जब किशोर जी अपने घर आए , तो घर का वातावरण बदला हुआ था। सभी प्रसन्न नजर आ रहे थे और करुणा भी तैयार हो रही थी। किशोर में आते ही पूछा -क्या आज तुम कहीं जा रही हो ?
मैं नहीं हम सभी, आज रात्रि के भोजन पर बाहर जा रहे हैं।
यह तुम क्या कह रही हो ? किशोर की बात सुनते -सुनते ही, करुणा रसोई में गई और गैस पर चाय बनाने के लिए रख दी, ताकि किशोर जी, को जो थोड़ी बहुत थकावट हो तो वह भी चाय पीकर तरोतारा ताजा हो जाएं।
हां, आज मम्मी का मन था कि बाहर घूमने जाएं, और वहीं रात्रि का भोजन भी करें !
किशोर को करुणा की इस बात पर विश्वास नहीं हुआ और आश्चर्यचकित होते हुए बोला -यह तुम क्या कह रही हो ? ऐसा मम्मी ने कहा।
और नहीं तो क्या ? जाकर देख लीजिए ,आपकी मम्मी जी पहले से ही ,तैयार बैठी हैं। जिंदगी के न जाने कितने छोटे-छोटे लम्हे हैं ?हम सोचते तो हैं लेकिन उन्हें ठीक से व्यतीत नहीं कर पाते। मन की बात मन में ही रख लेते हैं, और जितनी सरल जिंदगी को बनाना चाहते हैं वह सरल न बनकर ,उसे और कठिन बना देते हैं।
चाय की प्याली हाथ में लेकर किशोर अपनी मम्मी के पास गया,उसने देखा ,माँ तैयार बैठी है ,एक अलग ही चमक उनके चेहरे पर थी। मन ही मन सोचने लगा ,हो सकता है ,इनका मन कर आया हो ,पापा के जाने के पश्चात,तो जैसे इन्होने अपने को इस घर में बंद कर लिया था। हमने भी कभी ध्यान नहीं दिया इनकी इच्छा भी तो बाहर जाने की होती होगी। आज न जाने कैसे इनकी इच्छा जाग उठी ?अब इनसे यह बात पूछकर इनकी भावनाओं को ठेस नहीं पहुंचाना चाहता ,यही सब सोचकर बोला -मम्मी !आप तैयार हो गयीं।
हाँ ,हो गयी ,तू भी जल्दी कर...... बच्चे कबसे तेरी प्रतीक्षा कर रहे हैं ?
हाँ ,अभी जाता हूँ ,चाय चलते -चलते ही उसने समाप्त की और तैयार होने लगा ,उसको देखकर करुणा भी मुस्कुरा दी और सोचने लगी -''परिवार में सभी मिलजुलकर रहते हैं किन्तु अपनी इच्छाओं दबाये रहते हैं ,आज जैसे ही मैंने पहल की,घर में एक नया उत्साह जाग उठा ,शायद इसीलिए हमें घर चलाने की ज़िम्मेदारी दी जाती है। जैसे हम चलेंगे ,वैसे ही घर के अन्य सदस्य भी आगे बढ़ने लगते हैं ,बस पहल करने की देर है।''
गाड़ी में बैठी करुणा सोच रही थी -तमाम उम्र, हम जिंदगी की उधेड़बुन में लगे रहते हैं , किसको क्या खाना है किसको क्या देना है? घर को सीमित आय में कैसे चलाना है? यही सब सोचते करते उम्र का एक दौर निकल जाता है। तभी सभी से बोली -आज से हम एक नियम बनाते हैं , महीने में काम से कम एक बार तो हम अवश्य ही बाहर भोजन करने आया करेंगे। मेरी तो साड़ियां भी, दराज में रखी -रखी मुंह चिढ़ाने लगी हैं। बजट के चक्कर में बाहर भी जाना नहीं होता, बाहर का खाना महंगा पड़ जाता है इसलिए घर पर ही बना लेती हूं , फिर तू अब कैसे भी करके एक दिन तो बाहर के लिए निकालना ही होगा।
