो है।

यह ठीक रहेगा , यदि उसका बाप आता है , क्या नाम बताया था ? चतुर ने उस लड़की का। 

शायद ,कस्तूरी ! हाँ कस्तूरी नाम बताया था ,स्मरण करते हुए बोले।  

कमाल है ,तुम्हें तो एक बार में ही उसका नाम स्मरण हो गया। 

होता कैसे नहीं ,आखिर अपने बेटे की पसंद जो है,श्रीधर जी शरारत भरी नजरों से रामप्यारी को देखते हुए बोले। 

तुम्हें इस उम्र में और ऐसे माहौल में भी हंसी सूझ रही है , रामप्यारी उन्हें डांटते हुए बोली। 

यह सब तो जिंदगी भर के लफड़े हैं, क्या अब जीना भी छोड़ दें ? तभी वहां चतुर आकर खड़ा हो गया , वह अपने प्रश्न का जवाब जानना चाहता था, किन्तु माता -पिता को एकसाथ देखकर तुरंत ही वहां से चला भी गया।  

उसे देखकर,श्रीधर जी संभल कर बोले -इसमें स्मरण की क्या बात है ? उसने नाम बताया था और मुझे ध्यान रहा। हां तो मैं क्या कह रहा  था  ? यदि उसका बाप हमारे चतुर के लिए रिश्ता लेकर आता है तब हम कुछ सोचेंगे ! बाहर दरवाजे की तरफ देखते हुए , जब उन्हें चतुर दिखलाई नहीं पड़ा , तब बोले -यदि वह नहीं आता है तो उस लड़की से भी ,हमारे बेटे का पीछा छूट जाएगा। 

वापस जाते हुए चतुर ने पिता के, आरम्भ के वे शब्द सुन लिए थे, उसके चेहरे पर प्रसन्नता छा गई थी। अब तो, सिर्फ कस्तूरी के घर वालों से ही बात करनी थी। हो सकता है, कस्तूरी को देखकर मेरे माता-पिता अपना इरादा बदल दें। किंतु साथ ही उसे चिंता भी होने लगी, मैं उन लोगों से क्या कहूंगा ?

चतुर जब कस्तूरी के घर पहुंचा, उसके माथे पर चोट देखकर, कस्तूरी घबरा गई। वह सोच रही थी, शायद दिन के घर में परिवार में कुछ झगड़ा हुआ है। वह अभी यह नहीं जानती थी कि सुशील, चतुर का ही दोस्त था। पिछली बार के कस्तूरी की मां के रवैये  को देखकर, चतुर के मन में थोड़ी घबराहट थी, किंतु जब ''ओखली में सर दिया है, तो मुसलों से क्या डरना ?'' यही सोच कर वह उसके घर में प्रवेश करता है। मोहित भी आगे आया और बोला -भैया !यह आपके  चोट कैसे  लगी ? 

 कुछ नहीं, बस ऐसे ही फिसल गया था पत्थर लग गया। तभी कस्तूरी की मां भी रसोई घर से बाहर आई, और बोली -आजकल तुम, हमारे घर ज्यादा नहीं आने लगे हो। 

यह आप क्या बात कर रही हैं ? चतुर चाय वाले की प्रतीक्षा में था, उससे कह कर आया था कि घर पर आ जाइए ,कुछ बात करनी है।

उन लोगों में क्या बातें होती हैं ? क्या वे, चतुर से कस्तूरी के रिश्ते के लिए तैयार हो जाते हैं। क्या उसका पिता, चतुर के घर जाएगा , आईये  मिलते हैं ,अगले भाग में -रसिया !

laxmi

मेरठ ज़िले में जन्मी ,मैं 'लक्ष्मी त्यागी ' [हिंदी साहित्य ]से स्नातकोत्तर 'करने के पश्चात ,'बी.एड 'की डिग्री प्राप्त करने के पश्चात 'गैर सरकारी संस्था 'में शिक्षण प्रारम्भ किया। गायन ,नृत्य ,चित्रकारी और लेखन में प्रारम्भ से ही रूचि रही। विवाह के एक वर्ष पश्चात नौकरी त्यागकर ,परिवार की ज़िम्मेदारियाँ संभाली। घर में ही नृत्य ,चित्रकारी ,क्राफ्ट इत्यादि कोर्सों के लिए'' शिक्षण संस्थान ''खोलकर शिक्षण प्रारम्भ किया। समय -समय पर लेखन कार्य भी चलता रहा।अट्ठारह वर्ष सिखाने के पश्चात ,लेखन कार्य में जुट गयी। समाज के प्रति ,रिश्तों के प्रति जब भी मन उद्वेलित हो उठता ,तब -तब कोई कहानी ,किसी लेख अथवा कविता का जन्म हुआ इन कहानियों में जीवन के ,रिश्तों के अनेक रंग देखने को मिलेंगे। आधुनिकता की दौड़ में किस तरह का बदलाव आ रहा है ?सही /गलत सोचने पर मजबूर करता है। सरल और स्पष्ट शब्दों में कुछ कहती हैं ,ये कहानियाँ।

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