किशोर का आरंभ भी तो मन नहीं था, सारा दिन ऑफिस में, काम करके थक जाता है, तब उसे लगता है कि घर जाकर थोड़ा सुकून मिले, किंतु अब बच्चों को खुश देखकर, उसे लगा -कि मैं तो बाहर जाता ही रहता हूं , कि बच्चे भी स्कूल चले जाते हैं, किंतु मम्मी और करुणा को कहीं जाने का मौका ही नहीं मिलता। इनकी भी तो इच्छा होती होगी कि बाहर जाकर, दिल और दिमाग को, ताजगी से भरें। तक वह बोला -हां महीने में ,काम से कम एक बार तो, परिवार के साथ घूमने जाना चाहिए।
सभी ने अपनी -अपनी मनपसंद की चीजें मंगवाई , महिलाओं का क्या है होटल में जाती है या सब्जी के खरीदने के लिए सब्जी के बाजार में जाती हैं कहीं भी चली जाए इधर-उधर नजर दौड़ती ही रहती हैं। तब करुणा को लगा मैं कितनी पीछड़ गई हूं ? वही पुरानी साड़ी पहन कर आ गई, वैसे तो मेरी साड़ी सुंदर है अच्छी है, किशोर ने उपहार में दी थी , किंतु वहां बैठी महिलाओं को देखकर उसे लग रहा था जैसे वह पुराने फैशन की साड़ी पहन कर आ गई है। अपने में सकुचा गई, बाहर जाने की आदत ही नहीं है। फैशन का भी नहीं पता, कि कब क्या चल रहा है ?
भोजन करके बैठी हुई थी ,तभी उसे अपनी बगल वाली कुर्सी पर, जाना -पहचाना सा चेहरा नजर आया। उसने घूमकर दोबारा देखा, कहीं यह उसका भ्रम तो नहीं। अरे नहीं, यह भ्रम नहीं है , यह तो मेरी दोस्त दिव्या ही है। इसने अपने को कितना बदल दिया है ?पहचान में ही नहीं आ रही है। वह अपने परिवार के साथ थी , इस तरह हिम्मत नहीं पड़ रही थी कि उससे बात करुं किन्तु इस प्रतीक्षा में अवश्य थी कि वो इधर देखे।
तुम उधर क्या देख रही हो ? कुछ और मांगना है, तो मंगा लो ! किशोर ने, करुणा से पूछा।
देखो !मेरी सहेली, दिव्या ! ध्यान है, हम लोग इसकी शादी में गए थे। इसका विवाह हमसे पहले हुआ था।
आपसे पहले इनका विवाह हुआ ,तो पापा और आप साथ कैसे ?बेटे ने प्रश्न किया।
हमने इनकी सगाई पहले करवा दी थी ,किशोर ने शर्त रखी थी ,विवाह नौकरी लगने के पश्चात करूंगा ,करुणा की सास ने बच्चों को बताया।
किशोर ने लापरवाही से उधर देखा और बोला -इस तरह किसी को देखना अच्छा नहीं लगता ,हो सकता है वह दिव्या न हो, कोई और हो, उसके तो लंबे बाल थे साड़ी पहनती थी और ये.......
बदल गई है , वही तो मैं सोच रही हूं ,इसने अपने को कितना बदल दिया है ?अब मिली है ,तो बात करके ही जाऊंगी। खाना खाते हुए दिव्या ने भी, इधर-उधर देखा, तब अपनी तरफ किसी को देखते हुए देखा। पहले तो उसने नजर घुमा ली किंतु तुरंत ही , गर्दन घुमाकर बोली -करुणा !
करुणा तो पहले से ही, उससे बात करने के लिए तड़प रही थी। उसने अपने आप को इतना बदल दिया था किंतु करुणा तो वही थी। दोनों ने हाथ हिलाया , यह तो प्रमाणित हो गया कि यह, कोई और नहीं दिव्या ही है।
